राकेश त्रिपाठी भाग 1 – अस्सी घाट की पहली सुबह सुबह के पाँच बज रहे थे। नवंबर की हल्की ठंडी हवा में वाराणसी शहर अभी नींद से पूरी तरह जागा नहीं था, लेकिन अस्सी घाट पर चहल-पहल शुरू हो चुकी थी। मैंने अपने बैग को कंधे पर टाँगा और होटल से बाहर निकलते ही महसूस किया कि यह यात्रा बाकी यात्राओं से अलग होने वाली है। सड़कें अभी तक खाली थीं, पर जैसे-जैसे मैं घाट की ओर बढ़ा, गली-कूचों में चाय की दुकानों से उठती भाप, समोसे तले जाने की खुशबू और पुकारते हुए ठेलेवाले धीरे-धीरे जीवन का संगीत छेड़…
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दीप्तिमान शर्मा अध्याय १– वादियों की दहलीज़ दिल्ली से श्रीनगर की उड़ान जैसे ही बादलों को चीरते हुए नीचे उतरने लगी, लेखक की आँखों के सामने फैली धरती ने एक नया ही रूप ले लिया। धुंध और बर्फ की परतों से घिरी पहाड़ियाँ मानो किसी चिर-परिचित चित्र की तरह सामने थीं, जिन्हें उसने केवल किताबों और फिल्मों में देखा था। श्रीनगर के हवाई अड्डे पर उतरते ही ठंडी हवा का पहला झोंका जैसे उसे उस अनदेखी दुनिया के स्वागत में गले से लगा लेता है। हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही उसकी नज़रें बर्फ से लदी देवदार की कतारों और…
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संजय त्रिवेदी भाग १ – प्रस्थान दिल्ली की भरी-पूरी सड़कों पर उस सुबह एक अजीब-सी बेचैनी तैर रही थी। राहुल ने खिड़की से बाहर देखा—गाड़ियों का शोर, हॉर्न की चुभती आवाज़ें और लोगों की जल्दबाज़ी। यह सब कुछ उसके भीतर जैसे एक भारी बोझ बन चुका था। रात भर नींद नहीं आई थी। कॉर्पोरेट नौकरी की डेडलाइन्स, बॉस के सवाल और घर लौटने पर सन्नाटा—सबकुछ उसे थका चुका था। उस सुबह उसने अचानक तय किया कि अब और नहीं। उसने बैग उठाया, कुछ कपड़े ठूँसे, और बिना ज़्यादा सोचे कैब बुलाकर स्टेशन की ओर निकल पड़ा। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन…
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प्रभाष गुप्ता दिल्ली का शहर हमेशा से ही अपनी चमक, भीड़ और बेइंतहा रफ़्तार के लिए जाना जाता है। सुबह होते ही यहाँ की सड़कों पर गाड़ियों का शोर, हॉर्न की गूंज और जल्दी में भागते लोगों की भीड़ हर तरफ दिखाई देती है। आरव भी इस दौड़ में शामिल एक साधारण इंसान था, जिसके जीवन का अधिकांश हिस्सा दफ़्तर और घर के बीच फँसकर रह गया था। सुबह अलार्म की आवाज़ के साथ उसकी आँख खुलती, और बिना सोचे-समझे वह दिन की शुरुआत करता। ऑफिस पहुँचने के लिए उसे मेट्रो या कैब में लंबा सफ़र तय करना पड़ता, जहाँ…
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आकाश कुमार १ काठगोदाम का स्टेशन, अपनी पुरानी ईंटों और हल्की सी धुंध में ढकी हुई चाय की खुशबू के साथ, हमेशा की तरह व्यस्त था। ट्रेन का हौला सा ब्रेक, धूल भरी हवा में घुलते ध्वनियों के साथ स्टेशन की पटरियों पर गूँज रहा था। बरसों बाद वही लोग, जिनकी दोस्ती कॉलेज की गलियों में पली-बढ़ी थी, अब अलग-अलग शहरों और ज़िंदगियों की भागमभाग के बीच फिर एक बार मिलने आए थे। अभिषेक, जो अब अपने करियर में व्यस्त और गंभीर हो गया था, स्टेशन की भीड़ में अपनी पुरानी यादों को ताज़ा करता हुआ खड़ा था। उसका मन…
