Crime - Hindi

नीले जंगल का साया

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आरव सिंह ठाकुर


भाग 1: पहाड़ की पहली चीख

धुंध सुबह की खिड़की पर जम चुकी थी जैसे किसी ने रात भर चुपचाप रोते हुए आंसुओं से शीशा धो डाला हो मलाणा घाटी में सूरज का उदय हमेशा देर से होता है लेकिन उस दिन उसकी रौशनी जैसे खुद डर गई थी गांव के ऊपर जो नीला जंगल फैला था उसके बीचोंबीच एक चीख गूंजी थी जो इंसान की नहीं लगती थी पर इंसानों की दुनिया में ही गिरी थी सुभाष ठाकुर अपने लकड़ी के मकान की छत से धुआं निकालते चूल्हे की ओर देखते हुए उस आवाज़ को महसूस कर चुका था वो आवाज़ जिसने उसके शरीर में बीस साल पहले के वो सारे कंपन जगा दिए थे जब आखिरी बार किसी ने कहा था कि देवता गुस्से में हैं और गुस्से में देवता जब चुप होते हैं तो जंगल बोलता है गांव की बुज़ुर्ग महिलाएं सुबह की प्रार्थना में बैठी थीं जब काका हरिराम दौड़ते हुए मंदिर की ओर आया और हाँफते हुए बोला ऊपर जंगल में कुछ दिखा है एक लाश है शायद लेकिन उसका चेहरा नहीं है जैसे किसी ने उसे मिटा दिया हो सबकी निगाहें पुजारी मोहनलाल पर थीं जो उस वक्त शंख बजा रहे थे और आवाज़ थम गई थी सिर्फ़ पत्तों की सरसराहट बची थी जैसे वो भी उस चीख के बाद थक चुकी हो लाश देखने पहाड़ की ऊँचाई पर गांव के पाँच लोग गए थे जिनमें एक था पुलिस चौकी का नया कांस्टेबल अर्जुन जो शिमला से कुछ महीने पहले ही आया था और अपनी पहली पोस्टिंग को हिमालय की परीक्षा मान रहा था पर वो नहीं जानता था कि परीक्षा कभी-कभी उत्तर से पहले ही प्रश्न को खा जाती है जंगल की गीली ज़मीन पर जो लाश मिली वो एक औरत की थी लेकिन उसकी उम्र का अंदाज़ा लगाना नामुमकिन था उसका चेहरा सच में जैसे किसी ने खरोंच कर मिटा दिया हो उसकी उंगलियों पर पुरानी चूड़ियाँ थीं जो शहर की नहीं लगती थीं और उसकी बायीं कलाई पर एक छोटा टैटू था नागिन का जो गांव की किसी भी औरत के पास नहीं था अर्जुन ने तस्वीरें लीं लेकिन नेटवर्क की कमी से कुछ भेज नहीं पाया उसने गांव वालों से पूछा कोई गुम है क्या कोई बाहर गया था किसी त्योहार या मेले में और नहीं लौटा सबने ना में सिर हिलाया लेकिन उस ना के पीछे जो चुप्पी थी उसने अर्जुन को बेचैन कर दिया शाम तक लाश को गांव के स्कूल के बाहर खाली कमरे में रखा गया क्योंकि वहां एक पुरानी स्टोव की गंध रहती थी जो अब शव की बदबू से घुलने लगी थी डॉ रेखा जो तीन दिन के लिए अस्थायी शिविर में गांव आई थीं उन्हें जब अर्जुन ने शव दिखाया तो उनका पहला शब्द था ये इंसानी नहीं लगती और अर्जुन ने पूछा मतलब तो उन्होंने कहा इंसान की लाश है पर मरा वो डर से है चेहरे को कोई जानवर खा गया है पर शरीर पर कोई पंजे का निशान नहीं है सिर्फ़ आंखें थीं जो गायब थीं और कुछ नहीं उस रात गांव में बिजली चली गई और कुत्ते भौंकते रहे नीले जंगल की ओर जैसे उन्हें कुछ दिख रहा हो और गांव के बुज़ुर्गों ने पुराने ताले खोज कर घरों की खिड़कियाँ बंद कर दीं अगले दिन गांव के दक्षिण में पुरानी बावड़ी के पास एक और औरत मिली जो जिंदा थी लेकिन बोल नहीं पा रही थी उसकी जीभ नहीं थी और उसकी आंखों में जो डर था वो हवा में फैल गया अर्जुन ने उसे लेकर डॉक्टर रेखा के पास पहुंचाया और उन्होंने कहा ये PTSD नहीं है ये कुछ और है वो कुछ कहना चाहती थी पर आवाज़ का रस्ता बंद था जब उसकी हथेली पर उसने उंगली से लिखा S तो अर्जुन ने पूछा S क्या और उसने अगला अक्षर लिखा U फिर D फिर A और अचानक झटके से चेतना खो बैठी अर्जुन ने उस शब्द को देखा SUDA और कुछ समझ नहीं पाया लेकिन गांव के पुजारी ने जब वो शब्द सुना तो काँपते हुए बोला ये नाम फिर क्यों आया इस गांव में अर्जुन ने पूछा कौन सा नाम पुजारी बोला सूड़ा देवी वो जो तीस साल पहले जलकर मरी थी इसी जंगल में और जिसकी चीख आज भी नींद में सुनाई देती है और जिसकी आत्मा को हमने बांध दिया था मंदिर की जंजीरों से अर्जुन ने चौंककर पूछा अगर बांध दिया था तो ये सब क्या है पुजारी बोला किसी ने फिर से उसका नाम लिया है और जब नाम लिया जाता है तो उसका साया लौट आता है ये गांव की सबसे पुरानी कथा है लेकिन अर्जुन के लिए ये केस था कानून का डर का और हत्या का उसने सूड़ा देवी की फाइल निकलवाई जो तहसील में पड़ी थी उसमें सिर्फ़ एक तस्वीर थी एक लड़की जिसकी आंखें जैसी आज की लाश से मिलती थीं और जिसने अपने जलने से पहले गांव पर एक शाप छोड़ा था वो शाप था अगर कभी उसका नाम फिर लिया गया तो वो औरतों की आंखें ले जाएगी ताकि कोई उसे देख न सके और वो फिर ज़िंदा हो सके अर्जुन ने फाइल बंद की और पहाड़ों की ओर देखा जहां नीले जंगल की सूरत और भी गाढ़ी हो चुकी थी और हवा में धूप नहीं सिर्फ़ सवाल तैर रहे थे कि अगला कौन होगा और क्यों

