Hindi - प्रेम कहानियाँ

साया-ए-इश्क़

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निखिल आनंद


एपिसोड 1: पहली मुलाक़ात

शाम ढल रही थी। शहर की सड़कों पर पीली बत्तियाँ जल चुकी थीं और हवा में नमी का हल्का-सा स्वाद था। किसी पुराने फ़िल्मी गीत की धुन पास के पानवाले की दुकान से छनकर आ रही थी। भीड़ के बीच भी कभी-कभी अकेलापन उतना ही गहरा लगता है जितना वीराने में। और उसी अकेलेपन में वह पहली बार दिखी—गुलाबी सलवार-कमीज़ में, एक हाथ में किताब थामे, दूसरे हाथ से साइकिल संभालती हुई।

आदित्य उस वक़्त कॉलेज के बरामदे में खड़ा था। वह इतिहास का लेक्चर ख़त्म कर चुका था और दोस्तों के साथ बाहर निकल रहा था। तभी सामने से आती साइकिल की घंटी सुनाई दी। नज़रें उठीं तो पल भर को सब थम गया। किताबों में उसने जितनी बार मीरा और राधा के प्रेम का वर्णन पढ़ा था, उतना ही दिव्य, उतना ही अद्भुत कुछ सामने घट रहा था।

उसकी आँखों ने मानो कह दिया—“यही है वो। यही है वो चेहरा जो मेरी अनकही दुआओं में छुपा रहा।” लेकिन जुबान ख़ामोश रही।

वह लड़की थी—सिया। अंग्रेज़ी साहित्य की छात्रा। लाइब्रेरी से लौट रही थी। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की झलक थी, पर आँखों में कहीं एक थकी हुई उदासी भी। आदित्य ने उस नज़र को पढ़ने की कोशिश की, जैसे कोई पुराना ख़त पढ़ रहा हो, जिसके कुछ अक्षर धुंधले पड़ चुके हों।

साइकिल पास से गुज़री और उसकी किताब अचानक गिर गई। आदित्य ने झटपट झुककर किताब उठाई। किताब पर लिखा था—“Wuthering Heights – Emily Brontë।” उसने मुस्कराकर किताब बढ़ाई।

“थैंक यू,” सिया ने धीमे स्वर में कहा। आवाज़ में नदी जैसी तरलता थी, लेकिन कहीं गहरे तल पर कोई पत्थर अटका हुआ था।

आदित्य ने सिर हिलाया, पर कुछ बोला नहीं। बस उसकी आवाज़, उसकी आँखें, उसका ठहराव दिल में उतर गए।

 

उस रात आदित्य देर तक सो नहीं पाया। कमरे में पंखा चलता रहा, खिड़की से आती ठंडी हवा परदे को हिलाती रही, लेकिन उसके भीतर एक अजीब बेचैनी जन्म ले चुकी थी। उसने खुद से पूछा—“क्या ये सिर्फ़ एक मुलाक़ात थी, या कुछ और?”

दूसरे दिन फिर वही समय, वही जगह। कॉलेज के बरामदे से निकलते ही उसने सिया को देखा। इस बार वह अकेली नहीं थी। दो सहेलियाँ साथ थीं, हँसती-बोलती हुई। आदित्य ने दूर से देखा। हँसी में भी उसकी आँखें कहीं खाली-सी लगीं।

कभी-कभी हम अनजाने में किसी के दर्द को पढ़ लेते हैं, जैसे अनपढ़ा अक्षर भी आँखों के सामने आकार ले ले। आदित्य को लग रहा था कि इस लड़की की हँसी में भी कोई रहस्य छुपा है, कोई बंद दरवाज़ा है जिसे खोलना मुश्किल है।

 

तीसरे दिन साहस कर उसने बात शुरू की। “तुम्हें ब्रॉण्टे पसंद है?”

सिया थोड़ी चौंकी। फिर बोली—“हाँ, बचपन से पढ़ती आई हूँ। तुम्हें?”

आदित्य ने हल्की मुस्कान दी। “इतिहास का छात्र हूँ, पर साहित्य से हमेशा मोह रहा है। किताबें कभी धोखा नहीं देतीं।”

सिया ने उसकी ओर देखा। एक पल को लगा जैसे उसकी आँखों में कुछ पिघल रहा है। पर तुरंत उसने नज़रें फेर लीं।

 

दिन गुज़रते गए। लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर, कॉलेज के गलियारों में, चाय की छोटी-सी कैंटीन पर—उनकी मुलाक़ातें बढ़ने लगीं। बातचीत भी। सिया अपने सपनों के बारे में कम बोलती थी, पर किताबों के बारे में खुलकर बताती। आदित्य हर शब्द को ऐसे सुनता जैसे कोई कवि कविता सुन रहा हो।

धीरे-धीरे आदित्य समझने लगा कि सिया की चुप्पी भी एक भाषा है। उसकी ख़ामोशी में जितना दर्द था, उतनी ही गहराई भी।

एक दिन जब बारिश हो रही थी, दोनों बरामदे में खड़े थे। हवा में मिट्टी की गंध थी। आदित्य ने अचानक पूछ लिया—“तुम हमेशा उदास क्यों लगती हो?”

सिया ने चौंककर उसकी ओर देखा। फिर हँसने की कोशिश की। “तुम्हें ऐसा लगता है?”

“हाँ,” आदित्य ने दृढ़ स्वर में कहा। “तुम्हारी आँखें सच कह देती हैं।”

सिया कुछ पल चुप रही। फिर धीमे से बोली—“कुछ बातें कह देने के लिए नहीं होतीं, सिर्फ़ महसूस करने के लिए होती हैं।”

आदित्य ने उस पल जाना कि यह सिर्फ़ आकर्षण नहीं है। यह कुछ गहरा है, कुछ निषिद्ध—क्योंकि जिन भावनाओं को शब्द नहीं मिलते, वही सबसे खतरनाक होते हैं।

 

उनकी नज़दीकियाँ बढ़ती गईं। पर दोनों जानते थे कि ये रास्ता आसान नहीं। आदित्य का परिवार परंपराओं में विश्वास करता था। सिया का परिवार सख़्त था, उसकी ज़िंदगी पहले से तय रास्तों पर बाँधी गई थी।

फिर भी, दोनों उस खिंचाव से बच नहीं पा रहे थे। हर मुलाक़ात एक नया अध्याय बनती जा रही थी। हर बातचीत उनके भीतर एक गुप्त संसार रच रही थी।

सिया ने एक दिन कहा—“तुम्हें पता है आदित्य, कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं ख़ुद अपनी ज़िंदगी की क़ैदी हूँ। बाहर निकलना चाहती हूँ, पर डरती हूँ।”

आदित्य ने धीरे से कहा—“अगर मैं तुम्हारे साथ हूँ, तो क्या डर फिर भी रहेगा?”

सिया ने उसकी ओर देखा। आँखों में आँसू तैर रहे थे। पर होंठों पर हल्की मुस्कान थी।

 

उस पहली मुलाक़ात से शुरू हुआ सिलसिला अब रुकने वाला नहीं था। यह कहानी किसी सामान्य प्रेमकथा जैसी नहीं थी। इसमें साहस था, डर था, और समाज की दीवारें थीं।

लेकिन आदित्य और सिया दोनों जानते थे—यह आग एक बार जल उठी है, तो अब बुझाना आसान नहीं होगा।

बरसों बाद शायद लोग इसे निषिद्ध प्रेम कहेंगे। पर उस पल, उस बरामदे में, उस बारिश में, यह बस दो दिलों की धड़कन थी—जो एक-दूसरे की ओर बढ़ रही थी, बिना रुके।

एपिसोड 2: मन की गूंज

कभी-कभी दिल की धड़कनें इतनी तेज़ हो जाती हैं कि हमें लगता है पूरी दुनिया उन्हें सुन रही होगी। आदित्य की हालत अब वैसी ही हो चली थी। कॉलेज के गलियारों में चलते हुए, किताबों पर नज़र डालते हुए, दोस्तों से बातें करते हुए भी, उसके भीतर कोई अदृश्य साज़ बज रहा था। हर स्वर में सिर्फ़ एक ही नाम गूँजता—सिया।

पर इस गूंज के साथ डर भी था। यह कोई आसान मोहब्बत नहीं थी। न ही यह समाज की नज़र में मासूम ठहरती। दोनों अलग-अलग संस्कारों और परंपराओं की दुनिया से आते थे। आदित्य जानता था—अगर यह रिश्ता बाहर आया तो सवाल ही नहीं, आग के शोले उठेंगे।

 

उस शाम कैंटीन में भीड़ ज़्यादा थी। गर्म समोसे और चाय की भाप से वातावरण भरा हुआ था। आदित्य एक कोने में बैठा था। तभी सिया आई। उसके चेहरे पर वही चुप्पी थी, जो अब आदित्य को पहचान बन चुकी थी।

“बैठ सकती हूँ?” सिया ने धीमे स्वर में पूछा।

“तुम्हें पूछने की ज़रूरत है?” आदित्य ने मुस्कराकर कहा।

दोनों चुपचाप बैठे रहे। कुछ पल बाद सिया बोली—“तुम्हें पता है आदित्य, कभी-कभी लगता है कि हम जो कर रहे हैं, वो सही नहीं है। हम बस अपने लिए जी रहे हैं। परिवार, समाज… उनका क्या?”

