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अंतिम आरती

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हिमाचल की घाटियों में दिसंबर की रातें कुछ अलग ही किस्म की सन्नाटे से भरी होती हैं। हवा में बर्फ़ की गंध, पेड़ों पर जमीं सफेद चादर, और दूर कहीं से आती घंटियों की हल्की गूंज जैसे समय को रोक देती है। उन्हीं घाटियों में, देवदार के पेड़ों से घिरे एक पहाड़ी ढलान पर खड़ा है सेंट जोसेफ चर्च — एक पुराना, पत्थर का बना हुआ गिरिजाघर, जिसकी दीवारों में वक्त की सीलन और रहस्य दोनों बसे हैं। क्रिसमस के एक सप्ताह पहले की सुबह, जब गांव के लोग अपने घरों में लकड़ी जलाकर खुद को गर्म रखने में लगे थे, तब चर्च के मुख्य हॉल में सिस्टर एंजेला धीरे-धीरे चलती हुई मोमबत्तियों को सजा रही थीं। उनके कांपते हाथों से मोमबत्तियाँ फिसलतीं, लेकिन उनका चेहरा शांत था — मानो किसी लंबी प्रतीक्षा की आदत सी हो गई हो। 65 साल की उम्र में वह गिरिजाघर की सबसे पुरानी नन थीं, और उन्होंने इस चर्च को एक समय में जीवंत देखा था — जब हर रविवार यहां दर्जनों लोग प्रार्थना करने आते थे, जब घंटियों की आवाज़ में केवल पवित्रता होती थी, न कि भय। लेकिन पिछले 50 वर्षों से हर क्रिसमस की रात जब गांव अंधेरे में सोया होता है, सेंट जोसेफ चर्च से एक “अंतिम आरती” की आवाज़ आती है — वह भी उस पादरी की, जो आधी सदी पहले जलकर मर गया था।

उस रात की कहानियाँ अब लोककथाओं का रूप ले चुकी थीं। कोई कहता, “फादर डोमिनिक ने किसी आत्मा को बुलाया था जो खुद उसे ले गई।” कोई कहता, “वह पागल हो चुका था, और खुद को आग में समर्पित कर दिया।” लेकिन सच्चाई किसी को नहीं पता थी। सिस्टर एंजेला कभी-कभी खुद से सवाल करतीं — क्या वाकई उन्होंने उस रात की प्रार्थना सुनी थी, या यह उनका वहम था? लेकिन हर साल, उसी समय, जब घड़ी बारह बजने वाली होती है, जब हवा एकदम ठहर जाती है, तब वही आवाज़ — वही “आरती” — हवा में गूंजती है। गांव वाले डर के मारे उस रात चर्च की ओर नहीं देखते, और कुछ तो दरवाज़े तक बंद कर लेते हैं, लेकिन चर्च की मोमबत्तियाँ जलती रहती हैं — जैसे कोई अंदर से उन्हें सजा रहा हो। इस साल, क्रिसमस के हफ्ते भर पहले, गांव में एक अजनबी की आमद हुई। वह लंबा, दुबला, छरहरे बदन वाला युवक था, जिसकी आंखों में कुछ ढूंढने की बेचैनी थी। वह था जॉय मुखर्जी, कोलकाता से आया एक खोजी पत्रकार, जो अब तक पौराणिक कथाओं और धार्मिक अंधविश्वासों पर कई लेख लिख चुका था। लेकिन यह कहानी — सेंट जोसेफ चर्च की “अंतिम आरती” — उसे भीतर से हिला गई थी। यह केवल एक अफवाह नहीं लग रही थी, यह कुछ ऐसा था जिसे वह अपनी आंखों से देखना चाहता था।

जॉय गांव में जैसे ही पहुँचा, लोगों ने उससे दूरी बना ली। वह चर्च के पास बना एक पुराना अतिथि कक्ष में ठहरा — जहां पहले पादरी रहा करते थे। अगले दिन सुबह वह चर्च गया, और सिस्टर एंजेला से मिला। उसकी उत्सुकता देखकर पहले तो उन्होंने उसे बाहर जाने को कहा, पर फिर शायद वर्षों की चुप्पी टूटने को बेकल थी। उन्होंने धीमे स्वर में कहा, “अगर तुम यहां सच्चाई जानने आए हो, तो खुद को ईश्वर के नाम कर दो। जो इस चर्च में होता है, वह ना विज्ञान समझा सकता है, ना ही तर्क।” लेकिन जॉय ने हार नहीं मानी। उसने कहा कि वह केवल लिखने नहीं, समझने आया है। चर्च के एक कोने में बैठी एक और युवा नन — एलिज़ा फर्नांडीज़ — ने यह सब चुपचाप सुना। वह नई थी, लेकिन चर्च के रहस्यों में उसकी खुद की दिलचस्पी थी, क्योंकि वह उन गिनी-चुनी लोगों में थी जिन्होंने एक बार उस “आवाज़” को खुद सुना था। जैसे ही जॉय चर्च की ऊंची खिड़कियों से गिरती रोशनी को देखता, और उस पत्थर की वेदी की ओर नजर डालता जहां से पादरी डोमिनिक की राख कभी बरामद हुई थी, एक अजीब सी ठंडक उसके शरीर में दौड़ जाती। लेकिन डर नहीं — जिज्ञासा थी। सिस्टर एंजेला ने कहा, “तुम रुक सकते हो… लेकिन क्रिसमस की रात जब वह आवाज़ गूंजे, तो याद रखना — जो एक बार सुन लेता है, वह बदल जाता है।” चर्च की घड़ी ने चार बजने की सूचना दी, लेकिन घंटी नहीं बजी। जॉय ने ऊपर देखा — घंटी टूटी हुई थी, फिर हर साल यह “घंटियाँ” कौन बजाता है? वह नहीं जानता था कि उसका सवाल ही उसकी यात्रा की शुरुआत है — एक ऐसी यात्रा, जहाँ विश्वास और भय, आत्मा और शरीर, सच्चाई और भ्रम सब एक-दूसरे में गुँथे हुए थे।

