• Assamese

    ধূলিৰ পথৰ মানুহ

    অৰ্ণব মহন্ত পৰ্ব ১: গাঁওখনৰ প্ৰথম পলক সূৰ্যোদয়ৰ লগে লগে গুৱাহাটী চহৰৰ উপকণ্ঠত থকা দিহিং চাহ-বাগিচাৰ গাঁওখনে নতুন দিনৰ আভাস পাইছিল। ৰাতিপুৱাৰ শিশিৰে ভিজা ঘাসবোৰত ধুপধুপীয়া পোহৰৰ বিন্দুবোৰ লটকাই ৰখা যেন দিশে দিশে সৰু সৰু দীপশিখা। গাঁওখনৰ মাটিৰ পথত হেঁপাহী গাঁওবুঢ়া মানুহজনী কণ্ঠত ভজন গাই গৈছিল—সেই সুৰে পাখীবোৰৰ কলগীত মিলি এক অদ্ভুত সুৰভিত সময় গঢ়ি তুলিছিল। চাহ-বাগিচাৰ শ্রমিকসকলে দুহাতত বাঁকা কাঁচি লৈ দল বেঁধি গৈছিল। কিয়নো সূৰ্য উঠি উঠি পাহাৰখনৰ আঁচলত ঢলি পৰাৰ আগতেই তেওঁলোকক কাজিয়া আৰম্ভ কৰিব লাগিব। ধোঁৱায় ভৰা মাটিৰ চাহপাতবোৰ কেটে কেটে দলনি ভৰাই, তাতেই তেওঁলোকৰ দিনৰ ভাতৰ উপাৰ্জন। সেই লোকসকলৰ মাজত বহুতো সন্তান পঢ়িবলৈ পায়নেহি। গাঁওখনৰ…

  • Hindi - क्राइम कहानियाँ

    खून का सौदा

    राहुल देव मुंबई की बारिश अक्सर शहर को धो देती थी, पर उस रात की बारिश ने मानो अपराध की गंध को और गाढ़ा कर दिया था। लोअर परेल की एक संकरी गली में पीली बत्तियों के नीचे पानी चमक रहा था। उसी अंधेरे में एक आदमी दौड़ रहा था—काले रेनकोट में, हाथ में किसी पुराने अखबार में लिपटा पैकेट। पीछे से पुलिस सायरन की आवाजें गूंज रही थीं। वह आदमी हर मोड़ पर पीछे मुड़कर देख रहा था, जैसे कोई अदृश्य शिकारी उसका पीछा कर रहा हो। कुछ ही देर बाद वह एक जर्जर इमारत के भीतर घुसा। सीढ़ियों…

  • Bangla - রহস্য গল্প

    কালি আর ছায়া

    অরিন্দম লাহিড়ী পর্ব ১: রেখার ভেতর লুকোনো মুখ কলকাতার বর্ষার দিনগুলোর আলাদা একটা গন্ধ আছে। ভিজে মাটির সঙ্গে পুরোনো বইয়ের পাতা মিশে এক ধরনের স্যাঁতসেঁতে শ্বাস ছড়িয়ে দেয় শহরের অলিগলিতে। আড্ডাতলার সেই ভাঙাচোরা চায়ের দোকানটার সামনে বৃষ্টির ফোঁটা তিরতির করে ঝরছিল টিনের চাল থেকে। দোকানটা শহরের পুরোনো সাংবাদিক, লেখক, চিত্রশিল্পীদের এক অদ্ভুত আড্ডাখানা। সেই দোকানের কোণের টেবিলে বসেছিল অরিজিৎ সেন—চল্লিশের কোটায় পৌঁছে যাওয়া এক কার্টুনিস্ট। তার চুলগুলো কিছুটা অগোছালো, চোখের নিচে কালো দাগ, আঙুলে শুকিয়ে যাওয়া কালির ছোপ। অরিজিৎ সেই দিন একটা নতুন কাজ আঁকছিল। কাগজে আঁকা মানুষগুলো তার কাছে শুধুই ব্যঙ্গাত্মক চরিত্র নয়, যেন তারা জীবন্ত হয়ে ওঠে। আজকের…

  • Hindi - सामाजिक कहानियाँ

    मथुरा मोड़

    आरव चौबे सुबह की चाय जैसे यमुना के पानी में उगता सूरज घोल देता है—गुनगुना, धुएँ-सा। विश्राम घाट पर घंटियों की अनगिन गूँज है; आरती का आख़िरी स्वर हवा में तैर रहा है। धूल-मिट्टी, धूप और भीगे पत्थरों की ख़ुशबू को माँ सरोज की उबलती चाय की भाप अलग से पहचान दिला रही है। “राघव! कप धो दिये?” सरोज ने चूल्हे के पास से गर्दन घुमाई। “हो गये, अम्मा,” राघव ने बेंत की टट्टी पर सूखते गिलास उलटते हुए कहा। उसकी हथेलियाँ नाव की रस्सियों जैसी थी—ख़ुरदरी पर भरोसेमंद। कल्लू अपना ऑटो किनारे खड़ा करके आया, “दो कटिंग इधर भी…

  • Bangla - প্রেমের গল্প

    নির্বাক সন্ধের রঙ

    অমৃত ঘোষ পর্ব ১: নির্জন বারান্দা আনজু জানলার কাঁচে কপাল ঠেকিয়ে বসে ছিল। বাইরের দিক থেকে কুয়াশার মতো নেমে আসা বিকেলটা ধীরে ধীরে সাঁঝে গড়িয়ে যাচ্ছিল। এই বাড়িটার বারান্দা জুড়ে এমন এক রকমের নিঃসঙ্গতা বিরাজ করত, যেন সময় থেমে গেছে বহু আগে। সুমিত তখনো অফিস থেকে ফেরেনি। ফেরার কথা সাতটার মধ্যে, কিন্তু এখন সাতটা পঁচিশ। আনজু অপেক্ষা করে না আর, শুধু হিসেব রাখে — দেরি, আগমন, নিরবতা, স্পর্শহীন রাত। চৌদ্দ বছরের সংসার, কিন্তু তাতে প্রেম আছে কিনা, সেটা বুঝে উঠতে পারেনি কখনো। সুমিত ভালো মানুষ, এই শহরের প্রায় সবাই তাই বলে। নিয়মিত অফিস যায়, বাজার করে, দায়িত্ববান। কিন্তু ভালোলাগা আর…

  • English - Romance

    Second First Love

    Meera Sanyal The Quiet Years The clock on the wall ticked with an almost deliberate calm, echoing through the sun-drenched living room of Ananya Bose’s Kolkata apartment. It was 7:15 AM—the precise moment her kettle would begin its polite whistle. The smell of Darjeeling tea mingled with the scent of sandalwood from the agarbatti she’d lit during her morning puja. Her home was a carefully curated sanctuary of books, framed memories, and soft silences. At forty-three, Ananya had grown used to solitude—not the melancholy kind that clings to your skin, but the chosen kind, like a warm shawl on a…