प्रियांशु त्रिवेदी भाग 1 : पहली मुलाक़ात वाराणसी की संकरी गलियाँ हमेशा से एक रहस्य समेटे रहती हैं—कभी पान की लाली से सजी हंसी, तो कभी मंदिर की घंटियों में घुली प्रार्थना। सूरज जैसे ही गंगा के ऊपर लालिमा फैलाता, घाट की सीढ़ियाँ जीवन से भर जातीं। ठीक ऐसे ही एक सुबह, दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती की तैयारी हो रही थी। भीड़ जमा हो चुकी थी, पुजारियों के मंत्रोच्चार वातावरण में घुल रहे थे, और हवा में अगरबत्ती का धुआँ लहराते हुए अतीत और वर्तमान को जोड़ रहा था। इसी भीड़ में थी आर्या—सफेद सूती सलवार में, हाथ में…
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Part 1 – The Departure The train screeched out of Howrah station, its wheels clattering like a restless animal tugging at chains. Rhea pressed her forehead to the cool window glass and watched the sprawling iron bridge dissolve into a maze of warehouses, smoke, and rust-colored walls. Behind her, the compartments were thick with the smell of fried luchis, boiled eggs, thermos-tea, and the constant drone of people talking, bargaining, gossiping as if no one on the train was a stranger. She hugged her sling bag tight, inside which her camera and notebook waited. A photo-essay project, her professors had…
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नवनीत विश्वास 1 हर सुबह जैसे मुंबई जागती है – गाड़ियों की आवाज़, लोकल ट्रेनों की घरघराहट, और भीड़ के कोलाहल में – उसी के साथ एक और दुनिया भी आँखें खोलती है: डब्बावालों की दुनिया। ये वो लोग हैं जो रोज़ लाखों लोगों के घर का खाना, सैकड़ों किलोमीटर दूर, बिना एक गलती के, समय पर पहुँचा देते हैं। नाथा पाटील, लगभग साठ साल के बुज़ुर्ग डब्बावाले, इस दुनिया के एक अनुभवी सिपाही हैं। सफेद नेहरू टोपी, हल्की झुर्रियों वाली मुस्कान, और आँखों में वर्षों का अनुभव। सुबह चार बजे उनकी नींद खुलती है, जैसे शरीर में कोई अलार्म…