अमितेश ठाकुर एपिसोड 1 — बारिश की गवाही रात की बारिश समंदर से उठी हवा में नमक घोल रही थी। सिवरी के जर्जर डॉक पर पीली रोशनी के नीचे धरती काली चमकती थी, जैसे किसी ने डामर पर तेल उँडेल दिया हो। कंटेनर नंबर 7C-319 की मुहर टूटते ही लोहे की चरमराहट से हवा काटती हुई निकली और चुप्पी के बीच आर्यन भोसले ने आधी नज़र घड़ी पर डाली—01:47। उसके साथ तीन और लोग थे—दारू का कैप उल्टा लगाए योगी, चुपचाप रहने वाला शागिर्द समीर, और सांवला, ठिगना ड्राइवर जग्गू। सब हथियारबंद, सबकी उँगलियाँ ट्रिगर की खाल से दोस्ती करती…
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आकाश बर्मा १ लखनऊ की उस सुबह में गली के दरवाज़े बंद थे, खिड़कियों के पर्दे आधे खींचे हुए, और लोगों के चेहरे पर अजीब-सा सन्नाटा पसरा हुआ था। सूरज की पहली किरणें जब पुरानी हवेली जैसे बने मकानों की दीवारों से टकराईं, तभी एक चीख ने पूरे मोहल्ले की नींद तोड़ दी। चीख घर के भीतर से आई थी—पत्रकार आरव मेहता के पड़ोसी ने सबसे पहले देखा कि दरवाज़ा आधा खुला है और भीतर से कुर्सी के गिरने जैसी आवाज़ें आ रही हैं। जब लोग धीरे-धीरे दरवाज़े तक पहुँचे तो सामने का दृश्य किसी बुरे सपने जैसा था—कमरे के…
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१ बारिश की हल्की बूँदें बेंगलुरु की सड़कों पर नाचती हुई बह रही थीं। रात लगभग साढ़े बारह बज रहे थे और सड़कें दिनभर के ट्रैफिक के बाद अब शांत थीं, बस कहीं-कहीं गाड़ियों की हेडलाइट्स और चाय की दुकानों की मद्धम रोशनी दिख रही थी। आर्यन मल्होत्रा अपनी पुरानी लेकिन भरोसेमंद स्कूटी पर सवार, एक आख़िरी डिलीवरी करने के इरादे से निकला था। उसके फोन की स्क्रीन पर फ़ूड डिलीवरी ऐप खुला था, और ऊपर से आती बारिश की बूंदें स्क्रीन पर गिरकर फैल रही थीं। तभी अचानक ऐप की लाइट थीम धीरे-धीरे काली हो गई—जैसे किसी ने अंदर…
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अभिनव सेठ १ गंगा किनारे बसे उस कस्बे की सुबह हमेशा शांति और प्रार्थना से शुरू होती थी। मंदिर की घंटियों की ध्वनि, घाट पर उठता धुआँ, और पानी में उतरती नावों की आवाज़ें मानो जीवन का हिस्सा थीं। लेकिन उस दिन सूरज की पहली किरणें अभी पूरी तरह फैली भी नहीं थीं कि घाट पर मछली पकड़ने गया मन्नू नाविक चीख पड़ा। उसकी आँखें भय से फटी हुई थीं—पानी के बहाव में एक शव तैर रहा था। लोग दौड़कर जमा हो गए, और कस्बे में हड़कंप मच गया। शव को किनारे लाया गया तो पता चला कि वह कोई…
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१ ठाकुर अजय प्रताप सिंह अपने इलाके के सबसे चर्चित और सम्मानित जमींदार थे। जीवन की ढलती उम्र में भी उनकी आवाज़ और व्यक्तित्व में वही रौब था जो युवावस्था में दिखता था। विशाल हवेली, लंबा-चौड़ा बगीचा, दर्जनों नौकर और जमीन-जायदाद के अनगिनत कागजात—सब कुछ मानो उनकी शख्सियत का विस्तार थे। लेकिन उस रात हवेली के अंदर का माहौल कुछ अलग था। हवेली की घड़ी ने रात के ग्यारह बजाए ही थे कि अचानक नौकरों की ओर से हलचल मच गई। ठाकुर अपने निजी कमरे में बैठे थे, मेज पर रखी डायरी और पास में रखी एक फाउंटेन पेन के…
