• Hindi - प्रेतकथा

    अधूरी बारात

    मनीषा राठौड़ १ राजस्थान का रेगिस्तान दिन में तपती धूप और रात में सिहरन भरी ठंड से भरा रहता है। लेकिन इन सबके बीच, उस वीराने में बसा छोटा-सा गाँव धोराबावड़ी अपनी अजीबोगरीब दास्तान के लिए मशहूर है। यह गाँव चारों तरफ़ फैली रेतीली ढलानों और दूर-दूर तक बिछी झाड़ियों के बीच बसा है। दिन में ऊँटों की घंटियाँ और बच्चों की किलकारियाँ सुनाई देती हैं, लेकिन रात का नज़ारा एकदम अलग होता है—मानो पूरा गाँव साँस रोककर किसी अनदेखे मेहमान की प्रतीक्षा करता हो। गाँव के लोग मानते हैं कि हर साल सावन की अंधेरी रात, जब चाँद बादलों…

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    हिमालय का काला साधु

    १ उत्तराखंड की बर्फ़ से ढकी चोटियाँ सर्दियों की ठंडी साँसों के साथ रहस्यों को भी संजोए रहती हैं। यहाँ की वादियों में हर सरसराती हवा, हर बहती धारा, हर देवदार का पेड़ किसी पुरानी कहानी की गवाही देता है। स्थानीय गाँवों में अक्सर रात की अलाव बैठकों में बूढ़े बुजुर्ग एक ही कथा बार-बार सुनाते हैं—“काले साधु” की। यह साधु कोई साधारण संन्यासी नहीं था, बल्कि ऐसा सन्यासी जिसने अमरत्व की चाह में अपने जीवन को काले तंत्र की ओर मोड़ दिया। कहते हैं कि सदियों पहले उसने एक बर्फ़ीली गुफा को अपनी साधना का स्थान चुना और वहाँ…

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    बरगद का वादा

    १ गाँव से ज़रा हटकर, कच्ची पगडंडी के किनारे, खेतों और बंजर ज़मीन के बीच खड़ा था एक विशाल बरगद का पेड़। उसकी जटाएँ धरती से लटककर साँपों की तरह रेंगती थीं और उसका फैलाव इतना था कि बरसात के दिनों में आधा गाँव उसकी छाँव में आ सकता था। लेकिन यह छाँव गाँववालों के लिए सुकून नहीं, बल्कि डर का पर्याय थी। पेड़ के चारों ओर का इलाक़ा वीरान और सुनसान पड़ा रहता; न कोई पशु पास आता, न कोई इंसान। कहते थे कि बरगद के पत्तों की सरसराहट भी आम हवा की तरह नहीं, बल्कि किसी की फुसफुसाहट…

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    नासिक का शिकारी

    आदित्य राणे जंगल की चेतावनी नासिक की सुबहें अंगूर के बाग़ों और पहाड़ियों की धुंध से शुरू होती हैं। सूरज की पहली किरणें जब त्र्यंबक के जंगलों पर गिरतीं, तो पूरा इलाका सुनहरी चादर से ढक जाता। लेकिन उसी सुंदरता के भीतर छुपा था एक ऐसा रहस्य, जिसके बारे में गाँव के लोग फुसफुसाते थे—सुपारीवान जंगल। सुपारीवान का नाम सुनते ही बुज़ुर्गों की आँखें भय से सिकुड़ जातीं। वे कहते—“दिन में यहाँ पेड़ों की सरसराहट अलग होती है, लेकिन रात में… रात में ये जंगल अपने असली रूप में ज़िंदा हो उठता है।” गाँव के छोटे बच्चे जब खेलते-खेलते उस…

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    कालीन की नज़रों वाला घर

    १ कर्नाटक के एक पुराने शहर में अर्जुन वर्मा और उनकी पत्नी नैना वर्मा अपने बेटे रोहन के साथ नए जीवन की शुरुआत करने के लिए एक पुराना घर खरीदने का निर्णय लेते हैं। अर्जुन, जो इतिहास के प्रोफेसर हैं, और नैना, जो एक फ्रीलांस आर्टिस्ट हैं, दोनों ही शहर के शोरगुल से दूर, शांति की तलाश में थे। उनका नया घर शहर के बाहरी इलाके में स्थित था, एक ठंडे, शांति से भरे इलाके में, जहां हवा में एक अनूठी ठंडक थी और आस-पास के पेड़-पौधे इस क्षेत्र को और भी सुंदर बना रहे थे। घर का बाहरी हिस्सा…

