राकेश त्रिपाठी भाग 1 – अस्सी घाट की पहली सुबह सुबह के पाँच बज रहे थे। नवंबर की हल्की ठंडी हवा में वाराणसी शहर अभी नींद से पूरी तरह जागा नहीं था, लेकिन अस्सी घाट पर चहल-पहल शुरू हो चुकी थी। मैंने अपने बैग को कंधे पर टाँगा और होटल से बाहर निकलते ही महसूस किया कि यह यात्रा बाकी यात्राओं से अलग होने वाली है। सड़कें अभी तक खाली थीं, पर जैसे-जैसे मैं घाट की ओर बढ़ा, गली-कूचों में चाय की दुकानों से उठती भाप, समोसे तले जाने की खुशबू और पुकारते हुए ठेलेवाले धीरे-धीरे जीवन का संगीत छेड़…