Hindi - क्राइम कहानियाँ

धार्मिक भ्रम

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विक्रम यादव


राजस्थान के एक शांत और ऐतिहासिक मंदिर नगर विश्णुप्रिया की गलियों में सुबह की ताजगी फैली हुई थी। देवांश कुमार, एक युवा और ऊर्जावान पत्रकार, अपनी यात्रा की शुरुआत करने के लिए यहाँ आया था। उसे इस बार अपने प्रतिष्ठित समाचार पत्र के लिए एक रिपोर्ट तैयार करने का कार्य सौंपा गया था। हर साल यहाँ बड़े धूमधाम से विश्णु मंदिर का वार्षिक उत्सव मनाया जाता था, और देवांश को इस उत्सव की कवरेज करनी थी। इस प्रकार के धार्मिक आयोजन हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रहे थे, लेकिन देवांश का ध्यान कुछ और ही था। उसने इस यात्रा से न केवल एक सुंदर रिपोर्ट की उम्मीद की थी, बल्कि वह रहस्य और अपराध की किसी छुपी हुई परत को भी खोजना चाहता था। शहर की सांस्कृतिक विविधता और प्राचीन धार्मिक धरोहर को वह हमेशा से दिलचस्पी से देखता था, लेकिन विश्णुप्रिया का माहौल कुछ अलग था। गहरे पहाड़ों के बीच बसी यह नगर अपनी सुंदरता और धार्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध थी, लेकिन यहाँ के लोग इसे एक तरह के अंधविश्वास और रहस्यों से भी जोड़ते थे। देवांश को इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं थी, परंतु उसे यह एहसास हुआ कि कुछ तो है जो यहाँ छुपा हुआ है। नगर में कदम रखते ही, उसने वातावरण में एक विचित्र सी नीरवता पाई। यह वही स्थान था जहाँ लोग धार्मिक अंधविश्वासों के तहत गहरे राज़ छुपाए रखते थे, और देवांश को यह पूरी उम्मीद थी कि यही रहस्य उसका पीछा करेगा।

विश्णुप्रिया की गलियाँ धीरे-धीरे उस पर अपनी छाप छोड़ने लगीं। मंदिर की महिमा, उसकी प्राचीन वास्तुकला और धार्मिक विश्वासों का प्रभाव वहां के लोगों की दिनचर्या पर गहरे रूप से पड़ा था। देवांश ने पहले दिन मंदिर के आसपास के बाजारों में घूमते हुए वातावरण को महसूस किया। लोगों की बातें, उनके चेहरे, उनकी आँखों में छिपे डर और श्रद्धा के मिश्रण ने उसे अजीब महसूस कराया। एक पुराने दुकानदार से बात करते हुए, उसने सुना कि कुछ दिनों पहले से ही यहाँ के कुछ महत्वपूर्ण लोग गायब हो गए थे। इन लोगों में धार्मिक विद्वान, मंदिर के पुजारी और नगर के प्रमुख व्यक्ति शामिल थे। इस घटना से नगर में हलचल मच गई थी, लेकिन पुलिस के पास इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं था। खास बात यह थी कि गायब होने वाले लोग किसी भी प्रकार के संघर्ष या अपहरण के शिकार नहीं हुए थे। उनका लापता होना जैसे एक रहस्य बन चुका था। देवांश ने और अधिक जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की, लेकिन हर कोई चुप्पी साधे हुए था। कुछ लोग तो यह तक कहने लगे कि यह सब मंदिर के देवताओं के क्रोध का परिणाम हो सकता है। यह अंधविश्वास था, लेकिन देवांश ने इसे नकारा नहीं किया। वह जानता था कि एक पत्रकार के रूप में, उसे इस मामले की तह तक जाना था, चाहे वह कुछ भी हो। पहले दिन की रिपोर्टिंग में वह बस सामान्य घटनाओं तक ही सीमित रहा, लेकिन भीतर एक जिज्ञासा पनप रही थी कि क्या यह सब सच में संयोग था या फिर कुछ और था जो उसकी समझ से बाहर था।

वह अगले दिन स्थानीय पुलिस स्टेशन गया, जहां उसे इंस्पेक्टर राजवीर सिंह से मुलाकात हुई। इंस्पेक्टर ने उसे बताया कि गायब हुए लोग किसी अन्य स्थान पर नहीं मिले थे, और उनके बारे में किसी तरह के सुराग भी नहीं मिले थे। यह घटना एक सामान्य अपहरण या हत्या का मामला नहीं थी, बल्कि कुछ अजीब था। हालांकि पुलिस की ओर से ज्यादा कुछ नहीं किया जा रहा था, लेकिन इंस्पेक्टर को शक था कि यह मामला कहीं न कहीं मंदिर के आंतरिक गतिविधियों से जुड़ा हुआ हो सकता है। देवांश को यह बात और भी दिलचस्प लगी, क्योंकि वह जानता था कि धार्मिक स्थानों के आसपास होने वाली घटनाएँ हमेशा से कुछ रहस्यमय होती हैं। इसके बाद वह मंदिर के अंदर गया, और वहाँ के प्रमुख पुजारी पंडित शंकर से मिला। पंडित शंकर एक उम्रदराज और खामोश व्यक्ति थे, जिनके चेहरे पर एक गहरी गंभीरता थी। उनका व्यवहार भी अजीब था, जैसे वह किसी गहरे राज़ को छुपाए हुए थे। देवांश ने उनसे कुछ सवाल पूछे, लेकिन पंडित ने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया। उनका कहना था कि यह सब धार्मिक क्रियाएँ और देवताओं का काम है, और जो कुछ भी हो रहा है, वह उन्हीं की इच्छाओं का परिणाम है। देवांश ने पंडित की बातें सुनीं, लेकिन उसे यह सब मात्र अंधविश्वास और आस्थाओं की बातें लगीं। वह मानता था कि कोई वास्तविक कारण जरूर होगा, जो इन घटनाओं के पीछे छुपा था। उसी दिन उसने तय किया कि वह इस मामले की तह तक जाएगा और जो कुछ भी हो रहा है, उसकी सच्चाई सामने लाएगा। यह शुरूआत थी एक ऐसी यात्रा की, जो उसे न केवल इस नगर के अंधविश्वास और पाखंड से जोड़ने वाली थी, बल्कि उसके जीवन को भी पूरी तरह से बदलने वाली थी। देवांश अब यह जानने के लिए तैयार था कि विश्णुप्रिया के भीतर किस प्रकार का रहस्य छुपा था और वह अपने सामने आने वाली अंधेरी सच्चाइयों से क्या समझ पाएगा।

