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    १३ वीं मंज़िल

    सम्वित शर्मा अध्याय १: एक और गिरावट बारिश की एक भारी रात थी, जब मुंबई की गगनचुंबी इमारत ‘ओशन व्यू हाइट्स’ के नीचे पुलिस की गाड़ियाँ जमा हो गईं। चारों तरफ नीली-लाल बत्तियों की झिलमिलाहट में भीगते हुए कुछ लोग भीड़ बनाकर खड़े थे, और बीच में एक पीले प्लास्टिक की शीट से ढका शव—एक और मौत। सेक्योरिटी गार्ड ने सबसे पहले देखा था, या शायद सबसे पहले उसने देखा जाना तय किया गया था। इमारत की 13वीं मंज़िल से गिरकर मरी महिला का चेहरा क्षत-विक्षत हो चुका था, लेकिन अयान शेख को इतना तो साफ दिख गया कि ये…

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    न्याय की आख़िरी दस्तक

    समीर त्रिपाठी भाग 1: एक लाश, एक सवाल बारिश की बूंदें जैसे अदालत की खिड़कियों से टकरा रही थीं, वैसी ही बेचैनी आज सत्र न्यायाधीश आरव मल्होत्रा के चेहरे पर थी। कोर्ट रूम नंबर ३ में उस दिन एक ऐसा मामला पेश हुआ था जो पिछले चार महीने से पूरे शहर में चर्चा का विषय बना हुआ था — ‘पारुल मर्डर केस’। पारुल वर्मा, 28 वर्ष की स्वतंत्र पत्रकार, जिसकी लाश पुराने पुल के नीचे मिली थी, चेहरे पर ज़ख़्म, गर्दन पर खरोंचें और हाथ में एक टूटी हुई रबर बैंड। अभियुक्त था — अर्णव चोपड़ा, पारुल का पूर्व प्रेमी,…

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    रेड लिपस्टिक और एक राज़

    श्रुति चौहान भाग 1: चेहरा जो पहचाना सा था “नेहा, अगला क्लाइंट आया है,” रिया की असिस्टेंट ने धीरे से कहा। नेहा माथे पर हल्की लटों को पीछे सरकाते हुए ब्रश को मेज पर रखा। बड़ी स्क्रीन पर चेहरा फोकस करते-করते वो थक चुकी थी, लेकिन हर दिन की तरह, आज भी मेकअप उसका ध्यान बँटा देता था। वो चेहरे पढ़ सकती थी—रंग, बनावट, और सबसे अहम—उनमें छुपे भाव। “नाम?” नेहा ने पूछा। “सिया,” असिस्टेंट बोली। नाम सुनते ही उसके हाथ की मसल हल्का सा कांप गई। उसने अनदेखा किया। सिया—कितना आम सा नाम है। लेकिन क्या हर आम नाम…

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    सफेद कोट का खून

    राहुल भार्गव अध्याय 1: मौत ऑपरेशन थिएटर में सुबह के सात बजे का वक्त था, जब शहर के मशहूर नवरत्न मल्टी-स्पेशलिटी हॉस्पिटल की दीवारें अपने अंदर एक गहरा रहस्य समेटे खामोश खड़ी थीं। अस्पताल की कांच की दीवारों से धूप की हल्की किरणें भीतर झांक रही थीं, लेकिन उनकी चमक अस्पताल के स्टाफ की घबराहट के सामने फीकी पड़ गई थी। ऑपरेशन थिएटर नंबर तीन के दरवाजे के बाहर नर्सें, जूनियर डॉक्टर्स और वार्ड बॉय जमा थे, जिनकी आंखों में डर और हैरानी दोनों थे। भीतर से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, लेकिन दरवाजे के निचले हिस्से से खून…

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    अधूरी गवाही

    नीरजा राजन अध्याय 1: मौत की खबर लखनऊ की जनवरी की उस ठंडी सुबह में सूरज की किरनें भी किसी अनकहे संकोच के साथ ज़मीन पर उतर रही थीं, जैसे उन्हें भी शहर की हवा में पसरे भारीपन का अंदाज़ा हो। हज़रतगंज के उस पॉश अपार्टमेंट “रॉयल हाइट्स” की चौथी मंज़िल पर हलचल मच चुकी थी। नीली साड़ी में लिपटी हुई नैना सक्सेना की निर्जीव देह बालकनी के रेलिंग से नीचे लॉन में पड़ी थी—एक खामोश चीख की तरह। चारों तरफ पुलिस की बैरिकेडिंग, मीडिया की भीड़, और मोबाइल कैमरों की चमक थी; पर हर किसी के भीतर एक ही…

