आकाश कुमार १ काठगोदाम का स्टेशन, अपनी पुरानी ईंटों और हल्की सी धुंध में ढकी हुई चाय की खुशबू के साथ, हमेशा की तरह व्यस्त था। ट्रेन का हौला सा ब्रेक, धूल भरी हवा में घुलते ध्वनियों के साथ स्टेशन की पटरियों पर गूँज रहा था। बरसों बाद वही लोग, जिनकी दोस्ती कॉलेज की गलियों में पली-बढ़ी थी, अब अलग-अलग शहरों और ज़िंदगियों की भागमभाग के बीच फिर एक बार मिलने आए थे। अभिषेक, जो अब अपने करियर में व्यस्त और गंभीर हो गया था, स्टेशन की भीड़ में अपनी पुरानी यादों को ताज़ा करता हुआ खड़ा था। उसका मन…
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कुणाल कुलकर्णी १ मुंबई की धरती पर पहला कदम रखते ही कुणाल के मन में अजीब सी हलचल उठी। जैसे ही ट्रेन धीरे-धीरे छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) स्टेशन पर रुकी, खिड़की से झाँकते ही उसे हज़ारों चेहरों की चहल-पहल, पटरियों पर भागते कुलियों की आवाज़ें और लाउडस्पीकर पर गूंजती घोषणाओं का मिश्रण सुनाई दिया। स्टेशन पर कदम रखते ही उसे ऐसा महसूस हुआ मानो किसी अदृश्य शक्ति ने उसे खींचकर इस हलचल के बीच डाल दिया हो। दूर-दूर तक रंग-बिरंगे कपड़े पहने लोग, हाथों में मिठाई और पूजा का सामान, और माथे पर चंदन का तिलक लगाए श्रद्धालु दिखाई…
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सत्यजीत भारद्वाज १ वाराणसी की सुबह उस दिन हमेशा की तरह गंगा की धुंधली लहरों से जागी थी, लेकिन डेविड मिलर के लिए यह क्षण किसी सपने की तरह था। रातभर की रेलयात्रा और थकान के बावजूद जैसे ही उसने स्टेशन से बाहर कदम रखा, उसके चारों ओर की हलचल ने उसकी थकान को कहीं पीछे छोड़ दिया। रिक्शों की आवाजें, मंदिर की घंटियों की टुन-टुन और हवा में घुली अगरबत्ती की महक उसके भीतर एक अजीब सा कंपन पैदा कर रही थी। उसके पैरों में अब तक पश्चिमी शहरों की ठंडी, व्यवस्थित सड़कों की आदत थी, मगर यहाँ ज़मीन…
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अनुपमा राजपूत १ दिल्ली की ठंडी, धुंधभरी सुबह में जब हवाई जहाज़ ने उड़ान भरी, तो समीर राठौड़ के भीतर एक अजीब-सी बेचैनी थी—कुछ वैसी, जैसी किसी पुराने दोस्त से मिलने से पहले महसूस होती है, भले ही वो दोस्त कभी सच में मिला न हो। ट्रैवल ब्लॉगिंग उसके लिए सिर्फ पेशा नहीं, बल्कि एक जिज्ञासापूर्ण यात्रा थी—कहानियों की तलाश में भटकना, उन्हें कैमरे और शब्दों में कैद करना। इस बार उसका गंतव्य था गुजरात का कच्छ, जहाँ सालाना रण उत्सव चल रहा था। फ्लाइट से उतरते ही हल्की धूप, सूखी हवा और नमक-सी महक लिए एक खुला आसमान उसका…
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वसुंधरा देशमुख मुंबई की सुबह हमेशा की तरह व्यस्त और शोरगुल से भरी थी, लेकिन नीरा के दिल में एक गूंजती सी ख़ामोशी थी, जैसे किसी पुराने मंदिर की घंटी जो वर्षों से नहीं बजी हो। रेलवे स्टेशन की भीड़ से होते हुए वह अपने ट्रॉली बैग को धीमे-धीमे खींचती हुई प्लेटफ़ॉर्म की ओर बढ़ी। बालों की सफेदी अब काले रंग को पछाड़ चुकी थी और आँखों के नीचे की झुर्रियाँ समय के थपेड़े का सबूत थीं। वह साधारण सी सूती साड़ी में थी, बिना मेकअप, बिना कोई अतिरिक्त तैयारी — जैसे यह यात्रा उसके जीवन का कोई खास हिस्सा…
