१ राजस्थान की तपती धरती पर बीकानेर से करीब ८० किलोमीटर उत्तर-पश्चिम की ओर बसे कर्णसर गाँव की ओर बढ़ते हुए विराज प्रताप शेखावत के कैमरे का लेंस हर बंजर टीले, हर झुलसे पेड़, और हर झोंपड़ी को अपनी स्मृति में कैद कर रहा था। उसकी SUV रेत में बार-बार धँसती, पर चालक रफीक के अनुभव से रास्ता मिल ही जाता। विराज के पास बस एक अधूरी रिपोर्ट, एक पुराना नक़्शा, और अपनी गुमशुदा सहयोगी अन्वी चतुर्वेदी की फील्ड डायरी की कुछ जली पन्नियाँ थीं। चैनल हेड उसे इस स्टोरी से हटा चुका था—“लोककथाओं के पीछे वक्त ज़ाया न कर,…
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सोनल शर्मा पहली रात बसेरिया में प्राची मिश्रा की कार धूल उड़ाती हुई जब बसेरिया गांव के छोर पर पहुँची, तब शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे। चारों ओर पीली रोशनी में नहाया खेत, सूखी घास की सरसराहट और दूर कहीं पीपल के पेड़ पर बैठे कौवे की कांव-कांव। उसने कार से उतरते हुए कैमरा और बैग उठाया, मोबाइल की लो बैटरी का नोटिफिकेशन नजरअंदाज़ किया, और अपनी डायरी जेब में खिसका ली। दिल्ली से करीब आठ घंटे की दूरी पर स्थित बसेरिया अब बस एक नाम भर रह गया था। कभी गुलजार रहा ये गांव अब जैसे साँसें…
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तपन मिश्रा वाराणसी का स्टेशन, सुबह की भीड़, लाउडस्पीकर पर गूंजती announcements, और हवा में फैली एक चिरपरिचित गंध—धूप, धूल, और जलते घी की। अंशुमान का कैमरा उसकी छाती से लटका था, और उसकी आँखों में तलाश थी—एक अलग दुनिया की, उस लकीर के पार की जहाँ जीवन और मृत्यु हाथ थामे चलते हैं। वह पिछले कई महीनों से देश के अलग-अलग शहरों में डॉक्युमेंट्री शूट कर रहा था—अंधविश्वास, परंपरा, मृत्यु और पुनर्जन्म पर। लेकिन वाराणसी… वह जानता था, यहाँ कुछ और मिलेगा। स्टेशन से निकलते ही, उसे घाटों की ओर खींचती एक अदृश्य डोर ने जकड़ लिया था। जब…
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शक्कर रञ्जन महापात्र जब बप्पा भानगढ़ी गाँव पहुँचा, तो आसमान धूसर था और धूप जैसे छिप कर बैठ गई थी। बस से उतरते ही उसे सबसे पहले महसूस हुआ मिट्टी की सोंधी गंध, जो बारिश से पहले की नमी जैसी लग रही थी। गाँव छोटा था, मगर उसकी खामोशी में कोई अजीब सी बात थी—जैसे कोई सब कुछ देखकर भी अनजान बना हो। स्टेशन से निकलकर वह जब कच्चे रास्ते पर चला, तो देखा कि बच्चे खेलते समय अचानक चुप हो जाते हैं, और बूढ़े अपनी छड़ी थामे, गर्दन झुका कर ऐसे निकल जाते हैं जैसे आँखें मिलाना कोई अपराध…
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कविता राठौड़ भाग १: हवेली के द्वार पर अद्वैता के हाथ में कैमरा और बैग था, और दिल में एक अजीब सी उत्सुकता। दिल्ली विश्वविद्यालय में रिसर्च स्कॉलर थी वो—थीसिस का विषय था: “राजस्थान की लोककथाओं में भूत–प्रेत की उपस्थिति और उसका सामाजिक प्रभाव“। इस सिलसिले में वह पहुँची थी झुंझुनूं जिले के पास बसे एक छोटे से गाँव—आकनपुर। इस गाँव के बाहरी छोर पर स्थित थी—वो काली, विशाल, वीरान ठाकुर हवेली, जहाँ पिछली आधी सदी से कोई नहीं रहता। पर जहां हर रात दीयों की रौशनी और किसी औरत के रोने की आवाज़ आती थी—ऐसा गाँव वाले कहते थे।…
