• Hindi - प्रेतकथा

    पैतालगाँव की पुकार

    सौरभ ठाकुर १ छत्तीसगढ़ की पहाड़ियों और जंगलों के बीच बसे अनछुए रास्तों पर अनिरुद्ध घोष की जीप धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। मौसम अजीब रूप से ठहरा हुआ था — न हवा, न चिड़ियों की चहचहाहट, बस पेड़ों की लंबी छायाएँ और कभी-कभी टायरों के नीचे कुचले पत्तों की आवाज़। अनिरुद्ध, जो कोलकाता का एक खोजी पत्रकार था, ऐसे ही अनजाने, लगभग भूले-बिसरे गाँवों की लोककथाओं और अंधविश्वासों पर रिपोर्टिंग करता था। इस बार उसे एक गुमनाम ईमेल के ज़रिए पैतालगाँव के बारे में पता चला था — “हर तीसरी रात, यहाँ कोई न कोई गायब हो जाता है……

  • Hindi - प्रेतकथा - रहस्य कहानियाँ

    हुसैनाबाद हवेली का रहस्य

    प्रताप श्रीवास्तव १ लखनऊ विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी की सबसे ऊपरी मंज़िल पर, जहाँ किताबों पर धूल की मोटी परत जम चुकी थी, वहीं एक कोने में बैठा था इतिहास विभाग का शोधार्थी विवेक मिश्रा। बाहर बारिश की बूँदें खिड़की की काँच पर थपकी दे रही थीं, लेकिन विवेक की आंखें जमी थीं उस पुराने नक्शे पर जिसे वह पिछले दो घंटे से उलट-पलट कर रहा था। नक्शा 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय का था—लखनऊ की गलियाँ, कोठियाँ, और हवेलियाँ उसमें चिन्हित थीं। अचानक उसकी नज़र एक धुँधले से नाम पर पड़ी—”रौशन मंज़िल”। ना किसी इतिहास की किताब में इसका…

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    पिंजरे की लड़की

    तृषा मिश्रा १ दिल्ली की भीड़भाड़ और धूल-धक्कड़ भरी गलियों से निकलकर जब डॉ. वेदिका माथुर उत्तर प्रदेश के उस सुदूर गाँव ‘बड़ागाँव’ पहुँची, तो सुबह के आठ बजे थे। बस स्टैंड पर बस ने झटके से ब्रेक लगाया था और साथ बैठे ग्रामीणों की बातचीत एक पल को थम गई थी। हाथ में जंग खाया लोहे का सूटकेस और कंधे पर लैपटॉप बैग लटकाए वेदिका जब उतरी, तो गाँव की गलियों ने उसका स्वागत सन्नाटे से किया। उसका उद्देश्य सीधा था—इस गाँव के मंदिर के पास रखे लोहे के एक रहस्यमयी पिंजरे के बारे में जानना, जिसके बारे में…

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    अंधेरे की पुकार

    आलोक पाण्डेय १ राजस्थान की तपती हुई धरती पर फैला हुआ था कर्णपुरा गाँव—एक ऐसा स्थान जहाँ गर्म हवाएँ दिन में साँय-साँय करती थीं और रात होते ही सब कुछ जैसे ठहर जाता था। चारों ओर बंजर ज़मीन, सूखे पेड़ों की छाँह, और रेत में गहराती चुप्पी। जुलाई की उस दोपहर में, जब सूरज अपनी पूरी प्रखरता से चमक रहा था, दिल्ली विश्वविद्यालय से रिसर्च स्कॉलर अन्वेषा शर्मा ने पहली बार इस गाँव की मिट्टी को छुआ। हाथ में डायरी, बैग में रिकॉर्डिंग डिवाइस और मन में ढेर सारे सवाल लेकर वह एक पुरानी जीप से उतरी, जो उसे शहर…

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    बेरोज़ा हवेली का अंतिम दीपक

    मानव वर्धन १ मध्य प्रदेश के भीतरी हिस्सों में बसा था एक पुराना, लगभग भुला दिया गया गाँव — बेरोज़ा। इस गाँव का नाम तक मानचित्रों में साफ़ नहीं दिखता था, लेकिन उसकी कहानियाँ लोकगीतों और बुज़ुर्गों की फुसफुसाहटों में अब भी ज़िंदा थीं। किसी जमाने में यह इलाका राजा वीरप्रताप सिंह के अधीन था, जिनकी विशाल हवेली अब वीरान पड़ी थी। हवेली की जर्जर दीवारें, छत पर उगी काई, टूटी खिड़कियाँ और सामने की परछाइयाँ — सब मिलकर उस जगह को किसी शापित चित्र की तरह बनाते थे। पत्रकार शौर्य वर्मा और उसकी कैमरा ऑपरेटर मित्र दीपिका उस दिन…

