अनुपमा गुप्ता अध्याय १ – पुरानी लाइब्रेरी का रहस्य गाँव के परित्यक्त हिस्से में कदम रखते हुए आदित्य के भीतर एक अजीब-सी सनसनी दौड़ गई। वह गाँव, जहाँ समय जैसे ठहर गया था, टूटी-फूटी हवेलियों, सूनी गलियों और सूख चुके कुओं के बीच भूतहा-सा माहौल पेश करता था। आदित्य एक युवा शोधकर्ता था, जिसके भीतर इतिहास और अतीत के रहस्यों को खंगालने की अटूट जिज्ञासा थी। शहर से आए इस पढ़ाकू युवक ने गाँव के लोगों से सुना था कि पुराने ज़माने में यहाँ एक बड़ी हवेली के भीतर विशाल लाइब्रेरी हुआ करती थी, जहाँ दुर्लभ ग्रंथ, पांडुलिपियाँ और तंत्र-मंत्र…
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दिनेश कुमार गाँव के ठीक बीचों-बीच खड़ा वह बरगद का पेड़ सदियों पुराना था, जिसकी फैली हुई जटाएँ और चौड़ी शाखाएँ गाँव की पहचान मानी जाती थीं। दिन के उजाले में यह पेड़ गाँववालों का आश्रय स्थल होता—कोई किसान हल चलाने से पहले थोड़ी देर इसकी छाँव में बैठकर बीड़ी सुलगा लेता, बच्चे इसकी झूलती जड़ों को झूले की तरह पकड़कर खेलते, और दोपहर की तपिश से थके मजदूर इसकी ठंडी छाँव में सुस्ताने आ जाते। बरगद की ठंडी छाया में गाँव का चौपाल भी लगता, जहाँ बुजुर्ग अपने अनुभव साझा करते और लड़के-लड़कियाँ खेलकूद में मशगूल रहते। लेकिन जैसे…
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Vishal Varshney भैरवपुर गाँव बहुत साधारण था, चारों तरफ़ खेत, पीपल का पुराना पेड़, और बीच में मंदिर। लेकिन इस गाँव पर एक अनोखी छाया हमेशा से रही थी। हर पीढ़ी में बुज़ुर्ग बच्चों को चेतावनी देते थे— “जब आकाश में लाल तारा चमके, दरवाज़े बंद कर लेना… वो है काल सितारा।” गाँव के लोग मानते थे कि यह सितारा हर बार किसी एक जीवन की बलि लेता है। और बलि का स्थान अक्सर वही पुरानी हवेली होती थी, जो गाँव के छोर पर खंडहर की तरह खड़ी थी। लाल तारे की रात एक अमावस की…
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आकाश बर्मा नए किरायेदार परिवार के आने के साथ ही उस हवेली जैसे पुराने घर में एक अनकहा जीवन लौट आता है। हवेली बरसों से वीरान पड़ी थी—उसकी दीवारों पर समय की परतें जम चुकी थीं, रंग उखड़कर झड़ चुके थे और खिड़कियों पर धूल और मकड़ी के जाले ऐसे चिपके थे जैसे वे घर की असली सजावट हों। इस पुरानेपन के बीच भी उस घर की एक अलग भव्यता थी, मानो समय के प्रवाह के बावजूद वह अब भी अपने शान और रहस्यमय ठाठ को बचाए हुए हो। परिवार ने जब पहली बार उस हवेली में कदम रखा तो…
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१ कस्बे के बाहर, पुराने बरगद और पीपल के पेड़ों की छाँव तले एक सदियों पुराना गिरिजाघर खड़ा है—टूटी-फूटी दीवारों, झुकी हुई छत और काई से ढकी मूर्तियों के साथ। कभी यह जगह क्रिसमस की भव्यता का केंद्र हुआ करती थी। दूर-दूर से लोग यहाँ आते, प्रार्थनाएँ होतीं, और रंग-बिरंगी रोशनियाँ गिरिजाघर की खिड़कियों से छनकर बाहर फैल जातीं। लेकिन वक्त की मार, मौसम की बेरहमी और एक अजीबोगरीब हादसे ने इसे वीरान कर दिया। अब यह सिर्फ एक खंडहर है, जहाँ हवा से चरमराती दरवाजों की आवाज़ सुनाई देती है और टूटी हुई काँच की खिड़कियाँ रात में चमकते…
