स्मृति चौहान
भाग 1 – मुलाक़ात
दिल्ली की उस ठंडी सुबह में हवा में हल्की धुंध घुली थी। कनॉट प्लेस की गोलाई पर कॉफ़ी शॉप्स की हलचल धीरे-धीरे बढ़ रही थी। भीड़ के बीच भी आरव को सब कुछ फीका लग रहा था। वह अपने लैपटॉप बैग को कंधे पर टाँगे एक पुरानी किताब की तलाश में ‘कॉफ़ी एंड पेजेज़’ नाम की बुक-कैफ़े में चला गया।
कैफ़े का लकड़ी का दरवाज़ा खोलते ही उसकी नज़र उस पर पड़ी। खिड़की के पास वाली टेबल पर बैठी वह लड़की, जिसके बालों पर हल्की धूप झलक रही थी। उसकी आँखें किताब में गुम थीं, मगर चेहरे पर एक अजीब-सी तसल्ली थी। वह किताब पढ़ते-पढ़ते पन्नों पर पेन से कुछ नोट्स भी बना रही थी।
आरव अनजाने ही उसकी ओर खिंचता चला गया। उसने सामने की खाली टेबल पर बैठने का नाटक किया, पर असल में उसकी निगाहें उसी पर थीं। लड़कियों को देखने का उसका अंदाज़ आम लड़कों जैसा नहीं था—उसके चेहरे पर कोई छिछोरापन नहीं, बस एक बेचैन जिज्ञासा थी।
“एक्सक्यूज़ मी,” अचानक आरव ने खुद को रोक नहीं पाया।
लड़की ने चौंककर ऊपर देखा। उसकी आँखें गहरी थीं, जैसे भीतर बहुत कुछ छिपा हो।
“जी?”
“आप… ये किताब पढ़ रही हैं? ‘द लास्ट लेटर’?”
लड़की मुस्कराई। “हाँ, क्यों?”
“मैं महीनों से ढूँढ रहा था, मगर कहीं नहीं मिली। आज आपको पढ़ते हुए देखा तो… बस पूछ लिया।”
लड़की हल्की हँसी हँसी। “अगर इतनी चाह है तो लीजिए, आप पहले पढ़ लीजिए। मैं दोबारा पढ़ लूँगी।” उसने किताब आगे बढ़ा दी।
आरव के हाथ काँप गए। वह किताब से ज़्यादा उस मुस्कान को थाम लेना चाहता था।
“नहीं, आप पढ़िए। मैं इंतज़ार कर लूँगा।”
उस पल खामोशी छा गई। बाहर हॉर्न बजते रहे, कैफ़े में कपों की खनक गूँजती रही, मगर दोनों की दुनिया जैसे उस टेबल पर थम गई।
आरव ने हिम्मत करके कहा, “वैसे… मैं आरव हूँ।”
“अनाया,” उसने छोटा सा जवाब दिया।
नाम सुनते ही जैसे किसी अनजानी धुन ने उसके दिल पर दस्तक दी। उस मुलाक़ात में कोई औपचारिकता नहीं थी, बस एक सहज खिंचाव था, जैसे दोनों को किसी ने उसी कैफ़े में मिलाने के लिए भेजा हो।
आरव ने बातचीत शुरू की। किताबों से लेकर दिल्ली की गलियों तक बातें होती रहीं। अनाया के शब्दों में एक ठहराव था, जैसे वह दुनिया को बहुत ध्यान से देखती हो। वहीं आरव के शब्दों में तेज़ी, जैसे वह सब कुछ पकड़ लेना चाहता हो। दोनों अलग थे, मगर उसी अलगाव में अजीब-सी नज़दीकी थी।
वक़्त बीतता गया और कैफ़े खाली होने लगा। जब उठने का समय आया तो आरव चाहता था कि यह पल कभी ख़त्म न हो। उसने हिचकिचाते हुए कहा, “फिर मिल सकते हैं?”
अनाया ने सीधे जवाब नहीं दिया। बस मुस्कराई और कहा, “शायद।”
और वह चल दी।
आरव खिड़की से उसे जाते हुए देखता रहा। धुंधली सुबह में उसका चेहरा जैसे किसी अधूरी कविता की तरह रह गया—पूरा न होकर भी मन में गूंजता हुआ।
उस दिन से आरव की ज़िंदगी बदल गई। उसे पहली बार महसूस हुआ कि कुछ मुलाक़ातें सिर्फ़ इत्तेफ़ाक़ नहीं होतीं—वे किसी अनजानी कहानी की शुरुआत होती हैं।
भाग 2 – इत्तेफ़ाक़ या इरादा?
दिल्ली की सर्द हवाओं में अगले कुछ दिनों तक आरव का मन किसी काम में नहीं लगा। दफ़्तर की मीटिंग्स हों या दोस्तों की बातें—हर जगह वह खोया-खोया था। बार-बार वही दृश्य उसकी आँखों में लौट आता: खिड़की के पास बैठी अनाया, किताब पर झुकी हुई, और फिर वह मुस्कान।
उस रात आरव ने पहली बार महसूस किया कि किसी अजनबी का असर इतना गहरा हो सकता है। उसका नाम तक कुछ ही पल पहले सुना था, मगर जैसे बरसों से जानता हो।
अगली सुबह वह फिर उसी कैफ़े पहुँच गया। दिल में उम्मीद थी कि शायद अनाया वहाँ मिले। मगर उसकी सीट खाली थी।
वह कोने में बैठ गया, कॉफ़ी मँगाई और किताब खोलने की कोशिश की। मगर शब्द आँखों से टकराकर लौट जाते। दिमाग़ में बस वही सवाल था—“क्या मैं उसे फिर कभी देख पाऊँगा?”
दिन यूँ ही बीतते गए। हर सुबह-शाम आरव उसी कैफ़े का चक्कर लगा आता। कभी भीड़ में उम्मीद ढूँढता, कभी खामोश कोनों में। मगर अनाया नहीं आई।
फिर एक शाम, जब वह उम्मीद लगभग छोड़ चुका था, तभी दरवाज़ा खुला और ठंडी हवा के साथ वह अंदर आई। वही नीली शॉल, वही हल्की मुस्कान।
आरव का दिल धड़क उठा। उसने जल्दी से अपना लैपटॉप बंद किया और उसकी ओर बढ़ा।
“हाय,” उसने कहा, जैसे कोई पुराना परिचित मिल गया हो।
अनाया ने उसे देखा और हँसी। “आप तो काफ़ी पक्के लगते हैं इस कैफ़े के। हर बार आ जाते हैं?”
आरव झेंप गया। “असल में… यहाँ की कॉफ़ी अच्छी है।”
“या फिर कोई और वजह?” उसकी आँखों में शरारत थी।
आरव ने पहली बार सच बोलने का साहस जुटाया।
“हाँ, वजह आप हैं।”
अनाया चौंकी, फिर मुस्करा दी। “तो क्या मैं आपकी कॉफ़ी हूँ?”
“नहीं,” आरव ने धीरे से कहा, “आप वो किताब हैं जिसे पढ़े बिना चैन नहीं मिलता।”
दोनों हँस पड़े। लेकिन उस हँसी के पीछे एक अजीब-सी सहजता थी, जैसे रिश्ते की पहली दीवार गिर गई हो।
उस दिन उन्होंने लंबी बातें कीं। किताबों से लेकर सपनों तक, कॉलेज की यादों से लेकर दिल्ली की गलियों तक। अनाया ने बताया कि वह एक पब्लिशिंग हाउस में काम करती है, नए लेखकों की पांडुलिपियाँ पढ़ती है। आरव को यह जानकर हैरानी हुई—वह ख़ुद भी लिखता था, मगर कभी हिम्मत नहीं जुटा पाया किसी को दिखाने की।
“आप लिखते हैं?” अनाया ने उत्सुकता से पूछा।
आरव ने हिचकते हुए सिर हिलाया।
“तो दिखाइए न!”
“अभी… नहीं।”
“क्यों?”
“क्योंकि… डर लगता है। शायद किसी को पसंद न आए।”
अनाया ने किताब बंद की और उसकी आँखों में झाँककर बोली, “अगर किसी को पसंद नहीं आए, तो भी आप वही रहेंगे जो हैं। लिखना आपकी पहचान है, और पहचान छुपाकर जीना सबसे मुश्किल काम है।”
उसकी बातें आरव के दिल में गूंजने लगीं। उसने सोचा—ये लड़की तो जैसे उसकी सोच को पढ़ लेती है।
शाम ढल चुकी थी। बाहर पीली रोशनियाँ जलने लगी थीं। जब दोनों उठकर बाहर निकले, तो हवा में हल्की ठंड थी। सड़क पर चहल-पहल थी, मगर उनके बीच खामोशी।
आरव ने हिम्मत करके कहा, “कल फिर मिल सकते हैं?”