भाग 2: वापसी की आँखें

सुबह की पहली किरण जैसे गांव के माथे पर नहीं आंखों के भीतर उतर रही थी मगर उस दिन जब नींद टूटी तो लगा किसी ने आंखों में आग रख छोड़ी है हर खिड़की के पीछे डर लिपटा हुआ था और गांव का हर चेहरा अपनी आंखें बचाता फिर रहा था वो लड़की जो जिंदा मिली थी अब गांव की श्मशान-शांति में अकेली बिस्तर पर पड़ी थी और उसकी आंखों में कुछ ऐसा था जिसे कोई देखना नहीं चाहता था अर्जुन सुबह-सुबह जब उसके पास पहुंचा तो देखा उसने अपनी आंखों को रुमाल से कसकर बांध रखा है जैसे डरती हो कि देखना नहीं बल्कि देखा जाना खतरनाक है डॉक्टर रेखा ने धीमे स्वर में बताया कि लड़की की हालत स्थिर है लेकिन जो शब्द उसने उंगली से लिखे थे SUDA उसका मतलब सिर्फ़ एक हो सकता है सूड़ा देवी और जब अर्जुन ने उसकी फाइल फिर से पलटी तो देखा उसमें जो आखिरी बयान दर्ज था वो था ‘मैं वापस आऊंगी’ और उसके नीचे लाल स्याही से लिखा था — “आंखों में लौटूंगी” गांव में अब लोग मंदिर नहीं जा रहे थे पुजारी मोहनलाल ने मंदिर के शंख पर लाल कपड़ा बांध दिया था जो संकेत था कि देवता अभी मौन हैं और उनका मौन क्रोध से भरा हुआ है अर्जुन ने थाने से मदद माँगी लेकिन मौसम खराब हो चुका था और हेल्पलाइन की हर कॉल बादलों के शोर में गुम हो रही थी नीले जंगल में लौटने का विचार भी गांववालों को आतंकित कर रहा था मगर अर्जुन को वहां जाना था क्योंकि उसने लाश की कलाई पर जो नागिन का टैटू देखा था वो उसके ज़ेहन में अब भी झूल रहा था और वो लड़की जो अब भी कुछ नहीं बोलती थी उसकी हथेली पर वही टैटू था सिर्फ़ थोड़ा धुंधला जैसे किसी ने समय के साथ मिटाने की कोशिश की हो वो टैटू कहीं न कहीं दोनों औरतों को जोड़ता था अर्जुन अकेला नीले जंगल की ओर बढ़ा उसके साथ सिर्फ़ उसका कैमरा और जेब में रिवॉल्वर था रास्ते में पेड़ कुछ ज्यादा ही चुप थे और धूप जैसी चीज़ उस दिन कोई अस्तित्व नहीं रखती थी एक मोड़ पर पहुंचकर उसने देखा एक पुराना लकड़ी का मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुका था लेकिन वहां ज़मीन पर कुछ पत्ते ऐसे गिरे थे जैसे किसी ने उन्हें छांटा हो और बीच में एक गोल आकृति बनी थी जिसमें सूखा रक्त जमा था अर्जुन ने तस्वीर ली और तभी उसकी आंखें धुंधलाने लगीं जैसे किसी ने कैमरे के लेंस पर छाया गिरा दी हो और तभी पीछे से एक फुसफुसाहट आई लौट जाओ वो पलटा कोई नहीं था लेकिन हवा में एक ऐसा नमक घुल चुका था जैसे रोती हुई किसी औरत के आंसू सड़कों को चाट चुके हों उसने साहस कर आगे कदम बढ़ाया और देखा एक पत्थर पर वही नागिन का निशान उकेरा हुआ है जैसे कोई उसे बता रहा हो कि तुम जिसको खोज रहे हो वो यहीं है अचानक ज़मीन हिलने लगी और एक पुराना ट्रंक पेड़ों के बीच से खुद-ब-खुद बाहर आया अर्जुन ने उसे खोलने की कोशिश की लेकिन उसमें लगा ताला किसी लोहे का नहीं था वो मिट्टी और राख से बना था जिसे तोड़ने की हिम्मत वही कर सकता था जो सूड़ा देवी का नाम दोहराए लेकिन गांव में कहा गया था कि अगर कोई उसका नाम बोले तो उसकी आंखें सबसे पहले जाएंगी अर्जुन ने जेब से उसकी फाइल निकाली और सामने रखकर उसके नाम को ज़ोर से पढ़ा सूड़ा देवी और अचानक ताले से धुआं निकलने लगा और ट्रंक खुल गया उसके अंदर एक जोड़ा आंखें थीं — सुखी, जली हुई, मगर अब भी कुछ देखती हुई अर्जुन ने पीछे देखा और वही लड़की खड़ी थी जिसने रुमाल से अपनी आंखें बांधी थीं अब रुमाल ज़मीन पर था और उसकी आंखें शून्य में नहीं अर्जुन के भीतर देख रही थीं उसने कहा वो मैं थी और अर्जुन पीछे हट गया उसने पूछा तुम कौन हो और लड़की ने उत्तर दिया सूड़ा सिर्फ़ एक नाम नहीं है वो एक पहाड़ी वंश की औरत थी जिसे मंदिर से निकाल दिया गया था क्योंकि उसने भविष्य देख लिया था और गांव ने उसे झूठा कहा और ज़िंदा जला दिया लेकिन उसका श्राप था वो लौटेगी किसी के शरीर में किसी की आंखों से और अब वो लौट चुकी है अर्जुन को कुछ समझ नहीं आया वो सिर्फ़ एक हत्या के सुराग खोज रहा था लेकिन अब वो खुद उस कहानी का पात्र बन चुका था जो कहानी अब तक सिर्फ़ हवा में गूंजती थी लड़की ने आगे कहा अगर तुमने ट्रंक खोल दिया है तो अब मेरी आंखों से गांव को देखो ये सब वही है जो मेरे साथ हुआ था और वो फिर होगा उसने हाथ फैलाया और अर्जुन की आंखें जैसे पत्थर हो गईं उसके सामने नीले जंगल में एक झलक दिखी एक और औरत चिल्ला रही थी और वो जंगल उसे निगल रहा था तभी लड़की बोली अगली वो होगी जिसने मेरा नाम फिर से पुकारा था और वो है डॉक्टर रेखा

