• Hindi - प्रेतकथा - रहस्य कहानियाँ

    अंतिम आरती

    हिमाचल की घाटियों में दिसंबर की रातें कुछ अलग ही किस्म की सन्नाटे से भरी होती हैं। हवा में बर्फ़ की गंध, पेड़ों पर जमीं सफेद चादर, और दूर कहीं से आती घंटियों की हल्की गूंज जैसे समय को रोक देती है। उन्हीं घाटियों में, देवदार के पेड़ों से घिरे एक पहाड़ी ढलान पर खड़ा है सेंट जोसेफ चर्च — एक पुराना, पत्थर का बना हुआ गिरिजाघर, जिसकी दीवारों में वक्त की सीलन और रहस्य दोनों बसे हैं। क्रिसमस के एक सप्ताह पहले की सुबह, जब गांव के लोग अपने घरों में लकड़ी जलाकर खुद को गर्म रखने में लगे…

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    अंधे कुएं की पुकार

    विराज कुलकर्णी १ उत्तर भारत के एक सुदूर गाँव में जब सरकारी जीप धूल उड़ाती हुई दाखिल हुई, तो सूरज अपनी नारंगी किरणें खेतों की मेड़ों पर बिखेर रहा था। गाँव का नाम ‘गहना’ था — और सच में, यह गाँव घने सन्नाटे से ढका हुआ था। डॉ. अदिति वर्मा खिड़की से बाहर झाँकती रही; मिट्टी की सोंधी गंध के बीच कुछ अजीब सा बेचैन कर देने वाला सन्नाटा था। रास्ते भर उसने सोचा था कि यह नई तैनाती उसके लिए एक ‘ब्रेक’ होगी — शहर की भागदौड़ से दूर, कुछ समय सुकून में बिताने का मौका। लेकिन जैसे ही…

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    भूतिया तिजोरी

    शुभदीप मिश्र वाराणसी स्टेशन की गर्म हवा में अजीब-सी गंध थी—कुछ धूप की, कुछ पुराने लोहे की, और कुछ जैसे समय की। शौर्य व्यास ने अपने ट्रॉली बैग का हत्था कसकर पकड़ा और भीड़ को चीरते हुए बाहर निकला। सालों बाद भारत लौटना उसे उतना अजनबी नहीं लगा, जितना लगा व्यास निवास का नाम सुनते ही मन में उभर आया अनकहा डर। वह तेरह साल का था जब उसके पिता की अचानक मौत के बाद मां ने उसे लंदन भेज दिया था, और तब से उसने कभी बनारस की ओर मुड़कर नहीं देखा। पर अब, वर्षों बाद, वकील के एक…

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    पंचम गली की आत्मा

    नवनीत मिश्रा बनारस के घाटों से दूर, पुराने शहर के भीतर एक मुड़ी-तुड़ी सी गलियों की भूलभुलैया में बसी थी पंचम गली — एक ऐसी जगह जो शहर के नक्शे में शायद दर्ज भी न हो, पर लोगों की यादों में सदी भर की कहानियाँ समेटे जीवित थी। यहीं पोस्टिंग हुई थी सब-इंस्पेक्टर अर्पित चौधरी की। अपने कंधों पर सख्त बूटों की टकटक, आँखों में यकीन और जेब में पिता का पुराना कम्पास लिए, अर्पित ने पहली बार उस गली में कदम रखा था जब दिन उतरकर संध्या की बाँहों में समा चुका था। गली की हवा में एक अजीब…

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    पूर्णिमा की रात

    श्रुति चतुर्वेदी अध्याय १: चाँदनी और लोककथा कुमाऊँ की पहाड़ियों में बसा वह छोटा सा गाँव अपनी ठंडी हवाओं, चीड़ के ऊँचे-ऊँचे वृक्षों और सदियों पुरानी लोककथाओं के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। बरसों से बुजुर्गों की कहानियों में एक रहस्य जिंदा था—पूर्णिमा की रात एक सफेद साड़ी में लिपटी औरत की परछाईं तालाब की ओर जाती दिखती थी, जिसके होठों पर एक उदास लोकधुन होती थी। गाँव के बच्चों को पालने की कहानियों में, जवानों को चेतावनी के रूप में और बूढ़ों के डरावने अनुभवों में यह परछाईं बार-बार आती थी। कहते थे, जो भी उस गीत के पीछे…

