कविता अग्रवाल भाग 1: कॉफी मशीन के पास ऑफिस की सातवीं मंज़िल पर हर सुबह नौ बजकर पैंतालीस मिनट पर कॉफी मशीन के पास एक तयशुदा सी हलचल होती थी। मशीन की टन-टन की आवाज़, प्लास्टिक के कपों की हल्की खनखनाहट और थोड़ी-सी सुबह की थकान लिए लोग—इन सबके बीच आकांक्षा का आना किसी नियम की तरह था। सफेद कुर्ते और नीली जींस में वो आती, मशीन के पास खड़ी होकर कॉफी का बटन दबाती, और जब तक मशीन गुनगुना कर उसके लिए गर्म कॉफी गिराती, वो अपनी नीली डायरी में कुछ लिख लेती। उसी वक्त पहली बार आदित्य ने…