अनाया ने पलभर सोचा, फिर बोली, “ठीक है। लेकिन कल मैं आपको अपना पसंदीदा जगह दिखाऊँगी। यहाँ नहीं।”
आरव का दिल उछल पड़ा।
“कहाँ?”
“कल बताऊँगी। सरप्राइज़ है।”
उस रात आरव सो नहीं पाया। बार-बार वही सवाल उसे घेरता रहा—क्या यह सब महज़ इत्तेफ़ाक़ है? या अनाया भी उतना ही महसूस कर रही है जितना वह?
सुबह उसने आईने में खुद को देखा। आँखों में चमक थी, जैसे कोई नया सफ़र शुरू होने वाला हो।
अगले दिन जब अनाया ने उसे पुरानी दिल्ली के किसी पुराने बाज़ार में बुलाया, तो आरव की आँखें हैरानी से फैल गईं। वहाँ की तंग गलियों में मसालों की खुशबू, परांठों की दुकानों की भाप, और पीली रोशनी में चमकते पत्थरों के रास्ते।
अनाया ने मुस्कराकर कहा, “यहीं पर मैं अपने वीकेंड्स गुज़ारती हूँ। इन गलियों में एक अलग ज़िंदगी है। कोई जल्दबाज़ी नहीं, बस ठहराव।”
आरव ने महसूस किया—वह लड़की सिर्फ़ किताबों की नहीं, बल्कि ज़िंदगी की भी गहरी पाठक है।
भीड़ में चलते-चलते उनका कंधा कई बार टकराया। हर बार आरव का दिल तेज़ धड़कता, और अनाया की आँखें मुस्कान में झुक जातीं।
दिन ढलने तक दोनों जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठे थे। सामने आसमान में चाँद निकल आया था।
अनाया ने धीरे से कहा, “पता है आरव, मुझे भीड़ से डर नहीं लगता, मगर अकेलेपन से लगता है। शायद इसी वजह से मैं हर बार इन गलियों में आती हूँ, ताकि लोगों की हलचल मुझे जकड़े रखे।”
आरव ने उसकी ओर देखा। वह पहली बार अपने दिल की गहराई खोल रही थी।
“अगर कभी अकेला लगे, तो मुझे बुला लेना,” उसने धीमी आवाज़ में कहा।
अनाया ने उसकी ओर देखा, जैसे कुछ कहना चाहती हो। मगर फिर मुस्कराकर चुप हो गई।
उस खामोशी में, दोनों ने एक-दूसरे को उतना कह दिया जितना शब्दों से कभी नहीं कहा जा सकता।
भाग 3 – नज़दीकियों की आहट
जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर उस शाम जो खामोशी उतरी थी, वह आरव के भीतर गहरे उतर गई। अनाया के शब्द—“अकेलेपन से डर लगता है”—उसके कानों में लगातार गूंजते रहे। उसे लगा, शायद अब वह उसके दिल तक पहुँचने लगा है।
उस रात आरव देर तक छत पर टहलता रहा। दिल्ली की हवा में हल्की ठंड थी, दूर से मेट्रो की गड़गड़ाहट सुनाई देती थी। मगर उसके दिमाग़ में सिर्फ़ अनाया थी। वह सोचता रहा—कैसे कोई इंसान पहली मुलाक़ात से ही इतना अपना लग सकता है? क्या यह सचमुच प्यार है या महज़ आकर्षण?
अगले कुछ हफ़्तों में उनकी मुलाक़ातें बढ़ती चली गईं। कभी पुरानी दिल्ली की गलियाँ, कभी हौज़ खास का झील किनारा, कभी इंडिया गेट के पास आइसक्रीम खाते हुए—हर जगह वे एक-दूसरे के साथ वक़्त गुज़ारने लगे।
अनाया धीरे-धीरे खुल रही थी। वह हँसते-हँसते अचानक चुप हो जाती, फिर किसी गहरी बात में उतर जाती। कभी बचपन की बातें करती, कभी कॉलेज के दिनों की। मगर जब भी आरव उसके परिवार या रिश्तों के बारे में पूछता, वह विषय बदल देती।
एक बार आरव ने हिम्मत करके पूछा, “अनाया, तुम इतनी अकेली क्यों लगती हो? मतलब… तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानना चाहता हूँ।”
अनाया कुछ देर चुप रही। फिर बोली, “हर किसी की ज़िंदगी में कुछ ऐसे पन्ने होते हैं जिन्हें बंद ही रहने देना चाहिए। अगर उन्हें खोलोगे तो पूरी किताब बिखर जाएगी।”
आरव ने उसकी आँखों में देखा। वहाँ दर्द की परतें थीं, मगर साथ ही भरोसे की चमक भी।
उसने धीरे से कहा, “ठीक है। जब तुम चाहो, खुद बता देना। मैं इंतज़ार करूँगा।”
उस पल अनाया ने पहली बार उसका हाथ थाम लिया। हल्की ठंडी हवा के बीच उस छुअन में एक गर्माहट थी। आरव का दिल तेज़ धड़क उठा, मगर उसने हाथ नहीं छोड़ा।
एक रविवार को अनाया ने आरव को अपने फ्लैट पर बुलाया। “यहाँ आसपास एक बुक-फ़ेयर है, सोचा तुम्हें भी चलना चाहिए।”
आरव जब पहुँचा, तो हैरान रह गया। फ्लैट छोटा था, मगर बेहद सलीके से सजाया हुआ। दीवारों पर फ्रेम की हुई पेंटिंग्स थीं—कुछ आधुनिक, कुछ पुरानी। कमरे के कोने में किताबों की अलमारियाँ थीं, जिनमें सैकड़ों किताबें करीने से लगी थीं।
आरव ने चारों ओर देखते हुए कहा, “तुम्हारा घर तो जैसे लाइब्रेरी हो।”
अनाया हँसी। “किताबें ही मेरा असली घर हैं। लोग छोड़ जाते हैं, मगर किताबें कभी साथ नहीं छोड़तीं।”
आरव ने नोट किया कि घर में परिवार की कोई तस्वीर नहीं थी। न माता-पिता की, न दोस्तों की। बस किताबें और कला।
बुक-फ़ेयर तक पहुँचने के रास्ते में अनाया बहुत खुश थी। उसने बच्चों की किताबों पर लंबी बातें कीं, नए लेखकों को लेकर उत्साह दिखाया। मगर बीच-बीच में उसकी हँसी टूट जाती, और चेहरा ग़मगीन हो उठता।
फ़ेयर से लौटते हुए आरव ने मज़ाक में कहा, “तुम्हारी पसंदीदा किताब कौन-सी है? मुझे लगता है, तुम्हारे पास हर सवाल का जवाब कोई न कोई किताब है।”
अनाया रुकी और बोली, “पसंदीदा किताब वही है जिसे बंद करने के बाद भी तुम्हें लगता रहे कि उसमें कुछ छूटा हुआ है। जैसे… अधूरी कहानी।”
आरव ने उसकी आँखों में झाँककर कहा, “क्या तुम भी किसी अधूरी कहानी हो, अनाया?”
वह चौंकी, फिर मुस्करा दी। “शायद।”
उस रात आरव देर तक लिखता रहा। अनाया की बातें उसके शब्दों में ढलती चली गईं। उसने पहली बार किसी को ध्यान में रखकर कविता लिखी। अगली सुबह जब वह उसे सुनाने गया, तो अनाया चुपचाप सुनती रही।
कविता खत्म होते ही उसकी आँखें भीग गईं।
“तुम्हारे शब्दों में सचाई है, आरव। और सचाई हमेशा ख़तरनाक होती है… क्योंकि वो परतें उधेड़ देती है।”
आरव समझ नहीं पाया। उसने धीरे से उसका चेहरा थामकर कहा, “अगर कभी तुम टूटी हुई महसूस करो, तो मैं तुम्हें संभाल लूँगा।”
अनाया ने आँखें बंद कर लीं। उसकी पलकों पर आँसू चमक रहे थे।
“कभी-कभी… संभालना ही सबसे मुश्किल होता है।”
उनकी मुलाक़ातें अब रोज़मर्रा का हिस्सा बन चुकी थीं। मगर आरव को महसूस होने लगा कि अनाया की मुस्कान जितनी खूबसूरत है, उसके पीछे उतना ही गहरा अकेलापन छिपा है।
एक दिन इंडिया गेट के पास बैठे हुए आरव ने पूछा, “क्या तुम मुझ पर भरोसा करती हो?”