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देवांश ने दिनभर के अनुभवों और जानकारी को एकत्र किया और रात को होटल लौटते हुए उसके मन में कई सवाल घूम रहे थे। विश्णुप्रिया की गलियों में जो रहस्यमय सन्नाटा था, वह अब उसे और भी गहरा लगने लगा था। गायब हुए लोगों के मामले ने उसकी जिज्ञासा को और बढ़ा दिया था। रात का समय आया तो उसने सोचा कि अब तक जो उसने सुना था, उसका मोल और गहराई से विश्लेषण करना जरूरी था। अगली सुबह, उसने फिर से स्थानीय पुलिस स्टेशन जाने का मन बनाया। इंस्पेक्टर राजवीर सिंह से मिलने के बाद वह तय कर चुका था कि वह इस केस की असल सच्चाई तक पहुँचेगा। इंस्पेक्टर ने पहले भी कहा था कि यह मामला सिर्फ गायब होने का नहीं था, बल्कि कहीं न कहीं कुछ गहरे और छुपे हुए तत्व इसमे शामिल थे। पुलिस को इस मामले में काफी समय हो चुका था, लेकिन वह किसी ठोस सबूत तक नहीं पहुँच पाए थे। देवांश ने अपने पत्रकारिता कौशल को काम में लिया और धीरे-धीरे इस गुमशुदगी के पीछे के राज की खोज शुरू की। सबसे पहले उसने गायब हुए लोगों की सूची बनाई और देखा कि इनमें से अधिकांश लोग मंदिर से जुड़े हुए थे—कहीं न कहीं एक कड़ी थी, जो उसे मंदिर और इन गायब हुए व्यक्तियों से जोड़ रही थी।

गायब होने वाले व्यक्ति अधिकतर मंदिर के प्रमुख पुजारियों, धार्मिक विद्वानों और स्थानिक प्रभावशाली व्यक्तियों में से थे। देवांश ने पाया कि सभी गायब हुए लोग किसी न किसी रूप में मंदिर के आंतरिक कार्यों से जुड़े हुए थे। उन सबके बीच एक और अजीब बात थी, वह यह कि इन गायब होने के मामलों के बारे में कोई भी खुले तौर पर बात करने को तैयार नहीं था। यहाँ के लोग सिर्फ यह कहते थे कि यह घटनाएँ देवताओं के क्रोध या आशीर्वाद का परिणाम हो सकती हैं। लेकिन देवांश को यह बातें सिर्फ एक तरह की चुप्पी और डर का परिणाम लग रही थीं। उसने अब यह तय किया कि वह लोगों से न सिर्फ मंदिर के बारे में, बल्कि उस जगह के इतिहास और धार्मिक परंपराओं के बारे में भी अधिक जानकारी लेगा। एक दिन, देवांश ने शहर के एक वृद्ध दुकानदार रामनिवास जी से मुलाकात की, जो कई सालों से उस क्षेत्र में था और पुराने किस्से सुनाता था। रामनिवास जी के अनुसार, मंदिर से जुड़ी कुछ घटनाएँ और कहानियाँ सदियों पुरानी थीं, जिन्हें लोग आज भी श्रद्धा और भय के साथ याद करते थे। वह बताने लगे कि पहले के समय में जब भी मंदिर में कोई नया पुजारी आता था, तो उसके बाद कुछ अजीब घटनाएँ घटने लगती थीं। यह घटनाएँ अक्सर गुमशुदगी, रहस्यमयी दुर्घटनाएँ और कभी-कभी तो लोग खुद भी अपनी जान गंवा देते थे। रामनिवास जी के शब्दों में कुछ तो था, जिसने देवांश को और भी ज्यादा सोचने पर मजबूर कर दिया।

एक दिन देवांश ने मंदिर के अंदर जाने का फैसला किया, क्योंकि यह स्थान अब उसके लिए किसी गहरी जांच का हिस्सा बन चुका था। वह पंडित शंकर से मिलने के लिए फिर से मंदिर गया। इस बार पंडित शंकर से बातचीत करने का तरीका कुछ अलग था। देवांश ने उनसे सवाल किए, लेकिन पंडित शंकर ने उन्हें हर बार इधर-उधर घुमा दिया। एक क्षण के लिए, देवांश को लगा जैसे पंडित शंकर उससे कुछ छुपा रहे हैं। वह जानता था कि पंडित शंकर एक ही तरह के व्यक्तित्व के थे—शांत, गंभीर और गहरे धार्मिक विश्वासों वाले। उनकी आँखों में एक रहस्य था, जो देवांश की समझ से बाहर था। देवांश ने पंडित शंकर के कमरे की ओर देखा, और उसे अचानक महसूस हुआ कि कुछ गहरे राज़ यहाँ के धार्मिक आचार-व्यवहार से जुड़े हैं। देवांश ने सोचा कि यदि उसे इस मामले की तह तक पहुँचना है, तो उसे पंडित शंकर के आसपास और मंदिर के इतिहास को और अधिक जानना होगा। उस दिन के बाद, देवांश ने फैसला किया कि वह इस बारे में अधिक जानने के लिए खुद को पूरी तरह से समर्पित करेगा। उसके मन में यह विचार आया कि क्या यह एक साधारण गुमशुदगी का मामला था, या फिर कहीं न कहीं इसमें किसी धार्मिक समूह या अंधविश्वास से जुड़ा हुआ कोई बड़ा खेल चल रहा था।

उस रात देवांश ने मंदिर के आसपास के क्षेत्र का दौरा करने का सोचा। वह रात के अंधेरे में मंदिर के अंदर घुसा और देखा कि वहाँ कुछ न कुछ तो था, जो साधारण नहीं था। अचानक, उसे एक अजीब सी आवाज सुनाई दी। वह आवाज कुछ इस तरह से थी जैसे किसी व्यक्ति ने गहरे गर्भ से निकलकर मंदिर के अंदर किसी गहरी बात को कहने की कोशिश की हो। देवांश को डर महसूस हुआ, लेकिन उसने अपने मनोबल को मजबूत किया और आवाज के स्रोत की ओर बढ़ने लगा। उसकी आँखें अंधेरे में किसी साए को तलाश रही थीं, लेकिन जब वह आवाज तक पहुँचा, तो वह किसी और नहीं, बल्कि उस मंदिर के पुराने पुजारी की आवाज थी। पुजारी की आवाज में एक गहरी तन्हाई थी, जैसे वह किसी रहस्यमय आशीर्वाद की बात कर रहा हो, जो अब तक देवांश के समझ से बाहर था। एक पल के लिए, देवांश को यह एहसास हुआ कि वह सिर्फ एक रिपोर्टर नहीं था, बल्कि एक व्यक्ति था जो अब एक बेहद खतरनाक और रहस्यमय खेल में फंसा हुआ था।