भाग 3: रेखा की रात

रेखा ने हमेशा विश्वास किया था कि विज्ञान हर सवाल का उत्तर है लेकिन उस रात जब उसने अपनी टेबल पर सूड़ा देवी की आंखों की तस्वीरें देखीं और उसके ऊपर नीले रंग की परछाईं उतरती देखी तो पहली बार उसे अपनी ही सांसों पर शक हुआ गांव के उस छोटे से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में जहां वो तीन दिनों की शिविर सेवा पर आई थी वहां दीवारों पर लगी देवी-देवताओं की पुरानी तस्वीरें अचानक मुड़ने लगीं जैसे किसी ने उन्हें दिशा बदलने को कहा हो और तभी बाहर से एक चुप्पी भीतर घुस आई हवा चल रही थी पर खिड़कियाँ बंद थीं रेखा ने खिड़की खोली तो देखा सामने वही लड़की खड़ी थी जिसका नाम उसे आज तक नहीं पता था जिसकी जीभ कट चुकी थी और जो अब आंखों से कहानियाँ लिखती थी रेखा ने पूछा तुम यहां कैसे आई लड़की ने कहा मैं नहीं आई मुझे बुलाया गया है और जब रेखा ने पूछा किसने तो उसने कहा उसी ने जिसने तुम्हें भेजा है ये जांच करने के लिए नहीं बल्कि देखने के लिए कि क्या डर भी शरीर का हिस्सा बन सकता है और जब आंखें डर जाती हैं तो आत्मा कहाँ जाती है रेखा ने अपने मेडिकल बैग की ओर देखा लेकिन हाथ हिला नहीं और अचानक कमरे में रखी दवाओं की शीशियाँ एक-एक कर फूटने लगीं जैसे भीतर की दवाइयों ने विद्रोह कर दिया हो लड़की ने धीमे से कहा मैंने तुम्हारा सपना देखा है तुम भी आग से निकली हो तुम भी जल चुकी हो रेखा कांप गई क्योंकि उसने कभी किसी को नहीं बताया था कि बचपन में उसके घर में एक रात आग लगी थी और वो आधी रात तक अलमारी के पीछे छिपी थी जब उसकी माँ राख बन चुकी थी और उसकी आंखों में वही सूड़ा देवी वाली झलक थी रेखा ने पूछा तुम कौन हो लड़की ने मुस्कुराकर कहा मैं वही हूं जिसे तुमने छुआ था लेकिन महसूस नहीं किया मैं वही डर हूं जिसे तुमने केस स्टडी समझा था लेकिन वो तुम्हारा ही अक्स था फिर उसने अपनी आंखें रेखा के कंधे पर रख दीं और कहा अब तुम देखो देखो कि सूड़ा क्या देखती थी और रेखा की आंखों के आगे एक नीला धुआं भर गया धुएं में एक मंदिर दिखा जहां सूड़ा को बांधा गया था उसके गले में फूल नहीं कांटे थे और गांव के सबसे बड़े पुजारी ने उसके माथे पर राख रखी थी और कहा था तेरा नाम अब केवल हवा में रहेगा तू जीवित नहीं अब सिर्फ़ एक कहानी है रेखा चिल्लाई और आंखें बंद कर लीं लेकिन जब खोली तो देखा वो लड़की जा चुकी थी लेकिन खिड़की पर एक शब्द लिखा था राख और तभी मोबाइल की स्क्रीन जल उठी जिस पर सिर्फ़ एक फोटो थी अर्जुन की आंखें मगर उनमें अब pupils नहीं थे खाली थे शून्य थे जैसे किसी ने उन आंखों से समय चुरा लिया हो रेखा दौड़ी बाहर और देखा गांव के बीचोंबीच पेड़ के नीचे सब खड़े हैं और पुजारी मोहनलाल मंत्र पढ़ रहे हैं उनके सामने ज़मीन पर एक नीला गोल घेरा बना हुआ है जिसके बीच में अर्जुन बैठा है उसकी आंखें खुली हैं पर कुछ देख नहीं रहीं रेखा चिल्लाई इसे तुरंत अस्पताल ले चलो लेकिन कोई नहीं हिला सब मान चुके थे कि अर्जुन अब सिर्फ़ शरीर है आत्मा नहीं पुजारी ने कहा हमने मना किया था सूड़ा का नाम नहीं लेना चाहिए था और तुम सबने उसे ज़िंदा कर दिया अब गांव एक-एक कर उसकी भेंट चढ़ेगा और अगली बारी तुम्हारी है डॉक्टर रेखा क्योंकि तुमने उसकी आंखें पढ़ी थीं उसके दर्द को डेटा समझा था और वो अब तुम्हारी नब्ज से बोलेगी रेखा ने कहा मैं ये नहीं मानती लेकिन उसकी आवाज़ काँप रही थी और तभी अर्जुन के होठों से आवाज़ आई जो उसकी नहीं थी वो बोला तुम जलोगी लेकिन बाहर से नहीं भीतर से तुम्हारी हड्डियाँ ठंडी रहेंगी पर आत्मा तपेगी जैसे तपती थी सूड़ा जब उसे सच बताने से रोका गया था पुजारी ने तुरंत भभूत फेंकी और मंत्र तेज़ हो गए लेकिन तब तक हवा ठंडी हो चुकी थी और गांव की बत्तियाँ बुझ चुकी थीं सबने देखा रेखा की परछाईं अब दो थीं एक उसके साथ और एक उसके पीछे चलती हुई जो कभी मुड़कर नहीं देखती थी और धीरे-धीरे उसकी आंखें रात में नीली चमकने लगीं