अनाया ने उसकी ओर देखा, लंबे समय तक कुछ नहीं बोली। फिर धीरे से कहा,
“करती हूँ। शायद इतना जितना किसी और पर कभी नहीं किया।”
“तो फिर… अपने बारे में बताओ।”
अनाया ने सिर झुका लिया।
“कुछ बातें हैं जो कह दूँ तो शायद तुम बदल जाओगे।”
“मैं क्यों बदल जाऊँगा? प्यार वही है जो इंसान को उसकी पूरी कहानी के साथ अपनाए।”
अनाया ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में सच्चाई थी। मगर फिर भी उसने कुछ नहीं कहा। बस खामोशी से उसका हाथ पकड़ लिया।
उनके रिश्ते की डोर कसती जा रही थी। मगर उस डोर में कुछ अनकहा उलझा हुआ था। आरव को लगता था जैसे वह किसी अधूरे सुर को सुन रहा हो—जिसे पूरा करना ज़रूरी है, वरना धुन कभी मुकम्मल नहीं होगी।
वह समझ चुका था कि अनाया के दिल में कोई गहरा राज़ है। और शायद वही राज़ उनके रिश्ते की दिशा तय करेगा।
आरव ने तय कर लिया—अब वह उस राज़ को जाने बिना नहीं रहेगा।
उस रात जब वह घर लौटा, तो आसमान में बादल छाए थे। बिजली की गड़गड़ाहट दूर से सुनाई दे रही थी। उसने फोन उठाया और अनाया को मैसेज किया—
“कल मुझे सच बताना। मैं इंतज़ार करूँगा।”
फोन स्क्रीन पर अनाया का जवाब देर तक नहीं आया। जब आया, तो बस एक शब्द था—
“ठीक।”
आरव की धड़कनें तेज़ हो गईं।
कल शायद सब कुछ बदलने वाला था।
भाग 4 – अतीत की परतें
अगले दिन की सुबह आरव के लिए असामान्य थी। खिड़की से आती हल्की धूप, चाय की भाप और अख़बार की सरसराहट सब उसे साधारण लग रही थी, मगर उसके भीतर तूफ़ान मचा था। कल रात अनाया का छोटा-सा मैसेज—“ठीक”—उसके मन में बार-बार गूंज रहा था।
वह सोच रहा था कि आज उसे क्या सुनने को मिलेगा? क्या कोई रिश्ता, कोई दर्द, कोई ऐसा सच जिससे उनकी दोस्ती या शायद उभरता हुआ प्यार बदल जाएगा?
उसने तय किया कि चाहे कुछ भी हो, वह भागेगा नहीं।
शाम को दोनों फिर उसी कैफ़े में मिले जहाँ पहली बार मुलाक़ात हुई थी। वही खिड़की वाली सीट, वही लकड़ी की टेबल। मगर आज हवा भारी थी। अनाया खामोश थी, उसकी आँखों के नीचे हल्के गहरे घेरे साफ़ दिख रहे थे।
आरव ने धीरे से कहा, “अनाया, तुम मुझसे कुछ कहना चाहती थी।”
वह कॉफ़ी कप के किनारे पर उंगलियाँ फेरती रही। कुछ देर बाद गहरी सांस लेकर बोली—
“आरव… मैं ज़्यादातर चीज़ें छुपाकर जीती हूँ। शायद इसलिए कि लोग सच जानकर बदल जाते हैं। मुझे डर था कि तुम भी बदल जाओगे।”
“मैं नहीं बदलूँगा,” आरव ने दृढ़ता से कहा।
अनाया ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में एक अजीब-सी थकान थी।
“मेरा अतीत आसान नहीं है। तीन साल पहले मैं शादीशुदा थी।”
आरव सन्न रह गया। उसने उम्मीद की थी कि कोई दर्दनाक सच होगा, मगर यह सुनते ही उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
“तुम… शादीशुदा?” उसने धीरे से पूछा।
अनाया ने सिर हिलाया। “हाँ। और अब तलाक़शुदा हूँ।”
आरव ने कुछ कहने के लिए होंठ खोले, मगर शब्द नहीं निकले।
अनाया ने बात जारी रखी। “उसका नाम करण था। कॉलेज में मिले थे हम। वह बहुत आकर्षक था, महत्वाकांक्षी भी। मुझे लगा था कि वही मेरा सब कुछ है। शादी के बाद शुरू में सब ठीक था, लेकिन धीरे-धीरे उसके भीतर का दूसरा चेहरा सामने आने लगा। वह शक करता था, हर बात पर गुस्सा करता था। दोस्तों से मिलना, ऑफिस में काम करना—सब पर उसे एतराज़ था। मैं घुटने लगी थी।”
उसकी आवाज़ भर्रा गई।
“एक दिन तो उसने मुझे इतनी बुरी तरह धक्का दिया कि मैं घंटों फर्श पर पड़ी रही। उस पल समझ आ गया कि अगर वहीं रही, तो शायद अपनी पहचान खो दूँगी। मैंने हिम्मत की, केस लड़ा और अलग हो गई। मगर उस रिश्ते ने मुझमें एक गहरी खामोशी छोड़ दी।”
आरव स्तब्ध सुन रहा था। उसे महसूस हो रहा था कि अनाया के हर शब्द में कितनी पीड़ा और साहस छिपा है।
“लोग कहते हैं तलाक़ एक नाकामी है। मगर मेरे लिए वह जीने की शुरुआत थी। तब से मैंने तय किया कि किसी को भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दूँगी। यही वजह है कि मैं रिश्तों से डरती हूँ। किसी पर भरोसा करना आसान नहीं है।”
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
आरव ने बिना सोचे उसका हाथ थाम लिया।
“अनाया, मैं… मैं नहीं जानता कि क्या कहूँ। बस इतना जानता हूँ कि जो तुमने झेला है, वह तुम्हारी गलती नहीं थी। और अगर तुमने अपने लिए खड़े होकर बाहर आने का फ़ैसला किया, तो वह तुम्हारी ताक़त है।”
अनाया ने चुपचाप उसकी ओर देखा।
“तुम सच में ऐसा सोचते हो?”
“हाँ। मैं तुम्हें उसी रूप में देखता हूँ जो आज मेरे सामने है—मज़बूत, संवेदनशील और खूबसूरत। तुम्हारा अतीत तुम्हें परिभाषित नहीं करता।”
कुछ पल के लिए खामोशी छा गई। बाहर सड़क पर हॉर्न बजते रहे, कैफ़े में हलचल चलती रही, मगर उनके बीच सिर्फ़ सन्नाटा था।
आरव ने धीरे से कहा, “अनाया, अगर तुम्हें लगता है कि मैं भी कभी तुम्हारे लिए बोझ बन सकता हूँ, तो मैं अभी चला जाऊँगा। लेकिन अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ—जैसे साथी, जैसे दोस्त, शायद उससे भी ज़्यादा।”
अनाया की आँखें छलक उठीं।
“तुम पागल हो आरव। लोग मेरा अतीत सुनकर दूर भाग जाते हैं। और तुम… तुम और पास आ रहे हो।”
आरव मुस्कराया।
“क्योंकि मैं भागना नहीं चाहता। तुम्हारे बिना यह कहानी अधूरी है।”
अनाया ने उसके कंधे पर सिर रख दिया। उसके आँसुओं की नमी आरव की शर्ट भिगो रही थी, मगर उस पल उसे लगा कि वह पूरी दुनिया जीत चुका है।
उस रात अनाया ने पहली बार खुलकर हँसी। बाहर निकलते समय उसने कहा,
“पता है, आरव… मैं सोच रही थी कि शायद मुझे कभी किसी पर भरोसा नहीं होगा। लेकिन अब लगता है कि शायद… शायद मैं फिर से किसी पर भरोसा कर सकती हूँ।”
आरव ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “बस एक वादा करो—अगर कभी डर लगे, तो मुझे बता देना। मैं वहीँ रहूँगा।”
अनाया ने सिर हिलाया।
उस दिन के बाद उनका रिश्ता और गहरा हो गया। अब वे सिर्फ़ किताबों या कैफ़े तक सीमित नहीं थे। आरव उसे अपने दोस्तों से मिलाने ले गया, अनाया ने अपने पसंदीदा इलाक़ों के राज़ खोले। धीरे-धीरे दोनों की ज़िंदगी एक-दूसरे में घुलने लगी।
मगर अनाया का डर पूरी तरह गया नहीं था। कभी-कभी वह अचानक चुप हो जाती, दूर देखती रहती। आरव जानता था कि वह अभी भी अतीत से लड़ रही है।
एक बार इंडिया गेट पर बैठे-बैठे अनाया ने पूछा,
“अगर कल को मैं फिर डरकर तुमसे दूर चली गई, तो क्या करोगे?”