आदित्य ने कप से उठती भाप को देखा। फिर कहा—“सही-ग़लत कौन तय करता है, सिया? वो लोग, जिन्होंने हमें कभी समझा ही नहीं? या हमारा दिल, जो हर पल हमें पुकारता है?”

सिया की आँखें भर आईं। “काश यह इतना आसान होता।”

 

उस रात सिया देर तक अपने कमरे में बैठी रही। खिड़की के बाहर अँधेरा गहरा रहा था। हाथ में वही ब्रॉण्टे का उपन्यास था, लेकिन पन्ने धुंधले हो रहे थे। उसकी नज़रें बार-बार खिड़की से बाहर जातीं और मन में आदित्य का चेहरा उतर आता।

उसने ख़ुद से कहा—“ये क्या हो रहा है मेरे साथ? मैं क्यों उसे सोचते-सोचते खो जाती हूँ? क्या मैं सचमुच अपने ही जीवन से विश्वासघात कर रही हूँ?”

पर दिल ने कहा—“नहीं, यह विश्वासघात नहीं है। यह जीवन का सबसे सच्चा पल है। वही पल, जिसके लिए इंसान सांसें लेता है।”

 

अगले दिन लाइब्रेरी में दोनों की मुलाक़ात हुई। सन्नाटा था। टेबलों पर बिखरी किताबें और पीली रोशनी का धुंधलापन। आदित्य ने धीरे से कहा—“मैं तुम्हें हर रोज़ और भी गहराई से समझ रहा हूँ। तुम्हारी आँखें कह देती हैं वो सब, जो तुम छुपा लेती हो।”

सिया चौंकी। फिर धीमे स्वर में बोली—“अगर मेरी आँखें इतना कह देती हैं, तो क्या तुम्हें डर नहीं लगता?”

“डरता हूँ,” आदित्य ने स्वीकार किया। “पर उससे ज़्यादा डरता हूँ तुम्हें खोने से।”

सिया की आँखों में आँसू आ गए। उसने पन्नों पर नज़र गड़ाए रखी, पर शब्द अब धुँधले थे।

 

धीरे-धीरे उनका रिश्ता गहरा होने लगा। अब वह सिर्फ़ बातचीत तक सीमित नहीं था। आदित्य ने एक दिन हिम्मत कर सिया को कहा—“चलो, शहर से बाहर कहीं चलते हैं। बस तुम और मैं। जहाँ कोई हमें देख न सके।”

सिया ने हैरानी से उसकी ओर देखा। “ये पागलपन है। अगर किसी ने देख लिया तो?”

“तो देख ले,” आदित्य ने दृढ़ स्वर में कहा। “मुझे इस रिश्ते पर शर्म नहीं।”

सिया का दिल काँप उठा। कितनी देर से वह इसी वाक्य को सुनने की प्रतीक्षा कर रही थी। पर फिर वही डर… वही समाज की नज़र। उसने चुपचाप हामी भर दी।

 

शनिवार की सुबह दोनों स्टेशन पर मिले। भीड़ में भी जैसे उनके चारों ओर अदृश्य दीवार खिंच गई थी। ट्रेन चली और खिड़की से आती हवा उनके चेहरों पर पड़ती रही।

सिया ने कहा—“मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं यहाँ हूँ। जैसे कोई सपना देख रही हूँ।”

आदित्य ने उसका हाथ धीरे से थाम लिया। “कभी-कभी सपने ही सच होते हैं, सिया। और यही सपने हमें ज़िंदा रखते हैं।”

 

वे शहर से दूर एक छोटे कस्बे पहुँचे। वहाँ का बाज़ार शांत था, गलियाँ संकरीं और पेड़ों की छाँव में धूप बिखरी हुई। दोनों ने चाय पी, नदी किनारे टहलते रहे। आदित्य ने सिया को देखा—उसका चेहरा हवा में उड़ते बालों से घिरा था और आँखों में अनकही ख़ुशी।

“तुम्हें पता है,” आदित्य ने कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि ज़िंदगी मुझे इतना खूबसूरत तोहफ़ा देगी।”

सिया ने हल्की हँसी के साथ कहा—“और मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इतने बड़े ख़तरे उठा लूँगी।”

दोनों की हँसी और ख़ामोशी एक-दूसरे में घुल गई।

 

लेकिन हर खुशी के पीछे एक परछाईं छुपी होती है। शाम को लौटते वक़्त, सिया ने अचानक कहा—“आदित्य, अगर हमारा रिश्ता उजागर हुआ तो क्या होगा? तुम्हारा परिवार, मेरा परिवार… क्या वे हमें माफ़ कर देंगे?”

आदित्य कुछ पल चुप रहा। फिर बोला—“शायद नहीं। लेकिन क्या हम अपनी ज़िंदगी दूसरों की माफ़ी के सहारे जिएँगे? हमें अपने जवाब खुद ढूँढ़ने होंगे।”

सिया ने उसकी ओर देखा। पहली बार लगा जैसे उसकी आँखों में डर से ज़्यादा साहस है।

 

उस रात जब वह घर लौटी तो आईने में खुद को देर तक देखती रही। एक लड़की, जो अब तक दूसरों की मर्यादाओं में कैद थी, अब अपनी नज़र में बदल चुकी थी। उसकी आँखों में आदित्य की परछाईं थी और होंठों पर हल्की मुस्कान।

लेकिन भीतर गूँज रहा था वही सवाल—
“क्या यह मोहब्बत है या पागलपन? और अगर यह पागलपन है, तो क्या मैं इसके अंजाम के लिए तैयार हूँ?”

 

मन की गूंज अब थमने वाली नहीं थी। यह सिर्फ़ दिल की धड़कन नहीं, आत्मा का संगीत था। दोनों जानते थे—अब लौटना आसान नहीं। यह रास्ता जितना निषिद्ध था, उतना ही अनिवार्य।

 

एपिसोड 3: ख़त और ख़्वाब

दिल की बातें अक्सर शब्दों में ढलकर काग़ज़ पर उतरना चाहती हैं। शायद इसलिए इंसान ने पत्र लिखना सीखा—ताकि उन भावनाओं को जगह मिल सके, जिन्हें बोलना नामुमकिन होता है। आदित्य और सिया के बीच अब यही रास्ता खुला था। मुलाक़ातें सीमित थीं, नज़रें अक्सर झुक जाती थीं, लेकिन दिल में उमड़ती बेचैनियाँ अब दबाए नहीं दबती थीं।

एक शाम आदित्य ने अपनी डायरी में लिखा—
सिया, तुम्हारी ख़ामोशी मुझे चैन से सोने नहीं देती। तुम्हारी आँखों की भाषा मुझे रातों को जगाए रखती है। अगर दुनिया हमें ग़लत ठहराएगी तो ठहराए, पर मेरा दिल जानता है कि यह मोहब्बत पवित्र है।”

उसने पन्ना फाड़कर मोड़ दिया और अगले दिन लाइब्रेरी की किताब के बीच छुपा दिया। वही किताब, जिसे सिया अक्सर पढ़ती थी—कीट्स की कविताओं का संकलन।

अगले दिन जब सिया ने किताब खोली, तो पन्नों के बीच से वह ख़त गिर पड़ा। उसकी उंगलियाँ काँप उठीं। उसने चारों ओर देखा, कोई था नहीं। धीरे से उसने काग़ज़ उठाया और पढ़ने लगी। आँखें धुंधली हो गईं, होंठ काँपने लगे। उसने ख़ुद से कहा—“ये पागलपन है… पर कितना खूबसूरत।”

 

उस रात सिया अपने कमरे में बैठी रही। बाहर आसमान में चाँद बादलों में छुपता-निकलता रहा। उसने वही ख़त बार-बार पढ़ा। हर बार दिल की धड़कन और तेज़ हो जाती। उसने पहली बार महसूस किया कि शब्द कितने गहरे हो सकते हैं, कैसे वे दिल के बंद दरवाज़ों को खोल सकते हैं।

वह चुप नहीं रह सकी। अगले दिन उसने जवाब लिखा—
आदित्य, तुम्हारे शब्दों ने मेरी नींदें चुरा लीं। पर डर अब भी मेरे साथ है। मैं जानती हूँ, यह रास्ता हमें आसान जीवन नहीं देगा। लेकिन जब तुम्हारा नाम मेरे होंठों पर आता है, तो लगता है जैसे पूरी दुनिया ठहर गई हो। क्या यही मोहब्बत है?”