भाग 4: परछाईं की पहचान

गांव अब आवाज़ों से नहीं परछाइयों से जागता था हर गली, हर मोड़, हर मंदिर की सीढ़ियों पर कोई था जो दिखता नहीं था मगर पीछा करता था और जब दिखता था तो आंखें झुकानी पड़ती थीं ताकि उसकी आंखें आपकी आंखें चुरा न लें रेखा अब उस डॉक्टर की तरह नहीं दिखती थी जो पहाड़ पर स्वास्थ्य सेवा के लिए आई थी बल्कि जैसे कोई पुराना पत्थर हो जो जंगल की चुप्पियों से तराशा गया हो उसकी आंखें अब सिर्फ़ देखती नहीं थीं, गिनती थीं — सांसों को, पांवों की चाल को, और उन सब नामों को जिन्होंने सूड़ा का नाम कभी चुपचाप लिया था या डर के मारे भुला दिया था अर्जुन अब भी ज़िंदा था लेकिन उसे देख कर किसी को यकीन नहीं होता था उसका शरीर चलता था, खाता था, आंखें खुली रहती थीं लेकिन वो कुछ देखता नहीं था जैसे उसकी आत्मा को किसी और की आंखों से बाहर निकाला गया हो और उसकी खाली पुतलियाँ रेखा को ढूंढती थीं गांव के एक कोने में, नीम के पुराने पेड़ के नीचे, एक बूढ़ी औरत मिली जिसे सब ‘भूरी दादी’ कहते थे वो अजीब बातें करती थी और बच्चों को डराने के लिए मशहूर थी लेकिन उस दिन जब रेखा उसके पास गई तो उसने कहा अब वो आई है ना वो लड़की जो आंखों से आग निकालती है और डर से पानी पीती है रेखा ने कहा मैं उसकी बात कर रही हूं जो हर किसी की आंखों में उतर आई है भूरी दादी ने अपनी छड़ी ज़मीन पर मारी और कहा सूड़ा देवी की आत्मा कभी गयी ही नहीं थी उसे बांधा गया था सिर्फ़ लेकिन जब कोई अपनी कहानी अधूरी छोड़ जाता है तो वो लौटता है और अबकी बार वो सिर्फ़ बदला नहीं लेना चाहती वो अपना नाम वापस चाहती है वो जो देवता छीन ले गए थे क्योंकि उसने देख लिया था भविष्य को जो गांव के पुरुषों की परंपरा से मेल नहीं खाता था रेखा ने कहा ये सब पुरानी बातें हैं अब समय बदल गया है भूरी दादी हँसी और बोली समय बदला है लेकिन पहाड़ नहीं यहां डर अब भी वंशानुगत है और सूड़ा अब सिर्फ़ आत्मा नहीं, परछाईं बन चुकी है जो हर औरत की देह में जगह खोज रही है ताकि दुनिया को दिखा सके कि आंखें सिर्फ़ देखने के लिए नहीं होतीं कुछ सच ऐसे होते हैं जो सिर्फ़ आंखों से कहे जा सकते हैं उस रात रेखा ने अपना चेहरा आईने में देखा और पहली बार उसकी परछाईं उससे अलग दिखी वो मुस्कुरा रही थी जबकि रेखा डर से जमी हुई थी आईने में पीछे की दीवार पर आग की लपटें थीं जबकि कमरे में एक दीपक तक नहीं जल रहा था और तब एक धीमी आवाज़ आई अब तुम मेरी कहानी पूरी करोगी अब तुम मेरी आंखें हो रेखा ने दरवाज़ा खोला और देखा अर्जुन खड़ा है लेकिन वो अर्जुन नहीं था उसकी आंखों में रेखा का अक्स नहीं सिर्फ़ एक जंगल था जो भीतर तक उतरता जा रहा था अर्जुन ने कहा चलो नीले जंगल में वो तुम्हें बुला रही है तुम्हारे नाम से और जब रेखा ने पूछा क्यों तो वो बोला क्योंकि तुम भी देख सकती हो और उसने तुम्हें चुना है ताकि जो सच दबा था वो हवा में दोबारा गूंज सके अगले दिन गांव की दो और औरतें लापता थीं और उनके घरों की दीवारों पर आंखों के निशान थे जैसे किसी ने अंगुलियों से खींच दिए हों अब गांव के लोग भागने की तैयारी कर रहे थे लेकिन भाग कर जाएंगे कहां जहां डर पहुंच चुका हो और उसकी परछाईं पहले ही रास्ता देख चुकी हो उसी रात रेखा, अर्जुन और भूरी दादी नीले जंगल की ओर बढ़े क्योंकि कहानी को अगर पूरा करना है तो उसकी जड़ों तक जाना होगा और जड़ें अक्सर वहीं होती हैं जहां कोई नहीं जाता नीला जंगल अब किसी और रंग का नहीं रहा था वो खुद एक जिंदा शरीर बन चुका था हर पेड़ की छाल पर आंखें थीं और हर पत्ते से सांसें निकलती थीं रेखा ने कहा मुझे उसकी कब्र दिखाओ भूरी दादी ने ज़मीन पर झुककर एक निशान दिखाया जहां सूड़ा को ज़िंदा जलाया गया था और कहा ये उसकी राख है लेकिन इस राख में सिर्फ़ राख नहीं, भविष्य भी है तभी अर्जुन ज़मीन पर बैठ गया और आंखें बंद कर लीं और जब खोलीं तो उसमें रेखा की आंखें थीं अब सच की परछाईं पहचान ली गई थी