आरव ने बिना सोचे जवाब दिया,
“तो मैं तुम्हें फिर ढूँढ लूँगा। क्योंकि अब मेरी ज़िंदगी तुम्हारे नाम की ख़ामोशी के बिना अधूरी है।”
अनाया ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में हल्की मुस्कान थी, मगर साथ ही आँसू भी।
उसने धीमे से कहा,
“शायद अब मुझे भी अपनी कहानी का नया पन्ना लिखना चाहिए।”
उस शाम के बाद दोनों ने जैसे एक नया सफ़र शुरू कर दिया। अनाया अब धीरे-धीरे खुलने लगी थी। उसके चेहरे पर अब मुस्कान ज़्यादा देर टिकती, उसकी आँखों में चमक लौटने लगी।
मगर कहीं भीतर आरव को एहसास था—यह कहानी अभी पूरी नहीं हुई है।
क्योंकि हर अतीत की तरह, अनाया का अतीत भी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ था।
और शायद, आने वाले दिनों में वह अतीत फिर से उनके दरवाज़े पर दस्तक देने वाला था।
भाग 5 – परछाइयों की वापसी
दिल्ली की सर्द हवाओं में अब अनाया और आरव की ज़िंदगी में एक अलग गर्माहट घुल चुकी थी। दोनों साथ होते तो वक्त का पता ही नहीं चलता। कैफ़े की मुलाक़ातें अब डिनर डेट्स में बदल चुकी थीं, और पुरानी दिल्ली की गलियों की चहल-पहल अब साथ चलते उनके कदमों में बस गई थी।
आरव ने महसूस किया कि अनाया अब पहले से कहीं ज़्यादा खुल रही है। उसकी मुस्कान लंबी होती जा रही थी, उसकी बातें हल्की हो रही थीं। मगर फिर भी, कभी-कभी उसके चेहरे पर छाई छाया आरव को बेचैन कर देती।
एक शाम, जब दोनों इंडिया गेट के पास बैठे आइसक्रीम खा रहे थे, अचानक अनाया का फ़ोन बज उठा। उसने जैसे ही स्क्रीन देखी, उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। बिना कुछ कहे उसने फ़ोन काट दिया और हैंडबैग में रख दिया।
आरव ने गौर किया।
“कौन था?”
अनाया ने नज़रें चुराकर कहा, “कोई नहीं… ग़लत नंबर।”
मगर उसकी आँखों की घबराहट कुछ और कहानी कह रही थी।
उस रात अनाया देर तक बेचैन रही। वह अपने कमरे की खिड़की से बाहर देखती रही, जैसे अंधेरे में किसी को ढूँढ रही हो। फोन बार-बार वाइब्रेट हो रहा था। आखिरकार उसने फोन बंद कर दिया और तकिये में मुँह छुपाकर रो पड़ी।
अगली सुबह जब वह आरव से मिली, तो चेहरे पर मुस्कान थी, मगर आँखें सूजी हुई थीं। आरव ने कुछ पूछा नहीं। उसने बस उसका हाथ थाम लिया।
मगर आरव का दिल कह रहा था कि कुछ बड़ा छुपा हुआ है।
कुछ दिन बाद, ऑफिस से लौटते समय आरव कैफ़े के बाहर इंतज़ार कर रहा था। तभी उसने देखा कि अनाया सड़क के किनारे खड़ी है और उसके सामने एक लंबा-चौड़ा आदमी खड़ा है। उसकी आवाज़ तेज़ थी, मगर दूरी की वजह से आरव सुन नहीं पा रहा था। अनाया का चेहरा डरा हुआ लग रहा था।
आरव दौड़कर पहुँचा।
“क्या हुआ?”
आदमी ने मुड़कर देखा। उसकी आँखों में गुस्से की लपटें थीं।
“ओह… तो ये है नया साथी?” उसने तिरस्कार से कहा।
अनाया ने तुरंत आरव का हाथ पकड़ लिया।
“आरव, चलो यहाँ से।”
आरव कुछ बोलता उससे पहले ही अनाया उसे खींचकर कैफ़े के भीतर ले गई।
वह काँप रही थी।
“वो… करण था।”
आरव सन्न रह गया।
“तुम्हारा… एक्स-हस्बैंड?”
अनाया ने सिर हिलाया। उसकी आँखों में आँसू थे।
“मैंने सोचा था वह अब मेरी ज़िंदगी से हमेशा के लिए चला गया है। मगर पिछले हफ़्ते से वह मुझे बार-बार कॉल कर रहा है। धमकियाँ दे रहा है… कहता है कि अगर मैंने उसे वापस नहीं लिया तो वह मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर देगा।”
आरव के भीतर गुस्सा उबल पड़ा।
“और तुमने मुझे क्यों नहीं बताया?”
अनाया ने रोते हुए कहा,
“क्योंकि मुझे डर था… कहीं तुम सोचो कि मैं फिर से उसी झंझट में फँसी हूँ। मैं नहीं चाहती थी कि मेरा अतीत तुम्हारी ज़िंदगी में ज़हर घोले।”
आरव ने गहरी सांस ली और उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर कहा,
“अनाया, तुम अकेली नहीं हो। अगर वह तुम्हें छूने की कोशिश करेगा, तो उसे मुझसे गुज़रना होगा।”
मगर बात यहीं खत्म नहीं हुई। अगले हफ़्ते करण ने खुलकर सामने आना शुरू कर दिया। कभी ऑफिस के बाहर, कभी कैफ़े के बाहर, वह अचानक आकर अनाया को घूरता और फिर गायब हो जाता।
आरव ने एक शाम सीधे उसका सामना करने का फैसला किया।
“करण!” उसने सड़क पर आवाज़ लगाई।
करण पलटा और मुस्कराया।
“तो तुम हो नया हीरो?”
आरव ने ठंडी नज़र से कहा,
“सुनो, अनाया की ज़िंदगी से दूर रहो। वह अब तुम्हारी नहीं है।”
करण हँस पड़ा।
“तुम क्या करोगे? तुम जानते भी हो मैंने उसके लिए कितना किया? वो सिर्फ़ मेरी है।”
आरव ने गुस्से से कहा,
“नहीं। वो किसी की संपत्ति नहीं है। और अगर तुमने दुबारा उसे परेशान किया तो पुलिस के पास जाऊँगा।”
करण की मुस्कान गायब हो गई। उसकी आँखों में खतरनाक चमक थी।
“पुलिस? देख लूँगा कौन बचाता है उसे। याद रखना, आरव… मैं आसानी से हार मानने वालों में से नहीं हूँ।”
उस रात अनाया ने रोते हुए कहा,
“मुझे डर लग रहा है। मैं फिर से वही सब नहीं झेल सकती।”
आरव ने उसे सीने से लगा लिया।
“डर मत। इस बार तुम अकेली नहीं हो। मैं हूँ न।”
अनाया ने धीरे से कहा,
“अगर उसने तुम्हें नुकसान पहुँचाया तो?”
“तो भी मैं पीछे नहीं हटूँगा।”
मगर करण की धमकियाँ बढ़ती गईं। एक दिन अनाया के घर के दरवाज़े पर खून से लिखा नोट पड़ा मिला—
“तुम मेरी थी और मेरी ही रहोगी।”
अनाया काँप उठी। आरव ने तुरंत पुलिस को बुलाने का सुझाव दिया। मगर अनाया हिचकिचाई।
“मुझे केस दोबारा खोलना होगा। बार-बार अदालत, बार-बार सवाल। मैं फिर से वही सब झेलने की हिम्मत नहीं रखती।”
आरव ने उसकी आँखों में देखा।
“तो फिर मैं खुद उसे रोकूँगा।”
आरव ने करण का पीछा करना शुरू किया। उसने पता लगाया कि करण अक्सर करोल बाग की एक सस्ती शराब की दुकान के पास घूमता है। वह वहाँ दोस्तों के साथ बैठता, गाली-गलौज करता, और अनाया को लेकर घटिया बातें करता।
आरव का खून खौल गया।
उसने तय किया कि अब बहुत हो चुका।
एक रात वह करण के सामने जा पहुँचा।
“ये आखिरी चेतावनी है, करण। अगर फिर से अनाया के पास आए, तो अंजाम बुरा होगा।”
करण ने शराब की बोतल ज़मीन पर फेंक दी और आरव की तरफ़ बढ़ा।
“तू मुझे धमकी देगा?”