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दीपक मिश्रा विकास मुख़र्जी ने अपने जीवन में कई बार खुद को चुनौती दी थी, लेकिन अब वह एक नई, कठिन चुनौती का सामना करने जा रहा था। कोलकाता के एक हलचल भरे मोहल्ले से दूर, उसने चादर ट्रैक के बारे में सुना था—लद्दाख के जंस्कार क्षेत्र में स्थित एक बर्फीली नदी पर पैदल यात्रा। यह ट्रैक दुनियाभर के साहसिक यात्रियों के लिए एक चुनौती है, और विकास के लिए तो यह एक सपना जैसा था। वह आदतन साहसी था, हमेशा अपनी सीमा को पार करने की कोशिश में रहता था। पहले उसने कई पहाड़ी ट्रैक किए थे, लेकिन चादर…
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शिवानी कश्यप इशा रेड्डी अपने मुंबई स्थित उच्च-मूल्य वाले फ्लैट की खिड़की से बाहर देख रही थी, जहाँ से शहर का विस्तृत आकाश नजर आता था। कभी इस शहर ने उसे अपने सपनों के रंग दिए थे, लेकिन अब यह शहर उसे एक बंद पिंजरे जैसा महसूस होने लगा था। वाहनों का शोर, लोगों की भाग-दौड़, और निरंतर दौड़ते हुए जीवन ने उसे पूरी तरह से थका दिया था। वह एक सफल करियर में थी, प्रतिष्ठित कंपनी में काम कर रही थी, जहां उसकी हर पहचान थी, लेकिन इन सबके बावजूद, उसे अंदर से एक खालीपन महसूस हो रहा था।…
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सुनील पाटिल राजेश और आर्टी की शादी हो चुकी थी, और अब वे अपनी शादी के बाद के हनीमून के लिए तैयार थे। दोनों ने एक शांत और सुरम्य हिल स्टेशन का चुनाव किया था, जो उनके दिलों के करीब था। हालांकि, राजेश को यात्रा की योजना बनाते वक्त कुछ उलझन थी, क्योंकि वह हमेशा से ही हर चीज़ को व्यवस्थित और नियंत्रित रखना पसंद करते थे। वह चाहते थे कि उनका हनीमून एक सपने जैसा हो, बिना किसी परेशानी और अड़चनों के। आर्टी, जो हमेशा से रोमांचक और नए अनुभवों की तलाश में रहती थी, इस यात्रा को लेकर…
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मायूरी शंकर माया ने मुंबई की व्यस्त और तनावपूर्ण जिंदगी से थक कर गोवा जाने का फैसला किया था। वह एक कॉर्पोरेट पेशेवर थी, जो अपने काम में हमेशा डूबी रहती थी। हर दिन की भागदौड़, मीटिंग्स और डेडलाइन्स ने उसे मानसिक और शारीरिक थकावट का शिकार बना दिया था। वह किसी तरह अपने कार्यों को पूरा करती, लेकिन अंदर ही अंदर वह महसूस कर रही थी कि वह अपनी जिंदगी को खोती जा रही है। पिछले कुछ दिनों से उसकी आंखों में एक अजीब सी थकान थी, और मन में खालीपन महसूस हो रहा था। एक दिन उसने अचानक…
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निशा अरोरा एक दिल्ली के उस सुबह की धूप बेहद सामान्य थी—उजली, लेकिन भावना से शून्य। अद्वैता शर्मा की खिड़की से छनकर आती रोशनी जैसे उसका चेहरा नहीं, उसकी पुरानी आदतों पर गिर रही थी। साढ़े सात बजे का अलार्म बंद कर वह वैसा ही उठी जैसे हर दिन, मैकेनिक की तरह। कॉफी मशीन चालू, बाथरूम की टाइल्स पर नंगे पाँव चलना, और टेबल पर बिखरे केस फाइल्स को एक नज़र देखना—जैसे उसने ज़िंदगी को स्वचालित मोड पर डाल रखा हो। लेकिन आज कुछ अलग था। उसकी आँखें एक जगह पर अटक गईं थीं—बुकशेल्फ़ के ऊपरी कोने पर रखी वो…