भाग 5: आंखों की आग

जंगल की रात अब रात नहीं लगती थी वह जैसे किसी अनदेखे ताप से जल रही थी हवा में धुआं नहीं पर राख की गंध थी जो चमड़ी के भीतर तक उतरती जाती थी रेखा जब सूड़ा की राख के पास बैठी तो उसकी उंगलियों में खुद-ब-खुद कंपन होने लगी और उसकी आंखों के सामने जैसे एक दृश्य खुल गया आग की लपटें नीले रंग में बदल रही थीं और उस आग के बीच सूड़ा खड़ी थी न डर में न गुस्से में बल्कि एक ऐसे मौन में जिसमें सिर्फ़ स्त्रियों का इतिहास गूंजता था और जो चीखों में नहीं आंखों की चमक में उतरता है रेखा ने अपनी हथेली उस राख पर रख दी और उसी क्षण उसके भीतर एक ताप दौड़ा उसकी नसें जैसे जल उठीं और उसकी आंखों में कोई और देखने लगा था अर्जुन ने उसे देखा और कहा तुम अब वह हो जो देख सकती हो वह नहीं जिसे दिखाया जाता है रेखा उठी और जंगल की दिशा में चल पड़ी जहां हर पेड़ पर एक चेहरा उभरने लगा था वे चेहरे गांव की उन औरतों के थे जो या तो गायब थीं या पागल घोषित कर दी गई थीं हर चेहरा एक कहानी था और हर कहानी में एक बंद आंख थी रेखा उन आंखों को खोल रही थी बिना कुछ कहे सिर्फ़ अपनी आंखों से उन आंखों में ताककर और जब आखिरी पेड़ पर उसने आंखें मिलाईं तो उस पेड़ की जड़ें कांप उठीं और धरती का एक टुकड़ा फट गया उस फटी ज़मीन के भीतर एक चेहरा था सूड़ा का चेहरा नहीं बल्कि उसका असली चेहरा वो जिसे कोई कभी देख नहीं सका था जो दागों से नहीं बल्कि भविष्य की रेखाओं से बना था रेखा ने उसके माथे पर उंगली रखी और आंखें बंद कीं और देखा सूड़ा को मंदिर से निकालते हुए पुजारियों की भीड़ को आग जलाते हुए हाथों को और उस छोटी बच्ची को जो चुपचाप झाड़ियों में छिपी ये सब देख रही थी वो बच्ची खुद रेखा थी और तभी उसकी आंखें खुल गईं भूरी दादी ने धीमे से कहा अब तुझे सब याद है ना तू ही वो है जो बच गई थी और अब सूड़ा की कहानी पूरी करेगी रेखा ने सिर हिलाया और कहा अब गांव को देखना होगा आंखों से नहीं आत्मा से तभी पेड़ों के पीछे एक चीख गूंजी गांव से आती हुई वो एक औरत की चीख थी जो अब तक चुप थी रेखा दौड़ी और गांव में पहुंचते ही देखा मंदिर के सामने एक औरत खड़ी थी जिसकी आंखों से खून बह रहा था और भीड़ उसे घेर कर कह रही थी ये चुड़ैल है इसे बंद करो ये भी सूड़ा की तरह है लेकिन रेखा ने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और बोली ये सूड़ा नहीं ये मैं हूं और अगर किसी को बंद करना है तो वो तुम सब की आंखें हैं जो सच को देख नहीं पातीं सिर्फ़ डर में झांकती हैं भीड़ चुप हो गई क्योंकि पहली बार किसी ने आंखों में आंखें डालकर कहा था कि डर का इलाज आंख निकालना नहीं है बल्कि आंखों से देखना है रेखा ने मंदिर की ओर देखा और वहां की दीवार पर एक नई परछाईं थी सूड़ा की नहीं उसकी खुद की और वो परछाईं हँस रही थी गांव की औरतों ने धीरे-धीरे अपने दरवाज़े खोले और पहली बार बिना सिर झुकाए बाहर निकलीं नीले जंगल की दिशा में जहां अब पेड़ आंखें नहीं छिपाते थे बल्कि आंखों की आग में नहाए हुए थे भूरी दादी ने आखिरी बार कहा सूड़ा अब पूरी हो गई है अब वो डर नहीं है अब वो चेतावनी है कि हर बार जब किसी औरत को चुप किया जाएगा एक सूड़ा लौटेगी पर अब वो अकेली नहीं होगी उसके साथ उसकी कहानी होगी और उस कहानी की आंखें भी

भाग 6: शब्द जो जल गए

गांव के मंदिर की घंटियां उस दिन अपने आप नहीं बजी थीं किसी ने उन्हें छुआ नहीं था लेकिन हवा में जैसे किसी अनकहे वाक्य का कंपन था हर देह उसकी गूंज को सुन सकती थी पर कोई उसका अर्थ नहीं पकड़ पा रहा था शब्द जो बोले नहीं गए थे अब जल चुके थे मगर उनकी राख हवा में बाकी थी और उन शब्दों की धूल से गांव का आसमान भरता जा रहा था रेखा मंदिर के चौखट पर बैठी थी आंखें खुली मगर जैसे भीतर कोई दृश्य बार-बार चलता हो अर्जुन उसके पास था लेकिन अब उसका चेहरा पहले जैसा नहीं था उस पर अब एक नीला चिह्न उभर आया था एक छोटी नागिन की आकृति जो रेखा की हथेली पर भी था अब दोनों को समझ आ चुका था कि ये सिर्फ़ एक कहानी नहीं थी बल्कि एक श्राप की निरंतरता थी जो वंशों से शब्दों के भीतर बंद था और अब जब किसी ने पहली बार इन शब्दों को आंखों से पढ़ा तो वे जलने लगे गांव के बड़े-बुज़ुर्ग अब भी चुप थे लेकिन उनकी चुप्पी अब आस्था से नहीं अपराधबोध से भरी थी क्योंकि उन्हें याद था उस रात का जब सूड़ा ने मंदिर के भीतर खुद को जलाया था और कहा था मेरे शब्द मत छीनो मेरे पास कहने के लिए बस यही बचा है गांव के पंडितों ने उस समय निर्णय लिया था कि सूड़ा का नाम न लिया जाए उसकी कहानी न दोहराई जाए ताकि गांव की पवित्रता बनी रहे लेकिन पवित्रता की कीमत जब किसी की आत्मा होती है तो वो देवता नहीं बनती सिर्फ़ भय बन जाती है रेखा ने मंदिर के भीतर प्रवेश किया उसके भीतर धूप की गंध थी पर अब उसमें राख का स्वाद घुल गया था मंदिर के गर्भगृह में जहां शिवलिंग रखा था वहां दीवार पर एक पुराना श्लोक लिखा था लेकिन वो अब मिट चुका था उसकी जगह राख से बने अक्षर उभर आए थे जो रेखा के अलावा कोई नहीं पढ़ पा रहा था श्लोक था — ‘जो जलाया गया वो शब्द नहीं था, वो भविष्य था और भविष्य लौटेगा’ रेखा ने आंखें मूंदी और मंत्र की तरह इन शब्दों को दोहराया तभी मंदिर की छत पर बैठी एक चील ज़ोर से चिल्लाई और मंदिर की दीवारों पर दरारें पड़ने लगीं अर्जुन ने डरते हुए रेखा को पकड़ना चाहा लेकिन उसकी हथेली से जैसे आग निकल रही थी रेखा अब जल नहीं रही थी लेकिन उसकी देह से धुंआ उठ रहा था भीतर कोई और था कोई ऐसा जो बहुत दिनों से कुछ कहना चाहता था और अब कह रहा था रेखा ने आंखें खोलीं और बोली सूड़ा कभी जली नहीं थी उसने खुद को आग दी थी ताकि उसकी कहानी राख से बाहर निकले और अब ये गांव फिर कभी चुप नहीं रहेगा गांववालों ने मंदिर के बाहर उसे घेर लिया किसी ने पूछा अब क्या करोगी डॉक्टर और रेखा ने कहा अब उन शब्दों को वापस लाऊंगी जो तुम सबने मिलकर मिटा दिए थे हर कहानी को एक जगह दफनाया था अब वो सब कहानियाँ एक-एक कर लौटेंगी क्योंकि सूड़ा सिर्फ़ एक नाम नहीं था वो प्रतीक है हर उस आवाज़ का जिसे पूजा की आड़ में खामोश कर दिया गया था और अब मैं सूड़ा नहीं हूं मैं रेखा हूं लेकिन मेरी आंखों में उसकी आग है उसकी भाषा है और उसके शब्द हैं अब मैं उन शब्दों को लिखूंगी जलते अक्षरों से ताकि जब भी कोई लड़की इस मंदिर में आए तो वो डरे नहीं, जले नहीं, बोले — और उसकी आवाज़ राख न बने तभी मंदिर के पत्थरों से एक हल्की सी रोशनी फूटी जैसे भीतर कोई नन्हा दीपक अपने आप जल गया हो भूरी दादी जो पीछे खड़ी थी बोली अब तुझे वो किताब मिल जाएगी जो सूड़ा ने लिखी थी लेकिन जिसे गांव ने जमीन के नीचे गाड़ दिया था ताकि उसका सच कोई न पढ़ सके रेखा ने पूछा वो किताब कहां है दादी बोली वहीं जहां सबसे ज़्यादा डर है यानी मंदिर के सबसे पुराने तहखाने में जहां आज तक कोई नहीं गया क्योंकि वहां सूड़ा की आवाज़ कैद है अब तेरे शब्द उस आवाज़ को खोलेंगे