वह उसकी कॉलर पकड़ने ही वाला था कि वहाँ पुलिस की गाड़ी आ गई। किसी ने शिकायत कर दी थी। करण गालियाँ बकता हुआ भाग गया।
आरव ने राहत की सांस ली। मगर उसके दिल में यह साफ़ था कि करण इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं है।
उस रात जब उसने अनाया को सब बताया, तो वह चुप रही। फिर धीरे से बोली,
“आरव, मुझे लगता है यह कहानी इतनी आसानी से खत्म नहीं होगी। करण जब तक है, मेरी ज़िंदगी में यह परछाई बनी रहेगी।”
आरव ने उसका हाथ थामकर कहा,
“तो मैं तुम्हारी रोशनी बनूँगा। ताकि कोई परछाई तुम्हें छू न सके।”
अनाया की आँखों में आँसू भर आए।
“तुम्हें नहीं पता, आरव… यह लड़ाई आसान नहीं है। लेकिन अगर तुम साथ हो, तो शायद मैं जीत जाऊँ।”
उस रात दोनों ने चुपचाप आसमान की ओर देखा। चाँद आधा था—जैसे उनकी कहानी अभी अधूरी हो।
मगर दोनों ने मन ही मन तय कर लिया था कि अब यह अधूरी कहानी पूरी होगी। चाहे जो भी लड़ाई लड़नी पड़े।
भाग 6 – टकराव की आंधी
दिल्ली की ठंडी हवा इन दिनों और भी भारी लगने लगी थी। आरव और अनाया की ज़िंदगी पर करण की परछाई दिन-ब-दिन गहरी होती जा रही थी। बाहर से सब सामान्य था—वे मिलते, बातें करते, कॉफ़ी पीते, किताबें पढ़ते। मगर भीतर ही भीतर हर पल यह डर उनके साथ था कि कब और कहाँ करण फिर से सामने आ जाएगा।
अनाया अक्सर खिड़कियों के पर्दे कसकर खींच देती। दरवाज़े की कुंडी दो बार चेक करती। रात को हल्की आहट भी सुनाई देती तो चौंक उठती। आरव उसे समझाता, दिलासा देता, मगर वह जानता था—डर सिर्फ़ शब्दों से नहीं मिटता, उसे जड़ से उखाड़ना पड़ता है।
एक रात, जब आरव दफ़्तर से लौट रहा था, अचानक उसकी बाइक के सामने किसी ने पत्थर फेंक दिया। वह गिरते-गिरते बचा। पीछे पलटा तो करण खड़ा था, होंठों पर विकृत मुस्कान के साथ।
“ज़्यादा हीरो मत बनो, आरव। वरना तुम्हारी कहानी यहीं ख़त्म हो जाएगी।”
आरव गुस्से से काँप उठा। उसने सीधा उसकी तरफ़ बढ़ते हुए कहा,
“अगर मर्द हो तो सामने से लड़ो। किसी औरत को डराकर जीतने वाले कायर होते हैं।”
करण की आँखों में खून उतर आया। वह झपटा, मगर राहगीरों की भीड़ इकट्ठा हो गई। लोगों ने बीच-बचाव कर दिया और करण गालियाँ बकता हुआ अंधेरे में गुम हो गया।
आरव जान गया—यह टकराव अब जल्द ही विस्फोट की तरह फूटेगा।
अगली सुबह उसने अनाया से साफ़ कहा,
“अब और नहीं। हमें पुलिस के पास जाना होगा। करण सिर्फ़ तुम्हें नहीं, मुझे भी धमकी दे रहा है।”
अनाया ने काँपते हुए कहा,
“पुलिस का नाम सुनते ही मुझे कोर्ट-कचहरी याद आती है। वही दर्दनाक दिन… वही सवाल। मैं फिर से उस दौर से नहीं गुज़र सकती, आरव।”
“लेकिन बिना क़ानून के सहारे हम कब तक भागेंगे?” आरव ने दृढ़ता से कहा।
“मुझे फर्क नहीं पड़ता कितनी मुश्किल होगी। लेकिन मैं तुम्हारे साथ खड़ा रहूँगा। अगर तुम चाहो तो मैं अकेले जाकर शिकायत कर दूँ।”
अनाया की आँखों से आँसू बह निकले। उसने धीरे से कहा,
“तुम्हें खोने का डर मुझे किसी भी क़ानूनी लफ़ड़े से ज़्यादा लगता है।”
आरव ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया।
“तो फिर यही डर हमारी ताक़त बनेगा। हम दोनों मिलकर उसे हराएँगे।”
कुछ दिनों तक करण दिखाई नहीं दिया। ऐसा लगा जैसे वह पीछे हट गया हो। अनाया ने थोड़ा चैन की सांस ली। दोनों ने तय किया कि अब डरकर जीना नहीं।
उस सप्ताहांत वे हौज़ खास की झील के किनारे बैठे थे। शाम ढल रही थी, झील पर सुनहरी रोशनी फैल रही थी। आरव ने अनाया से कहा,
“देखो, हर अंधेरे के बाद सुबह होती है। हमें भी अपनी सुबह का इंतज़ार करना चाहिए।”
अनाया ने हल्की मुस्कान के साथ सिर उसकी कंधे पर रख दिया।
“अगर तुम साथ हो, तो सुबह का इंतज़ार आसान लगता है।”
मगर उसी वक्त अचानक उनके सामने करण आ गया। दो और आदमी उसके साथ थे।
“वाह, क्या नज़ारा है!” करण व्यंग्य से बोला।
“ये प्यार-मोहब्बत झील किनारे बहुत अच्छी लगती है। लेकिन मत भूलो अनाया… तुम मेरी थी। और मैं तुम्हें किसी और की नहीं होने दूँगा।”
आरव खड़ा हो गया।
“करण, बहुत हो चुका। अब अगर दुबारा अनाया के पास आए तो अंजाम बुरा होगा।”
करण हँसा।
“अंजाम? मैं दिखाता हूँ अंजाम।”
उसके दो साथी आगे बढ़े और आरव को धक्का देने लगे। आरव ने पूरी ताक़त से उनका मुकाबला किया। वहाँ मौजूद कुछ लोग चिल्लाए, किसी ने पुलिस को फोन कर दिया। लड़ाई बढ़ती जा रही थी।
अनाया डर से चीख उठी।
“रुको करण! ये पागलपन बंद करो!”
करण ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया,
“चल मेरे साथ!”
आरव ने ज़ोर से उसे पीछे धकेल दिया।
“उसे छूना भी मत!”
तभी पुलिस की गाड़ी आ पहुँची। सायरन बजता हुआ। करण और उसके साथी भागने लगे, मगर इस बार पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया।
थाने में जब रिपोर्ट लिखी गई, अनाया काँप रही थी। आरव ने उसका हाथ थाम रखा था। पुलिस इंस्पेक्टर ने सख़्ती से कहा,
“मैडम, आपको डरने की ज़रूरत नहीं। ये आदमी अब जेल जाएगा। आपके बयान की ज़रूरत होगी। क्या आप तैयार हैं?”
