• Hindi - प्रेम कहानियाँ

    धीरे धीरे तुम्हारी ओर

    सौरभ मिश्र भाग १ नींबू की गंध अक्सर गर्मियों की दोपहर में तेज़ लगती है। मगर उस दिन, जब सपना पहली बार हमारे मोहल्ले में आई थी, नींबू की गंध में कुछ धीमा था, जैसे वो अपनी ही खुशबू से शरमा रही हो। मैं दरवाज़े के पास बैठा था, पीतल के गिलास में नींबू पानी था, और माँ के कहने पर मैंने उसमें काला नमक डाला था। तभी उसने पूछा — “नींबू ज़्यादा है ना?” मैंने उसे देखा। उसकी आँखें नींबू के रस से नहीं, किसी और ही ख्याल से भरी थीं। मैंने हाँ कहा या ना, ये मुझे याद…

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    वो बारिश की आखिरी बूँद

    अन्वी शर्मा मसूरी की वादियाँ उस दिन कुछ ज़्यादा ही ख़ामोश थीं। हल्की बारिश की बूँदें पेड़ों की पत्तियों से फिसलती हुई ज़मीन को चूम रही थीं, और दूर-दूर तक एक धुंधली सी चादर फैल चुकी थी। लाइब्रेरी की पुरानी लकड़ी की खिड़की से टिककर बैठी आव्या वही किताब फिर से पढ़ रही थी—‘निराला की कविताएं’। हर महीने कम से कम एक बार वो इस किताब को उठाती, जैसे किसी पुराने दोस्त से मिलने जाती हो। किताबों के उस शांत कमरे में हर चीज़ व्यवस्थित थी—टेबल पर रखे पुराने रिकॉर्ड कार्ड, आलमारी की चाभियों का गुच्छा, और दीवार पर टंगी…

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    खामोशियों में तुम्हारा नाम

    आर्या वर्मा स्टेशन की उस सुबह सर्दी की हल्की चादर ओढ़े दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन स्टेशन पर सुबह-सुबह हलचल कुछ ज़्यादा थी। ट्रेन के हॉर्न, कुलियों की आवाज़, चायवाले की पुकार—सब कुछ रोज़ जैसा ही था। लेकिन उस दिन कुछ अलग भी था, कुछ ऐसा जो आरव की दुनिया बदलने वाला था। आरव, एक चुपचाप रहने वाला लड़का, किताबों और कैमरों से दोस्ती करने वाला, पेशे से फोटोग्राफर था। उसे स्टेशन की भीड़ में कहानियाँ दिखती थीं—हर चेहरा, हर मुस्कान, हर विदाई में। वह उसी भीड़ को अपने कैमरे में कैद करने आया था। जब उसकी नज़र पहली बार उस…

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    तेरे नाम सा कुछ…

    शर्मिष्ठा दीक्षित दिल्ली यूनिवर्सिटी के साउथ कैंपस में नए सत्र की चहल-पहल थी। अगस्त की उमस भरी सुबह, बादलों की ओट से झांकती धूप, और कॉलेज की पुरानी बिल्डिंग के गलियारे, सब कुछ जैसे किसी नई कहानी के लिए तैयार खड़ा था। पहला साल, नया कॉलेज, नई किताबें, और अनगिनत अनजाने चेहरे। इन्हीं चेहरों में था आरव माथुर—काफी हद तक लड़कियों के बीच लोकप्रिय, लेकिन खुद को “सीरियस नहीं हूं” कहने वाला लड़का। आरव की आंखों में शरारत और दिल में कहानियों का समंदर था, जो आज तक किसी ने ठीक से पढ़ा नहीं था। वो क्लास के पहले दिन…

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    बरसात की वो शाम

    स्वप्निल वर्मा दिल्ली की वो शाम बेहद भीगी हुई थी। जून का आख़िरी हफ्ता था और मौसम विभाग ने जिस बारिश की चेतावनी दी थी, वो अब हक़ीक़त बनकर शहर की सड़कों को बहा ले जा रही थी। बिजली चमक रही थी, ठंडी हवाएं चल रही थीं और हर गली-मोहल्ला जैसे पानी के नीचे डूबा हुआ था। राजौरी गार्डन के पास एक पुराना बस स्टॉप था जहाँ लोग बारिश से बचने के लिए जमा हो गए थे। वहीं खड़ा था आरव — २७ साल का, एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाला सीधा-सादा लड़का। कंधे पर लैपटॉप बैग, हल्के गीले…