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सार्थक अग्रवाल भाग 1 — पुरानी हवेली का दरवाज़ा शाम की आख़िरी रोशनी छोटे से कस्बे शिवपुर की सड़कों पर रेंगते-रेंगते पतली हो रही थी जब अर्जुन ने बस से उतरकर अपना बैग कंधे पर डाला और चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई; स्टेशन नहीं, बस अड्डा भी ठीक से नहीं—एक खुला सा चौराहा, दो चाय की टिन की दुकानों के बीच से पराठे की घी वाली गंध, और दूर क्षितिज पर काली होती रेखा, जिसके पीछे वह हवेली थी जिसके बारे में शहर में फुसफुसाहटें चलती थीं; उसके मोबाइल में नोट्स खुले थे—“शिवपुर, पुरानी हवेली, मालिक: ठाकुर हरिराम सिंह (1892–1947), कथाएँ:…
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अर्पण शुक्ला अध्याय की शुरुआत गर्म, सुनहरे रेगिस्तान की छवि से होती है, जहाँ सूरज की तेज़ किरणें रेत की लहरों पर चमकती हैं। आर्यन, सायली, करण और निधि, चार कॉलेज के दोस्त, अपनी बैकपैक में जरूरी सामान पैक कर, राजस्थान की असीमित रेगिस्तानी भूमि की ओर निकलते हैं। हर कोई इस यात्रा को लेकर उत्साहित और थोड़ा नर्वस महसूस कर रहा था, क्योंकि उनकी योजना सिर्फ पर्यटन या तस्वीरें लेने तक सीमित नहीं थी; उनका उद्देश्य प्राचीन स्थलों, भूतपूर्व किलों, और लोककथाओं में गहराई से उतरना था। कार की खिड़की से बहती हवा उनके चेहरे को छू रही थी,…
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१ राजस्थान की तपती दोपहर में जब रेत के ढेर सुनहरी चमक बिखेर रहे थे, उसी समय वीरेंद्र राठौड़ अपने सफर की थकान झेलते हुए गाँव में पहुँचा। गाँव छोटा था, लेकिन सदियों पुराने किलेनुमा घरों और मिट्टी के झोपड़ों से भरा हुआ। हर गली से गुजरते हुए उसे महसूस होता कि लोग उसे एक अजीब नज़र से देख रहे हैं—जैसे उसकी पहचान उनसे अलग हो, जैसे उसका मक़सद उन्हें पहले ही मालूम हो। गाँव के चौपाल पर बैठे बूढ़े धीरे-धीरे आपस में फुसफुसाते, और बच्चे डरते-डरते उसके बैग को देखते, मानो किसी अनजाने यात्री का सामान हमेशा रहस्य से…
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समीरा त्रिपाठी नई दिल्ली के बाहरी इलाक़े में फैला वह अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स पहली नज़र में बिल्कुल साधारण लगता था—ऊँची-ऊँची इमारतें, बच्चों के खेलने का पार्क, गाड़ियों की पार्किंग में जमी धूल और शाम को लौटते दफ़्तरियों की भीड़। लेकिन इमारत नंबर बी–7 का फ्लैट 203 किसी कारणवश हमेशा खाली रहता था। लोगों ने कई बार वहाँ किराएदार देखे थे, लेकिन कुछ ही हफ़्तों में वे सामान समेट कर चले जाते। पड़ोसियों की बातें थीं कि रात के समय उस घर से अजीब आवाज़ें आती हैं—कभी फुसफुसाहट, कभी फर्नीचर खिसकने की, कभी किसी के धीमे-धीमे रोने की। मगर इन सब कहानियों…
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अविनाश त्रिपाठी १ गांव के बीचोंबीच, ऊँचे-ऊँचे बरगद और पीपल के पेड़ों की छाया में, एक पुरानी हवेली खड़ी थी। चारों ओर जंगली घास ने ज़मीन को ढक लिया था और हवेली की दीवारें जगह-जगह से उखड़ चुकी थीं। बरसों की बरसात और धूप ने ईंटों पर काई जमा दी थी, मानो किसी ने उसे जानबूझकर त्याग दिया हो। टूटी खिड़कियों से आती हवा के साथ चरमराते दरवाज़ों की आवाज़ रात के सन्नाटे में किसी आत्मा की फुसफुसाहट सी लगती थी। कभी यह हवेली राजवीर सिंह के ज़मींदार परिवार की शान थी—जहां मेहमानों का तांता लगा रहता था, दावतें होती…