अनाया ने आँखें बंद कीं। उसका अतीत सामने घूमने लगा—कोर्ट की दीवारें, लोगों की फुसफुसाहट, शर्म और डर। मगर फिर उसने आरव की आँखों में देखा। वहाँ अटूट भरोसा था।
उसने गहरी सांस लेकर कहा,
“हाँ। मैं तैयार हूँ।”
आरव की आँखों में गर्व छलक आया।
उस रात दोनों कैफ़े के सामने बैठे थे। चारों ओर शोर-गुल था, मगर उनके बीच शांति थी।
अनाया ने धीरे से कहा,
“आरव, तुमने मुझे हिम्मत दी। वरना मैं फिर कभी अपने अतीत से नहीं लड़ पाती।”
आरव मुस्कराया।
“प्यार सिर्फ़ अच्छे पलों को बाँटने का नाम नहीं है। प्यार का मतलब है मुश्किल वक्त में भी साथ खड़ा रहना। और मैं वादा करता हूँ, चाहे कैसी भी आंधी आए, मैं तुम्हारा हाथ नहीं छोड़ूँगा।”
अनाया की आँखें भर आईं।
“तुम्हें नहीं पता, आरव… तुम्हारे होने से मुझे पहली बार यक़ीन हुआ है कि मैं अकेली नहीं हूँ।”
मगर कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। करण जेल गया, मगर उसका गुस्सा और भी भड़क चुका था।
थाने से जाते समय उसने आरव की आँखों में देखकर कहा,
“ये लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई। तुमने मेरी इज़्ज़त मिट्टी में मिलाई है। मैं लौटूँगा… और तब तुम्हें भी खो दूँगी, अनाया।”
उसकी आवाज़ में ऐसा ज़हर था कि अनाया की रूह काँप उठी।
आरव ने उसका हाथ कसकर पकड़ा और कहा,
“डरो मत। जो आएगा, हम साथ मिलकर उसका सामना करेंगे।”
उस रात, आसमान में काले बादल छाए थे। बिजली कौंध रही थी। अनाया खिड़की से बाहर देख रही थी, और आरव उसके पास खड़ा था।
दोनों जानते थे कि असली लड़ाई अभी बाकी है।
और यह लड़ाई सिर्फ़ करण से नहीं—उनके अपने डर, उनके अतीत और उनके भविष्य से भी होने वाली थी।
भाग 7 – वापसी का साया
करण जेल गया था, मगर उसकी धमकी अनाया और आरव के दिल से मिट नहीं पाई। कुछ दिनों तक दोनों ने राहत की सांस ली। अनाया के चेहरे पर पुरानी चमक लौटने लगी थी। वह अब खुलकर हँसती, दोस्तों से मिलने जाती, और अपने ऑफिस में काम पर ध्यान देने लगी।
आरव ने सोचा कि शायद उनकी ज़िंदगी से वह काली परछाई हट चुकी है। लेकिन यह सुकून ज़्यादा दिन टिक न सका।
करीब दो महीने बाद, एक शाम अनाया जब ऑफिस से घर लौटी, तो दरवाज़े के नीचे से कोई लिफ़ाफ़ा दबा हुआ मिला। उसने झिझकते हुए उठाया। खोलकर देखा—अंदर सिर्फ़ एक तस्वीर थी।
उस तस्वीर में वह और आरव हौज़ खास की झील किनारे बैठे हुए थे। तस्वीर पर लाल स्याही से लिखा था—
“कहा था न, मैं लौटूँगा।”
अनाया के हाथ काँप उठे। उसके भीतर पुराना डर लौट आया। उसने तुरंत आरव को फोन किया।
आरव दौड़ा-दौड़ा आया और तस्वीर देखी। उसका चेहरा सख़्त हो गया।
“मतलब करण बाहर आ चुका है।”
अनाया ने घबराई आवाज़ में कहा,
“आरव, वह हमें देख रहा है। पता नहीं कहाँ से, कब…”
आरव ने उसका हाथ पकड़कर कहा,
“डरने की नहीं, लड़ने की ज़रूरत है। इस बार हम पहले से तैयार रहेंगे।”
उस रात अनाया बार-बार जागती रही। खिड़की से बाहर झाँकती, हर हल्की आहट पर चौंक जाती। उसे लग रहा था जैसे कोई छाया लगातार उसका पीछा कर रही हो।
सुबह जब वह ऑफिस पहुँची, तो गार्ड ने बताया कि कोई अजनबी रोज़ बिल्डिंग के बाहर मंडराता है। गार्ड ने जब पास जाने की कोशिश की, तो वह भाग गया।
अनाया का डर अब हकीकत बन रहा था।
कुछ दिनों तक करण सामने नहीं आया। मगर उसकी मौजूदगी हर जगह महसूस होने लगी। कभी अनाया को अजीब नंबर से कॉल आते, जिनमें कोई चुप रहता। कभी उसके ईमेल में धमकी भरे मैसेज पहुँचते।
आरव ने साइबर सेल में शिकायत दर्ज करवाई। पुलिस ने कहा वे कोशिश करेंगे, मगर करण चालाक था। वह हमेशा सबूत छोड़ने से बच जाता।
एक शाम, जब अनाया कैफ़े से बाहर निकली, तो उसे लगा कोई उसका पीछा कर रहा है। वह तेज़ कदमों से चलने लगी। तभी पीछे से किसी ने उसका नाम पुकारा।
“अनाया…”
उसने पलटकर देखा—करण था। चेहरे पर अजीब-सी हँसी, आँखों में पागलपन।
“कहा था न, तुम मेरी हो। ये सब नाटक बंद करो और मेरे साथ चलो।”
अनाया चीखने ही वाली थी कि तभी आरव वहाँ आ पहुँचा। उसने करण को धक्का दिया।
“दूर रहो उससे!”
करण ने गुस्से से कहा,
“क्यों बीच में आता है तू? ये मेरी बीवी है!”
आरव ने दृढ़ आवाज़ में कहा,
“वह तुम्हारी बीवी नहीं है। वह अब सिर्फ़ अपनी है। और अगर तुमने फिर से उसे परेशान किया तो इस बार मैं खुद तुम्हें खत्म कर दूँगा।”
आसपास लोग इकट्ठा होने लगे। करण ने हालात बिगड़ते देख गालियाँ दीं और भीड़ में गुम हो गया।
अनाया काँप रही थी।
“आरव, मुझे लगता है वह हमें तब तक चैन से जीने नहीं देगा जब तक…”
“जब तक क्या?”
“जब तक या तो वह हमें मिटा न दे, या हम उसे।”
आरव चुप हो गया। वह जानता था कि यह खेल अब और खतरनाक हो चुका है।
उस रात आरव ने सोचा—क्या पुलिस और क़ानून से ही यह लड़ाई जीती जा सकती है? करण की नफ़रत पागलपन में बदल चुकी थी। ऐसे इंसान से तर्क की उम्मीद नहीं की जा सकती।
उसने ठान लिया कि अब वह करण का सीधा सामना करेगा।
दो दिन बाद करण फिर सामने आया। इस बार वह अकेला नहीं था। दो गुंडे उसके साथ थे। वे आरव और अनाया के सामने अचानक गली के मोड़ पर आ गए।
करण ने हँसते हुए कहा,
“आज कोई पुलिस नहीं आएगी। आज देखूँगा कौन बचाता है तुम्हें।”
आरव आगे बढ़ा।
“अगर मर्द है तो अकेले आ। दूसरों को ढाल बनाकर लड़ने वाले कायर होते हैं।”
करण गुर्राया और झपटा। झगड़ा शुरू हो गया। भीड़ चीखने लगी, लोग मोबाइल से वीडियो बनाने लगे।
आरव ने पूरी ताक़त लगाई, मगर करण और उसके दोनों साथी हावी होने लगे। तभी पुलिस की गाड़ी आ पहुँची—किसी ने फिर से कॉल कर दिया था। करण और उसके गुंडे भाग निकले, मगर इस बार जाते-जाते करण ने आरव की ओर उंगली तानी और कहा,
“अबकी बार अगर मिला तो ज़िंदा नहीं बचेगा।”
पुलिस ने आरव और अनाया को सुरक्षा का आश्वासन दिया। मगर दोनों जानते थे कि करण जैसी परछाई से बचना आसान नहीं है।
उस रात, जब अनाया रोते हुए बोली,
“आरव, क्या हमारी ज़िंदगी कभी सामान्य हो पाएगी?”
आरव ने उसे सीने से लगाकर कहा,
“पता नहीं। लेकिन एक बात जानता हूँ—तुम्हारे बिना मेरी ज़िंदगी अधूरी है। चाहे कैसी भी आंधी आए, मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा।”
अनाया की आँखों में आँसू थे, मगर उनमें अब भरोसा भी था।
लेकिन करण की वापसी ने उनके रिश्ते की नींव को झकझोर दिया था। दोनों को लग रहा था कि अब यह संघर्ष सिर्फ़ बाहरी नहीं रहा, बल्कि भीतर का भी है—डर और विश्वास के बीच, अतीत और भविष्य के बीच।
और शायद, उनकी सबसे बड़ी परीक्षा अभी बाकी थी।
भाग 8 – अग्निपरीक्षा
दिल्ली की सर्द रातों में अब डर की ठंडक और भी गहरी हो गई थी। करण जेल से छूट चुका था और उसके लौटने के बाद से अनाया और आरव की ज़िंदगी मानो किसी खाई के किनारे खड़ी थी। दिन का उजाला भी बेचैन कर देता और रात का अंधेरा तो जैसे उनकी साँसें रोक देता।
अनाया का चेहरा थकान से बुझा-बुझा लगता। ऑफिस जाते समय उसके कदम काँपते, और लौटते समय आँखें बार-बार पीछे देखने लगतीं। आरव हर समय उसके साथ रहना चाहता, मगर अपनी नौकरी की वजह से हमेशा मुमकिन नहीं होता। वह जितना बाहर रहता, उतनी ही बेचैनी भीतर उसे खाए जाती।
एक शाम, जब अनाया ऑफिस से निकली, तो उसने देखा कि उसकी कार की विंडशील्ड पर खून से लिखा एक शब्द था—“वापस।”
उसकी रूह काँप गई। उसने तुरंत आरव को फोन किया।
“आरव… वो यहीं है। मुझे देख रहा है। मैं अब और नहीं सह सकती।”
आरव फौरन वहाँ पहुँचा। उसने कार देखी और उसका गुस्सा भड़क उठा।
“बस! अब यह खेल खत्म करना होगा।”
अनाया ने काँपते स्वर में कहा,
“आरव, वो कुछ भी कर सकता है। हमें कुछ सोचना होगा।”
आरव ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा,
“सोच लिया है। इस बार मैं भागूँगा नहीं। वो हमला करेगा, और मैं उसका सामना करूँगा।”
अगले कुछ दिन तक करण सामने नहीं आया। मगर यह चुप्पी और भी खतरनाक थी।
फिर एक रात, जब अनाया अपने फ्लैट में अकेली थी, अचानक लाइट चली गई। कमरे में अंधेरा फैल गया। बाहर हल्की बारिश हो रही थी। खिड़की के पास आहट सुनाई दी।
अनाया का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। वह मोबाइल की टॉर्च ऑन करके खिड़की की ओर बढ़ी। पर्दा हिला। और तभी उसने देखा—काँच पर किसी ने उँगलियों से लिखा था—“मैं आया हूँ।”
वह चीख पड़ी और तुरंत आरव को फोन किया।
आरव दौड़ते हुए पहुँचा। दरवाज़ा खुलवाकर अंदर आया तो देखा अनाया कोने में सिमटी काँप रही थी। उसने उसे सीने से लगा लिया।
“डर मत। मैं आ गया हूँ।”
मगर खिड़की के बाहर कोई नहीं था। करण छाया की तरह आया और गायब हो गया।
आरव ने तय कर लिया कि अब वह करण को जाल में फँसाएगा। उसने अपने कुछ दोस्तों की मदद ली और अनाया के घर के आसपास निगरानी लगाने का प्लान बनाया।
एक रात, सब मिलकर छिपे हुए थे। जैसे ही करण खिड़की के पास आया, पुलिस और आरव के दोस्त बाहर निकल आए। करण भागने की कोशिश करने लगा, मगर इस बार वह पकड़ा गया।
पुलिस उसे पकड़कर ले गई, मगर जाते-जाते उसकी आँखों में वही पागलपन था।
“अनाया… अगर तू मेरी नहीं हुई तो मैं तुझे किसी और का भी नहीं होने दूँगा।”
उसकी आवाज़ गूंजती रही।
उस रात अनाया चुप रही। आरव ने उससे कहा,
“अब डरने की ज़रूरत नहीं। वो जेल जाएगा, और इस बार इतनी आसानी से बाहर नहीं आएगा।”
अनाया ने धीरे से कहा,
“आरव, क्या सच में हमारी ज़िंदगी फिर से सामान्य हो पाएगी? या हम हमेशा डर की छाया में ही जीते रहेंगे?”
