• Hindi - क्राइम कहानियाँ

    साया

    १ शाम के साढ़े नौ बज रहे थे। शहर के सबसे पॉश इलाके, वसंत विहार के बंगला नंबर 47 में एक अजीब सी शांति फैली हुई थी। बाहर तेज़ बारिश हो रही थी, और भीतर की दुनिया किसी रहस्य को अपने अंदर समेटे चुप थी। इस घर के मालिक, विवेक मल्होत्रा, एक नामचीन उद्योगपति थे जिनके व्यापारिक साम्राज्य का विस्तार देश के कई हिस्सों में था। उनका नाम अक्सर बिजनेस मैगज़ीन के पहले पन्ने पर छपता था, लेकिन आज उनकी एक और पहचान सामने आने वाली थी — एक मृतक की। घर का दरवाज़ा भीतर से बंद था, खिड़कियाँ हल्की-हल्की…

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    दोपहर का शिकार

    रौशन त्रिपाठी १ दोपहर का सूरज जयपुर की हवेलीनुमा गलियों को चटक सोने से भर रहा था। बाहर की दुनिया में चहल-पहल थी, लेकिन एक आलीशान अपार्टमेंट के अंदर, नैना वर्धन की आँखों में एक अलग ही हलचल थी। उसके लंबे भूरे बालों में हल्की लहर थी, आँखों में हल्का काजल, और होंठों पर वह मुस्कान — जो करोड़ों लोग स्क्रीन पर देखते थे। उसने ट्राइपॉड पर मोबाइल सेट किया, रिंग लाइट ऑन की, और कुछ देर तक खुद को स्क्रीन में देखा। वो जानती थी कि कैमरा चालू होते ही उसका किरदार चालू हो जाएगा — खुश, निडर, आत्मविश्वासी।…

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    खामोश गवाह

    अनिरुद्ध राजन मिश्रा वाराणसी की तंग गलियों में वो रात कुछ ज्यादा ही खामोश थी, जैसे कोई बड़ा तूफान पहले ही सब उजाड़ चुका हो। इंस्पेक्टर अयान शुक्ला की जीप जब कोतवाली इलाके की उस मोड़ पर पहुँची, तो चारों तरफ भीड़ जमा हो चुकी थी। लाल-नीली बत्तियों की चमक पुलिस की असहज उपस्थिति दर्ज करा रही थी, लेकिन वहां खड़ा हर शख्स जानता था — ये कोई आम मर्डर नहीं। “कौन है?” अयान ने उतरते ही पूछा। “साहब… एक औरत है,” कॉन्स्टेबल दुबे ने सिर झुकाते हुए जवाब दिया, “किसी ने सिर पर वार किया है, मौके पर ही…

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    खून की होली

    अशोक वर्मा एक रामपुर चकिया की संकरी गलियाँ उस दिन रंगों से भरी हुई थीं। हर घर की छत पर अबीर उड़ रहा था, गुलाल की महक और ढोल की थाप से पूरा गाँव झूम रहा था। ठेठ भोजपुरी गानों पर बच्चे-बूढ़े, औरत-मर्द सब अपनी-अपनी झिझकें छोड़ चुके थे। लेकिन उस जश्न के भीतर एक अनकहा डर छुपा हुआ था — डर रामबाबू सिंह की सत्ता का, डर उसके दरबार की चुप्पी का। पूरे गाँव को आमंत्रण मिला था उसके भव्य होली समारोह में, जो हर साल पंचायत भवन के प्रांगण में होता था। टेंट लग चुके थे, मंच बना…

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    साँझ के साए

    शिवांगी वर्मा सूर्य अस्त होते-होते बनारस की गलियों में साँझ की परछाइयाँ उतरने लगी थीं, और अस्सी घाट की सीढ़ियाँ रोज़ की तरह शांत और उदास थीं। गंगा की लहरों में हल्की-सी चांदी की चमक थी, लेकिन उस शाम घाट पर कुछ अजीब-सा सन्नाटा पसरा था। स्थानीय नाविक सोमू जब पानी से लौट रहा था, तभी उसने घाट के तीसरे पत्थर पर एक अधेड़ उम्र के आदमी को पड़ा देखा—गर्दन झुकी हुई, आँखें खुली पर निष्प्राण, गले में तुलसी की माला, और हाथ में एक फटा हुआ कागज़ जिसमें कोई संस्कृत श्लोक लिखा हुआ था। “श्रीमान जी…?” सोमू ने डरते…