उसने ख़त को मोड़कर आदित्य की टेबल पर छोड़ दिया, जब वह क्लास से बाहर गया हुआ था।

 

जब आदित्य ने काग़ज़ खोला, तो उसका दिल धड़क उठा। हर पंक्ति उसके भीतर उतरती गई। उसने महसूस किया कि यह सिर्फ़ आकर्षण नहीं, यह मोहब्बत थी—गहरी, निषिद्ध और ख़तरनाक।

ख़तों का यह सिलसिला शुरू हो गया। लाइब्रेरी की किताबों, नोटबुकों और कभी-कभी चुपचाप बैग में रखे गए लिफ़ाफ़ों के ज़रिए वे एक-दूसरे से जुड़ते रहे। ये ख़त उनकी रूहों का पुल थे।

 

पर मोहब्बत जब काग़ज़ पर उतरती है, तो वह ख़्वाब भी बनाती है। आदित्य ने एक दिन लिखा—
सिया, मैं सपनों में अक्सर तुम्हें देखता हूँ। हम दोनों किसी अजनबी शहर की गलियों में हाथ थामे चलते हैं। कोई हमें देखता है, कोई रोकता है। बस हवा में तुम्हारी हँसी घुली रहती है। काश यह सपना कभी ख़त्म हो।”

सिया ने जवाब दिया—
मेरे भी सपनों में तुम आते हो, आदित्य। कभी किसी पुरानी हवेली में, कभी किसी सूनी सड़क पर। तुम्हारी आँखों में मैं अपना भविष्य ढूँढ़ती हूँ। पर सपनों से बाहर निकलते ही हक़ीक़त का डर सामने खड़ा होता है। मैं चाहकर भी उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर पाती।”

 

धीरे-धीरे इन ख़तों ने उनके बीच एक नया संसार बना दिया। दिन की भाग-दौड़, परिवार की उम्मीदें, समाज के बंधन—सबके बीच ये ख़त उनके लिए साँस लेने की जगह थे।

एक दिन सिया ने लिखा—
आदित्य, मुझे लगता है कि हम अपने ही बनाए कैद में जी रहे हैं। हम दोनों आज़ाद हैं, फिर भी आज़ाद नहीं। हमारी आत्मा को यह रिश्ता पंख देता है, लेकिन समाज उन पंखों को काटने की कोशिश करेगा। बताओ, क्या हम उड़ने की हिम्मत रखते हैं?”

आदित्य ने जवाब दिया—
हाँ सिया, अगर यह मोहब्बत हमें तोड़ भी दे, तो भी यह अधूरी नहीं होगी। क्योंकि तुमसे मिलकर मैंने जाना है कि इंसान सिर्फ़ सांस लेने के लिए नहीं, बल्कि जीने के लिए जन्म लेता है।”

 

उनके ख़त अब ख़्वाबों से भरे होते, लेकिन उनमें डर की छाया भी रहती। वे जानते थे कि अगर कभी यह सच किसी के हाथ लग गया, तो तूफ़ान आ जाएगा।

एक दिन जब आदित्य अपने दोस्तों के साथ बैठा था, उसने देखा कि सिया दूर से उसे देख रही है। उनकी आँखें मिलीं और पल भर को सब ठहर गया। दोस्त बातें करते रहे, लेकिन आदित्य का मन वहाँ नहीं था। उस रात उसने लिखा—
तुम्हारी आँखें आज भी वही कह रही थीं, जो हमारे ख़त कहते हैं। सिया, तुम मेरी सबसे बड़ी हक़ीक़त हो, चाहे दुनिया हमें सपना माने।”

 

पर सपनों का एक दूसरा चेहरा भी होता है—कभी वे हमें उड़ाते हैं, कभी गिरा देते हैं।

एक रात सिया ने सपना देखा—वह और आदित्य किसी सुनसान सड़क पर भाग रहे हैं। पीछे से लोग पत्थर फेंक रहे हैं, चीख रहे हैं। वह हाँफते-हाँफते रुक जाती है, आदित्य उसका हाथ थामे कहता है—“डर मत, मैं हूँ।” लेकिन तभी उसकी पकड़ ढीली हो जाती है और वह भीड़ में खो जाता है। सिया चीखकर उठ बैठी।

उसने पसीने में भीगी हथेलियाँ देखीं और सोचा—“क्या यह सपना सच हो सकता है? क्या हम वाक़ई भीड़ में खो जाएँगे?”

 

अगले दिन उसने आदित्य को बताया। आदित्य ने उसका हाथ थामते हुए कहा—“सपनों पर विश्वास मत करो। हमारी मोहब्बत उनसे बड़ी है।”

लेकिन सिया के भीतर की गूंज कह रही थी—“हर ख़्वाब की जड़ में कोई सच्चाई होती है।”

 

ख़त और ख़्वाब अब उनकी दुनिया थे। हर पन्ना उन्हें और गहराई से जोड़ता जा रहा था। लेकिन वे दोनों यह भी जानते थे कि हर शब्द एक खतरनाक दस्तावेज़ है, जो अगर दूसरों के हाथ लगा तो उनका राज़ खुल जाएगा।

फिर भी, वे रुक नहीं सके। क्योंकि मोहब्बत जब काग़ज़ पर उतरती है, तो वह रूह का हिस्सा बन जाती है—और रूह को कोई क़ैद नहीं कर सकता।

एपिसोड 4: पर्दे के पीछे

पर्दों के पीछे छुपी हुई दुनिया हमेशा रहस्यमयी होती है। बाहर से सब कुछ सामान्य दिखता है—हँसते-बोलते लोग, चाय की चुस्कियों में घुली बातें, परीक्षा की तैयारी में डूबे छात्र। लेकिन इस सामान्यता के पीछे छुपे रहस्य ही इंसान को बेचैन रखते हैं। आदित्य और सिया की मोहब्बत भी अब ऐसे ही पर्दों के पीछे पनप रही थी।

कॉलेज में वे अक्सर भीड़ के बीच मिलते, लेकिन नज़रें मिलते ही पल भर के लिए सब कुछ थम जाता। एक मुस्कान, एक इशारा, और फिर चुपचाप आगे बढ़ जाना। बाहर से वे सहपाठियों जैसे ही दिखते, पर भीतर उनका रिश्ता आग और राख की तरह धधक रहा था।

 

एक दिन कैंटीन में सिया अपनी सहेलियों के साथ बैठी थी। आदित्य दूर खड़ा चाय पी रहा था। अचानक उसकी नज़रें सिया पर पड़ीं। उनकी आँखें मिलीं और कुछ क्षण के लिए दोनों के चारों ओर की आवाज़ें गायब हो गईं। पर तुरंत ही सिया ने नज़रें फेर लीं।

उसकी सहेली ने पूछा—“क्या हुआ सिया? अचानक चुप क्यों हो गई?”
सिया ने झूठी हँसी ओढ़ ली—“कुछ नहीं, बस थकान है।”

लेकिन भीतर वह जानती थी कि अब इस मोहब्बत को छुपाना और मुश्किल होता जा रहा है।

 

आदित्य ने उसी शाम एक ख़त लिखा—
सिया, कभी-कभी लगता है कि हम दोनों दो कलाकार हैं, जो मंच पर अभिनय कर रहे हैं। दर्शकों को कुछ और दिखाते हैं, पर पर्दे के पीछे हमारी दुनिया बिल्कुल अलग है। मैं हर पल तुम्हारे साथ जी रहा हूँ, पर दूसरों की नज़रों में तुम सिर्फ़ एक सहपाठी हो। क्या यह अभिनय हमें कहीं तोड़ दे?”

सिया ने पढ़ा और देर तक सोचती रही। फिर उसने जवाब लिखा—
आदित्य, शायद यही हमारी किस्मत है। हमें अपनी मोहब्बत को पर्दे के पीछे ही जीना होगा। बाहर की दुनिया हमारे लिए नहीं बनी। पर यकीन मानो, तुम्हारे साथ बिताया हर पल मुझे ज़िंदा रखता है।”

 

धीरे-धीरे यह राज़ छुपाना और कठिन हो गया। एक दिन सिया की सहेली ने मज़ाक में कहा—“तुम और आदित्य ज़्यादा बातें करते हो आजकल। कोई राज़ है क्या?”
सिया का चेहरा लाल हो गया। उसने हड़बड़ी में कहा—“अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं।”

लेकिन उसके झूठ में भी सच्चाई की झलक थी। उसकी सहेली हँसकर रह गई, पर सिया का दिल धड़क उठा। उसे डर था कि कहीं किसी दिन यह रहस्य उजागर न हो जाए।

 

इसी बीच, परीक्षाओं का मौसम आया। सभी छात्र पढ़ाई में डूब गए। लाइब्रेरी भरी रहती, गलियारों में सन्नाटा रहता। आदित्य और सिया को अब मुलाक़ातें और भी छुपाकर करनी पड़तीं।

वे कभी किताबों के बीच बैठकर ख़ामोशी में बातें करते, कभी पुराने बरामदे में मिलते जहाँ शायद ही कोई आता। उन चुपचाप क्षणों में भी वे बहुत कुछ कह जाते।

एक दिन आदित्य ने धीमे स्वर में कहा—“क्या तुम्हें कभी डर नहीं लगता कि कोई हमें देख लेगा?”
सिया ने उसकी आँखों में झाँककर कहा—“डर तो हर वक़्त लगता है। पर यह डर भी हमें और पास लाता है। जैसे पर्दे के पीछे छुपकर जीना ही हमारी सच्चाई बन गया हो।”

 

लेकिन हर पर्दे में कभी न कभी दरार आ जाती है।

एक शाम दोनों कैंपस के बाहर चाय की दुकान पर खड़े थे। बारिश हो रही थी, लोग भीगते भाग रहे थे। आदित्य ने धीरे से सिया का हाथ थाम लिया। उसी वक़्त किसी सहपाठी ने दूर से उन्हें देख लिया। उसने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कराकर चला गया।