भाग 7: तहखाने की किताब

मंदिर के पीछे एक पत्थर की दीवार थी जिसे गांव के लोग ‘देवकोठी’ कहते थे वहां कोई नहीं जाता था क्योंकि कहा जाता था कि वहां देवता नहीं रुकते वहां वो छाया रुकती है जो देवता की अनदेखी है भूरी दादी की आंखें उस ओर देखते ही सिकुड़ गईं जैसे एक पुराना भय फिर से जी उठे रेखा ने धीरे से कहा किताब वहीं है ना भूरी दादी ने कहा हां सूड़ा ने वो किताब खुद अपने खून से लिखी थी हर पन्ना एक दिन का क्रोध था और हर शब्द एक रात की चुप्पी का फल अब जब तू उसकी आंखें बन गई है तो किताब तुझे बुलाएगी लेकिन एक बार उस तहखाने में उतर गई तो लौटना आसान नहीं होगा रेखा ने सिर झुका कर कहा मुझे लौटना नहीं सीखना है अर्जुन उसके साथ था लेकिन उसकी चाल में अब एक अनजानी ऊर्जा थी जैसे वो खुद भी किसी भूले हुए सच का हिस्सा हो गया हो उन्होंने दीवार की ईंटों को एक-एक कर हटाया जैसे कोई भूला दरवाज़ा याद में उतरता है भीतर अंधेरा था लेकिन रेखा की आंखों में नीली चमक थी और उस चमक से तहखाने की सीढ़ियाँ एक-एक कर रोशन होने लगीं नीचे उतरते वक्त हवा बदल गई वो भारी नहीं थी लेकिन उसकी सांसें गिनी जा सकती थीं जैसे कोई पुरानी स्त्री वहां बैठी हो और हर कदम की गिनती करती हो तहखाने में पहुंचकर उन्होंने देखा एक लोहे की संदूक रखी थी जिस पर पुरानी तांत्रिक आकृतियाँ बनी थीं और उन पर राख जमी थी अर्जुन ने संदूक को छूते ही हाथ पीछे खींच लिया उसकी उंगलियों से खून बहने लगा जैसे संदूक ने पहचान लिया हो कि हाथ अपने नहीं हैं रेखा ने आगे बढ़कर अपनी हथेली उस संदूक पर रखी और कुछ बुदबुदाई अचानक संदूक अपने आप खुल गया उसके भीतर एक मोटी किताब थी बिना कवर के, उसके पन्ने जल चुके थे लेकिन अक्षर अब भी जिंदा थे किताब को जैसे छूते ही रेखा के भीतर की सारी आग बुझ गई और उसकी आंखों में एक नीला धुआं भर गया उसने पहला पन्ना खोला और शब्द खुद-ब-खुद पढ़ने लगे ‘मेरा नाम सूड़ा है, और यह मेरी कहानी है जो किसी मंदिर में नहीं, इस राख में दफन है’ जैसे-जैसे वो पन्ने पलटती गई एक औरत की चीख भीतर गूंजती गई लेकिन वह डर की चीख नहीं थी वह विद्रोह की थी हर पन्ने पर गांव का एक नाम था किसी न किसी पुरुष का जिसने सूड़ा को चुप कराया था, उसकी कहानी छीनी थी, उसे मंदिर से निकाल बाहर फेंका था और हर नाम के नीचे एक तारीख थी और हर तारीख एक आंख से जुड़ी थी रेखा ने समझा कि ये किताब एक श्राप नहीं, एक दस्तावेज़ है हर औरत के भीतर जली उस आग का जिसमें वो अपनी भाषा खोजती है तभी तहखाने की दीवार पर हलचल हुई और एक आकृति उभर आई एक धुंधली परछाईं — सूड़ा की नहीं, बल्कि हर उस स्त्री की जिसने कभी कुछ कहना चाहा था और उसे खामोश कर दिया गया रेखा ने किताब उठाई और कहा अब ये शब्द ऊपर जाएंगे अब ये मंदिर की सीढ़ियों पर रखे जाएंगे जहां हर कोई उन्हें पढ़ सके गांव के मंदिर में पहली बार एक स्त्री ने पवित्र अग्नि जलाई और उस पर किताब रखी और सबको आमंत्रित किया कि वो आएं और पढ़ें जो उन्होंने कभी सुना ही नहीं था गांव के पुरुष पीछे हटे लेकिन औरतें आगे बढ़ीं उन्होंने किताब को छुआ और उनके स्पर्श से हर अक्षर एक नई चमक लेने लगा जैसे हर हाथ में एक अधूरी कहानी थी जो अब पूरी हो रही थी तभी मंदिर की घंटियां फिर खुद-ब-खुद बजी और नीले जंगल की हवा एक बार फिर हल्की हुई जैसे सूड़ा अब कहीं दूर से देख रही थी और मुस्कुरा रही थी जैसे कह रही हो अब मेरी आंखों को कोई जला नहीं सकता क्योंकि अब वे बहुत सी आंखों में हैं