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रथिन गुप्ता अंधविश्वास की धरती लखनऊ की हलचल भरी गलियों और चमकती सड़कों से निकलते समय पावन त्रिपाठी के दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी। पत्रकारिता और ब्लॉगिंग की दुनिया में वह नाम तो कमा चुका था, लेकिन उसकी आत्मा को हमेशा कुछ अनछुए रहस्यों की तलाश रहती थी, जो लोगों की जुबां पर किस्सों की शक्ल में ज़िंदा होते हैं, लेकिन जिनकी सच्चाई किसी ने जानने की हिम्मत नहीं की। उसके हाथ में उसकी नोटबुक थी, जिस पर लिखा था – “काले पानी की हवेली – एक अनकही दास्तान”। उसने कई रातें इस हवेली के बारे में पढ़ने,…
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अनामिका तिवारी अध्याय १: वह शिलालेख धूप की किरणें पहाड़ की चोटियों को छूते हुए नीचे बसे गाँव को जगाने लगी थीं। पहाड़ी हवा में अभी भी रात की ठंडक बाकी थी। गाँव का नाम था “बद्रीनगर” — सघन देवदारों के बीच बसा एक छोटा-सा अज्ञात गाँव, जहाँ समय मानो रुक गया हो। बद्रीनगर की सबसे पुरानी विरासत थी — कालेश्वर मंदिर, जो गाँव से कुछ दूरी पर पहाड़ी की चोटी पर स्थित था। यह मंदिर न सिर्फ अपने स्थापत्य के लिए, बल्कि वहाँ लिखे एक शिलालेख के कारण भी प्रसिद्ध था — वह शिलालेख, जिसे कोई नहीं छूता, कोई…
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निहार राठौड़ राजगढ़ स्टेशन पर शाम के पाँच बज चुके थे, लेकिन उस छोटे से प्लेटफ़ॉर्म पर वक्त ठहरा हुआ लगता था। धूल से सनी पीली बेंचें, खामोश ट्रैक, और स्टील के पुराने खंभों पर टिमटिमाती मटमैली बत्तियाँ—सबकुछ जैसे किसी भूतपूर्व समय की तस्वीर हो। अर्जुन ठाकुर, तीस वर्ष का एक तेज़-तर्रार स्वतंत्र पत्रकार, दिल्ली से यहाँ सिर्फ एक मकसद लेकर आया था—ठाकुर हवेली के रहस्य को उजागर करना। उसके हाथ में एक पुराना, हल्का पीला लिफ़ाफा था, जिसमें केवल एक पंक्ति लिखी थी: “कमरा नंबर 9 को फिर से खोला जाना चाहिए। मेरा सच अब भी वहाँ बंद है।”…
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वह रास्ता और वह लड़की चाँदनी रात थी, लेकिन आकाश में बादलों की हल्की परतें तैर रही थीं। समय था रात के साढ़े नौ, जब राहुल और कबीर नैनीताल की ओर अपनी मारुति कार में चल रहे थे। दोनों दोस्त दिल्ली से वीकेंड ट्रिप पर निकले थे। हाईवे पर ट्रैफिक ज्यादा होने की वजह से कबीर ने एक शॉर्टकट लेने का सुझाव दिया—एक पुरानी, कम इस्तेमाल होने वाली सड़क जो जंगल के किनारे से होकर गुजरती थी। “GPS तो यही दिखा रहा है, भाई। दस किलोमीटर बाद फिर से हाईवे पकड़ लेंगे,” कबीर ने आत्मविश्वास से कहा। “तेरा GPS हमें…
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निरंजन पाठक राजीव शर्मा एक तेज़-तर्रार और तर्कशील पत्रकार था। वह हमेशा से उन कहानियों के पीछे भागता था, जिनमें रहस्य, सनसनी और थोड़ा खतरा हो। दिल्ली के एक प्रमुख न्यूज़ पोर्टल में काम करते हुए उसने कई बार विवादास्पद रिपोर्टों पर काम किया था, लेकिन अब वह कुछ अलग करना चाहता था — ऐसा कुछ, যা सिर्फ ख़बर न होकर, अनुभव बन जाए। एक दिन जब वह अपने पुराने कॉलेज के प्रोफेसर से मिलने गया, तब बातचीत में हिमाचल के एक छोटे से गाँव ज्योरीधार का ज़िक्र आया। प्रोफेसर बोले, “वहाँ एक पुरानी हवेली है, जिसे लोग ‘हवलदार की…