ऋषभ शर्मा १ दिल्ली के उत्तरी हिस्से में एक ऐसा इलाका है जिसे लोग अब बस “पुराना औद्योगिक क्षेत्र” कहकर पुकारते हैं। कभी यहाँ कारख़ानों की कतारें थीं, मशीनों की आवाज़ और मजदूरों की भीड़ से गली-गली गूंजती रहती थी, लेकिन अब सब कुछ खंडहर में बदल चुका है। टूटे हुए शटर, जंग लगे बोर्ड, काई से ढकी दीवारें और जगह-जगह पड़े लोहे के टुकड़े इस क्षेत्र को एक अजीब वीरानी का चेहरा देते हैं। सबसे भयावह है उस लंबे, टेढ़े-मेढ़े रास्ते के बीचों-बीच खड़ा एक पुराना, काला लैम्पपोस्ट। उसकी पीली रोशनी धुंधली और कांपती-सी लगती है, जैसे खुद उस…
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पवन कुमार शाह इलाहाबाद शहर की तंग गलियों के बीचोंबीच बसा हुआ वह पुराना डाकघर बरसों से अपनी जगह पर वैसे ही खड़ा था जैसे समय ने उसे भुला दिया हो। चारों ओर से छिल चुकी पपड़ी वाली दीवारें, जंग खाए लोहे के गेट और मकड़ी के जालों से भरे छज्जे इस इमारत की थकान का प्रमाण थे। सर्दियों की उस धुंधली सुबह में डाकघर की हवा भी किसी अजनबी बेचैनी से भरी हुई लग रही थी। पोस्टमास्टर हरीश चतुर्वेदी अपनी रोज़मर्रा की दिनचर्या में डूबे हुए थे—कभी पुराने रजिस्टर पर झुकी आंखें, कभी डाकियों को निर्देश देने का स्वर,…
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राहुल देव मुंबई की बारिश अक्सर शहर को धो देती थी, पर उस रात की बारिश ने मानो अपराध की गंध को और गाढ़ा कर दिया था। लोअर परेल की एक संकरी गली में पीली बत्तियों के नीचे पानी चमक रहा था। उसी अंधेरे में एक आदमी दौड़ रहा था—काले रेनकोट में, हाथ में किसी पुराने अखबार में लिपटा पैकेट। पीछे से पुलिस सायरन की आवाजें गूंज रही थीं। वह आदमी हर मोड़ पर पीछे मुड़कर देख रहा था, जैसे कोई अदृश्य शिकारी उसका पीछा कर रहा हो। कुछ ही देर बाद वह एक जर्जर इमारत के भीतर घुसा। सीढ़ियों…
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अनुभव कुमार १ गंगा नदी के तट पर पटना का छठ घाट उस शाम अलौकिक सौंदर्य से भरा हुआ था। सूरज धीरे-धीरे क्षितिज में ढल रहा था और उसकी सुनहरी किरणें गंगा के जल पर फैलकर पूरे वातावरण को एक अद्भुत आभा प्रदान कर रही थीं। हज़ारों श्रद्धालु, महिलाएँ रंग-बिरंगे साड़ी में, पुरुष पारंपरिक धोती-कुर्ता पहने, बच्चों की चहकती आवाज़ें और डूबते सूरज की ओर हाथ जोड़कर खड़े सभी लोगों का दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो धरती पर कोई स्वर्ग उतर आया हो। हर कोई अपने-अपने टोकरी में फल, ठेकुआ और नारियल सजाकर जल में खड़ा था और…
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अभय वशिष्ठ अध्याय १ वाराणसी की सुबहें अक्सर गंगा आरती की गूंज, शंखनाद और मंत्रोच्चार से जीवंत हो उठती हैं, लेकिन इन दिनों घाटों पर एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था। गंगा के किनारे बहती ठंडी हवा भी अब लोगों के दिलों को सुकून नहीं दे रही थी, क्योंकि लगातार कुछ दिनों से घाटों पर अधजली लाशें मिलने लगी थीं। काशी जैसे पवित्र नगर में, जहां मृत्यु को भी मोक्ष का द्वार माना जाता है, वहां अधजले शवों का यूं ही पड़े रहना एक असामान्य और भयावह दृश्य था। दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट—जहां हर रोज सैकड़ों…
