मनोज नायक पहला अध्याय राकेश की ज़िंदगी की सुबह हमेशा की तरह उठी, लेकिन आज का दिन उसके लिए खास था। एक ऐसी शुरुआत जो उसके लिए सिर्फ नए सपनों का नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारियों और चुनौतियों का भी आगाज़ था। वह उस मोड़ पर था जहां उसके परिवार की आर्थिक स्थिति में बदलाव आना था। लेकिन यह बदलाव आसान नहीं था। यह बदलाव था पहला लोन लेने का — पहली बार EMI चुकाने का। मिडिल क्लास परिवार में पले-बढ़े राकेश को पता था कि पैसा कमाना आसान नहीं है। वह अपनी नौकरी में दिन-रात मेहनत करता था, लेकिन कभी-कभी लगता…
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रीनी शर्मा दिल्ली का जनवरी महीने का मौसम था। हल्की ठंड, कोहरे की चादर और भीड़-भाड़ से भरी सड़कें। हर इंसान जैसे किसी अदृश्य घड़ी की सुई के पीछे दौड़ रहा था—बिना रुके, बिना पूछे कि ये दौड़ किसके लिए है? इन्हीं लाखों चेहरों में एक चेहरा था अर्जुन मेहरा का—32 वर्षीय, सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाला एक सामान्य कर्मचारी। हाइट 5’10”, छरहरा शरीर, हल्की दाढ़ी, आँखों में थकान और मन में एक स्थायी बेचैनी। हर दिन उसकी ज़िंदगी का रूटीन घड़ी की सुई से बंधा था—सुबह 7 बजे उठना, 8 बजे मेट्रो पकड़ना, 9 बजे ऑफिस पहुँचना, 12…
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विवेक मिश्रा शाम के साढ़े पांच बजे का वक्त था। आसमान धीरे-धीरे नारंगी से जामुनी होता जा रहा था। धूप की आखिरी किरणें गांव के पुराने पीपल के पेड़ों से छनकर मिट्टी पर पड़ रही थीं, और कहीं-कहीं से झींगुरों की आवाज़ें हवा में घुलने लगी थीं। यही वो वक़्त था जब रवि अपनी मोटरसाइकिल लेकर शांतिनगर की ओर बढ़ रहा था। सड़क सुनसान थी, पक्की नहीं — कच्ची मिट्टी से भरी हुई, और हर थोड़ी दूर पर गड्ढे। लेकिन रवि की आँखों में एक अलग ही चमक थी — वो एक पत्रकार था, जो ‘रहस्य’ की तलाश में गांव-गांव…
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अनिरुद्ध त्रिपाठी जनवरी की ठंडी सुबह थी। कुंभ मेले का शोर हर दिशा में गूंज रहा था — गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम तट पर आस्था और भक्ति की एक अलग ही दुनिया बसी थी। साधु-संतों की आवाज़ें, ढोल-नगाड़ों की थाप, मंत्रों की गूंज और दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं का उत्साह — सबकुछ मानो किसी दैवी रंगमंच का हिस्सा हो। आठ साल का आरव अपने माता-पिता और बड़ी बहन समीरा के साथ पहली बार कुंभ मेले में आया था। छोटे शहर के इस मध्यमवर्गीय परिवार के लिए यह यात्रा एक धार्मिक कर्तव्य से बढ़कर एक पारिवारिक उत्सव थी। “माँ,…
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शर्मिष्ठा दीक्षित दिल्ली यूनिवर्सिटी के साउथ कैंपस में नए सत्र की चहल-पहल थी। अगस्त की उमस भरी सुबह, बादलों की ओट से झांकती धूप, और कॉलेज की पुरानी बिल्डिंग के गलियारे, सब कुछ जैसे किसी नई कहानी के लिए तैयार खड़ा था। पहला साल, नया कॉलेज, नई किताबें, और अनगिनत अनजाने चेहरे। इन्हीं चेहरों में था आरव माथुर—काफी हद तक लड़कियों के बीच लोकप्रिय, लेकिन खुद को “सीरियस नहीं हूं” कहने वाला लड़का। आरव की आंखों में शरारत और दिल में कहानियों का समंदर था, जो आज तक किसी ने ठीक से पढ़ा नहीं था। वो क्लास के पहले दिन…