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ऋषभ शर्मा १ दिल्ली के उत्तरी हिस्से में एक ऐसा इलाका है जिसे लोग अब बस “पुराना औद्योगिक क्षेत्र” कहकर पुकारते हैं। कभी यहाँ कारख़ानों की कतारें थीं, मशीनों की आवाज़ और मजदूरों की भीड़ से गली-गली गूंजती रहती थी, लेकिन अब सब कुछ खंडहर में बदल चुका है। टूटे हुए शटर, जंग लगे बोर्ड, काई से ढकी दीवारें और जगह-जगह पड़े लोहे के टुकड़े इस क्षेत्र को एक अजीब वीरानी का चेहरा देते हैं। सबसे भयावह है उस लंबे, टेढ़े-मेढ़े रास्ते के बीचों-बीच खड़ा एक पुराना, काला लैम्पपोस्ट। उसकी पीली रोशनी धुंधली और कांपती-सी लगती है, जैसे खुद उस…
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पवन कुमार शाह इलाहाबाद शहर की तंग गलियों के बीचोंबीच बसा हुआ वह पुराना डाकघर बरसों से अपनी जगह पर वैसे ही खड़ा था जैसे समय ने उसे भुला दिया हो। चारों ओर से छिल चुकी पपड़ी वाली दीवारें, जंग खाए लोहे के गेट और मकड़ी के जालों से भरे छज्जे इस इमारत की थकान का प्रमाण थे। सर्दियों की उस धुंधली सुबह में डाकघर की हवा भी किसी अजनबी बेचैनी से भरी हुई लग रही थी। पोस्टमास्टर हरीश चतुर्वेदी अपनी रोज़मर्रा की दिनचर्या में डूबे हुए थे—कभी पुराने रजिस्टर पर झुकी आंखें, कभी डाकियों को निर्देश देने का स्वर,…
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राहुल देव मुंबई की बारिश अक्सर शहर को धो देती थी, पर उस रात की बारिश ने मानो अपराध की गंध को और गाढ़ा कर दिया था। लोअर परेल की एक संकरी गली में पीली बत्तियों के नीचे पानी चमक रहा था। उसी अंधेरे में एक आदमी दौड़ रहा था—काले रेनकोट में, हाथ में किसी पुराने अखबार में लिपटा पैकेट। पीछे से पुलिस सायरन की आवाजें गूंज रही थीं। वह आदमी हर मोड़ पर पीछे मुड़कर देख रहा था, जैसे कोई अदृश्य शिकारी उसका पीछा कर रहा हो। कुछ ही देर बाद वह एक जर्जर इमारत के भीतर घुसा। सीढ़ियों…
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अनुभव कुमार १ गंगा नदी के तट पर पटना का छठ घाट उस शाम अलौकिक सौंदर्य से भरा हुआ था। सूरज धीरे-धीरे क्षितिज में ढल रहा था और उसकी सुनहरी किरणें गंगा के जल पर फैलकर पूरे वातावरण को एक अद्भुत आभा प्रदान कर रही थीं। हज़ारों श्रद्धालु, महिलाएँ रंग-बिरंगे साड़ी में, पुरुष पारंपरिक धोती-कुर्ता पहने, बच्चों की चहकती आवाज़ें और डूबते सूरज की ओर हाथ जोड़कर खड़े सभी लोगों का दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो धरती पर कोई स्वर्ग उतर आया हो। हर कोई अपने-अपने टोकरी में फल, ठेकुआ और नारियल सजाकर जल में खड़ा था और…
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अभय वशिष्ठ अध्याय १ वाराणसी की सुबहें अक्सर गंगा आरती की गूंज, शंखनाद और मंत्रोच्चार से जीवंत हो उठती हैं, लेकिन इन दिनों घाटों पर एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था। गंगा के किनारे बहती ठंडी हवा भी अब लोगों के दिलों को सुकून नहीं दे रही थी, क्योंकि लगातार कुछ दिनों से घाटों पर अधजली लाशें मिलने लगी थीं। काशी जैसे पवित्र नगर में, जहां मृत्यु को भी मोक्ष का द्वार माना जाता है, वहां अधजले शवों का यूं ही पड़े रहना एक असामान्य और भयावह दृश्य था। दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट—जहां हर रोज सैकड़ों…