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देवांश को यह समझने में देर नहीं लगी कि वह सिर्फ एक छोटे से रहस्य की तलाश में नहीं था, बल्कि वह एक विशाल धार्मिक और सामाजिक जाल में फंस चुका था। मंदिर के आंतरिक कार्यों को लेकर उसके मन में और अधिक सवाल पैदा हो रहे थे। वह अब इस मामले को सिर्फ पत्रकारिता के दृष्टिकोण से नहीं देख रहा था, बल्कि उसे यह एहसास हो गया था कि इस मामले में किसी गहरे षड्यंत्र की संभावना थी। पहले तो उसे यह सब सिर्फ अंधविश्वास और अवैज्ञानिक लग रहा था, लेकिन जब उसने मंदिर की गहराई में छुपे राज़ को खंगालना शुरू किया, तो उसकी सोच बदलने लगी। वह जान चुका था कि यहाँ सिर्फ धार्मिक आयोजन और पूजा नहीं हो रही थी, बल्कि यह एक सशक्त काले धंधे का केंद्र बन चुका था। उसने पाया कि मंदिर के पुजारियों और श्रद्धालुओं के बीच कुछ ऐसा था, जो सामान्य रूप से दिखाई नहीं देता था—एक गहरी साजिश। मंदिर के गहरे आंतरिक कार्यों में हर कोई अपनी जगह बना चुका था, और देवांश की उपस्थिति वहाँ एक असामान्य तत्व बन चुकी थी। अब, वह अपनी रिपोर्टिंग के उद्देश्य से कहीं अधिक गहरे सत्य को उजागर करने की ओर बढ़ चुका था।

देवांश ने रात के अंधेरे में मंदिर की किताबों और दस्तावेजों की ओर रुख किया। उसने उन प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन किया, जो मंदिर के इतिहास और उस क्षेत्र की धार्मिक गतिविधियों के बारे में बताते थे। एक दिन, वह एक पुराने पुस्तकालय में पहुँचा, जहाँ मंदिर से जुड़े कुछ बहुत ही पुराने और रहस्यमय दस्तावेज रखे हुए थे। इनमें से कुछ किताबें ऐसी थीं, जो पहले कभी नहीं देखी गई थीं। देवांश ने एक किताब खोली, जो पुरानी संस्कृत में लिखी हुई थी और जिसके पन्नों पर समय के साथ धुंधली हो चुकी शब्दावली थी। इस किताब में मंदिर के बारे में बहुत ही चौंकाने वाले तथ्य थे। किताब में लिखा था कि मंदिर की स्थापना के समय ही इसके आसपास कई रहस्यमयी घटनाएँ घटी थीं। उन घटनाओं में बताया गया था कि इस मंदिर का उद्देश्य केवल पूजा और भक्ति नहीं था, बल्कि एक विशेष गहरे उद्देश्य को पूरा करना था, जिसके तहत एक अत्यंत शक्तिशाली धार्मिक समूह अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए मंदिर का उपयोग कर रहा था। वह समूह मंदिर के नाम पर अवैध कामों को अंजाम दे रहा था। देवांश ने पढ़ा कि मंदिर के आंतरिक साजिश में शामिल लोग दीन-हीन श्रद्धालुओं का शोषण करते थे और उन्हें गहरे अंधविश्वास में डुबोकर उनकी आस्था का गलत फायदा उठाते थे। इन दस्तावेजों ने देवांश को यह विश्वास दिला दिया कि मंदिर में कुछ तो ऐसा है, जो उसकी समझ से बाहर था। यह केवल धार्मिक विश्वास का मामला नहीं था, बल्कि एक पूरी साजिश थी, जो अब उसकी नजरों के सामने आ रही थी।

इस सब के बावजूद, देवांश के मन में अभी भी यह सवाल था कि वह इसे सार्वजनिक रूप से कैसे उजागर करेगा। उसके सामने अब दो रास्ते थे—एक तो यह कि वह मंदिर की गहरी सच्चाई को बाहर ला सकता था, जिससे पूरी नगर का धार्मिक आधार हिल सकता था, और दूसरा, वह चुप रहकर अपने जीवन को सुरक्षित रख सकता था। लेकिन उसने पहली बार महसूस किया कि उसके पास कोई और रास्ता नहीं था। उसे इस मामले की सच्चाई को सामने लाना ही था। एक रात, देवांश ने पंडित शंकर से मुलाकात करने का निर्णय लिया, क्योंकि वह जानता था कि पंडित शंकर से वह कुछ और राज़ उगलवाने में सफल हो सकता था। पंडित शंकर ने पहले तो उसकी बातों को नजरअंदाज किया, लेकिन देवांश ने उन्हें यह बताया कि उसके पास अब कुछ ठोस साक्ष्य हैं, जो उनकी गतिविधियों का पर्दाफाश कर सकते हैं। पंडित शंकर के चेहरे पर हल्की सी शिकन आई, और उनके मन में पहले से ही डर था कि देवांश सच की ओर बढ़ रहा था। पंडित शंकर ने देवांश से कहा, “तुम जो कुछ भी देख रहे हो, वह सिर्फ एक हिस्सा है। तुम समझ नहीं पाओगे कि ये सब क्यों हो रहा है।” देवांश ने पंडित से पूछा, “क्या यह सब लोगों की आस्था का गलत फायदा उठाने के लिए किया जा रहा है?” पंडित शंकर ने गहरी साँस ली और कहा, “यह सिर्फ आस्था का मामला नहीं है, देवांश। यह शक्ति और नियंत्रण का मामला है।” यह बात सुनकर देवांश का माथा चकरा गया, लेकिन उसने यह तय किया कि वह अब इस गहरे अंधेरे को पूरी तरह से उजागर करेगा। उसके पास अब सारी जानकारी थी, और उसके सामने सिर्फ एक ही रास्ता था—सच्चाई को बाहर लाने का।

