• Hindi - सामाजिक कहानियाँ

    मथुरा मोड़

    आरव चौबे सुबह की चाय जैसे यमुना के पानी में उगता सूरज घोल देता है—गुनगुना, धुएँ-सा। विश्राम घाट पर घंटियों की अनगिन गूँज है; आरती का आख़िरी स्वर हवा में तैर रहा है। धूल-मिट्टी, धूप और भीगे पत्थरों की ख़ुशबू को माँ सरोज की उबलती चाय की भाप अलग से पहचान दिला रही है। “राघव! कप धो दिये?” सरोज ने चूल्हे के पास से गर्दन घुमाई। “हो गये, अम्मा,” राघव ने बेंत की टट्टी पर सूखते गिलास उलटते हुए कहा। उसकी हथेलियाँ नाव की रस्सियों जैसी थी—ख़ुरदरी पर भरोसेमंद। कल्लू अपना ऑटो किनारे खड़ा करके आया, “दो कटिंग इधर भी…

  • Hindi - हास्य कहानियाँ

    शर्मा जी का नया फोन

    मयंक श्रीवास्तव दुकान से घर तक का सफ़र शर्मा जी वैसे तो बिल्कुल सीधेसादे इंसान थे, लेकिन मोहल्ले में उनकी पहचान एक ऐसे शख्स की थी जिन्हें हर समय नई-नई चीज़ों का शौक चढ़ा रहता था। कल तक जो बड़े गर्व से लोगों को बताते घूम रहे थे कि “भाईसाहब, मेरा कीपैड वाला फोन पाँच साल से चल रहा है, बैटरी भी ओरिजिनल है”, वही शर्मा जी अचानक एक दिन मोहल्ले की मोबाइल शॉप से चमचमाता नया स्मार्टफोन लेकर लौटे। अब तक तो शर्मा जी उस पुराने फोन को अपने जीवनसाथी की तरह मान चुके थे। उसमें अलार्म भी मुश्किल…

  • Hindi - प्रेतकथा

    बरगद का वादा

    १ गाँव से ज़रा हटकर, कच्ची पगडंडी के किनारे, खेतों और बंजर ज़मीन के बीच खड़ा था एक विशाल बरगद का पेड़। उसकी जटाएँ धरती से लटककर साँपों की तरह रेंगती थीं और उसका फैलाव इतना था कि बरसात के दिनों में आधा गाँव उसकी छाँव में आ सकता था। लेकिन यह छाँव गाँववालों के लिए सुकून नहीं, बल्कि डर का पर्याय थी। पेड़ के चारों ओर का इलाक़ा वीरान और सुनसान पड़ा रहता; न कोई पशु पास आता, न कोई इंसान। कहते थे कि बरगद के पत्तों की सरसराहट भी आम हवा की तरह नहीं, बल्कि किसी की फुसफुसाहट…

  • Hindi - प्रेतकथा

    नासिक का शिकारी

    आदित्य राणे जंगल की चेतावनी नासिक की सुबहें अंगूर के बाग़ों और पहाड़ियों की धुंध से शुरू होती हैं। सूरज की पहली किरणें जब त्र्यंबक के जंगलों पर गिरतीं, तो पूरा इलाका सुनहरी चादर से ढक जाता। लेकिन उसी सुंदरता के भीतर छुपा था एक ऐसा रहस्य, जिसके बारे में गाँव के लोग फुसफुसाते थे—सुपारीवान जंगल। सुपारीवान का नाम सुनते ही बुज़ुर्गों की आँखें भय से सिकुड़ जातीं। वे कहते—“दिन में यहाँ पेड़ों की सरसराहट अलग होती है, लेकिन रात में… रात में ये जंगल अपने असली रूप में ज़िंदा हो उठता है।” गाँव के छोटे बच्चे जब खेलते-खेलते उस…

  • Hindi - सामाजिक कहानियाँ

    छोटे-छोटे सुख

    आरव मिश्रा   भाग 1 – परिचय रामू की सुबह बाकी लोगों से बहुत अलग नहीं थी, पर उसमें कुछ खासियत थी जिसे वह खुद ही पहचानता था। उसकी आँखें भोर के हल्के उजाले के साथ खुल जातीं। घर छोटा था—मोहल्ले की तंग गलियों के बीच एक कमरे का मकान, जिसकी छत पर टीन की चादरें लगी थीं। गर्मियों में वे चादरें आग की तरह तपतीं और सर्दियों में उन पर ओस की बूंदें मोतियों की तरह चमकतीं। मगर रामू ने कभी शिकायत नहीं की। रामू की उम्र पैंतीस के आसपास थी। चेहरे पर हल्की दाढ़ी और माथे पर हमेशा…

