समीरा खान पहला भाग: वो शाम कुछ अलग थी दिल्ली की शामों में एक अजीब सी बात होती है। भीड़भाड़, ट्रैफिक, और गाड़ियों के हॉर्न के शोर के बीच भी कभी-कभी एक ऐसी ख़ामोशी उतरती है जो सीधे दिल तक पहुँचती है। ऐसा लगता है जैसे शहर थम सा गया हो, बस एक धीमा संगीत बचा हो – सड़क पर चलते लोगों के कदमों की थाप, कॉफी शॉप से आती भुनी हुई बीन्स की ख़ुशबू, और हवा में घुली एक अनकही बेचैनी। उस शाम भी कुछ ऐसा ही था – सिर्फ़ थोड़ा और खास। मैं, आरव मलिक, एक साधारण सा…