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    पाँचवां कमरा

    कृष्णा तामसी १ चारों तरफ बर्फ की सफेद चादरें बिछी थीं और हरे देवदार के पेड़ जैसे किसी पुराने रहस्य को छिपाए खड़े थे। आरव मल्होत्रा की जीप धीरे-धीरे घने कोहरे को चीरती हुई हिमाचल के दुर्गम पहाड़ी रास्तों से गुजर रही थी। मोबाइल नेटवर्क कब का गायब हो चुका था और जीपीएस भी मानो बर्फ में जम चुका था। ड्राइवर संजय, जो गांव का ही था, बिना कुछ कहे बस गाड़ी चलाता जा रहा था। आरव अपने कैमरे से बर्फबारी की फुटेज लेने में मग्न था, जब उसने अचानक पूछा, “संजय भाई, कितनी दूर है वो गेस्ट हाउस?” संजय…

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    आख़िरी अपडेट

    दिल्ली के शाहपुर जाट इलाके की पतली गलियों में, एक पुरानी इमारत की तीसरी मंज़िल पर अवनि शर्मा ने हाल ही में किराए पर एक फ्लैट लिया था। मकान मालिक ने कहा था, “थोड़ा पुराना है, मगर शांत इलाका है।” अवनि को यही चाहिए था—शांति। एकाकी ज़िंदगी, कॉफी मग में भाप लेती शामें, लैपटॉप पर काम और दीवार पर टँगी किताबों की अलमारियाँ। वह एक डिजिटल मीडिया एडिटर थी और ज़्यादातर वक़्त घर से ही काम करती थी। फ्लैट छोटा था लेकिन खुला-खुला, जिसकी बालकनी से हौज खास के पुराने गुंबद दिखाई देते थे। मगर पहले ही दिन जब वह…

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    टेप रिकॉर्डर

    विराज जोशी १ ऋत्विक घोषाल एक ऐसे लेखक थे जिनकी आँखों में नींद नहीं, बल्कि पुराने समय की छवियाँ तैरती थीं। दिल्ली के करोल बाग के एक पुराने अपार्टमेंट की चौथी मंज़िल पर उनका छोटा सा कमरा था—दीवारें जर्जर, खिड़की से झांकती धूल, और हर कोने में बिखरे किताबों के ढेर जिनमें से ज़्यादातर रेडियो ड्रामा, पुरानी कहानियाँ और भारतीय ऑडियो आर्काइव्स पर केंद्रित थे। पिछले छह महीने से वह एक किताब पर काम कर रहे थे, जिसका विषय था: “बुलंद आवाज़ें – भारतीय रेडियो नाटकों का इतिहास”, लेकिन लेखन अब थकान बन चुका था। उसी थकान से उबरने के…

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    कंचनपुर की पिशाचनी

    शैलेश पटनायक १ बिहार के सुपौल जिले के पूर्वी छोर पर बसा था कंचनपुर गांव — खेतों और तालाबों के बीच झूमता हुआ एक शांत पर रहस्यमय संसार। दोपहर की गर्मी ढल रही थी जब नीलोत्पल मिश्रा और उसकी नवविवाहिता पत्नी संध्या, गांव की कच्ची सड़कों से गुजरते हुए अपने पुश्तैनी मकान के सामने पहुंचे। पुराने समय की लाली पुती दीवारें, टीन की छत और आंगन में खड़े आम और नीम के पेड़ गांव के परिवेश की आत्मा को जीवंत बनाए हुए थे। संध्या ने पहली बार इस मिट्टी की गंध को महसूस किया — नम, सोंधी, और किसी अनजाने…

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    गढ़वाल का मेहमान

    संजीव रावत १ गढ़वाल की घाटियों में शाम जल्दी उतरती है। सूरज के ढलते ही पहाड़ियों की परछाइयाँ लंबी होकर पूरी घाटी को निगल जाती हैं। नीरज रावत, अपने कंधों पर भारी बैकपैक लटकाए, एक संकरी बर्फ़ीली पगडंडी पर बढ़ रहा था। उसका मफलर बर्फ की सफ़ेद चादर में भीग चुका था और सांसें अब स्टीम की तरह बाहर निकल रही थीं। GPS सिग्नल कब का गायब हो चुका था और मोबाइल अब केवल टाइम दिखाने की मशीन बनकर रह गया था। वह अपने कैमरे से कुछ तस्वीरें लेने की कोशिश कर रहा था, लेकिन हाथ सुन्न पड़ने लगे थे।…