आरव मेहता भाग 1 : मुलाक़ात की ख़ामोशी दिल्ली की भीगी दोपहर थी। बरसात का मौसम हमेशा ही लोगों को अपने भीतर छिपे हुए जज़्बातों से मिलाता है। मेट्रो स्टेशन के बाहर लोग अपने-अपने रास्ते भाग रहे थे, किसी के हाथ में छाता था, किसी के कंधे पर बैग। उसी भीड़ में खड़ी थी आर्या, नीली सलवार-सूट पहने, बालों से टपकते पानी की बूँदें जैसे उसकी आँखों में चमक को और गहरा बना रही थीं। वह लाइब्रेरी से लौट रही थी, हाथ में किताबों का ढेर था। अचानक किसी ने पीछे से पुकारा— “सुनिए… आपकी किताब गिर गई।” आर्या ने…
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निखिल आनंद एपिसोड 1: पहली मुलाक़ात शाम ढल रही थी। शहर की सड़कों पर पीली बत्तियाँ जल चुकी थीं और हवा में नमी का हल्का-सा स्वाद था। किसी पुराने फ़िल्मी गीत की धुन पास के पानवाले की दुकान से छनकर आ रही थी। भीड़ के बीच भी कभी-कभी अकेलापन उतना ही गहरा लगता है जितना वीराने में। और उसी अकेलेपन में वह पहली बार दिखी—गुलाबी सलवार-कमीज़ में, एक हाथ में किताब थामे, दूसरे हाथ से साइकिल संभालती हुई। आदित्य उस वक़्त कॉलेज के बरामदे में खड़ा था। वह इतिहास का लेक्चर ख़त्म कर चुका था और दोस्तों के साथ बाहर…
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अदिति देशपांडे १ अन्विता के लिए घर की चारदीवारी किसी कैदख़ाने से कम नहीं थी। सुबह की धूप जब परदों के बीच से छनकर कमरे में आती, तो भी उसमें कोई गर्माहट नहीं होती थी। उसके जीवन का हर दिन एक ही तरह का था—संघर्ष और चुप्पी का। रसोई की खटपट, दीवारों पर टंगी तस्वीरों की उदासी, और हर शाम दरवाज़े की आहट जब विवेक घर लौटता, तब उसका दिल अजीब-सा धड़कने लगता। विवेक का चेहरा देखना उसके लिए किसी कड़ी परीक्षा जैसा था—जहाँ हर शब्द में तिरस्कार, हर नज़र में ठंडापन, और हर चुप्पी में भारीपन छिपा होता। अन्विता…
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प्रियांशु त्रिवेदी भाग 1 : पहली मुलाक़ात वाराणसी की संकरी गलियाँ हमेशा से एक रहस्य समेटे रहती हैं—कभी पान की लाली से सजी हंसी, तो कभी मंदिर की घंटियों में घुली प्रार्थना। सूरज जैसे ही गंगा के ऊपर लालिमा फैलाता, घाट की सीढ़ियाँ जीवन से भर जातीं। ठीक ऐसे ही एक सुबह, दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती की तैयारी हो रही थी। भीड़ जमा हो चुकी थी, पुजारियों के मंत्रोच्चार वातावरण में घुल रहे थे, और हवा में अगरबत्ती का धुआँ लहराते हुए अतीत और वर्तमान को जोड़ रहा था। इसी भीड़ में थी आर्या—सफेद सूती सलवार में, हाथ में…
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अदिती वर्मा १ पहाड़ों की ओर रवाना होने से पहले कॉलेज के कैंपिंग ट्रिप का माहौल अपने आप में उत्साह और ऊर्जा से भरा हुआ था। आरव और नंदिनी अपने दोस्तों के साथ सुबह के समय कॉलेज परिसर में इकट्ठे हुए, जहाँ हर कोई अपने बैग में जरूरी सामान भर रहा था—तंबू, स्लीपिंग बैग, कैंपिंग कुकर, और कुछ जरूरी खाने-पीने की चीजें। सूरज की हल्की धूप और ताजगी भरी हवा ने माहौल को और भी रोमांचक बना दिया था। सभी छात्रों के चेहरे पर मुस्कान थी, और हर कोई इस बात से बेहद उत्साहित था कि अब वे शहर की…