***

चर्च की दीवारों पर समय की छाया गहरी होती जा रही थी, और जॉय की जिज्ञासा भी। उस रात जब वह अपने कमरे में बैठा नोट्स लिख रहा था, तो अचानक दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई। सिस्टर एलिज़ा खड़ी थी — हाथ में एक पुराना लकड़ी का संदूक। उसकी आंखों में झिझक थी, लेकिन स्वर में दृढ़ता: “ये संदूक चर्च के पुराने तहखाने से निकला है। शायद इसमें तुम्हारे सवालों के जवाब हों। लेकिन कुछ बातें जानना हमेशा सुरक्षित नहीं होता, जॉय।” संदूक में एक जर्जर सी किताब थी — फादर डोमिनिक लोपेज़ का निजी जर्नल। उसे छूते ही जैसे हवा का बहाव बदल गया। जॉय ने किताब को पलटना शुरू किया — उसमें स्याही से लिखे गए लंबे पैराग्राफ थे, जिनमें प्रभु के प्रति श्रद्धा के साथ एक अजीब सा व्याकुलता भी झलक रही थी। शुरुआती पन्नों में वह चर्च की दैनिक व्यवस्था, प्रार्थनाएं और गाँव के लोगों के बारे में लिखता था। लेकिन जैसे-जैसे तारीखें आगे बढ़ती गईं, शब्दों में एक बेचैनी घुलती गई — “हर आत्मा ईश्वर से जुड़ना चाहती है, लेकिन कुछ आत्माएँ अंधकार में भटकी हुई हैं… उन्हें लाने के लिए बलिदान आवश्यक है।”

जॉय एक-एक पन्ना पढ़ता गया। दिसंबर 1974 की एक प्रविष्टि पर उसकी नज़र ठिठक गई — “मैंने अब उन प्राचीन ग्रंथों को पढ़ लिया है, जो हिमालय की गुफाओं में कभी छिपाए गए थे। आत्मा को पुकारने का अनुष्ठान अब मुझे ज्ञात है। लेकिन यदि मैं इसे क्रिसमस की रात करता हूँ, तो ईश्वर मुझे क्षमा करेगा क्या?” पन्ने कांपते हाथों से पलटते हुए उसे समझ में आने लगा था कि फादर डोमिनिक सिर्फ एक पादरी नहीं था, वह किसी आध्यात्मिक प्रयोग की कगार पर था — शायद कुछ पवित्र, शायद कुछ खतरनाक। गाँव के लोगों की यादों में उस रात की जो बातें थीं, वे अब और रहस्यमयी हो गईं। अगली सुबह जॉय एलिज़ा के साथ गांव के सबसे बूढ़े व्यक्ति थॉमस वर्गीज़ से मिलने गया — वही जो पादरी का सेवादार था और अब अंधेरे में खुद को छिपाए जी रहा था। वे उसे एक टूटी हुई कुटिया में मिले — उसकी आंखें धंसी हुई थीं, पर जब उसने जॉय के हाथ में वो जर्नल देखा, तो उसकी आंखों में एक डर कौंध गया। बहुत देर चुप रहने के बाद वह फुसफुसाया — “उस रात… चर्च में कोई और भी था… कोई जिसकी छाया नहीं पड़ती थी…”

“क्या आपने उसे देखा था?” जॉय ने धीरे से पूछा। थॉमस ने सिर हिलाया — “मैं मोमबत्तियाँ सजा रहा था, तभी अंदर से जोर की आग की लपटें उठीं। दरवाज़ा बंद था, पर अंदर आरती की आवाज़ गूंज रही थी। हम दरवाज़ा तोड़ नहीं सके… जब सब शांत हुआ, तो अंदर सिर्फ राख मिली — और एक गायन जो दीवारों में समा गया था।” एलिज़ा सिहर उठी। जॉय को अब यह केवल आत्मा की कहानी नहीं लग रही थी — यह एक अनुष्ठान था, जो या तो अधूरा रह गया था, या जिसकी कोई कीमत आज भी चुकाई जा रही थी। वह वापस चर्च लौटा, और पहली बार उस वेदी के पास देर तक बैठा — जहाँ से वह “अंतिम आरती” हर साल निकलती थी। मोमबत्तियाँ बुझ चुकी थीं, लेकिन एक कोना अब भी गर्म था — जैसे किसी ने हाल ही में उसे छुआ हो। उसने खुद से सवाल किया — क्या यह आत्मा का कार्य है? या किसी जीवित इंसान की कोई भूमिका है? जवाब अभी नहीं था। लेकिन रात आ रही थी — और उसके साथ चर्च की दीवारें फिर बोलने को तैयार थीं।

***

चर्च की पुरानी घंटी टूट चुकी थी, लेकिन जॉय के भीतर एक दूसरी घंटी बजने लगी थी — रहस्य की। फादर डोमिनिक के जर्नल में दर्ज शब्दों ने उसकी जिज्ञासा को और भी गहरा कर दिया था। अब वह जान चुका था कि यह केवल आत्मा की कहानी नहीं है, बल्कि आधी-अधूरी रह गई किसी साधना की गूँज है, जो हर साल खुद को दोहराती है। अगले दिन, जब बर्फ की पतली परत चर्च की छत पर जमी थी, जॉय फिर से चर्च के भीतर गया, इस बार एलिज़ा के साथ। वह अब एक सहयोगी से अधिक बनती जा रही थी — किसी ऐसे व्यक्ति की तरह, जो खुद उस रहस्य का हिस्सा बन चुका हो। वे चर्च के पिछले भाग में गए, जहां सीढ़ियों के नीचे एक छोटा सा तहखाना था। एलिज़ा ने बताया कि वर्षों से यह बंद पड़ा है, लेकिन पादरी डोमिनिक अक्सर वहां समय बिताया करते थे। जब उन्होंने लकड़ी के जर्जर दरवाज़े को धक्का दिया, एक जंग लगी जंजीर गिरी — और भीतर से एक ठंडी, नम गंध बाहर आई।