सिया का चेहरा सफेद पड़ गया। “आदित्य, देखा तुमने? उसने हमें देख लिया।”
आदित्य ने आश्वस्त करने की कोशिश की—“शायद उसने ध्यान नहीं दिया।”
लेकिन दोनों जानते थे कि अब खतरे का बीज बोया जा चुका है।

 

उस रात सिया ने लंबा ख़त लिखा—
आदित्य, मुझे लगता है अब यह रहस्य हमेशा पर्दे के पीछे नहीं रहेगा। कभी कभी कोई इसे उजागर कर देगा। और उस दिन शायद हमारी दुनिया टूट जाएगी। पर मैं चाहती हूँ कि चाहे जो हो, हम सच से भागे नहीं। अगर हमारी मोहब्बत को दोषी ठहराया जाएगा, तो हम साथ खड़े रहेंगे।”

आदित्य ने पढ़कर गहरी साँस ली। उसने लिखा—
सिया, मैं हर हाल में तुम्हारे साथ हूँ। अगर पर्दा उठ भी गया, तो मैं तुम्हारा हाथ नहीं छोड़ूँगा।”

 

दिन बीतते गए। लेकिन अब दोनों के बीच एक अजीब बेचैनी थी। वे मिलते, बातें करते, हँसते भी, पर उनके भीतर यह डर गहराता जा रहा था कि सच ज़्यादा दिन तक छुप नहीं पाएगा।

फिर भी, यही डर उनकी मोहब्बत को और भी गहरा बना रहा था। हर मुलाक़ात उन्हें ऐसा लगता, जैसे यह आख़िरी हो। हर मुस्कान, हर ख़ामोशी, हर छुपी हुई नज़र—सब अमर हो जाती।

 

एक दिन आदित्य ने सिया से कहा—“हम कब तक पर्दे के पीछे जीते रहेंगे? क्या कभी यह संभव है कि हम खुलकर साथ रह सकें?”
सिया ने दुखभरी मुस्कान दी—“शायद कभी नहीं। लेकिन शायद यही हमारी मोहब्बत की खूबसूरती है—कि यह दुनिया की नज़रों से छुपी हुई है। जैसे कोई गुप्त ख़ज़ाना।”

आदित्य ने उसका हाथ थाम लिया। “तो फिर यह पर्दा हमारी ढाल है। जब तक यह है, हम सुरक्षित हैं।”

सिया ने आँखें बंद कर लीं। उसकी पलकों से एक आँसू ढल गया। वह जानती थी—पर्दे के पीछे की दुनिया कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो, एक दिन उसका पर्दा उठ ही जाएगा।

 

पर्दों के पीछे अब सिर्फ़ मोहब्बत नहीं, डर और बेचैनी भी पनप रही थी। यह रिश्ता जैसे किसी नाटक का हिस्सा बन चुका था—जहाँ वे दोनों कलाकार थे, पर मंच का सच किसी और के हाथों में था।

एपिसोड 5: इकरार की रात

रातें हमेशा दिन से ज़्यादा सच्ची लगती हैं। दिन का शोर, लोगों की नज़रें, समाज की हिदायतें—सब अंधेरे में कहीं खो जाते हैं। बस बचता है दिल और उसकी धड़कनें। शायद यही वजह थी कि आदित्य और सिया की सबसे बड़ी बात भी एक रात ही हुई—वो रात जब इकरार ने उन्हें एक नई राह पर खड़ा कर दिया।

 

उस दिन कॉलेज में हलचल ज़्यादा थी। किसी प्रोफ़ेसर का विदाई समारोह था, कैंपस रोशनी और शोर से भरा हुआ। हर जगह हँसी-मज़ाक, गाने और तालियाँ। आदित्य और सिया भी भीड़ में शामिल थे, लेकिन उनके दिल कहीं और भटक रहे थे।

समारोह ख़त्म होने के बाद दोस्तों का समूह कैंटीन में जुटा, लेकिन आदित्य धीरे से बाहर निकल आया। उसे लगा, हवा घुट रही है। वह बरामदे में चला गया, जहाँ हल्की पीली रोशनी थी और हवा में चंपा के फूलों की खुशबू। कुछ देर बाद उसने देखा, सिया भी बाहर आ रही है।

“तुम यहाँ?” आदित्य ने हैरानी जताई।
सिया मुस्कराई। “भीड़ में मन नहीं लग रहा था।”

दोनों चुपचाप साथ-साथ चलने लगे।

 

कैंपस के पीछे एक पुराना बगीचा था, जहाँ शायद ही कोई आता। वहाँ की बेंच पर बैठकर उन्होंने एक-दूसरे को देखा। रात गहरी हो चुकी थी, आसमान में तारे चमक रहे थे।

कुछ देर ख़ामोशी रही। फिर आदित्य ने धीरे से कहा—“सिया, मैं अब और नहीं छुपा सकता। यह सिर्फ़ आकर्षण नहीं है। यह मोहब्बत है। मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ, जितना कभी किसी से नहीं की।”

सिया की साँस थम-सी गई। उसने नज़रें झुका लीं, लेकिन उसके चेहरे पर आँसू चमक उठे।

“आदित्य…” उसकी आवाज़ काँप रही थी। “मैं भी यही महसूस करती हूँ। पर डर… यह डर मुझे हर वक़्त खाता है। अगर सबको पता चल गया तो?”

आदित्य ने उसका हाथ थाम लिया। “तो मैं सबके सामने खड़ा हो जाऊँगा। पर तुम्हें खो नहीं सकता।”

 

उस पल जैसे सारी दीवारें गिर गईं। सिया ने पहली बार बिना झिझक उसके कंधे पर सिर रख दिया। हवा में फूलों की महक घुली थी, और रात गवाह बन गई थी उस इकरार की, जिसे दोनों बरसों तक शायद याद रखते।

“क्या तुम सचमुच मेरे साथ रहोगे, चाहे जो हो?” सिया ने धीमे स्वर में पूछा।
“हाँ,” आदित्य ने दृढ़ स्वर में कहा। “अब यह इकरार मेरा वचन है।”

 

उस रात दोनों ने अपने दिल खोल दिए। आदित्य ने बताया कि कैसे बचपन से ही उसने समाज की सख़्तियाँ देखी हैं, और क्यों वह मानता है कि इंसान को अपने दिल की सुननी चाहिए। सिया ने पहली बार अपना दर्द बताया—उसका परिवार कितना सख़्त है, उसकी ज़िंदगी पहले से तय कर दी गई है, और कैसे वह रोज़ अपने ही सपनों को मारती रही है।

आदित्य ने कहा—“तुम्हारे सपनों को अब मरने मत दो। मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
सिया की आँखों में चमक आ गई। उसने कहा—“अगर सचमुच तुम साथ हो, तो शायद मुझे डरने की ज़रूरत नहीं।”

 

घड़ी ने आधी रात का समय बताया। कैंपस शांत था। दूर कहीं कुत्ते भौंक रहे थे। लेकिन उस बेंच पर बैठे दोनों के लिए वक़्त थम चुका था।

सिया ने पहली बार साफ़ शब्दों में कहा—“मैं तुमसे मोहब्बत करती हूँ, आदित्य। यह मोहब्बत निषिद्ध है, पर सच्ची है।”

आदित्य ने उसकी ओर देखा और मुस्कराकर कहा—“बस यही सुनना चाहता था। अब चाहे जो हो, हम साथ हैं।”

 

उस इकरार ने उन्हें एक नए साहस से भर दिया। अगले कुछ दिनों में वे और नज़दीक हो गए। अब उनके ख़त और मीठे हो गए, उनकी मुलाक़ातें और गहरी। उन्हें लगता जैसे दुनिया की हर रुकावट अब छोटी है।

लेकिन मोहब्बत जितनी गहरी होती है, उसकी आग उतनी ही खतरनाक।

 

एक दिन कैंपस में अफ़वाह फैल गई कि आदित्य और सिया अक्सर अकेले मिलते हैं। किसी ने उन्हें बगीचे में साथ देखा था। सहपाठी आपस में फुसफुसाने लगे।

सिया परेशान हो उठी। उसने आदित्य से कहा—“देखा? मैंने कहा था ना, एक दिन राज़ खुल ही जाएगा।”
आदित्य ने उसे दिलासा दिया—“हमारा इकरार इतना मज़बूत है कि ये अफ़वाहें हमें हिला नहीं सकतीं।”

लेकिन दोनों के भीतर डर ज़िंदा था।

 

इकरार की रात ने उन्हें दिल से जोड़ा, पर साथ ही एक अदृश्य ज़िम्मेदारी भी दे दी। अब वे सिर्फ़ प्रेमी नहीं रहे, बल्कि दो ऐसे इंसान बन गए थे जो समाज से लड़ने की तैयारी में थे।

उनके हर कदम में अब एक नया अर्थ था। हर ख़त अब इकरार की मुहर था। हर मुलाक़ात अब वादा थी।

 

उस रात की याद सिया अक्सर अपनी डायरी में लिखती—
वो रात मेरी ज़िंदगी का सबसे सच्चा पल थी। जब मैंने पहली बार अपने दिल को खुलकर बोलने दिया। अब चाहे दुनिया मुझे दोषी ठहराए, मैं जानती हूँ कि यह मोहब्बत मेरी आत्मा का हिस्सा है।”

