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    सिगरेट के धुएं में एक अधूरी कविता

    अन्वी शुक्ला बंद कमरा और अधूरी कविता इलाहाबाद विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग, समय की परतों से ढका हुआ, उन इमारतों में से एक था जहाँ दीवारें भी शेर सुनाती थीं। पुराने बरामदे, लोहे के गेट, और बरगद के नीचे लगे बेंच — सबमें कोई ना कोई दास्तान अटकी हुई थी। प्रोफेसर यतीन भटनागर, जिन्हें सब आदर से ‘यतीन सर’ कहते थे, हर दिन सुबह नौ बजे ठीक उसी बेंच पर बैठकर अपनी चाय पीते, मानो वक़्त को अपनी हथेली में थामे बैठे हों। उस दिन भी कुछ अलग नहीं था, सिवाय इसके कि हवा में कुछ अजीब था—जैसे कोई धुआँ……