तहखाने के अंदर अंधेरा था। टॉर्च की रोशनी में एक मेज़ पर राख जमी थी और एक लोहे की आलमारी की दरारों में पुरानी किताबें पड़ी थीं। उनमें से एक किताब पत्तों से ढकी थी — “Sanctum Tenebris” — जिसका अर्थ था “पवित्र अंधकार।” जॉय ने किताब पलटी, और उसमें एक चित्र देखा — एक अनुष्ठानिक वृत्त जिसमें पांच दीपक रखे गए थे, और बीच में अग्नि। चित्र के नीचे एक हस्तलिखित टिप्पणी थी — “आत्मा को शांति देने हेतु पवित्र अग्नि का प्रज्वलन आवश्यक है। लेकिन यदि कोई इस प्रक्रिया को अधूरा छोड़ दे, तो आत्मा विक्षिप्त हो उठती है।” जॉय का गला सूख गया। क्या पादरी डोमिनिक ने यह अनुष्ठान किया था? क्या यह अधूरा रह गया? और क्या वह अब भी उसी अग्नि की प्रतीक्षा कर रहा है — जो उसे मुक्ति दे सके? एलिज़ा की आँखें डरी हुई थीं, लेकिन उनमें एक दृढ़ विश्वास भी झलक रहा था। “मैंने उस आवाज़ को बचपन में पहली बार सुना था, जब मैं आठ साल की थी,” वह बोली। “मेरी माँ मुझे यहाँ लाई थीं, और आधी रात को चर्च में वो आरती शुरू हुई थी। उसके बाद माँ ने कभी मुझे यहां वापस नहीं आने दिया।”

जॉय ने देखा, एलिज़ा का चेहरा केवल डर से नहीं, बल्कि अपराधबोध से भी भरा था। वह आगे बोली, “मेरी माँ… रोसा मथाई थी।” यह नाम सुनकर जॉय ठिठक गया — वही रोसा, जिसे गांव वाले अंधविश्वास की देवी मानते हैं, वही औरत जो हर क्रिसमस पर चर्च की ओर पीठ करके दरवाज़े बंद करवा देती है। “माँ हमेशा कहती थीं कि चर्च अब शुद्ध नहीं है, वहाँ जो प्रार्थना गूंजती है, वह प्रभु की नहीं, किसी अधूरी आत्मा की पुकार है। शायद उन्होंने ही मुझे इससे दूर रखा, लेकिन अब… अब मैं लौट आई हूँ।” जॉय समझ गया कि यह ‘पुनरागमन’ केवल उसका नहीं, बल्कि एलिज़ा की आत्मा का भी है। वे दोनों अब उस रहस्य के केंद्र में थे, जहाँ से आग शुरू हुई थी — और जहां अब भी राख गर्म थी। वे तहखाने से बाहर निकले और देखा — बाहर एक बुज़ुर्ग व्यक्ति चुपचाप खड़ा था, चर्च की ओर देखता हुआ। वह थॉमस था, जो फिर से लौट आया था। उसकी आँखों में अब डर नहीं था — एक शून्यता थी। उसने केवल एक वाक्य कहा — “इस बार आरती पूरी करनी होगी… नहीं तो अगली बार कोई लौटकर नहीं जाएगा।” और वह बर्फ में धीरे-धीरे ओझल हो गया।

***

चर्च के भीतर रात गहराने लगी थी। बाहर बर्फ़ की पतली चादर उतर आई थी, और हवा की गति इतनी मंद थी कि देवदार के पत्ते भी जैसे सिहरकर स्थिर हो गए थे। जॉय ने उस दिन के खोजे हुए तथ्य अपनी डायरी में लिखे, लेकिन दिमाग़ अब शब्दों से नहीं, ध्वनियों से भरता जा रहा था — विशेष रूप से उस आरती की, जिसे उसने अब तक खुद नहीं सुना था, लेकिन हर गाँववाले की आँखों में उसकी भयावह गूंज थी। सिस्टर एंजेला ने उसे रात को चर्च में अकेला रहने से मना किया था, लेकिन जॉय ने निर्णय लिया कि अब पीछे हटना नामुमकिन है। एलिज़ा ने भी उससे कहा था कि वह तैयार नहीं है, पर जब वह रात को मोमबत्तियाँ लेकर वेदी के पास आई, तो उसकी आँखों में किसी भक्त की आस्था नहीं, किसी खोई आत्मा की खोज थी। दोनों ने चर्च के द्वार बंद कर लिए, सभी खिड़कियाँ ढंक दीं, और बीच के उस काले पत्थर की वेदी के पास बैठ गए — जहाँ से कभी फादर डोमिनिक की अधूरी आरती गूंजती थी।

घड़ी ने जब ग्यारह बजाए, तो सब कुछ सामान्य था — केवल मोमबत्तियों की हल्की लौ और बर्फ की गिरती बूंदों की निस्तब्ध ध्वनि। लेकिन जैसे ही समय बारह के करीब पहुँचा, एकाएक हवा सघन हो गई। मोमबत्तियों की लौ स्थिर हो गई, जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उन्हें पकड़ लिया हो। तभी जॉय को चर्च की ऊपरी दीवारों पर कुछ सरसराहट महसूस हुई — कोई छाया नहीं, कोई आकृति नहीं — केवल एक कंपन, जो ईंटों और लकड़ी में समाया हुआ था। और फिर — एक भारी, टूटे गले की गूँज… “Dominus vobiscum…” वह आवाज़ न तो स्पष्ट थी, न ही अस्पष्ट। वह जैसे किसी दूसरी दुनिया से खींची गई थी — धीमी, धुँधली, पर हर शब्द में जली हुई राख की सी गंध। एलिज़ा कांप रही थी, उसका हाथ जॉय के कंधे पर था, और उसकी आँखें झरने की तरह छलकने लगी थीं। जॉय ने चारों ओर देखा, लेकिन कोई नहीं था। आवाज़ अब गहराने लगी थी — “Kyrie eleison… Christe eleison…” अब वह केवल एक आरती नहीं, किसी आत्मा की छटपटाहट लग रही थी।

अचानक चर्च के मध्य में रखी एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी खुद-ब-खुद ज़मीन पर गिरी — जैसे किसी ने क्रोध में उसे धक्का दिया हो। उसी क्षण वेदी के पास रखे फूल सूखने लगे, और हवा फिर से स्थिर हो गई। जॉय ने साहस जुटाकर पूछा — “कौन है वहाँ?” लेकिन उत्तर में केवल एक लंबी साँस सुनाई दी — मानो कोई बहुत गहरी थकावट से बोझिल होकर कह रहा हो, “मुझे अधूरा छोड़ दिया गया…” एलिज़ा फुसफुसाई, “वह हमें देख सकता है…” और फिर वह फर्श पर बैठ गई, अपने दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी। जॉय के लिए यह तर्क की नहीं, अनुभूति की रात थी। वह जान चुका था कि फादर डोमिनिक की आत्मा केवल एक आवाज़ नहीं है — वह एक अधूरा अनुष्ठान है, जो हर वर्ष उसी क्षण जागता है जब वह पूरा नहीं किया गया था। वह आरती नहीं है — वह एक पुकार है, एक गुहार, और शायद एक चेतावनी। वेदी की ओर देखते हुए जॉय ने महसूस किया — आग कभी बुझती नहीं, यदि आत्मा बुझने न दे। रात बीत गई, आवाज़ रुक गई, लेकिन चर्च की दीवारों ने जो सुना, वह अब भीतर समा चुका था। अब जॉय और एलिज़ा वापस नहीं जा सकते थे — क्योंकि अब वह पुकार केवल चर्च में नहीं, उनके भीतर भी गूंजने लगी थी।

