অস্মিতা ঘোষ অধ্যায় ১: স্মৃতির পুরনো খাতায় শহরের এক কোণে অর্ধেক ভেঙে যাওয়া সিঁড়ি বেয়ে উঠে যাওয়া কোলাহলমুক্ত বাড়িটি ছিল একসময় ‘কলকাতা কলেজ অব আর্টস’-এর পুরনো ভবন। এখন তার গায়ে ধুলো জমে, গায়ে গায়ে শ্যাওলা, আর ভেতরে জমে থাকা স্মৃতি। ঠিক তেমনই একটা সকালের কথা। ডিসেম্বরের মিঠে রোদে কাঠের জানালার ফাঁক গলে আলো পড়ে সাদা পাথরের করিডোরে। আর করিডোর জুড়ে পা ফেলে হাঁটছে এক মধ্যবয়সী পুরুষ – সুদীপ্ত সেন। সুদীপ্ত এখন একটি বিজ্ঞাপন সংস্থায় সিনিয়র কনসালট্যান্ট। সময়ের সঙ্গে অনেক কিছু বদলেছে—চুলে পাক ধরেছে, মুখে পরিণত এক বিষণ্নতার রেখা, কিন্তু চোখদুটি এখনও সেই রকমই স্বপ্নময়। বহুদিন পর ফিরেছে কলেজে—প্রাক্তনী মেলা উপলক্ষে।…
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समीरा खान पहला भाग: वो शाम कुछ अलग थी दिल्ली की शामों में एक अजीब सी बात होती है। भीड़भाड़, ट्रैफिक, और गाड़ियों के हॉर्न के शोर के बीच भी कभी-कभी एक ऐसी ख़ामोशी उतरती है जो सीधे दिल तक पहुँचती है। ऐसा लगता है जैसे शहर थम सा गया हो, बस एक धीमा संगीत बचा हो – सड़क पर चलते लोगों के कदमों की थाप, कॉफी शॉप से आती भुनी हुई बीन्स की ख़ुशबू, और हवा में घुली एक अनकही बेचैनी। उस शाम भी कुछ ऐसा ही था – सिर्फ़ थोड़ा और खास। मैं, आरव मलिक, एक साधारण सा…
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হেমন্ত বৰা ১ সুযোগ কেতিয়াবা নিশব্দে আহে, দীপ্তিৰ জীৱনত সেইদিনা তেনে এটা মুহূৰ্ত এৰাই গৈছিল। গুৱাহাটী বিশ্ববিদ্যালয়ৰ কলা শাখাৰ তৃতীয় বৰ্ষৰ ছাত্ৰী, দীপ্তি, বৰষুণত ভিজি কলাভৱনৰ সন্মুখত থিয় আছিল। পানী বৰষুণৰ দৰে নহয়—যেন কিছুমান ভাবনা ওলাই আহিছিল তেওঁৰ চকুতে। প্ৰত্যেক টোপাল যেন এটা প্রশ্ন, এটা অতীত, এটা অচিন জগতে নিয়া পথ। তেওঁৰ গা ধৰা নেমিক্স চাদৰখনে সাৰি উঠি গৈছিল কঁকাললৈ। তেওঁৰ কাণত লাগি আছিল টিনৰ ছাঁতিত বৰষুণৰ ধ্বনি—টুপ টুপ টুপ। কলেজৰ আন ছাত্ৰ-ছাত্ৰী বেয়া বতৰত দৌৰি গৈছিল, আপোনা-আপোনাৰ আশ্ৰয় বিচাৰি। দীপ্তি, সেই আশ্ৰয় বিচৰা মানুহৰ ভিতৰত নাছিল। তেওঁৰ থিয় দিয়া ইচ্ছাটি যেন ওলালেই আহে, “হয়তো কাকো কোনোদিন বিদায় দিয়া হোৱা…
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नीरज सहाय भाग 1 सुबह की ठंडी हवा में हल्की-हल्की धुंध तैर रही थी। दिल्ली के पुरानी रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म नंबर तीन अपनी चिर-परिचित हलचल में डूबा था। चायवालों की आवाज़, कुलियों की पुकार, और यात्रियों की चहल-पहल के बीच एक कोना ऐसा था जहाँ समय जैसे कुछ देर के लिए ठहर जाता था — वही पुरानी किताबों की दुकान, जिसकी लकड़ी की अलमारी में से स्याही और पुराने कागज़ की मिली-जुली खुशबू आती थी। अर्जुन वहीं खड़ा था, अपनी आदत के मुताबिक। हर शुक्रवार की सुबह, ठीक दस बजे, वो वहाँ आता और कोई न कोई किताब खरीदकर…
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Rhea Solace Part 1 There was nothing extraordinary about the small writing desk by the window—except perhaps, how it held hundreds of lives within it. Neatly stacked ivory paper, a brass fountain pen with fading gold initials, and a mug forever stained with tea. This was where Aanya wrote love stories… not hers, but everyone else’s. Every day, she sat with requests. A line from a shy lover, a paragraph from an apologetic husband, a mother trying to bridge years of silence with her daughter. Aanya wrote letters for them all. Anonymous, elegant, and filled with emotions she had never…