प्रभात कुमार वर्मा १ पप्पू और गोलू की दोस्ती मोहल्ले में मशहूर थी। दोनों हमेशा साथ घूमते-फिरते, गली-गली की हर गप्प में मौजूद रहते और हर झगड़े में बीच-बचाव करने का मौका ढूँढते। लेकिन ज़िंदगी में कुछ बड़ा करने की उनकी ख्वाहिश अधूरी रह जाती थी। मोहल्ले की छत पर, गर्मियों की एक दुपहरी में, पप्पू ने अपने सपनों का बक्सा खोल दिया। पसीने से तर-बतर होते हुए भी वह बड़ी गंभीरता से बोला—“गोलू, अब बहुत हो गया यह मामूली जिंदगी। हमें कुछ अलग करना होगा, कुछ ऐसा कि लोग हमारी मिसाल दें।” गोलू, जो बगल में बैठकर संतरे का…
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मयंक श्रीवास्तव दुकान से घर तक का सफ़र शर्मा जी वैसे तो बिल्कुल सीधेसादे इंसान थे, लेकिन मोहल्ले में उनकी पहचान एक ऐसे शख्स की थी जिन्हें हर समय नई-नई चीज़ों का शौक चढ़ा रहता था। कल तक जो बड़े गर्व से लोगों को बताते घूम रहे थे कि “भाईसाहब, मेरा कीपैड वाला फोन पाँच साल से चल रहा है, बैटरी भी ओरिजिनल है”, वही शर्मा जी अचानक एक दिन मोहल्ले की मोबाइल शॉप से चमचमाता नया स्मार्टफोन लेकर लौटे। अब तक तो शर्मा जी उस पुराने फोन को अपने जीवनसाथी की तरह मान चुके थे। उसमें अलार्म भी मुश्किल…
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विपुल शर्मा भाग 1: बुआ का एलान बिल्लूपुर की सुबहें आमतौर पर कबूतरों की गुटरगूँ, चाय की पहली चुस्की, और दूधवाले की साइकिल की घंटी से शुरू होती थीं। लेकिन उस दिन की सुबह कुछ अलग थी। गाँव के मंदिर के सामने चौपाल में, नीम के नीचे बैठी कांता बुआ ने एक ज़ोरदार चाय की चुस्की लेकर जैसे ही गिलास रखा, वैसे ही उनकी आवाज़ पूरे गाँव में गूँज गई— “इस साल हम कन्याकुंभ में जाएँगे!” चारों तरफ सन्नाटा। गुड्डू, जो बुआ का भतीजा और स्थानीय सरकारी दफ्तर में बाबू था, अपने अख़बार के पीछे छिपते हुए बड़बड़ाया— “लो! फिर…
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सुनील पाटिल राजेश और आर्टी की शादी हो चुकी थी, और अब वे अपनी शादी के बाद के हनीमून के लिए तैयार थे। दोनों ने एक शांत और सुरम्य हिल स्टेशन का चुनाव किया था, जो उनके दिलों के करीब था। हालांकि, राजेश को यात्रा की योजना बनाते वक्त कुछ उलझन थी, क्योंकि वह हमेशा से ही हर चीज़ को व्यवस्थित और नियंत्रित रखना पसंद करते थे। वह चाहते थे कि उनका हनीमून एक सपने जैसा हो, बिना किसी परेशानी और अड़चनों के। आर्टी, जो हमेशा से रोमांचक और नए अनुभवों की तलाश में रहती थी, इस यात्रा को लेकर…
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विशाल कुमार बड़ा कागज संकट ऑफिस के माहौल में एक हलचल थी। Hopeful Hearts की छोटी सी टीम किसी न किसी वजह से हमेशा उधड़ी रहती थी। आज ऑफिस का एक नया दिन था, और जैसे ही अर्विंद, ऑफिस के मैनेजर, ने दरवाजा खोला, उसे एक चिठ्ठी मिली जो सीधे विनोद सर के केबिन से आई थी। “सर्वेक्षण रिपोर्ट के लिए सभी कागज़ों को एकजुट करो!” यह संदेश था। अर्विंद ने सोचा कि इस दिन का काम तो बस चुटकियों में निपट जाएगा। लेकिन, जब उसे यकीन हो गया कि रिपोर्ट का काम करना होगा, तो उसने इस चिठ्ठी का…