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देवांश ने अब तक जितना भी सीखा था, वह सब उसके लिए एक रहस्य की तरह था। लेकिन एक बात जो उसे और भी उलझा रही थी, वह थी प्रिया, वह युवा लड़की, जिसे उसने कुछ दिनों पहले मंदिर के आसपास देखा था। प्रिया की आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वह कुछ जानती हो, लेकिन कुछ कहने से डरती हो। पहले तो देवांश ने सोचा कि वह सिर्फ एक आम श्रद्धालु है, लेकिन अब वह महसूस कर रहा था कि उसका मंदिर से कोई गहरा संबंध है। प्रिया ने उसे कुछ संकेत दिए थे, जो सीधे तौर पर मंदिर के गहरे राज से जुड़े हुए थे। लेकिन उसने कभी कुछ स्पष्ट रूप से नहीं कहा। देवांश को लगा कि प्रिया शायद उसे मंदिर के भीतर छुपे हुए कुछ रहस्यों के बारे में और जानकारी दे सकती है। उसके भीतर एक विश्वास था कि यदि वह प्रिया से सही तरीके से बात करे, तो वह उसे कुछ महत्वपूर्ण राज़ बता सकती है।

एक दिन देवांश ने प्रिया को मंदिर के पास एक चाय की दुकान पर देखा। उसने मौके का फायदा उठाते हुए उससे बात करने का निर्णय लिया। शुरुआत में, प्रिया थोड़ा संकोच कर रही थी, लेकिन धीरे-धीरे वह खुलने लगी। उसने देवांश को बताया कि वह उस मंदिर में एक लंबे समय से आई है, और उसका परिवार भी वहाँ से जुड़ा हुआ था। लेकिन उसने यह भी कहा कि उसके परिवार के सदस्य कभी भी मंदिर की गहरी परंपराओं और गतिविधियों से खुश नहीं थे। वह जानती थी कि यहाँ कुछ गलत हो रहा था, लेकिन उसे डर था कि अगर उसने सच बोला तो उसे खतरा हो सकता है। वह चाहती थी कि देवांश सब कुछ जानकर इस रहस्य को उजागर करे, लेकिन उसे यह भी एहसास था कि यह रास्ता बहुत खतरनाक हो सकता है। प्रिया ने देवांश को यह बताया कि मंदिर के अंदर एक गुप्त समूह है, जो वर्षों से वहाँ की शक्ति और संपत्ति को नियंत्रित कर रहा है। यह समूह न केवल धार्मिक आस्थाओं का शोषण करता था, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक रूप से भी अपनी पकड़ मजबूत कर रहा था। प्रिया के अनुसार, इस समूह का मुख्य उद्देश्य मंदिर के आंतरिक रिवाजों को नियंत्रित करना था, ताकि वे हर स्तर पर लोगों को अपने अधीन कर सकें। यह सुनकर देवांश को यह समझ में आया कि इस मंदिर में केवल पूजा नहीं हो रही थी, बल्कि एक बड़ा षड्यंत्र भी रचा जा रहा था।

देवांश को यह सब जानकर अजीब सा लगा, लेकिन वह यह भी जानता था कि प्रिया जो कह रही थी, उसमें सचाई हो सकती है। प्रिया ने उसे यह भी बताया कि एक समय था जब उसके परिवार के लोग मंदिर के आंतरिक मामलों में शामिल थे, लेकिन एक घटना के बाद वे सब पीछे हट गए थे। यह घटना एक धार्मिक अनुष्ठान के दौरान हुई थी, जिसमें कुछ लोग लापता हो गए थे। प्रिया का कहना था कि उस दिन के बाद से ही उसके परिवार ने मंदिर से किनारा कर लिया था, लेकिन प्रिया के मन में यह डर था कि अगर वह अब भी सच को उजागर करने की कोशिश करेगी, तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। देवांश ने यह महसूस किया कि अब उसे प्रिया पर पूरा विश्वास था, लेकिन एक सवाल फिर भी उसके मन में था—क्या वह सच में इस रहस्य को उजागर करने में सफल हो पाएगा, या फिर इस मंदिर की शक्तियों के खिलाफ जाकर वह खुद भी एक खेल का हिस्सा बन जाएगा?

प्रिया ने देवांश को चेतावनी दी कि वह बहुत ज्यादा जानने की कोशिश न करे, क्योंकि जो लोग मंदिर के भीतर काम कर रहे थे, वे किसी भी हद तक जा सकते थे। लेकिन देवांश ने ठान लिया था कि वह इस मामले की पूरी सच्चाई सामने लाएगा। अब उसके लिए यह केवल एक पत्रकारिता का मामला नहीं था, बल्कि वह समझ चुका था कि वह जिस रास्ते पर जा रहा था, वह उसे एक गहरी साजिश की ओर ले जा रहा था। प्रिया की बातों से यह साफ हो गया था कि मंदिर के भीतर कुछ बहुत बड़ा और खतरनाक चल रहा था, और देवांश के लिए यह वक्त था कि वह सब कुछ सामने लाए। उस दिन के बाद, देवांश ने मंदिर के अंदर और बाहर दोनों जगहों पर और अधिक छानबीन करना शुरू किया। वह जानता था कि वह जो कदम उठा रहा था, वह काफी जोखिम भरा था, लेकिन सच्चाई के सामने आने के बाद ही वह अपने आप को सुरक्षित महसूस कर पाएगा। अब उसे केवल यह समझना था कि प्रिया के कहे हुए शब्दों का क्या मतलब था और मंदिर में कौन लोग उसे डराने की कोशिश कर रहे थे।