आरव ने उसका हाथ थामकर कहा,
“डर छाया है। और छाया तभी दिखती है जब रोशनी हो। हमारी रोशनी हमारा प्यार है, और यही हमें इस अंधेरे से बाहर निकालेगी।”
अनाया की आँखों में आँसू थे, मगर उनमें एक उम्मीद भी चमक रही थी।
लेकिन करण का पागलपन जेल की सलाखों से भी शांत नहीं हुआ। उसने अंदर से ही धमकियाँ भेजनी शुरू कर दीं। फोन पर अनजान कॉल आते—
“आरव, तेरा वक्त अब पूरा हो चुका है।”
एक दिन तो अनाया के ऑफिस में कुरियर आया। पैकेट खोला तो अंदर राख थी और एक नोट—
“यही तुम्हारा अंजाम होगा।”
अनाया टूटकर रो पड़ी।
“आरव, मैं अब और नहीं झेल सकती। मैं चाहती हूँ कि हम कहीं दूर चले जाएँ। दिल्ली छोड़ दें।”
आरव ने उसे सीने से लगाते हुए कहा,
“भागकर नहीं जी सकते, अनाया। अगर भागे तो वह हमें हर जगह ढूँढ लेगा। हमें उसका सामना करना ही होगा। यह हमारी अग्निपरीक्षा है।”
उस रात दोनों इंडिया गेट के पास बैठे थे। चारों ओर हलचल थी, मगर उनके बीच खामोशी।
अनाया ने धीरे से कहा,
“पता है आरव, मुझे लगता था कि मैं कभी किसी से प्यार नहीं कर पाऊँगी। मगर तुमने मुझे फिर से जीना सिखाया। और अब डर है कि कहीं मैं तुम्हें खो न दूँ।”
आरव ने उसका चेहरा थामकर कहा,
“अगर खोना ही होता, तो अब तक खो चुका होता। हम दोनों बचे हैं, क्योंकि हमारा रिश्ता किसी डर से बड़ा है।”
उसने आसमान की ओर इशारा किया।
“देखो, चाँद पूरा है आज। यही हमारे रिश्ते का संकेत है। अब कोई अधूरापन नहीं रहेगा।”
अनाया ने उसकी बाँहों में सिर छुपा लिया।
मगर दोनों जानते थे—आंधी अभी रुकी नहीं थी। करण का साया अभी भी उनके चारों ओर मंडरा रहा था।
उनके प्यार को अब सबसे बड़ी परीक्षा देनी थी—या तो यह डर उन्हें तोड़ देगा, या फिर यही डर उन्हें हमेशा के लिए एक कर देगा।
भाग 9 – अंतिम सामना
दिल्ली की ठंडी रातों में खतरे की आहट अब और साफ़ सुनाई देने लगी थी। करण जेल से तो पकड़ा गया था, मगर उसका गुस्सा दीवारों के भीतर और ज़हरीला होता जा रहा था। आरव और अनाया को यह डर सताने लगा था कि जब भी वह बाहर निकलेगा, तो अपनी आख़िरी और सबसे खतरनाक चाल खेलेगा।
अनाया ने कई बार कहा,
“आरव, हमें कहीं और जाना चाहिए। दिल्ली छोड़कर किसी और शहर में नई शुरुआत करनी चाहिए।”
मगर आरव ने हर बार सिर हिलाया।
“भागकर जीने से बेहतर है डटकर लड़ना। अगर हम भागे तो वो जीत जाएगा।”
अनाया की आँखों में आँसू आ जाते।
“मुझे सिर्फ़ तुम्हें खोने का डर है।”
आरव मुस्कराकर उसका हाथ पकड़ लेता।
“तुम्हारा डर ही मेरी ताक़त है। मैं तुम्हें खोने नहीं दूँगा।”
करीब एक हफ़्ते बाद करण ज़मानत पर बाहर आ गया। यह खबर सुनते ही अनाया का चेहरा फीका पड़ गया।
आरव ने उसके सामने वादा किया—
“अबकी बार यह खेल ख़त्म होगा। या तो वो बचेगा, या हम।”
उस शाम, अनाया अपने ऑफिस से लौट रही थी। अंधेरा हो चुका था। सड़क सुनसान थी। तभी अचानक एक वैन उसके पास आकर रुकी और दो नकाबपोश लोगों ने उसे खींचकर अंदर डाल लिया।
उसकी चीख़ सन्नाटे में दब गई।
कुछ घंटे बाद आरव को एक कॉल आया।
“अगर अपनी प्रेमिका को जिंदा देखना चाहता है तो अकेला पुराने किले के खंडहर में आ जा। पुलिस को बताया तो उसका शव मिलेगा।”
आरव का खून खौल उठा। उसने दोस्तों को खबर देने की सोची, मगर तुरंत फोन काटकर खुद को संभाला।
“नहीं। यह मेरा सामना है। यह मेरी लड़ाई है।”
आधी रात को आरव उस पुराने किले में पहुँचा। जगह सुनसान थी। टूटी दीवारें, झाड़ियाँ, और चाँदनी की हल्की रोशनी। भीतर जाते ही उसे अनाया की आवाज़ सुनाई दी।
“आरव!”
वह दौड़ पड़ा। देखा कि अनाया एक खंभे से बंधी है, और उसके सामने करण खड़ा है। हाथ में चाकू, आँखों में पागलपन।
“आ ही गया तू। मुझे पता था कि तू अकेला आएगा।” करण ने हँसते हुए कहा।
“अनाया मेरी थी और मेरी ही रहेगी। मगर तूने बीच में आकर खेल बिगाड़ दिया। अब मैं तुझे खत्म कर दूँगा।”
आरव ने दृढ़ स्वर में कहा,
“करण, प्यार मजबूरी या ज़बरदस्ती नहीं होता। अनाया अब तेरी नहीं है। और अगर तूने उसे छूने की कोशिश की तो यह चाकू तुझे ही मार डालेगा।”
करण पागलपन में चीखा।
“प्यार मेरा हक़ है!”
वह आरव पर झपटा। दोनों के बीच जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई। चाकू की चमक चाँदनी में डरावनी लग रही थी। आरव ने पूरी ताक़त से उसका सामना किया।
अनाया बंधन से छूटने की कोशिश करती रही और चीखती रही,
“आरव! सावधान!”
