दिनेश कुमार गाँव के ठीक बीचों-बीच खड़ा वह बरगद का पेड़ सदियों पुराना था, जिसकी फैली हुई जटाएँ और चौड़ी शाखाएँ गाँव की पहचान मानी जाती थीं। दिन के उजाले में यह पेड़ गाँववालों का आश्रय स्थल होता—कोई किसान हल चलाने से पहले थोड़ी देर इसकी छाँव में बैठकर बीड़ी सुलगा लेता, बच्चे इसकी झूलती जड़ों को झूले की तरह पकड़कर खेलते, और दोपहर की तपिश से थके मजदूर इसकी ठंडी छाँव में सुस्ताने आ जाते। बरगद की ठंडी छाया में गाँव का चौपाल भी लगता, जहाँ बुजुर्ग अपने अनुभव साझा करते और लड़के-लड़कियाँ खेलकूद में मशगूल रहते। लेकिन जैसे…
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Vishal Varshney भैरवपुर गाँव बहुत साधारण था, चारों तरफ़ खेत, पीपल का पुराना पेड़, और बीच में मंदिर। लेकिन इस गाँव पर एक अनोखी छाया हमेशा से रही थी। हर पीढ़ी में बुज़ुर्ग बच्चों को चेतावनी देते थे— “जब आकाश में लाल तारा चमके, दरवाज़े बंद कर लेना… वो है काल सितारा।” गाँव के लोग मानते थे कि यह सितारा हर बार किसी एक जीवन की बलि लेता है। और बलि का स्थान अक्सर वही पुरानी हवेली होती थी, जो गाँव के छोर पर खंडहर की तरह खड़ी थी। लाल तारे की रात एक अमावस की…
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आकाश बर्मा नए किरायेदार परिवार के आने के साथ ही उस हवेली जैसे पुराने घर में एक अनकहा जीवन लौट आता है। हवेली बरसों से वीरान पड़ी थी—उसकी दीवारों पर समय की परतें जम चुकी थीं, रंग उखड़कर झड़ चुके थे और खिड़कियों पर धूल और मकड़ी के जाले ऐसे चिपके थे जैसे वे घर की असली सजावट हों। इस पुरानेपन के बीच भी उस घर की एक अलग भव्यता थी, मानो समय के प्रवाह के बावजूद वह अब भी अपने शान और रहस्यमय ठाठ को बचाए हुए हो। परिवार ने जब पहली बार उस हवेली में कदम रखा तो…
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अध्याय १: सफ़र की शुरुआत कॉलेज की ट्रिप का दिन था, और जैसे ही सुबह की हल्की धूप ने शहर को छुआ, छात्रों की उत्साहपूर्ण आवाज़ें पूरे कॉलेज परिसर में गूंजने लगीं। बस के बाहर टहलते हुए कुछ छात्र अपने बैग्स की जाँच कर रहे थे, कुछ अपनी कैमरों और स्नैक्स की तैयारी में लगे थे। सड़क पर चहल-पहल थी—बच्चों के माता-पिता ने उन्हें आख़िरी बार गले लगाकर विदा किया था, और अब बस के अंदर की हलचल ही उनका नया संसार बन गई थी। जैसे ही बस की चाबी घुमाई गई और इंजन की गड़गड़ाहट ने सफ़र की शुरुआत…
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१ कस्बे के बाहर, पुराने बरगद और पीपल के पेड़ों की छाँव तले एक सदियों पुराना गिरिजाघर खड़ा है—टूटी-फूटी दीवारों, झुकी हुई छत और काई से ढकी मूर्तियों के साथ। कभी यह जगह क्रिसमस की भव्यता का केंद्र हुआ करती थी। दूर-दूर से लोग यहाँ आते, प्रार्थनाएँ होतीं, और रंग-बिरंगी रोशनियाँ गिरिजाघर की खिड़कियों से छनकर बाहर फैल जातीं। लेकिन वक्त की मार, मौसम की बेरहमी और एक अजीबोगरीब हादसे ने इसे वीरान कर दिया। अब यह सिर्फ एक खंडहर है, जहाँ हवा से चरमराती दरवाजों की आवाज़ सुनाई देती है और टूटी हुई काँच की खिड़कियाँ रात में चमकते…