आदित्य ने भी अपनी डायरी में लिखा—
सिया का इकरार मेरे लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं। अब चाहे समाज की नज़र हमें पाप कहे, मेरे लिए यह सबसे पवित्र रिश्ता है।”

 

लेकिन कहानियों की रातें हमेशा इतनी शांत नहीं रहतीं। इकरार के बाद आता है इम्तिहान। और दोनों जानते थे कि उनकी अगली मुलाक़ातें अब और मुश्किल होंगी।

क्योंकि मोहब्बत छुपाई जा सकती है, लेकिन इकरार की गूँज को दबाना आसान नहीं।

एपिसोड 6: बिखरे धागे

इकरार की रात के बाद दोनों की ज़िंदगी जैसे एक नए रंग में रंग गई थी। अब उनकी मुलाक़ातें और गहरी हो गईं, ख़तों के शब्द और भी बेकाबू। हर पल उन्हें लगता जैसे वे किसी जादू में जी रहे हों। लेकिन मोहब्बत का यही तो सच है—वह जितनी नशे जैसी होती है, उतनी ही असुरक्षित भी।

 

कॉलेज में अफ़वाहें अब खुलकर फैलने लगी थीं। कुछ छात्र हँसी-मज़ाक में आदित्य से कहते—“भाई, सिया से दोस्ती बढ़ गई है क्या?”
आदित्य बस मुस्कराकर टाल देता। लेकिन भीतर उसकी धड़कनें तेज़ हो जातीं।

सिया के लिए यह और कठिन था। उसका परिवार बेहद सख़्त था। शाम को घर लौटते ही माँ का पहला सवाल होता—“आज लाइब्रेरी में कितने घंटे पढ़ाई की?” पिता अक़्सर कहते—“तुम्हारा भविष्य हमारे लिए इज़्ज़त का सवाल है।”

वह सोचती—“अगर उन्हें कभी मेरे और आदित्य के बारे में पता चल गया तो?” यह ख़याल ही उसकी रूह को कंपा देता।

 

एक शाम, जब आदित्य और सिया कैंपस के पुराने बरामदे में बैठे थे, सिया ने अचानक कहा—“आदित्य, हमें सावधान रहना होगा। ये अफ़वाहें अब और बढ़ेंगी। मैं नहीं चाहती कि मेरा परिवार इस बारे में कुछ सुने।”

आदित्य ने उसका हाथ थामते हुए कहा—“तो क्या हमें मिलना बंद कर देना चाहिए?”

सिया की आँखों में आँसू आ गए। “नहीं, यह मैं कभी नहीं चाहती। लेकिन हमें सोचना होगा कि आगे कैसे चलना है। हर बार डर के साथ जीना मुश्किल है।”

 

उनकी मुलाक़ातें अब थोड़ी और छुपकर होने लगीं। लाइब्रेरी की भीड़ में, गलियारों की खामोशी में, या फिर किसी पुराने पेड़ के नीचे। पर जितना वे छुपते, उतना ही उन्हें लगता कि दुनिया उनकी तरफ़ और तेज़ नज़र डाल रही है।

एक दिन कैंटीन में किसी ने मज़ाक में कहा—“सिया, आदित्य के साथ तुम्हारी जोड़ी तो फिल्मों जैसी लगती है।”
सिया का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। उसने तुरंत उठकर वहाँ से निकलना बेहतर समझा। आदित्य पीछे-पीछे गया।

“सिया, रुक जाओ,” उसने पुकारा।
सिया ने आँखों में आँसू लिए कहा—“ये सब सहना मेरे लिए आसान नहीं है। मैं तुम्हें चाहती हूँ, लेकिन लोगों की बातें मुझे तोड़ देती हैं।”

आदित्य ने गहरी साँस ली। “तो फिर हमें मज़बूत होना होगा। अगर हम अपने रिश्ते पर ही भरोसा नहीं करेंगे, तो दुनिया की बातें हमें हमेशा रुलाती रहेंगी।”

 

लेकिन दिल के धागे जितने मज़बूत लगते हैं, कभी-कभी उतने ही जल्दी बिखर भी जाते हैं।

परीक्षाओं का वक़्त नज़दीक आ रहा था। दोनों पढ़ाई में डूबे रहने लगे। ख़तों का सिलसिला थोड़ा कम हो गया। मुलाक़ातें भी पहले जितनी नहीं हो पातीं।

सिया को लगता—“क्या आदित्य अब पहले जैसा महसूस नहीं करता?”
आदित्य सोचता—“क्या सिया अब मुझसे दूर हो रही है?”

छोटी-सी दूरी भी उन्हें बड़े तूफ़ान जैसी लगने लगी।

 

एक दिन सिया ने आदित्य से कहा—“तुमने पिछले हफ़्ते कोई ख़त नहीं लिखा। पहले तो हर दिन कुछ न कुछ भेजते थे।”
आदित्य ने सफ़ाई दी—“मैं पढ़ाई में फँसा हुआ था। इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हें भूल गया।”
सिया बोली—“पर मुझे लगता है कि तुम बदल रहे हो।”

यह सुनकर आदित्य चुप रह गया। उसने सोचा, “क्या मोहब्बत इतनी नाज़ुक होती है कि कुछ दिनों की चुप्पी भी उसे हिला दे?”

 

धीरे-धीरे दोनों के बीच खटास बढ़ने लगी। छोटी-छोटी बातों पर बहस होती।
सिया कहती—“तुम मुझे उतना महत्व नहीं देते जितना पहले देते थे।”
आदित्य ग़ुस्से में बोलता—“और तुम हर वक़्त डर और शक से घिरी रहती हो। इस तरह हम कहाँ तक चलेंगे?”

उनके बीच का धागा खिंचने लगा था। और खिंचते-खिंचते वह टूटने की कगार पर आ गया।

 

उस रात सिया ने अपनी डायरी में लिखा—
मैं जानती हूँ कि मैं आदित्य से मोहब्बत करती हूँ। लेकिन क्यों हर वक़्त मुझे लगता है कि यह रिश्ता मेरे हाथ से फिसल रहा है? क्या मोहब्बत इतनी नाज़ुक होती है कि डर और शक उसे तोड़ दें?”

आदित्य ने अपनी डायरी में लिखा—
सिया मुझसे क्यों समझ नहीं पाती? मैं उसे खोना नहीं चाहता, लेकिन हर दिन हमारे बीच झगड़े बढ़ते जा रहे हैं। क्या यही मोहब्बत का इम्तिहान है?”

 

कुछ दिन तक उन्होंने एक-दूसरे से बात कम की। कॉलेज में मिलते तो सिर्फ़ औपचारिक मुस्कान होती। दोनों भीतर से टूट रहे थे, पर अहंकार और डर ने उन्हें और दूर धकेल दिया।

आख़िरकार एक शाम सिया ने आदित्य को बुलाया। वही पुराना बगीचा, वही बेंच।
“आदित्य, हमें बात करनी होगी,” उसने कहा।
“कहो,” आदित्य ने गहरी आवाज़ में जवाब दिया।

सिया की आँखों में आँसू थे। “मैं हर दिन डर में जी रही हूँ। न तुम्हें खोना चाहती हूँ, न अपनी दुनिया। पर अब मुझे लगता है कि यह रिश्ता हमें तोड़ देगा।”

आदित्य ने उसका हाथ पकड़ना चाहा, लेकिन सिया ने पीछे खींच लिया।
“नहीं आदित्य, मुझे सोचने के लिए वक़्त चाहिए।”

 

वह रात आदित्य के लिए सबसे लंबी थी। उसे लगा जैसे उसके भीतर का पूरा संसार बिखर गया हो। उसने बार-बार खुद से पूछा—“क्या सचमुच यह मोहब्बत हमें तोड़ देगी?”

दूसरी ओर, सिया भी अपने कमरे में रोती रही। उसे लगा जैसे उसके सपनों की डोर अचानक हाथ से छूट गई हो।

 

बिखरे धागों का यही सच है—वे हमें और कचोटते हैं, क्योंकि कभी वही धागे हमें बाँधकर रखते थे। अब आदित्य और सिया दोनों समझ रहे थे कि उनका रिश्ता इकरार के बाद और कठिन हो गया है।

पर सवाल यह था—क्या ये धागे फिर से जुड़ेंगे, या हमेशा के लिए बिखर जाएंगे?

एपिसोड 7: मिलन या दूरी

कभी-कभी मोहब्बत का सबसे कठिन मोड़ वह होता है, जब दो दिल एक-दूसरे के बिना जी नहीं सकते, पर साथ रहना भी भारी हो जाता है। आदित्य और सिया अब इसी मोड़ पर खड़े थे।

 

पिछले कुछ हफ़्तों की दूरी ने उनके रिश्ते को गहरे सवालों में डाल दिया था। मुलाक़ातें कम हो गई थीं, ख़त लगभग बंद। न पहले जैसी हँसी बची थी, न पहले जैसा सुकून। हर बार मिलते तो दोनों की आँखों में थकान और शिकायत झलकती।

आदित्य सोचता—“क्या यह वही सिया है, जिसने मुझे इकरार की रात अपने दिल की गहराइयों में जगह दी थी?”
सिया सोचती—“क्या यह वही आदित्य है, जिसने कहा था कि चाहे दुनिया टूट पड़े, वह मेरा साथ नहीं छोड़ेगा?”