करण ने चाकू घुमाया, मगर आरव ने उसका हाथ पकड़ लिया और जोरदार मुक्का मारा। करण गिर पड़ा, मगर फिर खड़ा हो गया। उसके चेहरे से खून बह रहा था, आँखें और भी लाल हो गई थीं।
“आज या तो तू बचेगा, या मैं!” करण गरजा।
आरव ने ठंडी आवाज़ में कहा,
“नहीं करण… आज या तो सच बचेगा, या झूठ। और सच यह है कि अनाया अब तेरी नहीं।”
करण फिर झपटा। इस बार आरव ने उसका हाथ मरोड़कर चाकू छीन लिया और ज़मीन पर फेंक दिया। दोनों दीवार से टकराते हुए ज़मीन पर गिरे।
आरव ने पूरी ताक़त से उसे काबू में किया।
“ख़त्म कर दूँ तुझे यहीं पर!”
मगर तभी अनाया की आवाज़ आई—
“नहीं आरव! उसे मारना हल नहीं है। अगर तूने भी वही किया जो करण करता आया है, तो फर्क क्या रह जाएगा?”
आरव की सांसें तेज़ चल रही थीं। उसने करण को छोड़ दिया और पुलिस को फोन किया।
पुलिस आ पहुँची और करण को पकड़ लिया। जाते-जाते करण चीखता रहा,
“ये कहानी अभी खत्म नहीं हुई! मैं लौटूँगा!”
पुलिस ने उसे गाड़ी में धकेल दिया।
खामोशी छा गई। अनाया रोते हुए आरव के गले लग गई।
“मुझे लगा मैं तुम्हें खो दूँगी।”
आरव ने उसके आँसू पोंछे।
“अब कोई हमें अलग नहीं कर सकता। न अतीत, न डर, न करण।”
अनाया ने धीरे से कहा,
“तुम मेरी ताक़त हो आरव। और आज मैंने समझा कि सच्चा प्यार डर को हराता है।”
दोनों चाँदनी में किले की टूटी दीवारों के पास खड़े थे। हवा हल्की थी, मगर उनके दिलों में तूफ़ान शांत हो चुका था।
आरव ने मुस्कराकर कहा,
“ये हमारी कहानी की सबसे कठिन परीक्षा थी। और हमने जीत ली।”
अनाया ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया।
“अब मैं तुम्हें कभी जाने नहीं दूँगी।”
उनकी आँखों में भरोसा था, और उस भरोसे ने सारी खामोशियों को तोड़ दिया।
मगर कहीं दूर, अंधेरे के उस पार, करण की चीख़ गूंज रही थी।
और दोनों जानते थे—शायद यह आख़िरी नहीं, बल्कि किसी नए तूफ़ान की प्रस्तावना थी।
भाग 10 – नया उजाला
करण की गिरफ्तारी के बाद भी अनाया और आरव पूरी तरह चैन से नहीं सो पाए। जेल की सलाखों के पीछे भी करण की पागलपन भरी चीख़ें उनके कानों में गूंजती रहतीं—“मैं लौटूँगा!”। लेकिन इस बार वे टूटे नहीं थे। अब उनके भीतर डर से कहीं बड़ा एक यक़ीन जन्म ले चुका था—एक-दूसरे का साथ।
नयी सुबह
करीब एक महीने तक मामला अदालत में चला। करण के खिलाफ़ गवाह थे, सबूत थे, और अबकी बार पुलिस भी सख़्ती से उसके पीछे थी। हर सुनवाई में अनाया काँपती हुई कोर्टरूम में जाती, लेकिन आरव का हाथ उसके हाथ में कसकर थमा रहता।
जब जज ने करण को लंबी सज़ा सुनाई, तो अनाया की आँखों से बरसों का बोझ आँसुओं के साथ बह गया। वह बाहर निकलकर आरव की बाँहों में गिर पड़ी।
“अब मैं आज़ाद हूँ, आरव। सच में आज़ाद।”
आरव ने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए कहा,
“आज नहीं, अनाया… तुम उस दिन आज़ाद हो गई थीं जब तुमने करण को छोड़ने की हिम्मत की थी। आज तो बस दुनिया ने उसे मान लिया।”
साँस लेने की जगह
अगले कुछ हफ़्तों में ज़िंदगी धीरे-धीरे सामान्य होने लगी। अनाया ने अपने काम पर ध्यान दिया, नए लेखकों की किताबें पढ़ीं। अब उसके चेहरे पर फिर से वही चमक लौट आई थी।
एक शाम, आरव उसे दिल्ली के बाहर एक छोटे-से गाँव में ले गया जहाँ सरसों के खेत सुनहरी धूप में लहलहा रहे थे।
“मैं चाहता हूँ तुम यहाँ थोड़ी देर साँस लो, उस दमघोंटू माहौल से दूर।”
अनाया खेतों की ओर देखते हुए बोली,
“पता है, कभी लगता था मेरी ज़िंदगी की किताब का आख़िरी पन्ना वही अंधेरा होगा। लेकिन अब लगता है कि शायद इसके बाद भी बहुत कुछ लिखा जाना बाकी है।”
आरव मुस्कराया।
“और वो सब हम साथ लिखेंगे।”
कबूलनामे का लम्हा
उस रात, खेतों के पास आग जलाकर बैठे दोनों तारों भरे आसमान को देख रहे थे। हवा में मिट्टी और धुएँ की खुशबू थी।
अनाया ने धीरे से कहा,
“आरव, मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं किसी पर इतना भरोसा कर पाऊँगी। तुमने मुझे मेरे डर से निकालकर फिर से जीना सिखाया। मैं… मैं तुमसे प्यार करती हूँ।”
आरव की आँखें चमक उठीं। उसने उसका हाथ अपने दिल पर रख दिया।
“और मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ, अनाया। सिर्फ़ तुम्हारे मुस्कान से नहीं, तुम्हारी खामोशी से भी, तुम्हारे दर्द से भी, तुम्हारी पूरी कहानी से।”
उस पल उनकी आँखें मिलीं और जैसे सारी खामोशियाँ टूट गईं। वह रात उनकी ज़िंदगी की सबसे सच्ची रात बन गई।
नई शुरुआत
कुछ महीनों बाद, अनाया और आरव ने शादी करने का फ़ैसला किया। बड़ी धूमधाम नहीं, बस करीबी दोस्तों और परिवार के बीच।
शादी के दिन अनाया हल्के गुलाबी जोड़े में सजी थी। उसकी आँखों में डर की जगह चमक थी। जब उसने मंडप में आरव का हाथ थामा, तो उसे लगा जैसे बरसों का अंधेरा मिट गया हो।
वचन लेते समय आरव ने उसके कानों में फुसफुसाया,
“मैं वादा करता हूँ कि चाहे कैसी भी खामोशी हो, मैं उसमें तुम्हारा नाम ढूँढ लूँगा।”
अनाया की आँखें भीग गईं।
“और मैं वादा करती हूँ कि चाहे कैसी भी आँधी आए, मैं तुम्हारे साथ खड़ी रहूँगी।”
आख़िरी छाया
शादी के कुछ दिन बाद उन्हें खबर मिली कि करण को जेल में दूसरे कैदियों के साथ झगड़े में गंभीर चोट आई है और अब वह वहीं पर ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है।
अनाया ने यह खबर सुनकर गहरी सांस ली।
“शायद अब यह कहानी सचमुच खत्म हो रही है।”
आरव ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,
“नहीं, यह खत्म नहीं—यह तुम्हारे नए जीवन की शुरुआत है।”
अनाया ने सिर झुकाकर कहा,
“हाँ। और इस बार मैं बिना डर के जीना चाहती हूँ।”
खामोशी का उजाला
कुछ महीनों बाद, एक शाम दोनों अपने नए घर की छत पर बैठे थे। दूर आसमान में चाँद चमक रहा था।
अनाया ने कहा,
“आरव, याद है जब तुमने कहा था कि डर छाया है और छाया तभी दिखती है जब रोशनी हो? आज लगता है कि वो रोशनी हम खुद बन गए हैं।”
आरव ने उसका हाथ थामकर जवाब दिया,
“हाँ। और इस रोशनी में अब हमारी कहानी का हर पन्ना लिखा जाएगा।”
दोनों ने आसमान की ओर देखा। अब वहाँ कोई अंधेरा नहीं था, सिर्फ़ सितारों की चमक और उनके दिलों में भरे भरोसे का उजाला।
उपसंहार
अनाया और आरव की कहानी यहीं पर थमती है—न डर में, न अतीत की परछाइयों में, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत में।
उन्होंने सीखा कि प्यार सिर्फ़ मुस्कान बाँटने का नाम नहीं है, बल्कि उन खामोशियों को भी अपनाने का नाम है जो इंसान के भीतर सबसे गहरे दर्द को छुपाती हैं।
“तेरे नाम की ख़ामोशी” अब उनके बीच कोई बोझ नहीं, बल्कि एक धुन थी—जो हर खामोशी में गूंजती, हर आँधी में उन्हें थाम लेती, और हर सुबह उन्हें एक-दूसरे के और करीब ले आती।




