आर्या मेहता पुराने शहर की गलियों में नवंबर की धुंध ऐसे उतरती थी, जैसे कोई धीमी धुन दीवारों पर टिक-टिक करती हो। शाम के पाँच बजते ही सफ़ेद रोशनी वाले बल्बों के चारों ओर पतंगों की नन्ही परिक्रमा शुरू हो जाती, और मिट्टी से आती सोंधी गंध लोगों के चेहरों पर अनजाने-से भाव रच देती। उसी धुंध में, चौक की मोड़ पर, “गुलमोहर लाइब्रेरी” अपनी लकड़ी की खिड़कियों के पीछे शांति की एक अलग दुनिया समेटे बैठी रहती—पुराने पन्नों की महक, फुसफुसाहट-सी आवाज़ें, और गिरे हुए पत्तों की ख़ामोशी। अदिति ने दरवाज़ा धकेला तो घंटी की एक पतली-सी ‘टिन’ बजकर…
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অভিজিৎ শইকীয়া বাৰিষাৰ পিচত গুৱাহাটীৰ ৰাস্তাবোৰৰ কিছুমান বিশেষ গন্ধ থাকে। কেঁচা মাটিৰ গন্ধ, কফিৰ গন্ধ, বাটত সোমোৱা নতুনকৈ ধোৱা কাপোৰৰ গন্ধ, আৰু কেতিয়াবা কিবা অতীতৰ। “Beans & Books”—বাৰগাঁওৰ এটি কফি শ্বপ—এইবোৰ গন্ধৰ সৈতে একেধৰণৰ স্মৃতিৰো আধাৰ। ঠাণ্ডা এচিপ কফিৰ দৰে উষ্ণ। ইমা প্ৰতিদিনে আহে। কালধুপীয়া চামৰাৰ জেকেট, ভাঙি পৰা ছাতা, আৰু এটা নীল মেকআপ বিহীন মুখ। পেছাতে বহাগ বিহুত কিছুমান গীত লিখিছিল, এখন স্থানীয় থিয়েটাৰত বাজিছিল। তাৰ পাছত এজাক চিনাকি ওলালেও, ইমা আজি ঘূৰি আহিছে একেবাৰে অচিনাকী হৈ। লেখাৰ টেবুলটো হ’ল তেওঁৰ, কাষৰ ব’কা খুঁটি এখনৰ ঠিক পিচত থকাটো। অণুৰাগ আজি প্ৰথমে পতা চুলিত আহিল। লেপটপ লৈ, টেবুলৰ লেম্পটো অফ…
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रेशमा गुलज़ार 1 दिल्ली की गर्मी जब जून के तीसरे हफ्ते में साँस लेने लगती है, तो शामें धुएँ में घुल जाती हैं। ट्रैफिक की आवाजें खिड़कियों के भीतर तक आती हैं, और पर्दे धीमे-धीमे नाचते हैं, जैसे किसी ने उन्हें एक धीमा राग गुनगुनाया हो। अन्वी ने लैपटॉप बंद किया। स्क्रीन पर वो तीसरा पैराग्राफ अब भी अधूरा था—एक स्त्री का स्पर्श लिखते-लिखते उसकी अपनी त्वचा पर सिहरन सी दौड़ गई थी। उसने कॉफ़ी मग उठाया, जो अब ठंडा हो चुका था। बालों की एक लट उसकी गर्दन पर टिक गई थी—गर्मी और अधूरी नींद दोनों की गवाही देती…
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கிருத்திகா சுந்தரம் பருவம் 1: முதல் மழை மழை சின்னச் சின்ன துளிகளாக விழ ஆரம்பித்தபோது, மீரா பஸ் ஸ்டாப் அருகே நின்று கொண்டிருந்தாள். அவளுடைய கருப்பு நீளச்சால்வை புழுங்கி, காற்றில் ஓர் இசை போலே அசைந்தது. கையில் ஒரு பழைய நோட்டு, முகத்தில் ஒரு அலட்சியமான அமைதி. ஆனால் உள்ளுக்குள்ளே மழை இவளுக்கு ஒரு நினைவு போல இருக்கிறது — கடந்த ஐந்து ஆண்டுகளாக அழியாத ஒரு சின்ன அழுத்தம். அதிகாரி அவின் குரல் ரேடியோவில் எதிரொலிக்கையில், அவள் தலையை தூக்கிப் பார்த்தாள். பக்கத்து கடையில் இருந்த ரேடியோவில், அவன் பேசியிருந்தது. “மழை என்றாலே நம்ம ஊரு வாசனை மட்டுமல்ல… சில நினைவுகளும் கூட வருகிறது,” என்ற அவன் குரல் மீராவை சில நொடிய்களுக்கு நிலைத்துவைத்தது. அவின். அந்தப் பெயரை கேட்கும் போதே, அவளது இதயம் ஒரு நிமிடம் துள்ளியது. 2018-ல், கோவை யூனிவர்சிட்டியில் அந்த முதலாம் ஆண்டு தமிழ்…
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Ayesha Fernandes Part 1: The First Drop The rain came slow, like a lover hesitating at the doorstep. It began with a whisper against the rusted railing of the old apartment on Chapel Road, then picked up its rhythm like tabla fingers on taut skin. Amara stood by the half-open window, brush frozen mid-air, eyes half-lidded in thought. The canvas before her bore the beginning of a woman’s face, unfinished—like everything else in her life these days. She wasn’t supposed to paint today. She had promised herself a break. But the monsoon had this way of stirring her skin, cracking…
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नीरज सहाय भाग 1 सुबह की ठंडी हवा में हल्की-हल्की धुंध तैर रही थी। दिल्ली के पुरानी रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म नंबर तीन अपनी चिर-परिचित हलचल में डूबा था। चायवालों की आवाज़, कुलियों की पुकार, और यात्रियों की चहल-पहल के बीच एक कोना ऐसा था जहाँ समय जैसे कुछ देर के लिए ठहर जाता था — वही पुरानी किताबों की दुकान, जिसकी लकड़ी की अलमारी में से स्याही और पुराने कागज़ की मिली-जुली खुशबू आती थी। अर्जुन वहीं खड़ा था, अपनी आदत के मुताबिक। हर शुक्रवार की सुबह, ठीक दस बजे, वो वहाँ आता और कोई न कोई किताब खरीदकर…
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Subhankar Roy The Face in the Mirror In the clay-walled room of his mud house, Gokul sat cross-legged before a cracked mirror, the bristles of his paintbrush trembling slightly as he dipped it into a pot of red. The morning sun filtered through a bamboo blind, casting lines across his bare chest. Today, he would become Hanuman. With practiced hands, he painted white strokes over his brow, outlined his eyes in black, and added bold red lips. The paint smelled of turmeric and earth. It was the scent of his childhood, of his father’s hands guiding his tiny fingers to…