  • Hindi - क्राइम कहानियाँ

    काशी की अधूरी लाशें

    अभय वशिष्ठ अध्याय १ वाराणसी की सुबहें अक्सर गंगा आरती की गूंज, शंखनाद और मंत्रोच्चार से जीवंत हो उठती हैं, लेकिन इन दिनों घाटों पर एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था। गंगा के किनारे बहती ठंडी हवा भी अब लोगों के दिलों को सुकून नहीं दे रही थी, क्योंकि लगातार कुछ दिनों से घाटों पर अधजली लाशें मिलने लगी थीं। काशी जैसे पवित्र नगर में, जहां मृत्यु को भी मोक्ष का द्वार माना जाता है, वहां अधजले शवों का यूं ही पड़े रहना एक असामान्य और भयावह दृश्य था। दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट—जहां हर रोज सैकड़ों…

  • Hindi - क्राइम कहानियाँ

    गुमशुदा दुल्हन

    अमृता वीर १ पंजाब का छोटा-सा कस्बा उस दिन रोशनी और संगीत से जगमगा रहा था। गलियों में बिछी झालरें और घर-घर से आती ढोलक की थाप पूरे माहौल को उत्सवमय बना रही थी। सर्दियों की हल्की ठंडी हवा में पकवानों की खुशबू, शहनाई की गूँज और औरतों की गिद्दा-भांगड़ा की आवाज़ें मिलकर एक रंगीन तस्वीर बना रही थीं। अर्जुन सिंह, कस्बे के एक सम्मानित परिवार का बेटा, आज दूल्हा बना था। उसकी बारात घोड़ी पर सजी धजी, चमकदार लाइटों और ढोल-नगाड़ों के बीच निकली तो मोहल्ले भर के लोग देखने निकल आए। उधर सिमरन कौर, गाँव के किनारे बसे…

  • Hindi - क्राइम कहानियाँ

    शिकारी और शिकार

    आकाश गुप्ता १ भोपाल की रात उस रोज़ असामान्य रूप से सन्नाटेदार थी। बरसात अभी-अभी थमी थी और सड़कों पर जगह-जगह पानी जमा था, स्ट्रीट लाइट्स की पीली रोशनी उस पानी में प्रतिबिंबित हो रही थी। पुराने भोपाल की तंग गलियों से लेकर नए शहर की चौड़ी सड़कों तक हर जगह नमी और ठंडक फैली थी। रात के करीब बारह बज रहे थे जब अचानक वीआईपी रोड पर एक कार की तेज़ ब्रेक लगने की आवाज़ गूंजी, फिर किसी के चीखने जैसी हल्की ध्वनि, और उसके बाद टायरों के घिसटने की गंध के साथ एक कार अंधेरे में ग़ायब हो…

  • Hindi - नैतिक कहानियाँ - फिक्शन कहानी

    राख से रोशनी

    समीर चौहान भाग 1 — शुरुआत का सपना लखनऊ की पुरानी गलियों में सर्दी की धूप धीरे-धीरे उतर रही थी। आयुष वर्मा बालकनी में खड़े होकर चाय की भाप में खोया था। कप उसके हाथ में था, लेकिन दिमाग कहीं और। नौकरी में आज प्रमोशन मिला था, लेकिन दिल में कोई खुशी नहीं थी। दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर मैनेजर बनना उसके कॉलेज के दोस्तों के लिए सपनों जैसी बात थी, मगर आयुष के लिए… ये बस एक और महीने का वेतन था, जो बैंक अकाउंट में जमा होकर ईएमआई और बिलों में गुम हो जाएगा। बालकनी से…

  • Hindi - क्राइम कहानियाँ

    ठाकुर का आख़िरी भोज

    १ अगस्त की उमस भरी दोपहर थी, जब हवेली के पुराने दरवाज़े पर पीतल की घंटी तीन बार बजी और नौकरों ने बड़े हॉल में गूँजती आवाज़ में ऐलान किया—“ठाकुर साहब का फरमान! इस बरस सालाना भोज का आयोजन पूरे ठाठ-बाट से होगा।” यह खबर जैसे ही हवेली के भीतर पहुँची, आँगन में बैठी ठाकुराइन सावित्री देवी की आँखों में हल्की सी चमक आई, वहीं बरामदे में पान चबाते बड़े बेटे दिवाकर ने भौंहें सिकोड़ लीं। गाँव में ये सालाना भोज कभी ठाठ-बाट की पहचान था, लेकिन पिछले दस सालों से बंद पड़ा था—कुछ लोग कहते थे ठाकुर साहब की…