 

एक दिन कैंपस की लाइब्रेरी में उनकी अचानक मुलाक़ात हुई। दोनों ने औपचारिक मुस्कान दी और पास की टेबल पर बैठ गए। कुछ मिनट तक सन्नाटा छाया रहा। फिर आदित्य ने धीमे स्वर में कहा—

“सिया, हम कब तक ऐसे रहेंगे? न पास, न दूर। हमें तय करना होगा—या तो साथ चलें, या अलग हो जाएँ।”

सिया ने सिर झुकाए कहा—“तय करना इतना आसान होता तो अब तक कर लिया होता।”

“पर इस तरह अधर में लटककर जीना सबसे मुश्किल है।”

सिया ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में आँसू थे। “तुम समझते क्यों नहीं, आदित्य? मैं तुम्हें चाहती हूँ, लेकिन मेरा परिवार, समाज, सब हमारे बीच खड़े हैं। मैं सबको छोड़कर तुम्हारे पास आ भी जाऊँ, तो क्या हम सुकून से जी पाएँगे?”

 

उस शाम आदित्य बहुत देर तक शहर की सड़कों पर भटकता रहा। हर गली, हर मोड़ उसे सिया की याद दिलाती। उसने सोचा—“क्या वाक़ई मोहब्बत सिर्फ़ दो लोगों की नहीं, पूरे समाज की कै़द है?”

दूसरी ओर, सिया अपने कमरे में बैठी रो रही थी। माँ बाहर से आवाज़ दे रही थी—“खाना खा लो।” लेकिन उसके होंठों पर सिसकियाँ थीं। उसने डायरी में लिखा—
कभी लगता है कि मैं आदित्य के बिना सांस नहीं ले सकती, और कभी लगता है कि अगर उसके साथ गई तो सांस ही नहीं ले पाऊँगी। यह कैसी मोहब्बत है, जो दिल और दुनिया के बीच फँस गई है?”

 

कुछ दिन बाद, आदित्य ने हिम्मत जुटाई। उसने सिया को चुपचाप बुलाया—कैंपस के पीछे वही बगीचा, जहाँ उनकी पहली इकरार की रात गुज़री थी।

सिया आई। दोनों कुछ देर चुप बैठे रहे। फिर आदित्य ने सीधा सवाल किया—

“सिया, बताओ। हमें मिलकर आगे बढ़ना है, या यह यहीं ख़त्म करना है?”

सिया का चेहरा पीला पड़ गया। उसकी आँखें भर आईं। “तुम इतनी आसानी से ‘ख़त्म’ कह सकते हो?”

“तो फिर और क्या करें?” आदित्य की आवाज़ टूट रही थी। “हर दिन डर, हर दिन झगड़ा। या तो मिलन हो, या दूरी। बीच का रास्ता अब नहीं।”

 

सिया उठकर खड़ी हो गई। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने काँपते स्वर में कहा—“अगर मेरे पास सिर्फ़ दिल होता, तो मैं तुम्हारे साथ अभी चली आती। लेकिन मेरे पास एक दुनिया भी है, जिसे मैं तोड़ नहीं सकती।”

आदित्य ने उसके हाथ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन सिया ने पीछे खींच लिया।

“तो तुम दूरी चुन रही हो?” उसने भारी आवाज़ में पूछा।

सिया चुप रही। उसकी ख़ामोशी ही जवाब थी।

 

उस रात आदित्य अपने कमरे में अकेला बैठा रहा। किताबें खुली पड़ी थीं, लेकिन शब्द धुँधले थे। उसने लिखा—
अगर मोहब्बत इतनी सच्ची है, तो हमें अलग क्यों होना पड़ रहा है? क्या समाज का बोझ दिल की धड़कनों से बड़ा है?”

सिया भी उसी रात खिड़की से चाँद देखती रही। आँसू उसके गाल भिगो रहे थे। उसने डायरी में लिखा—
मिलन मेरा सपना है, दूरी मेरी किस्मत। पर क्या मैं वाक़ई मोहब्बत से भाग पाऊँगी?”

 

अगले दिन कॉलेज में दोनों मिले। न मुस्कान, न बातचीत। बस एक अजनबी-सी चुप्पी। उनके दोस्तों ने नोटिस किया—“तुम दोनों पहले जैसे क्यों नहीं हो?”
पर दोनों के पास जवाब नहीं था।

 

कुछ दिनों तक यही हाल रहा। लेकिन मोहब्बत का सच यही है कि जितना उससे भागो, वह उतनी ही और खींचती है।

एक शाम आदित्य ने अचानक सिया को संदेश भेजा—“क्या तुम नदी किनारे मिलोगी?”

सिया बहुत देर तक सोचती रही। फिर मान गई।

 

नदी किनारे शाम ढल रही थी। हवा में ठंडक थी और आसमान में लालिमा। दोनों आमने-सामने खड़े हुए।

आदित्य ने गहरी साँस ली। “सिया, मैं मानता हूँ कि यह रास्ता कठिन है। लेकिन अगर हमें दूरी चुननी है, तो कम-से-कम एक आख़िरी बार साफ़-साफ़ कह दो। ताकि मैं अपने दिल को समझा सकूँ।”

सिया की आँखें भर आईं। उसने धीमे स्वर में कहा—“मैं तुमसे दूर नहीं जाना चाहती, आदित्य। पर मेरे पास हिम्मत नहीं है सबका सामना करने की।”

“तो क्या यही हमारी मोहब्बत का अंजाम है? आधा मिलन, आधी दूरी?”

सिया चुप रही।

 

उस क्षण दोनों को लगा जैसे उनके बीच अदृश्य धागा खिंच रहा है। न पूरी तरह टूट रहा है, न पूरी तरह जुड़ रहा है।

आदित्य ने धीरे से कहा—“शायद यही हमारी किस्मत है, सिया। न पूरी तरह मिल पाएँगे, न पूरी तरह दूर हो पाएँगे। बस इसी अधूरी मोहब्बत के साथ जीना होगा।”

सिया की आँखों से आँसू बह निकले। उसने बस इतना कहा—“अगर यही किस्मत है, तो मैं इसे भी मोहब्बत की तरह स्वीकार कर लूँगी।”

 

उस शाम नदी की लहरें उनकी ख़ामोशी को अपने साथ बहा ले गईं। और आदित्य व सिया की मोहब्बत एक ऐसे मोड़ पर पहुँच गई, जहाँ मिलन और दूरी का फ़ैसला धुंधला हो गया।

एपिसोड 8: आग और राख

मोहब्बत कभी सिर्फ़ गुलाब नहीं होती, उसमें काँटे भी होते हैं। कभी वह धूप जैसी गर्माहट देती है, तो कभी जलती आग जैसी पीड़ा। आदित्य और सिया अब उस दौर में थे, जहाँ उनका रिश्ता दोनों छोर पर झूल रहा था—एक तरफ़ आग का जुनून, दूसरी तरफ़ राख का डर।

परीक्षाओं का मौसम ख़त्म हुआ। कॉलेज की छुट्टियाँ शुरू हो चुकी थीं। दोस्त घर लौट रहे थे, माहौल हल्का था। लेकिन आदित्य और सिया के बीच की खामोशी और भारी हो गई थी।

एक दिन आदित्य ने सिया को बुलाया—शहर से बाहर एक पुरानी हवेली, जहाँ कभी अंग्रेज़ों का डेरा हुआ करता था। अब वह जगह खंडहर बन चुकी थी, लेकिन वहाँ से नदी का दृश्य बहुत सुंदर दिखता था।

सिया हिचकिचाई, लेकिन आखिरकार चली आई। हवेली की टूटी हुई खिड़कियों से आती हवा, दीवारों पर उखड़े हुए रंग, और चारों ओर फैली वीरानी—सब कुछ जैसे उनके रिश्ते का प्रतीक लग रहा था।

“तुमने मुझे यहाँ क्यों बुलाया?” सिया ने धीरे से पूछा।
आदित्य ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा—“क्योंकि मैं तुम्हारे साथ कहीं ऐसा वक्त बिताना चाहता था, जहाँ कोई हमें देख न सके, जहाँ हम सिर्फ़ अपने हों।”

 

दोनों खिड़की के पास बैठ गए। बाहर आसमान में बादल थे, और हवा में हल्की ठंडक।

आदित्य ने धीरे से कहा—“सिया, मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ। क्या तुम सचमुच मुझसे मोहब्बत करती हो, चाहे हालात कुछ भी हों?”
सिया ने बिना झिझके जवाब दिया—“हाँ, आदित्य। जितना डर है, उतना ही मोहब्बत भी है। लेकिन यही डर हमें हर दिन तोड़ता है।”

आदित्य ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी आँखों में आग थी। “तो फिर हम क्यों डरते हैं? क्यों इस मोहब्बत को राख बनने दे रहे हैं? हमें इसे आग की तरह जीना होगा, चाहे जला ही क्यों न दे।”

 

उस क्षण दोनों एक-दूसरे के करीब आ गए। दिल की दीवारें टूट गईं। उनके होंठ एक-दूसरे को छू गए और समय जैसे थम गया। बाहर बारिश शुरू हो गई, हवेली की टूटी छत से बूंदें टपकने लगीं, लेकिन अंदर एक और तूफ़ान उठ चुका था।

उनके आलिंगन में जुनून की आग थी—वह आग जो लंबे समय से दबा हुआ था, अब भड़क उठा था। उनकी साँसें तेज़ थीं, दिल की धड़कनें अनियंत्रित। वे भूल चुके थे कि वे कौन हैं, कहाँ हैं, या उनके आसपास की दुनिया क्या कहेगी।

यह वह क्षण था, जहाँ मोहब्बत अपनी सबसे सच्ची और सबसे खतरनाक शक्ल लेती है।

 

कुछ देर बाद दोनों चुपचाप बैठे रहे। हवा में अब भी बारिश की महक थी। आदित्य ने धीमे स्वर में कहा—“आज मुझे लगता है कि यह मोहब्बत हमें किसी भी अंजाम तक ले जाए, मैं तैयार हूँ।”

सिया ने उसके कंधे पर सिर रख दिया। “मैं भी,” उसने कहा। “लेकिन आदित्य, क्या होगा अगर यह आग हमें राख में बदल दे?”