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देवांश अब यह समझ चुका था कि वह जिस जाल में फंसा हुआ था, वह कोई साधारण षड्यंत्र नहीं था। अब उसे पंडित शंकर के बारे में और भी ज्यादा जानने की जरूरत महसूस हो रही थी। पंडित शंकर केवल मंदिर के पुजारी नहीं थे, वह मंदिर की गहरी परंपराओं और रहस्यों से जुड़े हुए एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। देवांश को यह विश्वास था कि अगर उसे इस रहस्य का सच जानना है, तो उसे पंडित शंकर के अतीत को खंगालना होगा। शंकर का व्यक्तित्व पहले ही रहस्यमय था, लेकिन अब देवांश को यह एहसास हुआ कि उनके अतीत में कुछ ऐसा था, जो इस पूरे मामले की कुंजी हो सकता था। उसने कुछ पुराने लोगां से बात की और पंडित शंकर के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की। धीरे-धीरे, देवांश को पता चला कि पंडित शंकर का जीवन एक लंबी और काली कहानी से जुड़ा हुआ था। वह एक समय में अपराध की दुनिया में शामिल था, लेकिन फिर अचानक धार्मिक जीवन में आ गया। ऐसा क्या हुआ था कि एक अपराधी पुजारी बन गया? देवांश ने सोचा, और फिर उसकी खोज जारी रखी।

देवांश ने कुछ पुराने दस्तावेजों का अध्ययन किया और पाया कि पंडित शंकर का नाम एक बड़े अपराध मामले से जुड़ा था, जो कई साल पहले मंदिर के आस-पास हुआ था। यह घटना एक हत्या और अपहरण की थी, जो पूरी तरह से अनसुलझी रह गई थी। कई सालों पहले, पंडित शंकर एक छोटे अपराधी समूह का हिस्सा था, जो मंदिर के पास स्थित समृद्ध परिवारों को ब्लैकमेल करता था। इन परिवारों से पैसे और जमीन की मांग की जाती थी, और अगर वे विरोध करते, तो उन्हें जान से मार दिया जाता था। लेकिन एक दिन, पंडित शंकर ने अचानक इस अपराध समूह से किनारा किया और खुद को धार्मिक जीवन में समर्पित कर दिया। यह बदलाव तब हुआ जब उसने एक अनुभव किया, जिसे वह अपनी ज़िन्दगी का मोड़ मानता था। लेकिन वह अनुभव क्या था? देवांश को इसका पता जल्द ही चला। पंडित शंकर के पुराने साथियों के अनुसार, एक दिन पंडित शंकर ने अपनी खुद की हत्या के प्रयास का सामना किया था। यह हत्या उसके खिलाफ किए गए अपराधों का प्रतिशोध था। लेकिन उसे एक अप्रत्याशित सहारा मिला—एक शक्तिशाली धार्मिक गुरु, जो उसे बचाने आया। वह गुरु उसे अपने साथ ले गया और उसे मंदिर में काम करने का अवसर दिया, जहाँ वह अब तक अपने जीवन को पूरी तरह से बदल चुका था। लेकिन देवांश को यह एहसास हुआ कि इस बदलाव के साथ कुछ और भी हो सकता था। क्या पंडित शंकर ने सच में अपनी आत्मा को धर्म के नाम पर बेच दिया था, या फिर उसे इस मंदिर के भीतर कुछ और शक्तियां मिली थीं, जो अब तक किसी के सामने नहीं आईं थीं?

देवांश ने पंडित शंकर के पिछले जीवन के बारे में और भी गहराई से जानने की कोशिश की। वह जानता था कि पंडित शंकर का अतीत मंदिर के भीतर छुपी हुई सच्चाई से जुड़ा हुआ था। वह अब और अधिक निश्चित हो गया था कि मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं था, बल्कि यह एक छुपे हुए गहरे काले धंधे का हिस्सा था। पंडित शंकर का अतीत अब स्पष्ट रूप से एक कड़ी बन चुका था, जो मंदिर के वर्तमान काले राज़ से जुड़ी हुई थी। यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं था, बल्कि यह एक गुप्त नेटवर्क का हिस्सा था, जो अनगिनत जीवनों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा था। देवांश ने सोचा कि अगर पंडित शंकर और उसके अनुयायी अब भी इस रहस्यमय समूह के सदस्य हैं, तो उनका वास्तविक उद्देश्य क्या हो सकता है? क्या यह केवल धार्मिक आस्था का शोषण था, या फिर इससे कहीं अधिक खतरनाक और प्रभावशाली कुछ था? देवांश की सोच अब बहुत गहरी हो चुकी थी। उसे यह साफ महसूस हो रहा था कि यह मात्र एक पत्रकारिता का मामला नहीं था। वह अब एक ऐसे गहरे जाल में फंसा हुआ था, जिसमें हर कदम पर उसे एक नया खतरा दिखाई दे रहा था। लेकिन देवांश के अंदर यह भावना भी थी कि उसे इस रहस्य को उजागर करना ही होगा, चाहे उसके सामने जो भी खतरें क्यों न आएं।

देवांश ने तय किया कि अब वह पंडित शंकर से सीधे बात करेगा। उसे पूरी उम्मीद थी कि अब शंकर कुछ महत्वपूर्ण जानकारी जरूर देगा। वह जानता था कि अगर उसने शंकर को इस सच्चाई का अहसास दिलाया, तो वह खुद भी डरेगा और अपनी पूरी योजना को उजागर करने की कोशिश करेगा। अगले दिन, देवांश ने पंडित शंकर को मिलने के लिए मंदिर के एकांत स्थान पर बुलाया। शंकर ने पहले तो देवांश की बातों को नजरअंदाज किया, लेकिन फिर धीरे-धीरे वह खुलने लगा। उसने देवांश से कहा, “तुम नहीं समझ पाओगे देवांश, जो तुम जानने की कोशिश कर रहे हो, वह कोई साधारण बात नहीं है। यह सब उस शक्ति के नियंत्रण में है, जिसे तुम अब तक नहीं देख पाए हो।” पंडित शंकर ने देवांश को बताया कि यह मंदिर सिर्फ पूजा का स्थान नहीं था, बल्कि यह एक शक्ति का केंद्र था, जिसे बहुत पुरानी शक्तियों द्वारा संचालित किया जा रहा था। वह शक्तियाँ अब भी मंदिर के अंदर मौजूद थीं, और अगर किसी ने उन्हें चुनौती दी, तो उसका परिणाम बहुत गंभीर हो सकता था। देवांश अब समझ चुका था कि वह एक बहुत बड़े और खतरनाक खेल का हिस्सा बन चुका था। मंदिर के भीतर जो हो रहा था, वह अब उसके जीवन को पूरी तरह से प्रभावित कर चुका था।

