• Hindi - प्रेम कहानियाँ

    रात का दूसरा किनारा

    आर्या मेहता पुराने शहर की गलियों में नवंबर की धुंध ऐसे उतरती थी, जैसे कोई धीमी धुन दीवारों पर टिक-टिक करती हो। शाम के पाँच बजते ही सफ़ेद रोशनी वाले बल्बों के चारों ओर पतंगों की नन्ही परिक्रमा शुरू हो जाती, और मिट्टी से आती सोंधी गंध लोगों के चेहरों पर अनजाने-से भाव रच देती। उसी धुंध में, चौक की मोड़ पर, “गुलमोहर लाइब्रेरी” अपनी लकड़ी की खिड़कियों के पीछे शांति की एक अलग दुनिया समेटे बैठी रहती—पुराने पन्नों की महक, फुसफुसाहट-सी आवाज़ें, और गिरे हुए पत्तों की ख़ामोशी। अदिति ने दरवाज़ा धकेला तो घंटी की एक पतली-सी ‘टिन’ बजकर…

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    चाय और वो पुराना स्टेशन

    नीलेश राघव स्टेशन वही था—प्लेटफॉर्म नंबर तीन, पुरानी लकड़ी की बेंच, जंग खाया पीला बोर्ड, और सामने वही चायवाला, जो कभी मेरी कॉलेज की सुबहों की शुरुआत करता था। अब भी वो पुराने केतली में चाय उबाल रहा था, जैसे वक्त ने उसे छुआ तक नहीं। मैंने पास जाकर कहा, “तू अभी भी यहाँ चाय बेचता है?” वो चौंक गया, फिर मुस्कराया, “अरे भैया… नीलेश भैया ना? आप तो… कितना साल हो गया आपको देखे हुए!” “बीस,” मैंने कहा, “करीब बीस साल।” उसने सिर हिलाया, “पर चाय वही है। पीजिएगा?” मैंने पाँच का सिक्का बढ़ा दिया। उसने कुल्हड़ में चाय…