***

सुबह की पहली किरण जब चर्च की ऊँची खिड़कियों से भीतर आई, तो वेदी के चारों ओर पड़ी मोमबत्तियाँ बुझ चुकी थीं, और हॉल में एक अजीब सी राख की गंध फैली हुई थी। जॉय और एलिज़ा पूरी रात वहीं बैठे रहे थे, न सो पाए, न बोल पाए। एलिज़ा की आँखें सुर्ख थीं, लेकिन उनमें डर से अधिक अब एक अनकही बेचैनी थी। “वो आरती अधूरी थी,” उसने धीमे स्वर में कहा, “उसके अंतिम शब्द फिर से नहीं आए।” जॉय ने उसकी बात पर सिर हिलाया, लेकिन भीतर कहीं कुछ और चुभ रहा था — वो आखिरी वाक्य जो हवा में फुसफुसाया था: “मुझे अधूरा छोड़ दिया गया…” दिन चढ़ने लगा, लेकिन चर्च की फर्श अब भी ठंडी थी — मानो वहाँ सिर्फ रात की सर्दी नहीं, किसी और लोक की छाया रह गई हो। जॉय ने तय किया कि अब वो केवल प्रतीक्षा नहीं करेगा — उसे उस अधूरी आत्मा की पीड़ा को समझना होगा, और उसके पीछे के अधूरे सत्य को भी।

एलिज़ा ने सुझाव दिया कि वे चर्च के सबसे पुराने हिस्से में जाएँ — वेदी के पीछे की पत्थर की दीवार के उस पार, जहाँ कभी फादर डोमिनिक ध्यान लगाते थे। वह दीवार अब जर्जर हो चुकी थी, और उसकी एक दरार में उंगलियाँ फँसाकर वह धीमे से खुलने लगी। उसके पीछे एक तंग गलियारा था, जो तहखाने की दूसरी सीढ़ियों की ओर जाता था — एक ऐसा हिस्सा जो गाँववालों की कहानियों में कभी नहीं आया था। जॉय और एलिज़ा टॉर्च लेकर उस संकरी जगह से गुज़रे, जहाँ दीवारों पर पुराने लैटिन श्लोक खुरचे गए थे, और मिट्टी की गंध में राख और लोबान की मिली-जुली गंध बसी थी। अंत में उन्हें एक छोटा सा कक्ष मिला — चारों ओर दीवारों पर काले धब्बे, मानो यहाँ आग ने किसी को निगल लिया हो। बीच में एक पत्थर की पटिया पर एक क्रॉस रखा था — आधा जला हुआ, और उसके नीचे कुछ राख फैली हुई थी। एलिज़ा ने हाथ आगे बढ़ाया, जैसे कुछ पहचानना चाहती हो। “ये वही जगह है,” उसने धीमे से कहा, “जहाँ से उसकी चीखें आखिरी बार सुनी गई थीं।”

जॉय ने जब उस क्रॉस को उठाया, तो उसे एक तेज़ जलन का अहसास हुआ — मानो किसी ने उसकी हथेली पर अंगार रख दिया हो। उसने झटपट हाथ पीछे खींचा, लेकिन उसकी हथेली पर अब एक लाल छाप थी — एक जलती हुई हथेली की आकृति। एलिज़ा घबरा गई। “तुम ठीक हो?” लेकिन जॉय चुप था — वह जान गया था कि आत्मा अब केवल बाहर नहीं थी, वह उसे छू चुकी थी। वो क्रॉस कोई प्रतीक नहीं था — वह एक दाग था, एक प्रमाण कि यहाँ कुछ अधूरा और अनकहा जल रहा है। दीवार के एक कोने में एक पुराना चित्र भी था — फादर डोमिनिक का, जिसमें उनके हाथ खुले थे, और आंखें ऊपर प्रभु की ओर। लेकिन उस चेहरे में श्रद्धा नहीं थी, बल्कि अनिश्चितता थी — मानो वह खुद नहीं जानता था कि उसका अनुष्ठान उसे कहाँ ले जाएगा। एलिज़ा फुसफुसाई, “वो कुछ बुला रहा था… और शायद वो चीज़ आ गई।” जॉय की हथेली अब भी धधक रही थी, पर दर्द से ज्यादा उसमें एक एहसास था — जैसे किसी और की आत्मा उसकी त्वचा में उतर आई हो। दोनों जब वापस चर्च के मुख्य भाग में लौटे, तो घंटियाँ नहीं बजीं, लेकिन दीवारों पर एक नई दरार पड़ चुकी थी। अब यह केवल पादरी की आत्मा का मामला नहीं था — अब वह आत्मा उन्हें चुन चुकी थी।

***

सर्दियों की दोपहरें अक्सर बहुत शांत होती हैं, लेकिन उस दिन की दोपहर में जॉय की हथेली पर बनी जली हुई छाप की गर्मी अब भी जिंदा थी। उसने उसे बर्फ में बार-बार डुबोया, लेकिन जलन कम नहीं हुई। एलिज़ा ने मोमबत्तियों की राख से उसे मलने की कोशिश की — एक पुरानी नन-रीति जिसे सिस्टर एंजेला ने बताया था, लेकिन वह छाप अब जैसे त्वचा से नहीं, आत्मा से चिपकी थी। चर्च की दीवारें उस दिन कुछ ज्यादा ही मौन थीं, और ऐसा लग रहा था जैसे हर ईंट किसी भारी बोझ को अपने भीतर दबाए बैठी हो। उसी समय एलिज़ा ने कहा — “हमें थॉमस से फिर से बात करनी चाहिए।” जॉय ने उसे घूरा, “वो कुछ भी नहीं बोलेगा।” लेकिन एलिज़ा का चेहरा स्थिर था, “वो जानता है, शायद उसने ही सबसे पहले उस रात को देखा था, जब सब कुछ शुरू हुआ।”