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हिमांशु वर्मा १ डॉ. समीर वर्मा के लिए विज्ञान सिर्फ एक पेशा नहीं था—वह उनका जुनून था, उनका सपना था, उनका अस्तित्व था। दिल्ली यूनिवर्सिटी के थ्योरीटिकल फिजिक्स विभाग में कार्यरत समीर उन विरले वैज्ञानिकों में से थे, जो विज्ञान को महज फॉर्मूलों और समीकरणों तक सीमित नहीं मानते थे, बल्कि उसमें जीवन के हर सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करते थे। समीर का बचपन एक छोटे कस्बे में बीता था। वहाँ की धूलभरी गलियों में उन्होंने न जाने कितनी बार तारों को ताकते हुए अपने आप से पूछा था—“क्या हम वाकई वक्त में पीछे जा सकते हैं? क्या…
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रवि शर्मा 1 शहर के बाहरी इलाके में एक वीरान मकान था, जिसके चारों तरफ कंटीली झाड़ियों का घेरा था। लोग कहते थे कि वहां रात में अजीब आवाजें सुनाई देती हैं। किसी ने बताया था कि सालों पहले वहां एक कत्ल हुआ था और वो मकान तब से वीरान पड़ा था। इंस्पेक्टर राघवन को रात के ग्यारह बजे पुलिस कंट्रोल रूम से कॉल आया। “सर, पुराना मकान… वहां चीखने की आवाजें आ रही हैं,” कांस्टेबल शर्मा ने घबराते हुए कहा। राघवन ने तुरंत जीप स्टार्ट की और शर्मा के साथ मौके पर पहुँचा। मकान के दरवाजे पर ताला नहीं…
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अध्याय 1: आगमन वाराणसी, प्राचीनता की जीवित परिभाषा। गंगा की गोद में बसी यह नगरी, समय के प्रवाह में भी स्थिर जान पड़ती है — जैसे हर पत्थर, हर मोड़, हर गली ने सदियों की कहानियाँ अपने भीतर समेट रखी हों। सुबह की आरती, शाम की गूंजती घंटियाँ, घाटों पर बैठे साधु, और तंग गलियों में झूलती रंग-बिरंगी साड़ियाँ — सब मिलकर एक ऐसा माहौल रचते हैं, जो किसी की आत्मा को झकझोर सकता है। और इसी शहर की एक पुरानी गली में, एक टूटी-फूटी टैक्सी रुकती है। दरवाज़ा खुलता है। एक लम्बा, दुबला-पतला युवक बाहर निकलता है — कंधे…
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स्वप्निल वर्मा दिल्ली की वो शाम बेहद भीगी हुई थी। जून का आख़िरी हफ्ता था और मौसम विभाग ने जिस बारिश की चेतावनी दी थी, वो अब हक़ीक़त बनकर शहर की सड़कों को बहा ले जा रही थी। बिजली चमक रही थी, ठंडी हवाएं चल रही थीं और हर गली-मोहल्ला जैसे पानी के नीचे डूबा हुआ था। राजौरी गार्डन के पास एक पुराना बस स्टॉप था जहाँ लोग बारिश से बचने के लिए जमा हो गए थे। वहीं खड़ा था आरव — २७ साल का, एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाला सीधा-सादा लड़का। कंधे पर लैपटॉप बैग, हल्के गीले…
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निहारिका शर्मा आठवीं कक्षा का छात्र अंशुल एक सामान्य लड़का था — न बहुत होशियार, न बहुत शरारती। लेकिन एक चीज़ जो उसे सबसे अलग बनाती थी, वो थी उसकी जिज्ञासा। उसे मशीनों से, तारों से, घड़ी के पुर्ज़ों से खेलना बेहद पसंद था। जब उसके दोस्त क्रिकेट खेलते या वीडियो गेम में खोए रहते, अंशुल अपने घर की छत पर बने छोटे-से कमरे में कुछ न कुछ जोड़-तोड़ में लगा रहता। उसके पापा, प्रोफेसर नीरज वर्मा, एक वैज्ञानिक थे, जो कभी ISRO में काम करते थे। अब वे एक निजी लैब में नई-नई तकनीकों पर रिसर्च करते थे। अंशुल…