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अदिति राठी भाग 1 – मुलाक़ात दिल्ली की सर्दियों में धूप किसी पुराने कंबल की तरह होती है—पतली, मगर भरोसेमंद। अनाया ने खिड़की पर टंगी धुले हुए कपड़ों की कतार के बीच से झांककर आकाश को देखा और घड़ी पर नज़र डाली। सुबह के आठ बजकर पैंतालीस। नौ बजे की ब्लू लाइन पकड़नी है। उसके फोन पर माँ का मैसेज चमका—“शाम तक सब्ज़ी ले आना, और अम्मा के लिए दवा भी।” उसने “ठीक है” टाइप किया, बैग उठाया और दुपट्टा कंधे पर पक्का किया। नोटबुक बैग के सबसे अंदर, जैसे कोई निजी पुड़िया — जिसमें नाम, जगहें और कुछ अधलिखी…
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समीरा आबरू पुराना लखनऊ उस शाम कुछ और ही रौनक में डूबा हुआ था। चौक की हवेली, जिसकी मेहराबों में अब भी पुराने ज़माने की नवाबी झलकती थी, आज रोशनियों से नहा रही थी। झूमरों की सुनहरी चमक, दीवारों पर लटकते रंग-बिरंगे पर्दे और आँगन में बिछे मोटे क़ालीन, सब मिलकर माहौल को एक अदबी जन्नत बना रहे थे। पान और इत्र की ख़ुशबू हवाओं में घुली थी, और शेर-ओ-शायरी के शौक़ीन लोग धीरे-धीरे महफ़िल में अपनी जगह तलाश कर रहे थे। शेरों की दबी-दबी गुनगुनाहट, मुस्कुराहटों और आदाब के सिलसिले ने महफ़िल को पहले ही गर्म कर दिया था।…
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सौरभ पांडेय भाग 1 – बनारस की रात बनारस स्टेशन की पुरानी घड़ी रात के ग्यारह बजकर पैंतीस मिनट दिखा रही थी और प्लेटफ़ॉर्म पर गाड़ियों की आवाजाही थम-सी गई थी, आख़िरी ट्रेन के इंतज़ार में कुछ बचे-खुचे यात्री धीरे-धीरे अपनी चादरें समेट रहे थे, कोई थैले से समोसा निकालकर खा रहा था, तो कोई चाय वाले की स्टील के गिलास से धुआँ उड़ाते हुए अपने थके चेहरे को राहत दे रहा था, और इसी भीड़ में कबीर हाथ में पुराना बैग थामे बेचैन नज़रों से ट्रैक की ओर देख रहा था क्योंकि उसे किसी भी हालत में ये आख़िरी…
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अन्वी शर्मा १ लखनऊ मेडिकल कॉलेज की सुबह हमेशा अलग होती थी—कभी नीले आसमान में सूरज की तेज़ धूप सीधी इमारतों की सफ़ेद दीवारों पर पड़कर चमक उठती, तो कभी बरामदों में टंगे नीले-हरे कोट और सफ़ेद लैब कोट हवा में झूलते रहते। उस सुबह कैंपस में एक अलग ही हलचल थी, क्योंकि नए बैच की कक्षाएँ शुरू हो रही थीं। हॉस्टल से निकलती लड़कियों के समूहों में हंसी-ठिठोली और लड़कों के बीच किताबें और नोट्स के बोझ तले दबे चेहरे—हर जगह एक ताजगी का माहौल था। इन्हीं चेहरों के बीच नायरा खान थी—दूसरे साल की मेडिकल स्टूडेंट, लेकिन नई…
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आरव मेहरा भाग 1 — अनजान आवाज़ उस रात दिल्ली की हवा में नमी थी और मेरी खिड़की पर महीन बारिश टपक रही थी। मैं लैपटॉप बंद करके बिस्तर पर गिरा ही था कि फोन बज उठा—एक नंबर जो पहले कभी नहीं देखा। मैंने उठाया, “हेलो?” दूसरी तरफ एक गहरी साँस, फिर धीमी आवाज़, “सॉरी… गलती से डायल हो गया।” उस स्वर में बारिश की-सी झनझनाहट थी। मैंने “कोई बात नहीं” कहा और कॉल कट गई। पाँच मिनट बाद वही नंबर फिर। “इस बार भी गलती?” मैंने मुस्कुराकर पूछा। वह बोली, “मत काटिए… बस पूछना था—क्या आपके यहाँ भी यह…