दोपहर ढलते ही वे दोनों पुराने गांव की पगडंडी से होते हुए थॉमस वर्गीज़ की कुटिया तक पहुंचे। वही पुरानी लकड़ी की दीवारें, वही दरवाज़ा जिस पर टंगे क्रॉस की कीलें अब भी जंग खा रही थीं। भीतर कोई जवाब नहीं आया, लेकिन दरवाज़ा खुला था। जॉय ने धीरे से भीतर झाँका — थॉमस एक कोने में बैठा था, लकड़ी के फर्श पर नजरें गड़ाए, हाथ में एक छोटी सी माला पकड़े हुए। एलिज़ा ने आगे बढ़कर कहा, “थॉमस अंकल, हम जानते हैं कि आपने उस रात कुछ देखा था। कृपया हमें बताइए — फादर डोमिनिक ने क्या किया था उस रात?” कुछ पल खामोशी छाई रही। फिर थॉमस की माला उसके हाथों से गिर पड़ी और उसने सिर उठाया — आँखें धंसी हुई, लेकिन अब उनमें डर नहीं था, बल्कि एक ऐसा पश्चाताप था जो वर्षों से उसकी आत्मा को चीरता रहा है। “मैंने सब देखा,” उसने फुसफुसाते हुए कहा, “लेकिन बोलने की हिम्मत नहीं थी। बोलता… तो शायद मुझे भी जला दिया जाता।”

“क्या मतलब?” जॉय ने पूछा। थॉमस का चेहरा अब और ज्यादा काला लग रहा था, जैसे भीतर की राख बाहर झलक रही हो। “डोमिनिक अकेले नहीं थे उस रात,” उसने कहा, “वो कोई अनुष्ठान कर रहे थे — वह सच है — लेकिन कोई और वहाँ मौजूद था, कोई जिसकी परछाईं भी दीवार पर नहीं पड़ रही थी। वह किसी साधारण इंसान जैसा नहीं था। डोमिनिक उसे ‘शुद्ध आत्मा’ कहकर बुला रहा था… और फिर उन्होंने एक साथ कोई भजन गाना शुरू किया, जो लैटिन में नहीं था — वह कोई दूसरी भाषा थी, जैसे अग्नि की। और फिर अचानक वेदी से लपटें उठीं। मैं दरवाज़े के पीछे छिपा हुआ था, और देखता रहा कि कैसे फादर डोमिनिक आग में समा गए… बिना चीखे, बिना भागे।” कमरे में सन्नाटा छा गया। एलिज़ा के होंठ सूख गए। जॉय की हथेली में दर्द फिर से जाग उठा — जैसे उस स्मृति ने जलन को और भड़काया हो।

थॉमस ने धीरे से आंखें मूंदी और कहा, “लेकिन सबसे खौफनाक बात ये थी… जब लपटें शांत हुईं, और मैं भीतर गया… वहाँ कोई शरीर नहीं था। केवल राख और एक अधजली प्रार्थना की गूंज थी। मैंने उसे अब तक हर साल सुना है… ठीक आधी रात को… लेकिन कभी पूरा नहीं। जैसे वह आज तक अंतिम शब्दों की प्रतीक्षा कर रहा है।” एलिज़ा फुसफुसाई — “क्या वो दूसरी आत्मा अब भी चर्च में है?” थॉमस ने सिर झुका लिया — “नहीं, वो अब वहाँ नहीं है। वो कहीं और बस गई है… शायद किसी में समा चुकी है… किसी ऐसे में, जिसने उसकी आवाज़ सुन ली है।” जॉय का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने थॉमस की ओर देखा, लेकिन थॉमस अब चुप था — जैसे अब सब कह चुका हो। लेकिन उसके शब्दों की प्रतिध्वनि अब जॉय के भीतर गूंज रही थी। चर्च की आत्मा अधूरी थी — और वो अगली कड़ी किसी इंसान के भीतर थी। सवाल अब यह नहीं था कि आत्मा को कौन बुला रहा है — सवाल यह था कि अब किसे चुना गया है?

***

थॉमस की बातों ने जो दरवाज़ा खोला था, वह अब किसी खिड़की से नहीं, एक सुरंग की तरह गहराइयों में उतरता जा रहा था। जॉय की हथेली में अब हल्की जलन नहीं थी, बल्कि हर स्पर्श पर जैसे जलती हुई राख उभर आती थी। वह समझ चुका था — यह कोई प्रतीकात्मक चोट नहीं थी, यह एक कड़ी थी उस अधूरे अनुष्ठान से, जो पचास साल पहले अधूरा रह गया था। उस रात चर्च के कोने में बैठे हुए, जॉय और एलिज़ा ने फादर डोमिनिक का जर्नल फिर से पलटना शुरू किया। आखिरी के पन्ने अब पहले से अधिक भयावह लगे — कुछ शब्द मिट चुके थे, लेकिन कुछ अब पहले से ज्यादा स्पष्ट थे, जैसे उस राख से उठकर लौट आए हों। एक पंक्ति पर दोनों की निगाहें टिक गईं: “यदि आत्मा अधूरी हो… और अग्नि अपूर्ण… तो शरीर मरेगा, पर आत्मा भटकेगी — जब तक कोई उसे पूर्णता न दे।”

जॉय के हाथ काँप गए, लेकिन एलिज़ा ने आगे पढ़ना जारी रखा। “पाँच दीपक, पाँच तत्व, पाँच प्रायश्चित्त…” फादर डोमिनिक ने एक प्राचीन अनुष्ठान का ज़िक्र किया था — जिसे ‘Integri Flamma’ कहा गया था — अर्थात् पूर्ण अग्नि। वह किसी पारंपरिक ईसाई प्रार्थना से भिन्न था। उसमें अग्नि को माध्यम नहीं, उद्देश्य माना गया था — आत्मा को मुक्त करने का नहीं, उसे “पूर्ण” करने का। एलिज़ा ने धीमे से कहा, “उसने आत्मा को शांत करने की कोशिश नहीं की थी… उसने उसे स्थायी रूप से बांधने की कोशिश की थी।” जॉय ने सिर झुका लिया, “वो केवल पुजारी नहीं था, वो आध्यात्मिक रसायनशास्त्री जैसा था — जो मृत्यु और मोक्ष के बीच की रेखा मिटाने की कोशिश कर रहा था।” उनकी बातों के बीच चर्च की पुरानी छत से कुछ झरझराहट हुई — मानो दीवारों ने यह स्वीकार कर लिया हो कि वे वर्षों से इस रहस्य को थामे खड़ी थीं।