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देवांश अब इस पूरी साजिश के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर था। पंडित शंकर से मिली जानकारी ने उसे और भी गहरे सवालों के घेरे में डाल दिया था। शंकर की बातों में कुछ ऐसा था, जो देवांश को लगातार परेशान कर रहा था। वह जान चुका था कि मंदिर का रहस्य सिर्फ धार्मिक आस्थाओं और पुजारियों तक ही सीमित नहीं था, बल्कि वहाँ एक गुप्त खजाना छिपा हुआ था, जो न केवल भौतिक रूप से, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यधिक शक्तिशाली था। यह खजाना एक प्राचीन धर्मग्रंथ से जुड़ा हुआ था, जिसे मंदिर के संस्थापक ने विशेष उद्देश्य से छुपा रखा था। पंडित शंकर ने एक बार कहा था, “यह खजाना कोई साधारण धन नहीं, बल्कि वह शक्ति है जो हर किसी को अपने अधीन कर सकती है।” देवांश ने सोचा कि अगर यह सच है, तो वह खजाना सिर्फ उन लोगों के लिए होगा, जो इस स्थान की गहरी परंपराओं और शक्तियों को समझते हैं। यही कारण था कि मंदिर के भीतर की शक्ति का नियंत्रण हमेशा कुछ चुनिंदा लोगों के हाथों में रहा था। देवांश का मन अब पूरी तरह से इस खजाने के रहस्य को जानने के लिए तैयार था, लेकिन वह यह भी जानता था कि इसका मतलब उसके लिए और भी खतरे का सामना करना हो सकता था।

देवांश ने अब शंकर और मंदिर के अन्य पुजारियों के बारे में और भी अधिक छानबीन शुरू कर दी। उसने मंदिर के पुराने ग्रंथों को फिर से खंगालने का निर्णय लिया। एक दिन उसे एक पुरानी किताब मिली, जिसमें खजाने के बारे में विस्तार से लिखा था। यह खजाना किसी साधारण धातु या रत्न का नहीं था, बल्कि यह एक विशेष प्रकार की “आध्यात्मिक शक्ति” से जुड़ा हुआ था, जिसे कई वर्षों से छुपाकर रखा गया था। इस खजाने का उद्देश्य था—धर्म और सत्ता को नियंत्रित करना, ताकि वह सभी लोगों के जीवन पर अपनी पकड़ बना सके। देवांश को यह समझ में आया कि इस खजाने को पाने के लिए मंदिर के अंदर एक गुप्त समूह काम कर रहा था। यह समूह किसी भी हाल में उस शक्ति को अपने कब्जे में करना चाहता था। इस खजाने की खोज में वे हत्या, अपहरण, और अन्य अपराधों को भी अंजाम दे चुके थे। देवांश अब समझ चुका था कि वह जिस रहस्य की खोज में था, वह केवल एक साधारण खजाना नहीं, बल्कि एक खतरनाक शक्ति का हिस्सा था, जो उसके जीवन को पूरी तरह बदल सकता था। अगर वह अब इस रहस्य को सामने लाता है, तो उसे न केवल मंदिर के अनुयायियों से, बल्कि उनके साथ जुड़े हुए शक्तिशाली लोगों से भी खतरा हो सकता था।

देवांश ने अब योजना बनाई कि वह इस खजाने के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करेगा, लेकिन वह जानता था कि यह आसान नहीं होगा। उसे पंडित शंकर से और भी जानकारी चाहिए थी, लेकिन अब वह समझ चुका था कि शंकर उस खजाने के बारे में ज्यादा खुलकर बात नहीं करेगा। इसलिए, उसने अपनी योजना में एक नया मोड़ लाने का फैसला किया। वह अब मंदिर के कुछ अन्य पुराने पुजारियों और ग्रंथियों से बातचीत करने की सोच रहा था, जो शायद इस खजाने के बारे में कुछ जानते हों। लेकिन उसके पास अब समय बहुत कम था। देवांश के पास जो भी जानकारी थी, उसे हासिल करने का वह अंतिम मौका था। एक रात, वह अपने कदमों को सर्तकता से बढ़ाता हुआ मंदिर के उस गुप्त कमरे में पहुँचा, जहाँ पंडित शंकर और अन्य पुजारी अक्सर मिलते थे। देवांश जानता था कि यह जगह खतरे से भरी हुई थी, लेकिन उसे अब डरने का समय नहीं था। जैसे ही वह कमरे में पहुँचा, उसने देखा कि कुछ लोग उसकी तरफ बढ़ रहे थे। वह अंधेरे में छिपकर उन लोगों को सुनने की कोशिश करता है, लेकिन तभी एक आवाज आई—”तुम बहुत देर कर चुके हो, देवांश।” वह आवाज किसी परिचित से नहीं, बल्कि एक अजनबी से आ रही थी।

देवांश के दिल की धड़कन तेज हो गई। वह किसी अजनबी के सामने था, जो अब पूरी सच्चाई जान चुका था। देवांश ने कमरे की ओर एक कदम और बढ़ाया, और देखा कि वह अजनबी शख्स कोई और नहीं, बल्कि प्रिया थी। वह उसकी ओर बढ़ते हुए बोली, “तुम्हें समझना होगा, देवांश, इस खजाने का रहस्य बहुत गहरा है। जो तुम जानना चाहते हो, वह तुम्हारे लिए खतरनाक हो सकता है। अगर तुमने अब भी पीछा नहीं छोड़ा, तो तुम भी उन्हीं लोगों की तरह हो जाओगे, जो इस खजाने की खोज में अपनी जान गंवा बैठे।” देवांश को अब पूरी सच्चाई का अहसास हो रहा था। प्रिया उस गुप्त समूह का हिस्सा थी, लेकिन वह अब भी उसे सब कुछ बताने के लिए तैयार थी। उसने कहा, “यह खजाना केवल शक्ति का नहीं, बल्कि एक ऐसी शक्ति का है, जो लोगों की आत्मा को अपने अधीन कर लेती है। इसे हासिल करने के बाद, कोई भी व्यक्ति दुनिया में सबसे शक्तिशाली बन सकता है।” देवांश अब पूरी तरह से समझ चुका था कि वह जिस खेल में फंसा हुआ था, वह उसकी जान के लिए खतरे से कम नहीं था। अब उसे यह तय करना था कि क्या वह इस सच्चाई को दुनिया के सामने लाएगा, या फिर अपने जीवन को बचाने के लिए चुप रहेगा।