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    मृगतृष्णा

    निखिल देसाई १ कच्छ के सफेद रेगिस्तान में जब सूर्य ढलता है, तो आकाश किसी सूती कपड़े पर फैले सिंदूरी रंग-सा लगता है। ध्रुव पटेल ने कैमरे की लेंस से उस दृश्य को कैद करते हुए गहरी साँस ली। “WanderSoul.in” पर पोस्ट होने वाली यह उसकी अगली कहानी थी, और वह चाहता था कि यह कुछ अलग हो—कुछ ऐसा जो पाठकों को रेगिस्तान की गंध, उसके रंग और उसकी नीरवता तक पहुँचा दे। अहमदाबाद से आए हुए उसे तीन दिन हो चुके थे और रण उत्सव की भीड़-भाड़ से दूर वह भुज से लगभग सत्तर किलोमीटर दूर एक गांव, खुदर…

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    कान्हा के काले धागे

    प्रकाश पांडेय प्रवीर एक छोटे से गाँव गंगावटी में पहुंचा, जहाँ वह अपने जीवन की तकलीफों से बचने के लिए एक नया आरंभ करना चाहता था। अपनी मां की आकस्मिक मृत्यु के बाद, वह मानसिक रूप से पूरी तरह टूट चुका था। शहर के शोर-शराबे और हलचल से दूर इस शांत गांव में आने का उसका उद्देश्य सिर्फ यही था कि वह अपने भीतर शांति और सुकून पा सके। गंगावटी गांव नदियों और खेतों से घिरा हुआ था, जहां लोग अपनी सादी और कठिन जिंदगी जीते थे। गाँव की गलियों में टहलते हुए उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि…

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    नरसंहार की रात

    विराज नागपाल १ रघुवीर राणा की जीप जैसे ही कच्ची सड़क पर धूल उड़ाती हुई आगे बढ़ी, सामने के दृश्य ने उसे सहसा खामोश कर दिया। सड़क के दोनों ओर सरसों के खेत अभी हरे ही थे, लेकिन उन खेतों के बीचोंबीच खड़ी एक बूढ़ी हवेली अपने पुराने ज़ख्मों की तरह झुलसी हुई दिख रही थी। उसके टूटे छज्जे, काले पड़े झरोखे और छत की ढही हुई चौखटें उसे किसी युद्ध का थका हुआ सैनिक बना रही थीं। गाँव वालों ने पहले ही चेता दिया था — “उधर मत जाइयो, बाबूजी। वो खून वाली कोठी है।” लेकिन इतिहास और तस्वीरों…

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    अनुपमा

    १ रात का अंधेरा कुछ ज़्यादा ही घना था जब डॉक्टर रुचिका सावंत अपनी कार लेकर पुणे-मुंबई एक्सप्रेसवे पर निकल पड़ी। अस्पताल की ड्यूटी से छूटकर वो देर हो गई थी, और रात के ग्यारह बज चुके थे। उसके पास और कोई विकल्प नहीं था—अगले दिन एक जरूरी ऑपरेशन था, और वो चाहती थी कि रात में घर पहुँचकर थोड़ी देर माँ के हाथ का बना खाना खा ले और फिर आराम से नींद ले। उसका मन शांत नहीं था—वो खुद को थका हुआ महसूस कर रही थी, और ड्राइविंग में उसका ध्यान कम ही था। एक्सप्रेसवे के आसपास कोई…

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    रक्त कमल

    मालविका नायर १ समुद्र की लहरों की निरंतर गूंज और उस पर खड़ा बेकल किला — केरल की सबसे प्राचीन और रहस्यमयी किलों में से एक, जहाँ इतिहास केवल पत्थरों पर नहीं, हवाओं में दर्ज है। जान्हवी शर्मा की नजरों में ये किला सिर्फ एक वास्तुकला नहीं था, बल्कि एक अदृश्य आवाज़ थी जो सदियों से किसी को पुकार रही थी। दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में शोध कर रही जान्हवी तटीय दुर्गों पर काम कर रही थी, लेकिन जब उसने “रक्त कमल” के नाम से जुड़ी एक पुरानी मलयालम पांडुलिपि पढ़ी, तो वह विचलित हो उठी। उस लेख में उल्लेख…