आदित्य ने उसका हाथ थाम लिया। “तो भी, राख से आग फिर जन्म लेगी।”

 

उस रात जब सिया घर लौटी, उसका चेहरा अलग चमक रहा था। लेकिन आँखों में डर भी था। आईने में उसने खुद को देखा—एक लड़की, जिसने आज पहली बार अपने डर पर काबू पाकर दिल की सुन ली थी। लेकिन साथ ही यह एहसास भी कि अब वापसी संभव नहीं।

उसने डायरी में लिखा—
आज मैं सचमुच आदित्य की हो गई। मुझे लगता है जैसे मेरी रूह अब उससे बंध गई है। पर मन के किसी कोने में यह भी डर है कि हमने जो आग जलाई है, वह हमें ही जला देगी।”

आदित्य ने भी अपनी डायरी में लिखा—
आज का दिन मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सच है। मैंने सिया को सिर्फ़ चाहा नहीं, उसे पाया भी। पर अब डर है कि यह जुनून कहीं हमें बर्बाद कर दे।”

 

अगले कुछ दिनों तक दोनों के बीच का रिश्ता और भी गहरा हो गया। मुलाक़ातें कम थीं, लेकिन जब भी मिलते, एक अजीब सा आकर्षण उन्हें खींच लेता। वे अब पहले से ज़्यादा जुड़े हुए थे।

लेकिन बाहर की दुनिया बदल रही थी। अफ़वाहें और तेज़ हो गई थीं। कुछ सहपाठी अब खुलकर ताना मारते—“आदित्य और सिया की कहानी तो पूरे कॉलेज में मशहूर हो गई है।”

सिया का दिल काँप जाता। उसने आदित्य से कहा—“देखा? अब यह राज़ ज़्यादा दिन तक छुपेगा नहीं।”
आदित्य ने ग़ुस्से में कहा—“तो छुपाने की कोशिश ही क्यों करें? अगर दुनिया देखना चाहती है, तो देखे। हम डरकर क्यों जिएँ?”

सिया ने आँसू भरी आँखों से कहा—“कहना आसान है, आदित्य। पर जब मेरा परिवार टूटेगा, जब उनकी नज़र में मैं दोषी बनूँगी, तब क्या होगा?”

 

उनके बीच झगड़े बढ़ने लगे। कभी जुनून की आग उन्हें जोड़ देती, कभी डर की राख उन्हें अलग कर देती।

एक शाम आदित्य ने ग़ुस्से में कहा—“सिया, अगर तुम्हें हर वक़्त डर ही रहना है, तो इस मोहब्बत का क्या मतलब? मोहब्बत तो साहस है।”
सिया चिल्लाई—“और अगर साहस से मेरे अपनों की ज़िंदगी बर्बाद हो गई तो? क्या तुम उसका बोझ उठा पाओगे?”

दोनों की आँखों में आँसू थे। लेकिन दोनों अपनी जगह अड़े हुए थे।

 

उस रात दोनों ने अलग-अलग लिखा।
सिया—
हमारी मोहब्बत आग जैसी है। जब साथ होते हैं तो सब कुछ भुला देती है, पर जब अकेली होती हूँ तो राख का डर खा जाता है। क्या यही मोहब्बत का सच है?”

आदित्य—
सिया की मोहब्बत मेरे लिए जुनून है। पर उसका डर हमारी आग को हर दिन बुझाता है। मैं नहीं जानता, हम कहाँ जा रहे हैं।”

 

आग और राख का यह खेल अब उनके रिश्ते की नई हक़ीक़त बन चुका था। दोनों जानते थे कि यह मोहब्बत कभी पूरी तरह बुझ नहीं सकती, पर यह भी सच था कि इसमें जलना तय है।

एपिसोड 9: निषिद्ध की कीमत

मोहब्बत जब निषिद्ध होती है, तो उसकी हर धड़कन की कीमत चुकानी पड़ती है। आदित्य और सिया अब उस दौर में थे, जहाँ मोहब्बत का नशा भी था और उसकी सज़ा भी।

 

कॉलेज में अफ़वाहें अब इतनी तेज़ हो गई थीं कि उन्हें नज़रअंदाज़ करना असंभव हो गया। कोई उन्हें देख हँसता, कोई व्यंग्य करता, कोई बस चुप रहकर घूरता।

एक दिन लाइब्रेरी में बैठी सिया ने सुना, दो लड़कियाँ धीमे स्वर में बातें कर रही थीं—
“देखा है सिया और आदित्य को? हमेशा साथ रहते हैं।”
“हाँ, लोग कहते हैं कि दोनों… जानते हो न।”

सिया का चेहरा लाल पड़ गया। किताब बंद करके वह तुरंत बाहर निकल गई। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, जैसे किसी ने उसके दिल को नंगे बाज़ार में रख दिया हो।

 

उसने उसी शाम आदित्य से मिलने का निश्चय किया। जब दोनों कैंपस के पीछे बगीचे में मिले, सिया का चेहरा ग़ुस्से और डर से भरा हुआ था।

“आदित्य, यह सब और नहीं हो सकता। लोग अब खुलेआम बातें कर रहे हैं। मेरी इज़्ज़त, मेरा परिवार—सब दाँव पर लग गया है।”

आदित्य ने शांत स्वर में कहा—“तो क्या हमें सिर्फ़ इसलिए अलग होना चाहिए कि लोग क्या कहेंगे?”

सिया चिल्लाई—“लोग सिर्फ़ कहेंगे नहीं, वे सज़ा भी देंगे। मेरे घर तक यह ख़बर पहुँच जाएगी। और उस दिन सब खत्म हो जाएगा।”

आदित्य की आँखों में आँसू थे। उसने कहा—“तो क्या तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हें उस सज़ा के लिए अकेला छोड़ दूँगा? मैं हर हाल में तुम्हारे साथ रहूँगा।”

पर सिया का डर और गहरा था।

 

और डर को सच होने में देर नहीं लगी।

एक रात सिया के पिता ने अचानक उसकी डायरी देख ली। उसमें लिखे ख़त, इकरार, और आदित्य का नाम—सब कुछ साफ़ हो गया। घर में तूफ़ान खड़ा हो गया।

पिता ने ग़ुस्से में कहा—“ये क्या लिखा है तुमने? किस लड़के का नाम है ये?”
सिया काँप गई। उसकी माँ रोने लगी।
“तुमने हमारी इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी!”

उस रात सिया को कमरे में बंद कर दिया गया। उससे उसका फ़ोन छीन लिया गया।

 

अगले दिन जब आदित्य कॉलेज पहुँचा, तो उसे सिया दिखाई नहीं दी। न लाइब्रेरी, न कैंटीन, न क्लासरूम। वह बेचैन होकर ढूँढ़ता रहा। जब सहेलियों से पूछा, तो किसी ने धीरे से कहा—“सुना है उसके घरवालों को सब पता चल गया है। शायद अब वह कॉलेज नहीं आएगी।”

आदित्य के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसे लगा जैसे पूरी दुनिया अचानक खाली हो गई हो।

 

उस रात आदित्य सिया के घर के पास पहुँचा। गली में सन्नाटा था। उसने खिड़की की तरफ़ देखा। पर परदे खिंचे थे, रोशनी बुझी हुई थी। उसने धीरे से पुकारा—“सिया…”

कोई जवाब नहीं आया।

वह घंटों खड़ा रहा, लेकिन सिया की परछाई तक नज़र नहीं आई।

 

सिया अपने कमरे में रोते-रोते थक चुकी थी। माँ बार-बार समझा रही थीं—“बेटी, ये मोहब्बत तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेगी। हमें समाज का सामना करना है।”
पिता की आवाज़ कठोर थी—“कल से तुम्हारी पढ़ाई बंद। तुम्हारी शादी की बात आगे बढ़ाएँगे।”

सिया को लगा जैसे उसकी रूह को कैदखाने में डाल दिया गया हो। उसने धीरे से खिड़की से बाहर देखा—वही रास्ता जहाँ आदित्य खड़ा था। पर हिम्मत न हुई आवाज़ देने की।

 

कुछ दिनों तक दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हो गए। आदित्य ने हर कोशिश की—ख़त भेजने की, संदेश पहुँचाने की, लेकिन सब बेकार।

उसने अपनी डायरी में लिखा—
मैंने सोचा था कि मोहब्बत हमें ताक़त देगी। पर अब लगता है कि यह मोहब्बत ही हमारी सबसे बड़ी सज़ा बन गई है।”

सिया ने अपनी डायरी में लिखा—
मैं आदित्य से दूर रहकर मर रही हूँ। लेकिन परिवार का डर मुझे हर दिन बाँध रहा है। क्या यही है निषिद्ध मोहब्बत की कीमत?”

