G. Somasundaraman Episode 1 – The Spark The small café on College Street smelled of wet books and old coffee, a place where poets once argued about revolution and students rehearsed their lives in whispers. It was here, under a flickering ceiling fan and between chipped wooden tables, that four friends first whispered the idea that would change everything. Arjun tapped his cracked Lenovo laptop with a kind of nervous pride, showing the others the terminal lines rolling across the screen. Beside him, Meera adjusted her glasses, her fingers already scrolling through documentation she had half-memorized. Rakesh leaned back, cocky…
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অরিন্দম লাহিড়ী পর্ব ১: রেখার ভেতর লুকোনো মুখ কলকাতার বর্ষার দিনগুলোর আলাদা একটা গন্ধ আছে। ভিজে মাটির সঙ্গে পুরোনো বইয়ের পাতা মিশে এক ধরনের স্যাঁতসেঁতে শ্বাস ছড়িয়ে দেয় শহরের অলিগলিতে। আড্ডাতলার সেই ভাঙাচোরা চায়ের দোকানটার সামনে বৃষ্টির ফোঁটা তিরতির করে ঝরছিল টিনের চাল থেকে। দোকানটা শহরের পুরোনো সাংবাদিক, লেখক, চিত্রশিল্পীদের এক অদ্ভুত আড্ডাখানা। সেই দোকানের কোণের টেবিলে বসেছিল অরিজিৎ সেন—চল্লিশের কোটায় পৌঁছে যাওয়া এক কার্টুনিস্ট। তার চুলগুলো কিছুটা অগোছালো, চোখের নিচে কালো দাগ, আঙুলে শুকিয়ে যাওয়া কালির ছোপ। অরিজিৎ সেই দিন একটা নতুন কাজ আঁকছিল। কাগজে আঁকা মানুষগুলো তার কাছে শুধুই ব্যঙ্গাত্মক চরিত্র নয়, যেন তারা জীবন্ত হয়ে ওঠে। আজকের…
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आरव चौबे सुबह की चाय जैसे यमुना के पानी में उगता सूरज घोल देता है—गुनगुना, धुएँ-सा। विश्राम घाट पर घंटियों की अनगिन गूँज है; आरती का आख़िरी स्वर हवा में तैर रहा है। धूल-मिट्टी, धूप और भीगे पत्थरों की ख़ुशबू को माँ सरोज की उबलती चाय की भाप अलग से पहचान दिला रही है। “राघव! कप धो दिये?” सरोज ने चूल्हे के पास से गर्दन घुमाई। “हो गये, अम्मा,” राघव ने बेंत की टट्टी पर सूखते गिलास उलटते हुए कहा। उसकी हथेलियाँ नाव की रस्सियों जैसी थी—ख़ुरदरी पर भरोसेमंद। कल्लू अपना ऑटो किनारे खड़ा करके आया, “दो कटिंग इधर भी…
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आरव मिश्रा भाग 1 – परिचय रामू की सुबह बाकी लोगों से बहुत अलग नहीं थी, पर उसमें कुछ खासियत थी जिसे वह खुद ही पहचानता था। उसकी आँखें भोर के हल्के उजाले के साथ खुल जातीं। घर छोटा था—मोहल्ले की तंग गलियों के बीच एक कमरे का मकान, जिसकी छत पर टीन की चादरें लगी थीं। गर्मियों में वे चादरें आग की तरह तपतीं और सर्दियों में उन पर ओस की बूंदें मोतियों की तरह चमकतीं। मगर रामू ने कभी शिकायत नहीं की। रामू की उम्र पैंतीस के आसपास थी। चेहरे पर हल्की दाढ़ी और माथे पर हमेशा…
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অরিত্র বসু পর্ব ১: শহরের রোদের মতো নয় আমার নাম অরিত্র। কলকাতা শহরের বুক থেকে উঠে আসা, ইউনিভার্সিটির পড়া শেষ করে একটা ছোট বিজ্ঞাপন সংস্থায় কাজ করি। বেঁচে থাকি ক্যাফেতে, পাতালরেলে, রেড ওয়াইনের আলোছায়ায়। তবু, কখনো-কখনো একটা নির্জনতা আমাকে টানে, যেন নিজের ছায়াকেও চিনতে পারছি না এই ভিড়ে। তাই অফিসের এক মাসের ছুটি পেয়েই আমি ঠিক করলাম – যাবো পুরুলিয়ার এক আদিবাসী গ্রামে। নাম – করমডি। সে নাম কেউ চেনে না। আর তার মানেই হয়তো শান্তি। সেই গ্রামে যাবার আগে একমাত্র সম্বল ছিল কিছু পুরোনো গল্প – বাবা বলত, একসময় সে এখানে ক’মাস ছিল, ছাত্রজীবনে। “সেই লাল মাটির পথ দিয়ে…