उस रात उन्होंने चर्च के वेदी के पीछे रखी उस पुरानी किताब Sanctum Tenebris को फिर से खोला। एक अधखुला पन्ना था, जिसमें पाँच प्रतीकों का चित्रण था — अग्नि, रक्त, वायु, राख और संकल्प। “यह पाँच चीजें चाहिए थीं उस अनुष्ठान को पूरा करने के लिए,” एलिज़ा ने बुदबुदाया, “लेकिन कुछ अधूरा रह गया।” तभी जॉय को याद आया — उस रात जब उसने वेदी के पास की राख को छुआ था, उसे कुछ गर्म महसूस हुआ था, लेकिन साथ ही वह राख अधूरी थी — वह राख नहीं थी, वो केवल प्रतीक थी। और फिर एक स्मृति कौंधी — थॉमस ने कहा था कि “शरीर नहीं मिला।” शायद अग्नि ने शरीर को जला दिया था, पर आत्मा को मुक्त नहीं कर सकी। शायद पाँच में से केवल चार तत्व ही अनुष्ठान में थे — और पाँचवां? “संकल्प,” जॉय ने कहा। “डोमिनिक का अपना मन डगमगाया होगा… शायद वह अंत में डर गया… या कोई उसे रोकने आ गया।”

अब कहानी साफ हो रही थी — लेकिन उससे ज़्यादा भयावह। एलिज़ा ने आँखें बंद कर लीं। “अगर आत्मा को अधूरा अनुष्ठान बाँध कर रखता है… तो क्या उसे अब कोई और पूरा कर सकता है?” जॉय ने उसकी ओर देखा। “वो मुझसे संपर्क कर चुका है… उसने मेरी हथेली पर छाप दी है।” वह बुदबुदाया। “लेकिन मैं उसे पूर्णता नहीं देना चाहता।” तभी चर्च की एक दीवार पर हल्की सी दरार और खिंच गई — मानो वहाँ कोई और सुन रहा हो। वह आत्मा शायद अब इंतज़ार में नहीं थी — वह चुनाव कर चुकी थी। शांति पाने के लिए नहीं, पुनर्प्रवेश के लिए। और यदि यह सच था, तो जॉय अब सिर्फ एक खोजी पत्रकार नहीं था — वह इस शापित अनुष्ठान की अगली कड़ी था। अगली क्रिसमस की रात अब केवल सुनने के लिए नहीं थी — वह शायद अंतिम आरती की पूर्णता का समय बन चुकी थी।

***

बर्फ़ की चादर अब मोटी हो चुकी थी, और चर्च के चारों ओर पहाड़ी रास्ते लगभग बंद हो चुके थे। गांव धीरे-धीरे भीतर सिमटने लगा था, लेकिन सेंट जोसेफ चर्च के भीतर अब भी हल्की गूंजें थीं — मोमबत्तियों की लौ थरथरा रही थी, मानो किसी अनदेखी साँस से काँप रही हो। क्रिसमस की रात बस एक दिन दूर थी। जॉय की हथेली पर बनी जलती छाप अब गहरी हो गई थी, और हर बार जब वह चर्च के भीतर वेदी के पास जाता, उस छाप से जैसे हल्की रोशनी फूटती थी — एक अनचाही, अनजानी ऊर्जा। एलिज़ा अब पूरी तरह उसके साथ थी, लेकिन उसकी आँखों में अब भी यह डर साफ था कि वह जिस आत्मा को मुक्त करना चाह रहे हैं, वो शायद मुक्त होना ही न चाहती हो। सिस्टर एंजेला ने उन्हें आखिरी बार चेताया, “फादर डोमिनिक केवल एक पादरी नहीं थे… वे एक खोजकर्ता थे, पर उनका मार्ग प्रभु की ओर नहीं था। अगर तुमने उसे जगा दिया, तो वह केवल अपना अधूरा काम पूरा करेगा — और उसकी पूर्णता में किसी की बलि होनी तय है।”

उसी शाम, एलिज़ा को चर्च की पुरानी लाइब्रेरी में फर्श के नीचे एक पत्थर की पटिया मिली। जब उन्होंने उसे हटा दिया, तो नीचे एक छोटा सा लकड़ी का संदूक मिला — और उसमें एक पुरानी चाबी, एक जली हुई सफेद वस्त्र पट्टी और एक मोम की मुहर लगी किताब। किताब पर लिखा था: “Agnisakshi: अंतिम साक्षी।” जैसे ही जॉय ने किताब के पन्ने पलटे, उसमें से राख उड़ी और उसकी हथेली पर आकर चिपक गई। एक पृष्ठ पर एक मंत्र उकेरा था — “यदि अग्नि अधूरी रह जाए, तो आत्मा अग्नि ढूंढेगी — किसी और शरीर में प्रवेश के लिए।” अब सब कुछ साफ था। आत्मा अनुष्ठान पूरा नहीं कर पाई थी, क्योंकि अंतिम दीपक — “संकल्प” — उस रात बुझ गया था। और अब आत्मा किसी और के संकल्प को खोज रही है। शायद इसलिए वह जॉय तक पहुँची थी। वह अब जॉय की जिज्ञासा को संकल्प में बदलना चाहती थी — ताकि उसका द्वार फिर खुले। जॉय काँप गया। “अगर मैंने वो आरती पूरी की, तो क्या मेरी देह अग्नि को समर्पित हो जाएगी?” एलिज़ा ने उसका हाथ थाम लिया — “अगर तुमने उसे मुक्त किया, शायद वो तुम्हें छोड़ दे। लेकिन अगर तुम अधूरे रह गए, तो… तुम्हारी आत्मा उसकी तरह भटकेगी।”