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अमृता वीर १ पंजाब का छोटा-सा कस्बा उस दिन रोशनी और संगीत से जगमगा रहा था। गलियों में बिछी झालरें और घर-घर से आती ढोलक की थाप पूरे माहौल को उत्सवमय बना रही थी। सर्दियों की हल्की ठंडी हवा में पकवानों की खुशबू, शहनाई की गूँज और औरतों की गिद्दा-भांगड़ा की आवाज़ें मिलकर एक रंगीन तस्वीर बना रही थीं। अर्जुन सिंह, कस्बे के एक सम्मानित परिवार का बेटा, आज दूल्हा बना था। उसकी बारात घोड़ी पर सजी धजी, चमकदार लाइटों और ढोल-नगाड़ों के बीच निकली तो मोहल्ले भर के लोग देखने निकल आए। उधर सिमरन कौर, गाँव के किनारे बसे…
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आकाश गुप्ता १ भोपाल की रात उस रोज़ असामान्य रूप से सन्नाटेदार थी। बरसात अभी-अभी थमी थी और सड़कों पर जगह-जगह पानी जमा था, स्ट्रीट लाइट्स की पीली रोशनी उस पानी में प्रतिबिंबित हो रही थी। पुराने भोपाल की तंग गलियों से लेकर नए शहर की चौड़ी सड़कों तक हर जगह नमी और ठंडक फैली थी। रात के करीब बारह बज रहे थे जब अचानक वीआईपी रोड पर एक कार की तेज़ ब्रेक लगने की आवाज़ गूंजी, फिर किसी के चीखने जैसी हल्की ध्वनि, और उसके बाद टायरों के घिसटने की गंध के साथ एक कार अंधेरे में ग़ायब हो…
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१ अगस्त की उमस भरी दोपहर थी, जब हवेली के पुराने दरवाज़े पर पीतल की घंटी तीन बार बजी और नौकरों ने बड़े हॉल में गूँजती आवाज़ में ऐलान किया—“ठाकुर साहब का फरमान! इस बरस सालाना भोज का आयोजन पूरे ठाठ-बाट से होगा।” यह खबर जैसे ही हवेली के भीतर पहुँची, आँगन में बैठी ठाकुराइन सावित्री देवी की आँखों में हल्की सी चमक आई, वहीं बरामदे में पान चबाते बड़े बेटे दिवाकर ने भौंहें सिकोड़ लीं। गाँव में ये सालाना भोज कभी ठाठ-बाट की पहचान था, लेकिन पिछले दस सालों से बंद पड़ा था—कुछ लोग कहते थे ठाकुर साहब की…
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दिव्या चावला १ जून की एक नमी से भरी, भारी-सी रात थी। मुंबई की बारिश अपनी पूरी ताक़त के साथ बरस रही थी, सड़कें पानी से भर चुकी थीं और कहीं-कहीं रेल की पटरियों के नीचे पानी बहने की आवाज़ एक अजीब-सी लय बना रही थी। शहर के पुराने हिस्से में, लोहे का वह पुल खड़ा था जो एक सदी से भी ज़्यादा समय से स्थानीय ट्रेनों का भार उठाता आ रहा था। पुल के नीचे काले पानी का एक स्थायी पोखर बना रहता था, और चारों ओर दीवारों पर उग आई हरी काई, समय और नमी के मिलन की…
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कालसूत्र भाग 1: वरसा का खून मुंबई की उस रात में समुद्र शांत नहीं था। लहरों का शोर सड़क की सन्नाटे को काटता जा रहा था, और बंदरगाह की ओर दौड़ती एक काली SUV की हेडलाइट्स किसी अजाने फैसले की गवाही दे रही थीं। गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा था आदित्य वरसा — वरसा परिवार का आखिरी वारिस, और अंडरवर्ल्ड का एक उभरता चेहरा। पिता सुरेश वरसा की दो दिन पहले गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने इसे “गैंग वॉर” कह कर फाइल बंद कर दी थी, लेकिन आदित्य जानता था कि ये कोई आम…