अभिनव सेठ १ गंगा किनारे बसे उस कस्बे की सुबह हमेशा शांति और प्रार्थना से शुरू होती थी। मंदिर की घंटियों की ध्वनि, घाट पर उठता धुआँ, और पानी में उतरती नावों की आवाज़ें मानो जीवन का हिस्सा थीं। लेकिन उस दिन सूरज की पहली किरणें अभी पूरी तरह फैली भी नहीं थीं कि घाट पर मछली पकड़ने गया मन्नू नाविक चीख पड़ा। उसकी आँखें भय से फटी हुई थीं—पानी के बहाव में एक शव तैर रहा था। लोग दौड़कर जमा हो गए, और कस्बे में हड़कंप मच गया। शव को किनारे लाया गया तो पता चला कि वह कोई…
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प्रभात कुमार वर्मा १ पप्पू और गोलू की दोस्ती मोहल्ले में मशहूर थी। दोनों हमेशा साथ घूमते-फिरते, गली-गली की हर गप्प में मौजूद रहते और हर झगड़े में बीच-बचाव करने का मौका ढूँढते। लेकिन ज़िंदगी में कुछ बड़ा करने की उनकी ख्वाहिश अधूरी रह जाती थी। मोहल्ले की छत पर, गर्मियों की एक दुपहरी में, पप्पू ने अपने सपनों का बक्सा खोल दिया। पसीने से तर-बतर होते हुए भी वह बड़ी गंभीरता से बोला—“गोलू, अब बहुत हो गया यह मामूली जिंदगी। हमें कुछ अलग करना होगा, कुछ ऐसा कि लोग हमारी मिसाल दें।” गोलू, जो बगल में बैठकर संतरे का…
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आकाश कुमार १ काठगोदाम का स्टेशन, अपनी पुरानी ईंटों और हल्की सी धुंध में ढकी हुई चाय की खुशबू के साथ, हमेशा की तरह व्यस्त था। ट्रेन का हौला सा ब्रेक, धूल भरी हवा में घुलते ध्वनियों के साथ स्टेशन की पटरियों पर गूँज रहा था। बरसों बाद वही लोग, जिनकी दोस्ती कॉलेज की गलियों में पली-बढ़ी थी, अब अलग-अलग शहरों और ज़िंदगियों की भागमभाग के बीच फिर एक बार मिलने आए थे। अभिषेक, जो अब अपने करियर में व्यस्त और गंभीर हो गया था, स्टेशन की भीड़ में अपनी पुरानी यादों को ताज़ा करता हुआ खड़ा था। उसका मन…
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अविनाश त्रिपाठी १ गांव के बीचोंबीच, ऊँचे-ऊँचे बरगद और पीपल के पेड़ों की छाया में, एक पुरानी हवेली खड़ी थी। चारों ओर जंगली घास ने ज़मीन को ढक लिया था और हवेली की दीवारें जगह-जगह से उखड़ चुकी थीं। बरसों की बरसात और धूप ने ईंटों पर काई जमा दी थी, मानो किसी ने उसे जानबूझकर त्याग दिया हो। टूटी खिड़कियों से आती हवा के साथ चरमराते दरवाज़ों की आवाज़ रात के सन्नाटे में किसी आत्मा की फुसफुसाहट सी लगती थी। कभी यह हवेली राजवीर सिंह के ज़मींदार परिवार की शान थी—जहां मेहमानों का तांता लगा रहता था, दावतें होती…
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१ ठाकुर अजय प्रताप सिंह अपने इलाके के सबसे चर्चित और सम्मानित जमींदार थे। जीवन की ढलती उम्र में भी उनकी आवाज़ और व्यक्तित्व में वही रौब था जो युवावस्था में दिखता था। विशाल हवेली, लंबा-चौड़ा बगीचा, दर्जनों नौकर और जमीन-जायदाद के अनगिनत कागजात—सब कुछ मानो उनकी शख्सियत का विस्तार थे। लेकिन उस रात हवेली के अंदर का माहौल कुछ अलग था। हवेली की घड़ी ने रात के ग्यारह बजाए ही थे कि अचानक नौकरों की ओर से हलचल मच गई। ठाकुर अपने निजी कमरे में बैठे थे, मेज पर रखी डायरी और पास में रखी एक फाउंटेन पेन के…