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देवांश अब दुविधा में था—वह जिस सच्चाई के करीब पहुंच चुका था, वह अब उसके लिए एक खतरे का रूप ले चुकी थी। प्रिया से हुई मुलाकात ने उसे यह समझने पर मजबूर कर दिया था कि वह जिस रहस्य की तलाश कर रहा था, वह केवल एक खजाने का मुद्दा नहीं था, बल्कि यह एक गहरी, तामसिक शक्ति का प्रश्न था, जिसे किसी भी हालत में उजागर करना जानलेवा हो सकता था। प्रिया ने उसे यह स्पष्ट कर दिया था कि अगर वह अब भी इस रहस्य के पीछे पड़ा रहेगा, तो वह न सिर्फ अपने जीवन को खतरे में डालेगा, बल्कि वह उस खतरनाक समूह का शिकार भी हो सकता है, जो मंदिर के भीतर छिपी शक्ति को अपने कब्जे में करने की योजना बना रहा था। प्रिया का डर और चेतावनी उसे मानसिक रूप से परेशान कर रहे थे। लेकिन देवांश के मन में एक सवाल लगातार उठ रहा था—क्या वह इस रहस्य को जानते हुए चुप रह सकता है? क्या वह जानकर भी अपनी लेखनी और पत्रकारिता की नैतिकता से समझौता कर सकता था?

इसके बाद, देवांश ने खुद से यह सवाल पूछा—क्या उसका काम सिर्फ खबरें लिखना है, या फिर वह किसी बड़े सत्य को सामने लाने की जिम्मेदारी भी निभा सकता है? जब वह इस सवाल का जवाब ढूंढ रहा था, तभी उसे यह एहसास हुआ कि उसके पास एकमात्र रास्ता यही था कि वह इस खतरे का सामना करता और उस खजाने के रहस्य को पूरी दुनिया के सामने लाता। लेकिन जैसे ही यह विचार उसके मन में आया, उसने देखा कि उसकी जान पर बन आई थी। मंदिर के कुछ प्रभावशाली लोग उसे हर जगह नजर रख रहे थे, जैसे वे उसकी हर एक गतिविधि को ट्रैक कर रहे हों। एक दिन वह मंदिर के बाहर अपने होटल की ओर लौट रहा था, जब उसे महसूस हुआ कि किसी ने उसके पीछे चलने की कोशिश की। वह जानता था कि अब वह अकेला नहीं था, और मंदिर के लोग उसकी हर हरकत पर नजर रखे हुए थे। उसे समझ में आ गया कि वह एक खतरनाक खेल में शामिल हो चुका था, और अब उसे इस खेल को किसी भी हालत में जीतना होगा।

देवांश ने सोचा कि अब उसके पास बहुत कम विकल्प थे। उसने अपनी पूरी योजना को बदलते हुए यह तय किया कि वह कुछ समय के लिए मंदिर के आस-पास से दूर रहेगा। वह जानता था कि अगर वह कुछ समय तक चुप रहे, तो वह किसी भी खतरे से बच सकता था। लेकिन यह चुप्पी ज्यादा समय तक नहीं चल सकती थी। उसकी अंदर की आवाज़ उसे बार-बार यह महसूस करा रही थी कि सच्चाई को छुपाना किसी के भले के लिए नहीं था। उसने फैसला किया कि वह अपनी रिपोर्ट को छुपाकर एक सुरक्षित स्थान पर रखेगा और फिर सही वक्त पर उसे सामने लाएगा। लेकिन जब तक वह सही समय का इंतजार कर रहा था, उसकी आँखों में एक खौफ था—क्या वह समय कभी आएगा, जब वह सच्चाई को सबके सामने रख सकेगा? इस डर के बावजूद, देवांश ने यह ठान लिया कि वह किसी भी हालत में इस रहस्य को उजागर करेगा, क्योंकि अब वह खुद को इस कहानी से अलग नहीं कर सकता था।

वहीं, एक और घटना ने देवांश को और अधिक घेर लिया। एक शाम, जब वह अपने होटल के कमरे में बैठा था, उसे फोन आया। फोन पर एक गहरी आवाज़ थी, जो उसे जानती थी—”तुम बहुत चुप हो गए हो, देवांश। क्या तुम अब डर गए हो?” यह आवाज़ पंडित शंकर की थी, और उसने सीधे तौर पर देवांश को चेतावनी दी। “तुम्हारी खोज अब तुम्हारे लिए खतरनाक हो चुकी है। तुम किसी ऐसे क्षेत्र में घुस चुके हो, जहां से बाहर निकलना अब मुश्किल होगा। हम तुम्हें किसी भी हालत में सबक सिखाएंगे, तुम जो जानने की कोशिश कर रहे हो, वह तुम्हारे लिए केवल मौत लाएगा।” पंडित शंकर की यह धमकी अब देवांश के दिल में एक सच्चे डर का कारण बन चुकी थी। वह जानता था कि पंडित शंकर और मंदिर के लोग उसे हर हाल में रोकने की कोशिश करेंगे। लेकिन देवांश का मन अब और भी मजबूत हो गया था। उसे यह महसूस हुआ कि अब वह अपने डर को छोड़कर इस रहस्य को बेनकाब करने की ओर बढ़ेगा, चाहे उसे किसी भी कीमत पर इसका सामना करना पड़े।

अगली सुबह, देवांश ने अपना सामान पैक किया और निश्चय किया कि वह इस छिपी हुई शक्ति के बारे में अधिक जानकारी जुटाएगा। वह जानता था कि यह उसके लिए आत्ममूल्य और पत्रकारिता की चुनौती बन चुकी थी। वह खजाने का रहस्य अब केवल उसके लिए एक रिपोर्ट नहीं था, बल्कि यह उसकी सच्चाई को सामने लाने का एक संघर्ष बन गया था। देवांश ने यह तय किया कि वह अब मंदिर के अंदर और बाहर दोनों जगहों पर अपनी जाँच और छानबीन करेगा। उसने अपनी योजना बनाई और मंदिर के कुछ पुराने ग्रंथियों से संपर्क किया। अब वह जानता था कि अगर उसने इस समय कोई गलती की, तो उसका पीछा कोई नहीं छोड़ने वाला था। लेकिन उसने एक कदम और आगे बढ़ने का निर्णय लिया—सच्चाई को उजागर करने के लिए, चाहे जो हो।