रात गहराने लगी। क्रिसमस की आधी रात — The Midnight Mass — अब केवल कुछ घंटे दूर थी। वेदी के पास पांच दीपक सजाए गए — अग्नि, राख, रक्त, वायु, और संकल्प। चार दीपक जल चुके थे। केवल आखिरी दीपक — संकल्प — जॉय के सामने रखा था। तभी चर्च के मुख्य दरवाज़े की घंटी बजी। कोई धीमे क़दमों से भीतर आया। एलिज़ा और जॉय ने मुड़कर देखा — एक सफेद साड़ी में ढकी वृद्ध स्त्री। उसकी आँखों में नीला प्रकाश था, जो मोमबत्ती की लौ से उल्टा जलता दिखता था। “तुम मुझे पहचानते हो,” उसने कहा। “मैं रोसा मथाई हूँ… एलिज़ा की माँ।” एलिज़ा सिहर गई। “तुम जीवित हो?” उसने कहा। “शरीर जीवित नहीं, पर आत्मा अधूरी नहीं रहती,” रोसा ने उत्तर दिया। फिर वह वेदी के पास आई और कहा — “मैंने उस रात उसे रोका था… डोमिनिक को। वह आखिरी मंत्र पढ़ने ही वाला था, जब मैंने दीपक बुझा दिया। मैंने सोचा था, मैं गांव को बचा लूँगी। लेकिन मैं उसे अधूरा छोड़ गई। अब वह तुमसे मांग कर रहा है — अपना अंतिम दीपक।”

जॉय की साँसें थम गईं। वेदी के पास हवा स्थिर थी। पाँचों दीपक जल रहे थे — पर अंतिम दीपक केवल तभी जलता, जब वह अपना संकल्प दे। “अगर मैं मंत्र पढ़ूँ, तो क्या वो शांति पा लेगा?” जॉय ने पूछा। रोसा मुस्कराई — “शांति और मुक्ति दो अलग बातें हैं। वह केवल संपूर्णता चाहता है। अगर तुम्हारा संकल्प कमज़ोर हुआ… वो तुम्हारी देह में समा जाएगा।” एलिज़ा ने जॉय का हाथ पकड़ लिया — “मत करो…” लेकिन जॉय अब पीछे नहीं हट सकता था। वह वेदी के पास आया, अंतिम दीपक के सामने बैठा, और आँखें मूँदकर वही अधूरा मंत्र पढ़ना शुरू किया — जिसे जर्नल में लिखा था। हवा काँपी। मोमबत्तियाँ थरथराईं। और तभी — चर्च के भीतर आग की एक लहर सी उठी, जो दीवारों पर झपकने लगी। फादर डोमिनिक की प्रार्थना अब स्पष्ट गूंज रही थी — पर इस बार उसमें क्रोध नहीं, एक दहकती हुई व्याकुलता थी। जैसे वह कह रहा हो: “अब मुझे पूरा करो!”

जॉय ने मंत्र का अंतिम भाग पढ़ा — और दीपक स्वयं जल उठा। उस क्षण एक तीव्र प्रकाश वेदी के ऊपर से उठा — जैसे किसी आत्मा ने वर्षों बाद मुक्ति की सीढ़ी देखी हो। लेकिन उसी समय जॉय का शरीर काँपने लगा। उसकी आँखें बंद थीं, होंठ थरथरा रहे थे, और हथेली की छाप से आग की लपट निकल रही थी। एलिज़ा चीख पड़ी — “नहीं!” लेकिन देर हो चुकी थी। जॉय ने धीरे से आँखें खोलीं, और उसकी आँखों में अब वही नीली रौशनी थी… जो कभी फादर डोमिनिक की थी। आत्मा अब लौट चुकी थी — और बलि पूर्ण हो चुकी थी।

***

क्रिसमस की वह रात, जब हर चर्च में आरती शांति और विश्वास के गीत बनकर गूंजती है — सेंट जोसेफ चर्च में वह आरती एक आग बनकर फूटी थी। दीवारें, जो दशकों से राख और प्रार्थना के बीच मौन थीं, अब एक बार फिर बोल उठी थीं — पर इस बार वह आवाज़ प्रभु की नहीं, एक अधूरी आत्मा की पूर्णता की थी। जॉय अब वेदी के सामने खड़ा था, पर उसकी आंखों में जॉय नहीं था। वहाँ नीली लपटें नाच रही थीं — एक ऐसी आत्मा की जो अब चालीस वर्षों बाद अपना शरीर पा चुकी थी। एलिज़ा का चेहरा डर से सफेद पड़ चुका था। “जॉय…” उसने धीरे से पुकारा, लेकिन सामने खड़ा व्यक्ति जॉय नहीं था। उसकी चाल धीमी और भारी थी, और उसकी आवाज़ जब उठी, तो उसमें दो स्वर थे — एक जॉय का और एक डोमिनिक का।

“मैं अधूरा नहीं रहा,” वह बोला, “अब आरती पूरी है। आग अब बुझ चुकी है, क्योंकि वह अपना घर पा चुकी है।” तभी पीछे खड़ी रोसा मथाई आगे बढ़ी। उसकी उम्र की झुर्रियाँ अब उसकी आत्मा की दृढ़ता से संघर्ष करती दिख रही थीं। “तुमने बलि ले ली,” उसने कहा, “पर यह बलिदान तुम्हें पवित्र नहीं बनाता।” डोमिनिक-जॉय की आँखें उस पर जमीं रहीं। “तुमने मुझे अधूरा छोड़ा था… तुमने दीप बुझाया था… तुमने मुझे रुकने पर मजबूर किया था।” रोसा आगे बढ़ी और अपनी साड़ी की मुट्ठी से वेदी पर पड़ी राख उठाकर हवा में उड़ा दी। “मैंने तुझे रोका था ताकि तू आत्मा से शरीर का व्यापार न करे। पर अब तू लौट आया है, और तुझे मैं फिर से मिटाऊँगी।”

चर्च के भीतर की हवा अब गर्म हो रही थी। मोमबत्तियों की लौ तेज़ी से कांपने लगी, और दीवारों पर पुरानी दरारों से काले धुएँ की लकीरें उठने लगीं — जैसे कोई और आत्मा अब इस शरीर में समाहित होने से इंकार कर रही हो। “जॉय ने तुझे प्रवेश दिया… पर उसने तेरे अधूरे शुद्धिकरण को पूरा नहीं किया,” रोसा बोली। एलिज़ा समझ चुकी थी कि यह लड़ाई अब केवल आत्मा और शरीर की नहीं — दो युगों की है। एक युग, जो ज्ञान और तपस्या के नाम पर मृत्यु को साधना समझता था, और दूसरा युग, जो जीवन को उस मृत्यु से छुड़ाने की कोशिश कर रहा था। एलिज़ा ने अपनी जेब से फादर डोमिनिक का जर्नल निकाला — उस अंतिम पन्ने पर एक मंत्र लिखा था, जिसे डोमिनिक ने कभी पढ़ा नहीं था। “Liberentem Ignis…” — अग्नि को मुक्त करने वाला।