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अभिषेक त्रिवेदी एपिसोड 1 : गली का नक्शा और पहला झगड़ा कहानी शुरू होती है एक ऐसे मोहल्ले से, जो शहर के नक्शे में देखने पर बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता। नगर निगम का नक्शा बनाने वाला जब इस हिस्से तक पहुँचा तो उसकी पेंसिल की नोक टूट गई, और उसने वही अधूरा छोड़ दिया। नतीजा यह कि “छोटी गली” नाम की जगह कभी किसी दफ्तरी कागज़ पर पूरी तरह दर्ज ही नहीं हुई। लेकिन इस गली में रहने वालों के लिए यह दुनिया की सबसे बड़ी राजधानी थी—राजधानी भी और संसद भी, अदालत भी और खेल का मैदान भी।…
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अदिती वर्मा १ पहाड़ों की ओर रवाना होने से पहले कॉलेज के कैंपिंग ट्रिप का माहौल अपने आप में उत्साह और ऊर्जा से भरा हुआ था। आरव और नंदिनी अपने दोस्तों के साथ सुबह के समय कॉलेज परिसर में इकट्ठे हुए, जहाँ हर कोई अपने बैग में जरूरी सामान भर रहा था—तंबू, स्लीपिंग बैग, कैंपिंग कुकर, और कुछ जरूरी खाने-पीने की चीजें। सूरज की हल्की धूप और ताजगी भरी हवा ने माहौल को और भी रोमांचक बना दिया था। सभी छात्रों के चेहरे पर मुस्कान थी, और हर कोई इस बात से बेहद उत्साहित था कि अब वे शहर की…
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कुणाल राठौर एपिसोड 1 : तहखाने की खिड़की रात ढाई बजे दिल्ली की हवा भारी थी। डिफेंस कॉलोनी की पुरानी कोठी—डी-17—के बाहर पुलिस की पीली पट्टी लगी थी। भीतर कदम रखते ही रिपोर्टर नैना त्रिपाठी को महसूस हुआ मानो दीवारें खुद साँस ले रही हों। बरामदे में एक परिचित चेहरा दिखा—राघव मेहरा, क्राइम ब्रांच के रिटायर्ड अफ़सर। हाथ में टॉर्च, आँखों में वही पुराना धैर्य। “आप यहाँ?” नैना ने पूछा। “आवाज़ सुनकर आया। और यह केस मुझे पुकार रहा था।” स्ट्रेचर पर लेटा मृतक था—आईएएस अफ़सर अरविंद कश्यप। चेहरे पर नीली झलक और कमरे में हल्की बादाम जैसी गंध। नैना…
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अदिति राठी भाग 1 – मुलाक़ात दिल्ली की सर्दियों में धूप किसी पुराने कंबल की तरह होती है—पतली, मगर भरोसेमंद। अनाया ने खिड़की पर टंगी धुले हुए कपड़ों की कतार के बीच से झांककर आकाश को देखा और घड़ी पर नज़र डाली। सुबह के आठ बजकर पैंतालीस। नौ बजे की ब्लू लाइन पकड़नी है। उसके फोन पर माँ का मैसेज चमका—“शाम तक सब्ज़ी ले आना, और अम्मा के लिए दवा भी।” उसने “ठीक है” टाइप किया, बैग उठाया और दुपट्टा कंधे पर पक्का किया। नोटबुक बैग के सबसे अंदर, जैसे कोई निजी पुड़िया — जिसमें नाम, जगहें और कुछ अधलिखी…
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कुणाल कुलकर्णी १ मुंबई की धरती पर पहला कदम रखते ही कुणाल के मन में अजीब सी हलचल उठी। जैसे ही ट्रेन धीरे-धीरे छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) स्टेशन पर रुकी, खिड़की से झाँकते ही उसे हज़ारों चेहरों की चहल-पहल, पटरियों पर भागते कुलियों की आवाज़ें और लाउडस्पीकर पर गूंजती घोषणाओं का मिश्रण सुनाई दिया। स्टेशन पर कदम रखते ही उसे ऐसा महसूस हुआ मानो किसी अदृश्य शक्ति ने उसे खींचकर इस हलचल के बीच डाल दिया हो। दूर-दूर तक रंग-बिरंगे कपड़े पहने लोग, हाथों में मिठाई और पूजा का सामान, और माथे पर चंदन का तिलक लगाए श्रद्धालु दिखाई…