शरद ठाकुर लखनऊ के पुराने चौक मोहल्ले में एक लाल-ईंटों की हवेली है, जिसकी दीवारों पर वक़्त ने अपनी रेखाएँ खींच दी हैं। उसी हवेली के आँगन में, आम के पुराने पेड़ के नीचे रखी एक बेंत की कुर्सी पर हर सुबह विराजमान होते हैं—श्री बृजमोहन तिवारी, उर्फ़ बड़े बाबू। उम्र लगभग सत्तर पार, लेकिन चाल-ढाल में आज भी वह ‘पोस्ट ऑफिस के हेड क्लर्क’ की गरिमा बरकरार रखे हुए हैं। सुबह होते ही, जब मुहल्ले में दूधवाले की साइकिल की घंटी बजती है और नल से पानी टपकने लगता है, बड़े बाबू की नींद खुल जाती है। एक हाथ…