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    घाटों पर लिखी मोहब्बत

    प्रियांशु त्रिवेदी भाग 1 : पहली मुलाक़ात वाराणसी की संकरी गलियाँ हमेशा से एक रहस्य समेटे रहती हैं—कभी पान की लाली से सजी हंसी, तो कभी मंदिर की घंटियों में घुली प्रार्थना। सूरज जैसे ही गंगा के ऊपर लालिमा फैलाता, घाट की सीढ़ियाँ जीवन से भर जातीं। ठीक ऐसे ही एक सुबह, दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती की तैयारी हो रही थी। भीड़ जमा हो चुकी थी, पुजारियों के मंत्रोच्चार वातावरण में घुल रहे थे, और हवा में अगरबत्ती का धुआँ लहराते हुए अतीत और वर्तमान को जोड़ रहा था। इसी भीड़ में थी आर्या—सफेद सूती सलवार में, हाथ में…