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    मौन गवाह

    नितीन द्विवेदी १ प्रयागराज की सर्द सुबह थी। कुहासा गंगा किनारे के घाटों पर पसरा हुआ था। पुराने शहर के मोहल्ले में एक वीरान हवेली खामोशी ओढ़े खड़ी थी—’प्रकाश निवास’, जहाँ न्यायमूर्ति वेद प्रकाश अकेले रहते थे। बाहर एक नीली रंग की एंबेसेडर कार धूल से ढकी हुई थी, मानो वर्षों से चली नहीं हो। हवेली की जालीदार खिड़कियों से धूप झांकने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उस सुबह हवेली के भीतर कुछ और ही घट चुका था। नौकर मुंशी बाबू, जो हर रोज़ सात बजे चाय लेकर ऊपर की मंज़िल पर जाया करते थे, आज दरवाज़ा खटखटाते ही…

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    काली रात की गवाही

    शेखर राणे भाग 1 मुंबई की उस रात कुछ अलग था। समंदर की लहरें जैसे कुछ कहने को बेताब थीं, और आसमान की कालिख शहर के गुनाहों की तरह भारी लग रही थी। पुलिस स्टेशन नं. 17 के इंस्पेक्टर अर्जुन पाटिल की आंखों में नींद नहीं थी। पिछले चौबीस घंटे में तीन कत्ल, तीनों एक ही तरीके से, और कोई सुराग नहीं। अर्जुन ने मेज पर रखी फाइल उठाई, जिस पर लिखा था – “केस: ब्लैक रोज मर्डर्स।” हर शव के पास एक काली गुलाब की पंखुड़ी पाई गई थी। न खून के धब्बे, न संघर्ष के निशान, जैसे मौत…

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    साया: मुम्बई के अंधेरे का चेहरा

    राहुल शुक्ला भाग 1: धारावी का नया राजा धारावी की तंग गलियाँ उस रात कुछ ज्यादा ही चुप थीं। हवा में बारूद की गंध घुली थी और पुलिस की सायरन की आवाज़ दूर से गूंज रही थी। साया — मुम्बई अंडरवर्ल्ड का एक नाम, जिसे सुनते ही लोगों के चेहरे पर पसीना छलक आता था — आज रात एक और खून के बाद माफिया की गद्दी पर पूरी तरह बैठ चुका था। साया का असली नाम था रईस अली, लेकिन अब उसे कोई इस नाम से नहीं जानता। वो गुमनाम रहना चाहता था, पर उसकी कहानियाँ हर नुक्कड़-चाय की दुकान…

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    नीले दरवाज़े के पीछे

    अन्वेष चौगुले वह जो नहीं दिखता पांडिचेरी की गलियाँ सुबह की रोशनी में सोने सी चमक रही थीं। समुद्र की ठंडी हवा हर नुक्कड़ पर बसी थी, लेकिन संतोष नगर की एक गली में आज कुछ अलग था—कुछ असहज, कुछ ऐसा जो हवा में भारीपन भर रहा था। उस गली के आख़िरी छोर पर एक दो-मंज़िला पुराना घर खड़ा था, जिसके सामने एक विशाल नीला दरवाज़ा था—जैसे किसी पुराने जमाने के बंगले में होता है। उसके पीछे रहता था डॉ. गिरीशन: उम्र करीब पचपन, दिखने में साधारण, पर हर मरीज की नब्ज पहचानने वाला एक अनुभवी होम्योपैथ। पर अब तीन…

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    तानपूरा और ताबूत

    विनीत त्रिपाठी बनारस की रातें हमेशा से रहस्यमयी रही हैं, मानो इस शहर की गलियों, घाटों और हवाओं में कोई अदृश्य कहानी हर रात जन्म लेती हो। गंगा का किनारा, जहाँ दिन में हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना में लीन रहते थे, रात होते ही किसी प्राचीन ग्रंथ की तरह रहस्य में डूब जाता था। वहीं पर स्थित थी वह हवेली, जिसे लोग ठाकुर हवेली के नाम से जानते थे। कभी इस हवेली में संगीत की महफिलें सजती थीं, बड़े-बड़े उस्ताद यहाँ अपनी कला का प्रदर्शन करते थे, और रियाज की स्वर लहरियाँ हवेली की दीवारों से टकराकर बनारस की हवाओं में…