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संजय त्रिवेदी भाग १ – प्रस्थान दिल्ली की भरी-पूरी सड़कों पर उस सुबह एक अजीब-सी बेचैनी तैर रही थी। राहुल ने खिड़की से बाहर देखा—गाड़ियों का शोर, हॉर्न की चुभती आवाज़ें और लोगों की जल्दबाज़ी। यह सब कुछ उसके भीतर जैसे एक भारी बोझ बन चुका था। रात भर नींद नहीं आई थी। कॉर्पोरेट नौकरी की डेडलाइन्स, बॉस के सवाल और घर लौटने पर सन्नाटा—सबकुछ उसे थका चुका था। उस सुबह उसने अचानक तय किया कि अब और नहीं। उसने बैग उठाया, कुछ कपड़े ठूँसे, और बिना ज़्यादा सोचे कैब बुलाकर स्टेशन की ओर निकल पड़ा। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन…
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आधी रात का चाँद वाराणसी की गलियाँ वैसे तो दिन-रात लोगों से भरी रहती हैं लेकिन शाम होते ही उनमें एक अजीब-सी खामोशी उतर आती है, मानो सदियों पुरानी इमारतें खुद अपनी कहानियाँ सुनाने लगती हों। उन्हीं गलियों में रहती थी समीरा, उम्र मात्र बाईस, आँखों में अनगिनत राग और दिल में अधूरी ख्वाहिशों का कोलाहल। वह बनारस घराने की तालीम ले रही थी, सुबह की ठंडी हवा में उसका सुर और तानपुरे की गूँज मिलकर मोहल्ले का वातावरण बदल देती थी। लेकिन उसके भीतर हमेशा एक दुविधा रहती—क्या कभी वह अपने संगीत से पहचान बना पाएगी या परिवार की…
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चन्दन पांडेय १ पुराने मोहल्ले की गलियाँ वैसे ही तंग और भीड़भाड़ से भरी थीं, जैसे किसी इतिहास की किताब का पीला पड़ चुका पन्ना। मकान मालिक शर्मा जी का घर भी उन जर्जर दीवारों के बीच एक ऐसा ही मकान था, जिसकी छत से सीलन की गंध आती थी और दीवारों पर पिछली बरसात के निशान अब भी जिद्दी दाग़ बनकर चिपके थे। मोहल्ले में सबको पता था कि शर्मा जी किराएदारों को लेकर बहुत सख़्त स्वभाव के हैं—“समय पर किराया दो और चैन से रहो” उनका नियम था। लेकिन मोहल्ले के नुक्कड़ पर उस दिन जब एक दुबली-पतली…
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समीर वर्मा एपिसोड 1: धुंध में चीख कोलकाता की सड़कों पर सर्दियों की धुंध इस क़दर छाई थी कि सामने चल रही पीली टैक्सी का पिछला नंबर प्लेट तक साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। हावड़ा ब्रिज की रोशनी उस धुंध को काटने की कोशिश कर रही थी, मगर हर रोशनी धुंध में घुलकर जैसे कोई अधूरा रहस्य बन जा रही थी। रात के पौने बारह बजे पुलिस कंट्रोल रूम में फ़ोन बजा। सब-इंस्पेक्टर शेखर चौधरी उस समय अपने डेस्क पर फाइलें पलट रहे थे। फोन उठाते ही उधर से घबराई हुई औरत की आवाज़ आई— “साहब… चीख सुनाई दी…
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प्रभाष गुप्ता दिल्ली का शहर हमेशा से ही अपनी चमक, भीड़ और बेइंतहा रफ़्तार के लिए जाना जाता है। सुबह होते ही यहाँ की सड़कों पर गाड़ियों का शोर, हॉर्न की गूंज और जल्दी में भागते लोगों की भीड़ हर तरफ दिखाई देती है। आरव भी इस दौड़ में शामिल एक साधारण इंसान था, जिसके जीवन का अधिकांश हिस्सा दफ़्तर और घर के बीच फँसकर रह गया था। सुबह अलार्म की आवाज़ के साथ उसकी आँख खुलती, और बिना सोचे-समझे वह दिन की शुरुआत करता। ऑफिस पहुँचने के लिए उसे मेट्रो या कैब में लंबा सफ़र तय करना पड़ता, जहाँ…