अन्वी शर्मा मसूरी की वादियाँ उस दिन कुछ ज़्यादा ही ख़ामोश थीं। हल्की बारिश की बूँदें पेड़ों की पत्तियों से फिसलती हुई ज़मीन को चूम रही थीं, और दूर-दूर तक एक धुंधली सी चादर फैल चुकी थी। लाइब्रेरी की पुरानी लकड़ी की खिड़की से टिककर बैठी आव्या वही किताब फिर से पढ़ रही थी—‘निराला की कविताएं’। हर महीने कम से कम एक बार वो इस किताब को उठाती, जैसे किसी पुराने दोस्त से मिलने जाती हो। किताबों के उस शांत कमरे में हर चीज़ व्यवस्थित थी—टेबल पर रखे पुराने रिकॉर्ड कार्ड, आलमारी की चाभियों का गुच्छा, और दीवार पर टंगी…