भाग 8: चुप्पियों का सच

गांव अब बदलने लगा था पर वह बदलाव सड़कों या मकानों में नहीं दिखता था बल्कि वह आंखों की भाषा में था औरतें अब मंदिर में सिर्फ़ दीप नहीं जलाती थीं बल्कि किताब के उन पन्नों को पढ़ती थीं जिन्हें उन्होंने जन्मों से अनपढ़ छोड़ दिया था लेकिन यह बदलाव सबको स्वीकार नहीं था खासकर उन लोगों को जिन्होंने अपने पुरखों की परंपरा को देवता की इच्छा मान लिया था पुजारी मोहनलाल जो अब तक मंदिर का मुख्य द्वार थे अब खुद को दरवाज़े से बाहर महसूस करने लगे थे वह हर रोज़ मंदिर की घंटियों को थामे खड़ा रहता लेकिन अब घंटियाँ उसकी अनुमति से नहीं बजती थीं वह समझ नहीं पा रहा था कि यह आग अब किसके हाथों में है और जब उसने देखा कि रेखा मंदिर की वेदी पर बैठी है और औरतें उसके चारों ओर मंत्रों की तरह किताब के शब्द दोहरा रही हैं तो वह भीतर तक हिल गया उसने कहा यह धर्म नहीं है यह विद्रोह है और विद्रोह से देवता रूठते हैं रेखा ने उसकी ओर देखा और कहा अगर देवता सिर्फ़ चुप्पी से प्रसन्न होते हैं तो वो देवता नहीं होते, वो डर होते हैं और हम अब डर नहीं बाँचेंगे अब हम सच की पूजा करेंगे पुजारी ने कहा तुमने सूड़ा को जगाया है उसके नाम को फिर सांस दी है और अब जो होगा उसकी जिम्मेदार तुम हो रेखा ने उत्तर दिया सूड़ा को हमने नहीं जगाया, तुम्हारी चुप्पी ने उसे फिर जीवित किया है तुमने उसे झूठा ठहराया उसकी आंखें बंद कीं और अब जब वे खुली हैं तो तुम्हें उनका सच चुभ रहा है पुजारी ने मंदिर छोड़ दिया और गांव के ऊंचे चबूतरे पर जाकर बैठ गया जहां से उसने पहली बार सूड़ा को देखा था उस रात की याद में जब सूड़ा मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर अपनी किताब लिख रही थी और पुजारी ने उसे कहा था ये स्थान तुम्हारा नहीं है और सूड़ा ने कहा था शब्द जहां जन्में वही उनका स्थान होता है आज वही शब्द लौटे थे और पुजारी अब समझ गया था कि मंदिरों को सिर्फ़ ईंटें नहीं बनातीं उन्हें आवाज़ें बनाती हैं और जब आवाज़ें छीन ली जाएं तो मंदिर सिर्फ़ डर के किले बनते हैं उस रात रेखा ने गांव की सभी स्त्रियों को बुलाया मंदिर में किताब को बीच में रखा और एक दीप जलाया और कहा ये दीप सूड़ा का नहीं, हमारा है जो आज तक किसी ने बुझा दिया था अब हम उसे जलाएंगे और तब तक जलाएंगे जब तक किसी और की कहानी राख न बन जाए भूरी दादी ने आगे बढ़कर कहा जब सूड़ा पहली बार मंदिर में आई थी तब मैंने ही उसे डराया था मैं भी परंपरा के डर में थी लेकिन आज मैं पहली बार सूड़ा की आंखों में देख पा रही हूं क्योंकि अब वह सिर्फ़ एक स्त्री नहीं, हर स्त्री की आंख बन चुकी है अर्जुन जो अब तक चुप था उसने कहा रेखा तुमने सिर्फ़ सूड़ा की कहानी नहीं जानी बल्कि उसकी आत्मा को समय से आज़ाद किया है और अब ये गांव फिर कभी उसकी आंखों को नहीं जला पाएगा तभी मंदिर के बाहर खड़ी एक छोटी बच्ची ने पूछा दीदी क्या मैं भी ये किताब पढ़ सकती हूं रेखा मुस्कुराई और कहा जब तुम ये पढ़ लोगी तो शायद तुम एक और सूड़ा को जन्म दोगी जो अब कभी चुप नहीं रहेगी और मंदिर की छत पर बैठी चील फिर से चिल्लाई लेकिन इस बार उसकी चिल्लाहट में डर नहीं, घोषणा थी कि अब चुप्पियों का समय बीत चुका है और हर आंख अब एक नई कहानी कहने को तैयार है