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नरेश चतुर्वेदी पहला भाग: उधारी के सूट से शुरू हुआ रोमांस रमेश कुमार चौबे एक साधारण लेकिन महत्वाकांक्षी युवक था, जो इलाहाबाद की एक पुरानी किराये की कोठी में रहता था जहाँ दीवारों से पपड़ी गिरती थी और छत से कबूतर। लेकिन उसके सपनों की कोई सीमा नहीं थी। वह हर इतवार को बालों में नारियल तेल लगाकर आइने के सामने “शाहरुख खान स्टाइल” में बाल झटकता और सोचता, “एक दिन मैं भी शादी करूंगा… पर किस्तों में।” असल में, रमेश का मानना था कि जीवन में कुछ भी कैश में नहीं लेना चाहिए – चाहे वो मोबाइल हो, फ्रिज…
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देवांशु मिश्र छींकापुर, ऐसा गाँव जहाँ हर दूसरे दिन बिजली जाती है और हर चौथे दिन चौधरी जी की बकरी। यहाँ के लोग ताश खेलते हुए दुनिया की राजनीति तय करते हैं और बीड़ी पीते हुए शेयर मार्केट की चाल समझाते हैं। इसी गाँव का सबसे विशेष जीव था—पप्पू यादव। उम्र 28, काम-काज शून्य, मगर जुगाड़ ज्ञान में ऐसा निपुण कि शादी में बिना बुलाए घुसने के 13 तरीके जानता था। स्कूल में मास्टर रामखेलावन उसे ‘गधे की जात’ कहकर बुलाते थे और मोहल्ले वाले उसे ‘UPSC का मजाक’ कहते थे। लेकिन पप्पू का आत्मविश्वास डबल बैटरी वाले टॉर्च जैसा…
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अयन त्रिपाठी श्रीवास्तव जी की सुबह हमेशा की तरह अख़बार और चाय से शुरू हुई, लेकिन आज कुछ अलग था। अख़बार पढ़ते-पढ़ते उनके कान में पाखी की आवाज़ पड़ी, जो अपने मोबाइल पर कुछ दिखा रही थी – “पापा, देखिए, ऑनलाइन में कितनी सेल लगी है!” पहले तो उन्होंने नज़रअंदाज़ किया, लेकिन जब बेटे चिराग ने भी जोड़ दिया, “पापा, आपको तो नए जूते चाहिए थे ना? ऑनलाइन सस्ते मिल रहे हैं,” तब श्रीवास्तव जी का ध्यान उधर गया। मन में थोड़ा डर और थोड़ी जिज्ञासा – आखिर कैसा होता है ये ऑनलाइन ख़रीदारी का अनुभव? अब तक तो हर…
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रंजन मिश्रा भाग 1: व्हाट्सऐप वार “चमनलाल जी ने फिर ग्रुप पर पोस्ट कर दिया—’कल रात तीसरी मंज़िल से जो हड्डी गिराई गई थी, उससे मेरी गुलाब की क्यारी घायल हो गई है। मैं FIR दर्ज करवाने जा रहा हूँ। – चौथी मंज़िल, चमनलाल’।” कॉलोनी का ‘अप्टू कॉलोनी रेसिडेंट्स ग्रुप’ सुबह-सुबह सुलग उठा। एक ओर हड्डी का मुद्दा, दूसरी ओर FIR की धमकी, और तीसरी ओर वो मोहल्ले की क्यारी जिसमें तीन पौधे छोड़कर सबकुछ सूख चुका था—पर चमनलाल जी का दावा था कि गुलाब कल ही खिला था। “दादा, आप ज़रा ग्रुप से बाहर वाले मसले ग्रुप में मत…
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संजीव मिश्रा भाग 1: किशोरलाल की किस्त-कथा किशोरलाल गुप्ता, उम्र लगभग 43 साल, पेशे से एक मध्यम दर्जे का सेल्समैन, लेकिन दिल से बहुत बड़े सपने देखने वाला इंसान था। सपना—नई चमचमाती कार, फ्लैट में दो बाथरूम, और एक स्मार्ट टीवी जिसमें नेटफ्लिक्स चले बिना बफरिंग के। पर समस्या एक ही थी—पैसे। और तब उसके जीवन में एंट्री हुई EMI की। पहली बार उसने EMI का नाम सुना था अपने ऑफिस के कलीग भोला प्रसाद से। भोला ने गर्व से बताया था, “भाई, मैंने तो अब iPhone भी EMI पे लिया है, बीवी की सिलाई मशीन भी, और बेटे की…