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    द्रूपदी की आवाज़

    रागिनी जैन अध्‍याय १: शालिनी और विशाल, दिल्ली से एक नई शुरुआत करने के लिए सिक्किम के एक छोटे से गांव में आकर बस गए थे। यह फैसला उन्होंने बहुत सोच-समझ कर लिया था। दोनों का मानना था कि शहर की भीड़-भाड़ और व्यस्तता से दूर, पहाड़ों में एक शांत जीवन जीना उनके लिए सबसे सही था। विशाल एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था और शालिनी एक डिजाइनर, जिनके पास अब अपने सपनों को पूरा करने का समय था। सिक्किम के प्राकृतिक सौंदर्य ने उन्हें आकर्षित किया था, लेकिन इस जगह का ठंडा और घना मौसम, यहाँ के कठिन रास्ते, और अलग-अलग…

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    भूतों का मेला

    १ राजस्थान की तपती धरती पर बीकानेर से करीब ८० किलोमीटर उत्तर-पश्चिम की ओर बसे कर्णसर गाँव की ओर बढ़ते हुए विराज प्रताप शेखावत के कैमरे का लेंस हर बंजर टीले, हर झुलसे पेड़, और हर झोंपड़ी को अपनी स्मृति में कैद कर रहा था। उसकी SUV रेत में बार-बार धँसती, पर चालक रफीक के अनुभव से रास्ता मिल ही जाता। विराज के पास बस एक अधूरी रिपोर्ट, एक पुराना नक़्शा, और अपनी गुमशुदा सहयोगी अन्वी चतुर्वेदी की फील्ड डायरी की कुछ जली पन्नियाँ थीं। चैनल हेड उसे इस स्टोरी से हटा चुका था—“लोककथाओं के पीछे वक्त ज़ाया न कर,…

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    नीली चूड़ियों की आवाज़

    सोनल शर्मा पहली रात बसेरिया में प्राची मिश्रा की कार धूल उड़ाती हुई जब बसेरिया गांव के छोर पर पहुँची, तब शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे। चारों ओर पीली रोशनी में नहाया खेत, सूखी घास की सरसराहट और दूर कहीं पीपल के पेड़ पर बैठे कौवे की कांव-कांव। उसने कार से उतरते हुए कैमरा और बैग उठाया, मोबाइल की लो बैटरी का नोटिफिकेशन नजरअंदाज़ किया, और अपनी डायरी जेब में खिसका ली। दिल्ली से करीब आठ घंटे की दूरी पर स्थित बसेरिया अब बस एक नाम भर रह गया था। कभी गुलजार रहा ये गांव अब जैसे साँसें…

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    मसान की दुल्हन

    तपन मिश्रा वाराणसी का स्टेशन, सुबह की भीड़, लाउडस्पीकर पर गूंजती announcements, और हवा में फैली एक चिरपरिचित गंध—धूप, धूल, और जलते घी की। अंशुमान का कैमरा उसकी छाती से लटका था, और उसकी आँखों में तलाश थी—एक अलग दुनिया की, उस लकीर के पार की जहाँ जीवन और मृत्यु हाथ थामे चलते हैं। वह पिछले कई महीनों से देश के अलग-अलग शहरों में डॉक्युमेंट्री शूट कर रहा था—अंधविश्वास, परंपरा, मृत्यु और पुनर्जन्म पर। लेकिन वाराणसी… वह जानता था, यहाँ कुछ और मिलेगा। स्टेशन से निकलते ही, उसे घाटों की ओर खींचती एक अदृश्य डोर ने जकड़ लिया था। जब…

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    पीपल का शाप

    शक्कर रञ्जन महापात्र जब बप्पा भानगढ़ी गाँव पहुँचा, तो आसमान धूसर था और धूप जैसे छिप कर बैठ गई थी। बस से उतरते ही उसे सबसे पहले महसूस हुआ मिट्टी की सोंधी गंध, जो बारिश से पहले की नमी जैसी लग रही थी। गाँव छोटा था, मगर उसकी खामोशी में कोई अजीब सी बात थी—जैसे कोई सब कुछ देखकर भी अनजान बना हो। स्टेशन से निकलकर वह जब कच्चे रास्ते पर चला, तो देखा कि बच्चे खेलते समय अचानक चुप हो जाते हैं, और बूढ़े अपनी छड़ी थामे, गर्दन झुका कर ऐसे निकल जाते हैं जैसे आँखें मिलाना कोई अपराध…