भाग 9: देवता जो डर गए

गांव में वो सुबह पहली बार आई थी जब मंदिर की घंटियाँ किसी पुजारी के हाथ से नहीं, एक स्त्री के स्पर्श से बजी थीं और उस आवाज़ में भय नहीं था बल्कि एक ऐसा कंपन था जो सच को भीतर तक छूता था लेकिन हर बदलाव के पीछे एक विद्रोह होता है और हर विद्रोह के सामने एक शक्ति जो डर जाती है जब गांव के पुराने महंत जिन्हें लोग ‘महादेव बाबा’ कहते थे वर्षों की तपस्या के बाद नीचे उतरे और उन्होंने सुना कि मंदिर की अग्नि अब सूड़ा की किताब से प्रज्ज्वलित हो रही है तो उनके होंठ सूख गए उन्होंने कहा देवता तो अब भी यहीं हैं लेकिन जब किसी स्त्री की आंखों से धर्म को देखा जाता है तो देवता डर जाते हैं क्योंकि उनकी मूर्तियाँ सदीयों से सिर्फ़ भक्ति के आंसू देखती आई हैं विद्रोह की आग नहीं महंत बाबा ने पुजारी मोहनलाल को बुलाया और पूछा क्या तुमने उन्हें रोका नहीं और पुजारी ने सिर झुका कर कहा नहीं बाबा अब कोई रोक नहीं सकता क्योंकि अब सूड़ा की कहानी एक आत्मा नहीं, एक परंपरा बन चुकी है और अब हर औरत के भीतर वो आंखें हैं जो कभी सूड़ा के पास थीं बाबा ने कांपते स्वर में कहा अगर ये आग फैल गई तो मंदिर अब मंदिर नहीं रहेगा वो आग का घर बन जाएगा पुजारी ने उत्तर दिया बाबा मंदिर अगर आग से डरे तो वो कभी प्रकाश का स्त्रोत नहीं बन सकते उस रात महंत बाबा ने मंदिर के भीतर एक विशेष पूजा रखी जिसमें केवल पुरुषों को बुलाया गया उनका उद्देश्य था उस किताब को मिटा देना जो अब तक देवता की जगह ले चुकी थी लेकिन जब वे किताब तक पहुँचे तो देखा उसका हर अक्षर दीवार पर छप चुका था और मिटाना अब मिटाने जैसा नहीं रह गया था उन्होंने मंत्र पढ़े, राख फेंकी, जड़ी-बूटियाँ जलाईं लेकिन मंदिर की दीवारों से एक स्त्री की हँसी गूंजने लगी एक ऐसी हँसी जो न उपहास थी न क्रोध बल्कि उस आत्म-विश्वास की थी जो जन्म ले चुका था अब देवता की मूर्ति भी कांपती सी लगी जैसे वह खुद असहाय हो चुकी थी उस रात जब महंत बाबा मंदिर की छत पर बैठे थे तो उन्हें एक सपना आया सपने में सूड़ा खड़ी थी उनके सामने उसने कहा मैंने तुम्हें कभी श्राप नहीं दिया बाबा मैंने तो बस कहानी सुनानी चाही थी लेकिन तुमने मेरी आवाज़ को पाप कहकर बंद कर दिया आज जब वही आवाज़ लौट आई है तो डर मतो सुनो उसे क्योंकि अगर एक देवता सच से डर जाए तो वो पूजनीय नहीं रहता बस प्रतीक बनकर रह जाता है सुबह बाबा ने मंदिर की चाबी रेखा को सौंप दी और कहा अब ये तुम्हारा है और मैं वापस अपनी गुफा में जा रहा हूं क्योंकि मेरी तपस्या अब पूरी हुई है मैं जान गया हूं कि देवत्व आंखों की बंदी नहीं है वो तो वह है जो आंख खोल सके रेखा ने किताब को फिर खोला और मंदिर की मूर्ति के पास रख दिया उसने कहा आज से ये मंदिर सिर्फ़ प्रार्थना का नहीं कहानी का भी केंद्र होगा यहां जो भी आएगा वो अपनी कहानी कहेगा चाहे वो कितना भी छोटा हो, टूटा हो, अधूरा हो क्योंकि सूड़ा ने हमें सिखाया है कि अधूरी कहानियाँ भी कभी-कभी सबसे ज़्यादा जरूरी होती हैं गांव के लोग अब मंदिर में आने लगे लेकिन वे अब सिर झुका कर नहीं आते वे आंखों में आंखें डाल कर आते और वहां बैठ कर किताब के पन्नों में अपने चेहरे खोजते उस दिन देवता भी पहली बार मुस्कुराए क्योंकि अब वे डर से नहीं, स्वीकार से देखे जा रहे थे

भाग 10: नीले जंगल का साया

वो सुबह एक नई भाषा लेकर आई थी ना संस्कृत की ना पहाड़ी बोली की वो उन चुप्पियों की भाषा थी जो सदियों से स्त्रियों के भीतर उगती आई थीं और आज मंदिर के आंगन में खुलकर बोल रही थीं सूड़ा की किताब अब सिर्फ़ पन्नों तक सीमित नहीं थी वो हर आंख में हर दीवार पर हर दीप के भीतर और हर चूल्हे की आग में समा चुकी थी नीले जंगल की ओर अब कोई डर कर नहीं देखता था बल्कि उस ओर पगडंडियाँ बनने लगी थीं जहां पहले सिर्फ़ पेड़ों की गंध और चीखों की परछाइयाँ थीं अब वहां कहानियों के फूल खिलने लगे थे रेखा रोज़ मंदिर में बैठती थी किताब उसके सामने खुली होती और गांव की औरतें एक-एक कर आतीं अपनी बात कहतीं कुछ रोतीं कुछ हँसतीं कुछ सिर्फ़ चुप रहतीं लेकिन उनकी चुप्पियाँ अब भारी नहीं लगती थीं वो भी एक भाषा बन चुकी थीं अर्जुन अब पूरी तरह लौट आया था लेकिन अब वो पहले जैसा नहीं था उसकी आंखों में एक अलग सी शांति थी जैसे उसने मृत्यु के साए से गुजर कर जीवन का दूसरा रंग देखा हो वो मंदिर के पास एक छोटी सी लाइब्रेरी बना रहा था जिसमें सिर्फ़ औरतों की कहानियाँ रखी जाएंगी भूरी दादी अब कम बोलती थीं लेकिन जब भी कोई लड़की मंदिर में झिझकते हुए प्रवेश करती वो धीरे से कहती अंदर जा बेटी वहां अब तुझे जलाया नहीं जाएगा वहां तुझे सुना जाएगा गांव के बाहर एक पत्रकार आया था जिसने सब सुना और शहर में जाकर एक रिपोर्ट छापी शीर्षक था “एक गांव जहां देवता अब सुनते हैं” शहर में लोग हैरान हुए किसी ने कहा ये अंधविश्वास है किसी ने कहा ये औरतों का पागलपन है लेकिन सूड़ा की आग अब जंगल से शहर की हवा में भी घुल चुकी थी एक दिन जब रेखा मंदिर की किताब बंद कर रही थी तो एक छोटी बच्ची आई और बोली दीदी क्या मैं भी एक कहानी लिख सकती हूं रेखा ने मुस्कुरा कर कहा हाँ और उसने अपनी कॉपी से एक पन्ना फाड़ा और किताब के बीच में रख दिया वो पन्ना कोरा था लेकिन उस पर एक छोटी सी आंख बनी थी बिना पुतली की सिर्फ़ एक रेखा जैसी और रेखा समझ गई कहानी शुरू हो चुकी है सूड़ा की नहीं अब किसी और की शायद तुम्हारी शायद मेरी शायद उस बच्ची की जिसने पहली बार अपनी आंख खुद बनाई गांव की घंटियाँ अब सूरज से पहले बजती थीं और हर स्वर में एक वादा होता था हम अब चुप नहीं रहेंगे नीले जंगल अब भी नीले थे लेकिन अब वहां डर का साया नहीं था वहां सिर्फ़ एक याद थी एक साया था जो हर उस लड़की को देखता जो आंखों में खुद को पहचानने लगी थी और जब रात होती तो हवा में एक हँसी तैरती सूड़ा की हँसी नहीं अब गांव की हँसी जो जंगल में गूंजती थी जैसे कह रही हो हाँ मैं वो साया हूं जो अब कभी नहीं मिटेगा क्योंकि अब हर आंख मेरी है और हर कहानी मेरी भाषा

समाप्त

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