अमितेश ठाकुर एपिसोड 1 — बारिश की गवाही रात की बारिश समंदर से उठी हवा में नमक घोल रही थी। सिवरी के जर्जर डॉक पर पीली रोशनी के नीचे धरती काली चमकती थी, जैसे किसी ने डामर पर तेल उँडेल दिया हो। कंटेनर नंबर 7C-319 की मुहर टूटते ही लोहे की चरमराहट से हवा काटती हुई निकली और चुप्पी के बीच आर्यन भोसले ने आधी नज़र घड़ी पर डाली—01:47। उसके साथ तीन और लोग थे—दारू का कैप उल्टा लगाए योगी, चुपचाप रहने वाला शागिर्द समीर, और सांवला, ठिगना ड्राइवर जग्गू। सब हथियारबंद, सबकी उँगलियाँ ट्रिगर की खाल से दोस्ती करती…
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आरव सक्सेना भाग 1 : भीड़ के बीच पहली नज़र पुरानी दिल्ली का दिल है चाँदनी चौक। यहाँ की गलियाँ इतनी तंग हैं कि दो साइकिलें साथ निकलें तो लगता है जैसे दीवारें कानाफूसी कर रही हों। सुबह का वक़्त था। सूरज की सुनहरी रोशनी लाल क़िले की बुर्ज़ों से उतरकर हौज़ क़ाज़ी की तरफ़ फैल रही थी। दुकानों के शटर धीरे-धीरे उठ रहे थे, पर गलियाँ पहले ही ज़िंदा हो चुकी थीं। मिठाईवालों के यहाँ से ताज़े जलेबी की महक, चायवालों की केतली से उठती भाप और रिक्शों की घंटियों की आवाज़ मिलकर एक अलग ही संगीत बना रही…
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অরিন্দম মুখোপাধ্যায় পর্ব ১ – অদ্ভুত চিঠি শহরের ভেতরে এমন সব গলি আছে যেগুলোতে সূর্যের আলো পৌঁছতে চায় না, আর চাইলেও পৌঁছতে পারে না। পুরনো ইমারত, একটার গায়ে আরেকটা ঠেসে দাঁড়িয়ে আছে, জানলার গ্রিলগুলো মরচে পড়ে ক্ষয়ে গেছে, ভাঙা তার ঝুলে আছে রাস্তায়। সেই অন্ধকার গলির মধ্যে দাঁড়িয়ে আছে একটা বিশাল বারো তলা বাড়ি, যেটাকে আশপাশের মানুষ শুধু “ছায়ার বাড়ি” বলে ডাকে। কারণ এই বাড়ির জানলাগুলোতে গত দশ বছর ধরে কোনো আলো জ্বলে উঠতে দেখা যায়নি। তবুও মাঝেমাঝে অনেকে বলে থাকে, রাত বারোটার পর ওই বাড়ির ছাদে নাকি একটা অস্পষ্ট ছায়া দেখা যায়, কিন্তু কাছে গিয়ে কিছু বোঝা যায় না।…
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ঋষভ চট্টোপাধ্যায় পর্ব ১ পথঘাট যেন ধূলোর স্তুপে ঢাকা পড়ে গেছে। মাথার ওপর রোদের আগুন, পায়ের তলায় খসখসে গরম, আর মাঝখানে দাঁড়িয়ে ঋদ্ধি—একটি কাপড়ে মুখ বাঁধা, চোখে ভোঁতা সানগ্লাস, কাঁধে বাবার পুরনো হ্যান্ডহেল্ড ডেটা রিডার। আজ ‘ডে-৩৫৫’। টানা ৩৫৫ দিন বৃষ্টি হয়নি। সরকার যাকে বলে “জল-ঘাটতির স্বাভাবিক পর্যায়,” মানুষ তাকে বলে মৃত্যু-সপ্তাহ। কলকাতা এখন আর সেই ছায়াঘেরা গাছতলার শহর নয়। রাস্তায় হাইব্রিড বাস চলে না, ট্রামের ট্র্যাক মরচে পড়ে ঝরে যাচ্ছে। মানুষ জল কিনে খায়, বাতাস ফিল্টার ছাড়া শ্বাস নেওয়া অসম্ভব। সন্ধ্যা নামলেই বন্ধ হয়ে যায় শহরের বিদ্যুৎ। লোডশেডিং এখন আর নিউজে আসে না—এটা এখন স্বাভাবিক। ঋদ্ধির বয়স আঠারো, কিন্তু…