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कुणाल कुलकर्णी १ मुंबई की धरती पर पहला कदम रखते ही कुणाल के मन में अजीब सी हलचल उठी। जैसे ही ट्रेन धीरे-धीरे छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) स्टेशन पर रुकी, खिड़की से झाँकते ही उसे हज़ारों चेहरों की चहल-पहल, पटरियों पर भागते कुलियों की आवाज़ें और लाउडस्पीकर पर गूंजती घोषणाओं का मिश्रण सुनाई दिया। स्टेशन पर कदम रखते ही उसे ऐसा महसूस हुआ मानो किसी अदृश्य शक्ति ने उसे खींचकर इस हलचल के बीच डाल दिया हो। दूर-दूर तक रंग-बिरंगे कपड़े पहने लोग, हाथों में मिठाई और पूजा का सामान, और माथे पर चंदन का तिलक लगाए श्रद्धालु दिखाई…
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सत्यजीत भारद्वाज १ वाराणसी की सुबह उस दिन हमेशा की तरह गंगा की धुंधली लहरों से जागी थी, लेकिन डेविड मिलर के लिए यह क्षण किसी सपने की तरह था। रातभर की रेलयात्रा और थकान के बावजूद जैसे ही उसने स्टेशन से बाहर कदम रखा, उसके चारों ओर की हलचल ने उसकी थकान को कहीं पीछे छोड़ दिया। रिक्शों की आवाजें, मंदिर की घंटियों की टुन-टुन और हवा में घुली अगरबत्ती की महक उसके भीतर एक अजीब सा कंपन पैदा कर रही थी। उसके पैरों में अब तक पश्चिमी शहरों की ठंडी, व्यवस्थित सड़कों की आदत थी, मगर यहाँ ज़मीन…
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अनुपमा राजपूत १ दिल्ली की ठंडी, धुंधभरी सुबह में जब हवाई जहाज़ ने उड़ान भरी, तो समीर राठौड़ के भीतर एक अजीब-सी बेचैनी थी—कुछ वैसी, जैसी किसी पुराने दोस्त से मिलने से पहले महसूस होती है, भले ही वो दोस्त कभी सच में मिला न हो। ट्रैवल ब्लॉगिंग उसके लिए सिर्फ पेशा नहीं, बल्कि एक जिज्ञासापूर्ण यात्रा थी—कहानियों की तलाश में भटकना, उन्हें कैमरे और शब्दों में कैद करना। इस बार उसका गंतव्य था गुजरात का कच्छ, जहाँ सालाना रण उत्सव चल रहा था। फ्लाइट से उतरते ही हल्की धूप, सूखी हवा और नमक-सी महक लिए एक खुला आसमान उसका…
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वसुंधरा देशमुख मुंबई की सुबह हमेशा की तरह व्यस्त और शोरगुल से भरी थी, लेकिन नीरा के दिल में एक गूंजती सी ख़ामोशी थी, जैसे किसी पुराने मंदिर की घंटी जो वर्षों से नहीं बजी हो। रेलवे स्टेशन की भीड़ से होते हुए वह अपने ट्रॉली बैग को धीमे-धीमे खींचती हुई प्लेटफ़ॉर्म की ओर बढ़ी। बालों की सफेदी अब काले रंग को पछाड़ चुकी थी और आँखों के नीचे की झुर्रियाँ समय के थपेड़े का सबूत थीं। वह साधारण सी सूती साड़ी में थी, बिना मेकअप, बिना कोई अतिरिक्त तैयारी — जैसे यह यात्रा उसके जीवन का कोई खास हिस्सा…
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दीपक मिश्रा विकास मुख़र्जी ने अपने जीवन में कई बार खुद को चुनौती दी थी, लेकिन अब वह एक नई, कठिन चुनौती का सामना करने जा रहा था। कोलकाता के एक हलचल भरे मोहल्ले से दूर, उसने चादर ट्रैक के बारे में सुना था—लद्दाख के जंस्कार क्षेत्र में स्थित एक बर्फीली नदी पर पैदल यात्रा। यह ट्रैक दुनियाभर के साहसिक यात्रियों के लिए एक चुनौती है, और विकास के लिए तो यह एक सपना जैसा था। वह आदतन साहसी था, हमेशा अपनी सीमा को पार करने की कोशिश में रहता था। पहले उसने कई पहाड़ी ट्रैक किए थे, लेकिन चादर…