 

एक शाम आदित्य ने ठान लिया। उसने अपने दोस्त से मदद ली और चुपके से सिया को एक चिट्ठी पहुँचवाई।

सिया, मैं जानता हूँ कि तुम्हें कै़द कर दिया गया है। पर मैं यह भी जानता हूँ कि तुम्हारा दिल अब भी मेरा है। अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हें यहाँ से निकालकर ले जाऊँ। हमें भागना होगा। यह हमारी आख़िरी उम्मीद है।”

सिया ने वह चिट्ठी पढ़ी और काँप गई। उसका दिल चीख-चीखकर कह रहा था—“हाँ।” पर उसका डर भी उतना ही बड़ा था।

उस रात उसने रोते हुए लिखा—
आदित्य, मैं तुम्हारे साथ जाना चाहती हूँ। पर अगर मैंने ऐसा किया, तो मेरे माँ-बाप, मेरा परिवार, उनकी इज़्ज़त सब बिखर जाएगी। मैं अपने सपनों और अपने डर, दोनों में जल रही हूँ।”

 

आदित्य को उसका जवाब कभी नहीं मिला।

लेकिन उसके भीतर आग और भड़क उठी। उसने तय किया—“अगर सिया नहीं आ सकती, तो मैं ही उसके पास जाऊँगा। चाहे जो अंजाम हो।”

 

निषिद्ध की कीमत अब सामने थी—
सिया का परिवार टूट चुका था।
आदित्य का मन बिखर चुका था।
और उनकी मोहब्बत अब या तो आख़िरी इम्तिहान में खड़ी थी, या राख में बदलने वाली थी।

एपिसोड 10: अनंत साया

मोहब्बत के हर किस्से का कोई न कोई अंजाम होता है। कुछ कहानियाँ मिलन पर ख़त्म होती हैं, कुछ जुदाई पर। पर कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं, जिनका कोई अंत नहीं होता—वे बस एक अनंत साए की तरह ज़िंदगी के साथ चलते रहते हैं। आदित्य और सिया की कहानी अब इसी मुक़ाम पर पहुँच चुकी थी।

 

उस रात आदित्य ने ठान लिया कि वह सिया से मिलेगा। चाहे उसके पिता सामने हों, चाहे समाज की दीवारें। दिल ने कहा—“अगर अब पीछे हटा, तो यह मोहब्बत हमेशा अधूरी रह जाएगी।”

वह सिया के घर के बाहर पहुँचा। आधी रात थी, गली में सन्नाटा पसरा हुआ। उसने धीरे से खिड़की पर पत्थर फेंका। परदे हिले और कुछ ही देर में सिया की परछाई दिखाई दी।

“आदित्य…” उसकी फुसफुसाती आवाज़ आई।
“सिया, मेरे पास वक़्त नहीं है। या तो तुम अभी मेरे साथ चलो, या फिर मैं हमेशा के लिए चला जाऊँगा।”

सिया का दिल काँप उठा। आँसू उसकी आँखों से बह निकले। “आदित्य, मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती। लेकिन अपने घरवालों को छोड़कर भी नहीं जा सकती। मेरी रूह दो टुकड़ों में बँटी हुई है।”

आदित्य ने गहरी आवाज़ में कहा—“तो चलो, दोनों डर छोड़ देते हैं। दुनिया चाहे जो करे, हमें कोई अलग नहीं कर पाएगा।”

 

पर उसी वक़्त दरवाज़ा खुला। सिया का पिता बाहर निकल आया। उसकी आँखों में ग़ुस्सा था।
“आदित्य! मेरी बेटी से दूर रहो। अगर दोबारा यहाँ दिखे तो अंजाम बुरा होगा।”

सिया रोते हुए बोली—“पापा, प्लीज़…”
लेकिन पिता ने उसकी बात बीच में ही काट दी—“चुप! यह मोहब्बत नहीं, हमारी बर्बादी है।”

आदित्य पीछे हट गया। उसके सीने में आग जल रही थी। उसने सिया की ओर देखा, उसकी आँखों में मौन विनती थी।

 

अगले दिन कॉलेज में खबर फैल गई कि सिया की पढ़ाई रोक दी गई है। उसके घरवाले अब उसे कहीं और भेजने वाले हैं। यह सुनकर आदित्य का दिल टूट गया।

उसने डायरी में लिखा—
प्यार किसी जेल से बड़ा नहीं होता। अगर सिया को कै़द में रखा जाएगा, तो उसकी रूह रोज़ मरेगी। मैं इसे होने नहीं दूँगा।”

 

उस शाम आदित्य आख़िरी बार नदी किनारे गया। वही जगह जहाँ दोनों ने कई बार मिलकर सपने देखे थे। उसने आसमान की तरफ़ देखा और कहा—“सिया, अगर तुम नहीं आ पाई, तो भी मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा। तुम्हारी यादें मेरी साँसों में रहेंगी। हमारा साया हमेशा ज़िंदा रहेगा।”

 

सिया भी उसी वक़्त अपने कमरे में बैठी खिड़की से वही आसमान देख रही थी। उसने डायरी में लिखा—
आदित्य, मैं तुम्हारे पास नहीं पा रही। पर मेरी आत्मा अब भी तुम्हारे साथ है। मेरी ज़िंदगी चाहे जैसे बीते, मेरा साया हमेशा तुम्हारे साथ चलेगा।”

 

कुछ दिन बाद, सिया को सचमुच किसी और शहर भेज दिया गया। आदित्य ने उसे आख़िरी बार कैंपस में देखा। दोनों की आँखें मिलीं, लेकिन होंठों पर शब्द नहीं थे। वह नज़र ही उनका आख़िरी इकरार थी।

 

वक़्त बीत गया। कॉलेज ख़त्म हुआ। दोस्त अपने-अपने रास्तों पर चले गए। आदित्य ने अपनी पढ़ाई पूरी की, नौकरी की तलाश शुरू की। लेकिन उसके भीतर का खालीपन कभी नहीं भरा। हर जगह उसे सिया की परछाई दिखती—भीड़ में, ख़ामोशी में, सपनों में।

एक दिन उसने फिर से अपनी डायरी खोली और लिखा—
सिया, हम मिल नहीं पाए। लेकिन तुम्हारा नाम मेरी ज़ुबान पर, तुम्हारी याद मेरी रूह में हमेशा रहेगी। यह कहानी अधूरी नहीं है, यह अनंत है।”

 

सालों बाद, जब आदित्य एक छोटे से कस्बे में शिक्षक बन चुका था, उसने एक दिन अपने छात्रों को कवि ग़ालिब की पंक्तियाँ सुनाईं—
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।”

छात्रों ने ताली बजाई, लेकिन उसकी आँखें कहीं और थीं। हर शब्द उसे सिया की याद दिला रहा था।

 

सिया भी दूर किसी शहर में अपने परिवार के साथ बस गई थी। उसकी शादी हो चुकी थी, ज़िम्मेदारियाँ बदल चुकी थीं। लेकिन जब भी रात गहरी होती और आसमान में वही चाँद दिखता, वह खिड़की पर बैठकर फुसफुसाती—“आदित्य…”

उसके होंठों से नाम भले धीमे निकलता, पर दिल की गहराइयों में वह आवाज़ गूंजती रहती।

 

मोहब्बत का यही सच है—वह कभी मरती नहीं। समाज उसे बाँध सकता है, लोग उसे दोषी ठहरा सकते हैं, लेकिन दिल में जो आग जलती है, उसका साया अनंत होता है।

आदित्य और सिया का मिलन नहीं हुआ, पर उनकी मोहब्बत की परछाई कभी मिट नहीं पाई। वे दो जिस्म नहीं बन पाए, पर एक रूह की तरह ज़िंदा रहे—समय की धूल में, यादों की खुशबू में, और उन डायरी के पन्नों में, जिन्हें किसी ने कभी नहीं पढ़ा।

 

आदित्य ने अपने आख़िरी ख़त में लिखा था—
सिया, हमारा इश्क़ अधूरा नहीं है। यह पूरा है, क्योंकि यह साया बन चुका है। और साए का कोई अंत नहीं होता।”

सिया ने अपने आख़िरी पन्ने पर लिखा था—
आदित्य, जब भी मैं आईने में देखती हूँ, मुझे अपने पीछे तुम्हारा साया दिखाई देता है। शायद यही हमारा मिलन है—अनंत साया।”

 

इस तरह उनकी कहानी ख़त्म नहीं हुई। वह अधूरी रहकर भी मुकम्मल हो गई। मिलन और जुदाई के बीच जो धुंधला रास्ता होता है, वहीं उनका प्यार हमेशा ज़िंदा रहा।

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