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    हवलदार की डायरी

    मनीष कुमार तिवारी भोपाल की शाम में एक अजीब सी खामोशी थी, जैसे कोई पुरानी आवाज़ शहर की हवाओं में छुपी हुई हो। रामस्वरूप मिश्रा, पुलिस विभाग से सेवानिवृत्त हवलदार, का पार्थिव शरीर श्मशान से घर वापस नहीं आया था — वह वहीं राख बन चुका था, और अब केवल स्मृतियों में बचा था। उनके बेटे अभिषेक मिश्रा ने अनगिनत हाथ मिलाए, नम आँखें देखीं और एक अजीब से खालीपन को अपने भीतर महसूस किया। पंडित, रिश्तेदार और कुछ पुराने सहयोगी भी आए थे, लेकिन सबसे ज़्यादा चुभती थी वह चुप्पी जो उनकी माँ संध्या के चेहरे पर थी —…

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    धार्मिक भ्रम

    विक्रम यादव राजस्थान के एक शांत और ऐतिहासिक मंदिर नगर विश्णुप्रिया की गलियों में सुबह की ताजगी फैली हुई थी। देवांश कुमार, एक युवा और ऊर्जावान पत्रकार, अपनी यात्रा की शुरुआत करने के लिए यहाँ आया था। उसे इस बार अपने प्रतिष्ठित समाचार पत्र के लिए एक रिपोर्ट तैयार करने का कार्य सौंपा गया था। हर साल यहाँ बड़े धूमधाम से विश्णु मंदिर का वार्षिक उत्सव मनाया जाता था, और देवांश को इस उत्सव की कवरेज करनी थी। इस प्रकार के धार्मिक आयोजन हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रहे थे, लेकिन देवांश का ध्यान कुछ और ही था। उसने…

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    चुप रहो, वरना…

    रश्मि सावंत नोएडा के पॉश सेक्टर में बने ‘एलिट वैली’ टावर की दसवीं मंज़िल पर सुबह की धूप खिड़की के मोटे शीशों से छनकर अंदर आ रही थी। फ्लैट के अंदर हर चीज़ करीने से सजी—सफेद दीवारों पर न्यूनतम आर्टवर्क, अलमारी पर बच्चों की तस्वीरें, और एक कोने में एलेक्ज़ा पर बज रहा था—“गुड मॉर्निंग, प्रिय शर्मा।” प्रिय, हल्के पीले रंग की सूती साड़ी में, रसोई में चाय उबाल रही थी, पर उसकी नज़रें दरवाज़े के नीचे अटक गई थीं। किसी ने दरवाज़े के नीचे से एक लिफ़ाफा अंदर सरकाया था। वह पल भर के लिए थम गई। किसी ऑनलाइन…

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    रात की धुंध

    विक्रम चतुर्वेदी दिल्ली की पुरानी गलियों में सर्दियों की रातें हमेशा से रहस्यमयी रही हैं, लेकिन उस रात की धुंध कुछ अलग थी—जैसे हवा में अजीब सी गंध घुली हो, जैसे पुरानी कहानियाँ अचानक फिर से ज़िंदा हो उठी हों। रात के करीब ढाई बज रहे थे जब पुरानी दिल्ली के एक तंग गली में एक मृत शरीर मिला। कोहरे की मोटी चादर के बीच झांकती स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी में उसका चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था, लेकिन जो दिख रहा था, वो डरावना था—उसके चेहरे पर गहरी दहशत की झलक थी, जैसे मौत से पहले उसने कुछ…

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    मिर्ज़ापुर के पत्थर

    मयंक दुबे मिर्ज़ापुर की सुबहें शांत दिखती थीं, लेकिन ज़मीन के नीचे खदबदाता था कुछ ऐसा जो इंसानी आंखों से नहीं दिखता था। उस दिन भी सूरज वैसा ही उगा था—रंगीन, गर्म और निर्दोष, जैसे खदान के पास के गाँवों में हर सुबह उगता है। लेकिन खदान नंबर-17 में काम कर रहे मजदूरों की चीखों ने उस सुबह को झकझोर दिया। रामऔतार नाम का बुज़ुर्ग मजदूर, जिसकी पीठ झुकी थी लेकिन नज़रें सीधी चलती थीं, पत्थर तोड़ते-तोड़ते अचानक ज़मीन के अंदर समा गया। साथी मजदूरों ने सोचा कोई दरार होगी, पर जब उसे निकाला गया, तो उसकी खोपड़ी पीछे से…