एलिज़ा ने कांपते स्वर में वह मंत्र पढ़ना शुरू किया। चर्च की दीवारों पर सैकड़ों मोमबत्तियाँ एकसाथ जल उठीं। हवा काँपी, और वेदी पर खड़ा “जॉय” चिल्ला उठा — “तू मुझे फिर अधूरा नहीं छोड़ेगी! मैं अब शुद्ध हूँ! मैं अब स्वयं को दोहराने नहीं दूँगा!” लेकिन एलिज़ा का स्वर तेज़ होता गया। “Liberentem Ignis… Liberentem Ignis…” हर बार जब वह मंत्र दोहराती, वेदी पर खड़े शरीर की लपटें नीली से सफेद होती जातीं — शुद्ध अग्नि की लपटें। और फिर अचानक एक तीव्र प्रकाश से पूरा चर्च नहा गया। एक क्षण को कुछ दिखाई नहीं दिया। केवल राख की गंध, और हवा में एक अनसुनी सी मौन आरती — जो पहली बार पूर्ण थी।

जब प्रकाश कम हुआ, तो वेदी पर केवल जॉय का शरीर पड़ा था — मूर्छित, पर जीवित। उसकी हथेली पर बनी जलती हुई छाप अब हल्की हो चुकी थी — जैसे आग लौट चुकी हो। एलिज़ा उसके पास दौड़ कर आई, और उसकी नब्ज़ टटोली। “वो वापस आया है…” उसने कहा, और पहली बार रो पड़ी। रोसा मथाई अब वेदी के सामने घुटनों के बल बैठी थीं। उन्होंने सिर झुकाकर कहा — “डोमिनिक, अब तुझे मुक्ति मिली… पर तुझमें जो अग्नि थी, वो अगर कभी लौटे… तो ये चर्च फिर तुझे नहीं अपनाएगा।”

उस रात सेंट जोसेफ चर्च में पहली बार ‘पूर्ण आरती’ गूंजी — न जलती हुई, न अधूरी — बल्कि शांत। पर दीवारों में जो राख समा चुकी थी… वो आज भी कभी-कभी चुपचाप सांस लेती है।

***

सेंट जोसेफ चर्च में सुबह की पहली प्रार्थना धीमे स्वर में शुरू हुई। बर्फ़ अब चर्च की छतों से पिघलने लगी थी, और कांच की खिड़कियों पर सूर्य की किरणें पड़ते ही एक स्वर्ण आभा भीतर फैल गई थी — जैसे वर्षों बाद किसी अदृश्य बोझ ने वहां से विदा ली हो। लेकिन जॉय की आंखें अब भी बंद थीं। वेदी के पास उस पत्थर की सीढ़ियों पर वह चुपचाप लेटा था, और एलिज़ा उसके सिरहाने बैठी थी — हाथ में वही जर्नल, जिसके अंतिम पृष्ठ पर राख की एक छाया अब भी बनी हुई थी। रोसा मथाई पीछे से आकर मौन खड़ी रहीं, उनके चेहरे पर अब न क्रोध था, न अपराधबोध — केवल एक गहराई थी, जिसमें एक युग समाप्त हो गया था।

जॉय की आंखें देर से खुलीं — थकी हुई, पर साफ। “मैं कहाँ हूँ?” वह फुसफुसाया। एलिज़ा ने मुस्कराकर उसका माथा छुआ — “तुम वापस हो। और वह… हमेशा के लिए चला गया।” जॉय ने आंखें बंद कर लीं, जैसे कुछ बहुत भारी चीज़ उतर गई हो। “मैंने आग देखी थी… लेकिन उस आग में अब दर्द नहीं था,” उसने धीरे से कहा। “उसने मुझसे कुछ नहीं छीना… सिर्फ खुद को लौटा दिया।” रोसा ने पहली बार उसकी ओर देखा — “शायद वो कभी बुरा नहीं था, जॉय। बस अधूरा था।”

तीन दिन बाद चर्च को दुबारा आशीर्वाद के लिए खोला गया। गांव के लोग जो वर्षों तक उससे दूर रहते थे, वे पहली बार आए — कुछ डरते हुए, कुछ दुआ लेकर। वेदी को नए फूलों से सजाया गया, और मोमबत्तियों की नई कतारें रखी गईं। उस रात जब मध्यरात्रि आरती हुई, तो पहली बार उसकी प्रत्येक पंक्ति पूरी हुई — कोई अनदेखी आवाज़ नहीं, कोई दरारों से उठती फुसफुसाहट नहीं। बस इंसानों की आवाज़ें — स्पष्ट, पवित्र। जॉय ने वह आरती सुनी, और बिना कुछ बोले, अपनी हथेली को देखा — वहाँ अब छाप नहीं थी, केवल एक हल्की सफेदी, जैसे राख के बाद पिघलती बर्फ़।

लेकिन आत्माओं की कहानियाँ दीवारों से जल्दी नहीं जातीं। उसी शाम, जब जॉय चर्च के पीछे बने पुराने कमरे में कुछ पुरानी किताबें समेट रहा था, उसे एक दराज़ में छोटा-सा मिरर बॉक्स मिला। भीतर एक जली हुई कंठी और एक स्याही में डूबी चिट्ठी थी — उस पर केवल तीन शब्द लिखे थे: “In Nomine Ignis.” (अग्नि के नाम पर.) जॉय ने चिट्ठी को मोड़ा और खिड़की से बाहर देखा — पहाड़ियों के पार सूरज डूब रहा था, और उसके पीछे, दूर-दूर तक बर्फ पिघल रही थी। उस क्षण वह जान गया — कुछ आत्माएँ मुक्ति चाहती हैं, पर कुछ केवल अपनी आरती पूरी करना चाहती हैं।

सेंट जोसेफ चर्च अब शांत है। दीवारें साफ हैं, राख बहा दी गई है, और आरती केवल इंसानों के कंठ से गूंजती है। लेकिन हर क्रिसमस की रात, जब मध्यरात्रि की आरती शुरू होती है, तो वेदी की सबसे ऊँची मोमबत्ती की लौ थोड़ी देर के लिए नीली हो जाती है — मानो कोई पुरानी आत्मा वहां बैठकर सुन रही हो, कि उसकी अंतिम प्रार्थना अब पूरी हो चुकी है।

– समाप्त –

 

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