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देवांश अब पूरी तरह से इस जाल में फंस चुका था। वह न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन को खतरे में डाल चुका था, बल्कि उसकी मानसिक स्थिति भी चरम पर पहुँच चुकी थी। मंदिर के अंदर छिपे रहस्यों की गहरी और खौ़फनाक परतें अब उसे पूरी तरह से घेर चुकी थीं। हर एक कदम जो उसने आगे बढ़ाया था, उसे न केवल शारीरिक खतरे का सामना करना पड़ रहा था, बल्कि उसे आत्मिक रूप से भी एक संघर्ष का सामना करना पड़ रहा था। उसकी खोज अब उस खजाने तक पहुंच चुकी थी, जिसकी ताकत न केवल लोगों के जीवन को बदल सकती थी, बल्कि उसे अपनी जान की भी कीमत चुकानी पड़ सकती थी। एक दिन, जब देवांश ने मंदिर के आंतरिक भाग का दौरा किया, तो उसे वहाँ कुछ ऐसा मिला जो उसे पहले कभी नहीं मिला था—मंदिर के एक बंद कक्ष में एक बहुत पुराना शिला लेख। यह लेख सीधे तौर पर उस खजाने से जुड़ा हुआ था, जिसका वह पीछा कर रहा था। लेख में लिखा था कि यह खजाना सिर्फ भौतिक संपत्ति नहीं था, बल्कि यह एक ऐसी आत्मिक शक्ति थी, जो मनुष्य को अनंत नियंत्रण और सत्ता प्रदान करती थी। यह खजाना न केवल किसी भी व्यक्ति को बल देता था, बल्कि उसकी आत्मा को भी अपनी गिरफ्त में ले लेता था। इस लेख को पढ़ते हुए, देवांश को महसूस हुआ कि वह जिस खजाने की तलाश में था, वह अब उसकी आत्मा को भी अपनी गिरफ्त में ले सकता था।

देवांश अब और नहीं रुक सकता था। उसने तय किया कि वह इस रहस्य का पूरी तरह से पर्दाफाश करेगा। हालांकि, उसे अब यह स्पष्ट हो चुका था कि मंदिर के भीतर के लोग, विशेष रूप से पंडित शंकर और उनके अनुयायी, उसे किसी भी हाल में अपनी योजना के सामने नहीं आने देंगे। वे उसे हर हाल में रोकने की कोशिश करेंगे। एक रात, देवांश ने अपने कदमों को चुपचाप बढ़ाते हुए मंदिर के सबसे गहरे हिस्से की ओर रुख किया, जहां उसे यह अहसास था कि खजाना छुपा हुआ था। वह जानता था कि वहाँ पहुँचने के बाद उसे अपनी पूरी ताकत लगानी होगी, क्योंकि कोई भी व्यक्ति या ताकत उसे रोकने की पूरी कोशिश करेगी। जैसे ही वह उस स्थान तक पहुँचा, उसे महसूस हुआ कि जैसे किसी गहरी ऊर्जा ने उसे घेर लिया हो। उस स्थान पर एक ताजगी और अजीब सी शांति का माहौल था। देवांश ने धीरे-धीरे उस जगह के भीतर कदम रखा, और जैसे ही उसने एक पत्थर को खिसकाया, उसे एक पुरानी लकड़ी की पेटी दिखाई दी, जो लगभग पूरी तरह से छिपी हुई थी। यह वही खजाना था, जिसकी खोज में वह अब तक लगा हुआ था।

लेकिन जैसे ही उसने उस पेटी को खोला, वह शॉक्ड हो गया। पेटी में कोई सोने-चांदी की वस्तुएं नहीं थीं, बल्कि उसमें एक छोटी सी पुस्तक और कुछ पुराने पत्र थे। वह पुस्तक वही प्राचीन ग्रंथ था, जिसका जिक्र पंडित शंकर और प्रिया ने किया था। वह पुस्तक न केवल एक धार्मिक ग्रंथ थी, बल्कि उसमें उन प्राचीन और रहस्यमय शक्तियों का उल्लेख था, जो किसी व्यक्ति को नियंत्रित कर सकती थीं। इस ग्रंथ में लिखा था कि जिस व्यक्ति ने इस पुस्तक को प्राप्त किया, वह न केवल मानसिक और शारीरिक शक्ति में वृद्धि कर सकता था, बल्कि वह एक आत्मिक परिवर्तन से भी गुजरता था, जो उसे असीमित शक्ति दे सकता था। यह शक्ति न केवल दूसरों पर नियंत्रण पाने की थी, बल्कि यह आत्म-निर्भरता और आत्म-आध्यात्मिकता के साथ जुड़ी हुई थी। लेकिन इसके साथ ही एक चेतावनी भी थी—”जो इस शक्ति को अपनाता है, वह अपने अस्तित्व को पूरी तरह बदलने के लिए तैयार रहे, क्योंकि इसका परिणाम कभी भी सुखद नहीं होता।” देवांश ने वह पुस्तक पढ़ी और महसूस किया कि वह अब ऐसी दुनिया में आ चुका था, जहाँ इस शक्ति को अपनाना ही उसके अस्तित्व को खत्म कर सकता था।

उस रात को याद करते हुए, देवांश ने यह फैसला किया कि वह इस किताब को दुनिया के सामने लाएगा, लेकिन वह समझ चुका था कि यह उसके लिए एक बड़ा कदम होगा। अब वह अपने अंदर की आवाज़ को सुनने की कोशिश कर रहा था, जो उसे यह समझा रही थी कि अगर वह इस रहस्य को उजागर करता है, तो न केवल वह अपनी जान को खतरे में डालने वाला था, बल्कि वह उन लोगों के खिलाफ जा रहा था जो अब इस खजाने की शक्ति को अपने नियंत्रण में लेने के लिए तैयार थे। वह जानता था कि उसे अब यह शक्ति किसी भी हालत में मंदिर के पंथ से बाहर लानी होगी। उसकी आंखों के सामने अब केवल एक ही उद्देश्य था—इस खजाने की शक्ति को नष्ट करना। लेकिन उसके लिए यह बहुत बड़ा संघर्ष था। देवांश के अंदर यह सशक्त भावना थी कि उसे अब इस खजाने को खत्म करके, उस शक्ति को हमेशा के लिए नष्ट करना होगा, जो इतने वर्षों से छुपाकर रखी गई थी। अगर वह ऐसा नहीं करता, तो वह और उसके जैसे हजारों लोग इस गहरे रहस्य का शिकार हो सकते थे।

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