दिनेश कुमार गाँव के ठीक बीचों-बीच खड़ा वह बरगद का पेड़ सदियों पुराना था, जिसकी फैली हुई जटाएँ और चौड़ी शाखाएँ गाँव की पहचान मानी जाती थीं। दिन के उजाले में यह पेड़ गाँववालों का आश्रय स्थल होता—कोई किसान हल चलाने से पहले थोड़ी देर इसकी छाँव में बैठकर बीड़ी सुलगा लेता, बच्चे इसकी झूलती जड़ों को झूले की तरह पकड़कर खेलते, और दोपहर की तपिश से थके मजदूर इसकी ठंडी छाँव में सुस्ताने आ जाते। बरगद की ठंडी छाया में गाँव का चौपाल भी लगता, जहाँ बुजुर्ग अपने अनुभव साझा करते और लड़के-लड़कियाँ खेलकूद में मशगूल रहते। लेकिन जैसे…
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अविनाश त्रिपाठी १ गांव के बीचोंबीच, ऊँचे-ऊँचे बरगद और पीपल के पेड़ों की छाया में, एक पुरानी हवेली खड़ी थी। चारों ओर जंगली घास ने ज़मीन को ढक लिया था और हवेली की दीवारें जगह-जगह से उखड़ चुकी थीं। बरसों की बरसात और धूप ने ईंटों पर काई जमा दी थी, मानो किसी ने उसे जानबूझकर त्याग दिया हो। टूटी खिड़कियों से आती हवा के साथ चरमराते दरवाज़ों की आवाज़ रात के सन्नाटे में किसी आत्मा की फुसफुसाहट सी लगती थी। कभी यह हवेली राजवीर सिंह के ज़मींदार परिवार की शान थी—जहां मेहमानों का तांता लगा रहता था, दावतें होती…
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१ गाँव से ज़रा हटकर, कच्ची पगडंडी के किनारे, खेतों और बंजर ज़मीन के बीच खड़ा था एक विशाल बरगद का पेड़। उसकी जटाएँ धरती से लटककर साँपों की तरह रेंगती थीं और उसका फैलाव इतना था कि बरसात के दिनों में आधा गाँव उसकी छाँव में आ सकता था। लेकिन यह छाँव गाँववालों के लिए सुकून नहीं, बल्कि डर का पर्याय थी। पेड़ के चारों ओर का इलाक़ा वीरान और सुनसान पड़ा रहता; न कोई पशु पास आता, न कोई इंसान। कहते थे कि बरगद के पत्तों की सरसराहट भी आम हवा की तरह नहीं, बल्कि किसी की फुसफुसाहट…
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कृष्णा तामसी १ चारों तरफ बर्फ की सफेद चादरें बिछी थीं और हरे देवदार के पेड़ जैसे किसी पुराने रहस्य को छिपाए खड़े थे। आरव मल्होत्रा की जीप धीरे-धीरे घने कोहरे को चीरती हुई हिमाचल के दुर्गम पहाड़ी रास्तों से गुजर रही थी। मोबाइल नेटवर्क कब का गायब हो चुका था और जीपीएस भी मानो बर्फ में जम चुका था। ड्राइवर संजय, जो गांव का ही था, बिना कुछ कहे बस गाड़ी चलाता जा रहा था। आरव अपने कैमरे से बर्फबारी की फुटेज लेने में मग्न था, जब उसने अचानक पूछा, “संजय भाई, कितनी दूर है वो गेस्ट हाउस?” संजय…
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दिल्ली के शाहपुर जाट इलाके की पतली गलियों में, एक पुरानी इमारत की तीसरी मंज़िल पर अवनि शर्मा ने हाल ही में किराए पर एक फ्लैट लिया था। मकान मालिक ने कहा था, “थोड़ा पुराना है, मगर शांत इलाका है।” अवनि को यही चाहिए था—शांति। एकाकी ज़िंदगी, कॉफी मग में भाप लेती शामें, लैपटॉप पर काम और दीवार पर टँगी किताबों की अलमारियाँ। वह एक डिजिटल मीडिया एडिटर थी और ज़्यादातर वक़्त घर से ही काम करती थी। फ्लैट छोटा था लेकिन खुला-खुला, जिसकी बालकनी से हौज खास के पुराने गुंबद दिखाई देते थे। मगर पहले ही दिन जब वह…
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तृषा मिश्रा १ दिल्ली की भीड़भाड़ और धूल-धक्कड़ भरी गलियों से निकलकर जब डॉ. वेदिका माथुर उत्तर प्रदेश के उस सुदूर गाँव ‘बड़ागाँव’ पहुँची, तो सुबह के आठ बजे थे। बस स्टैंड पर बस ने झटके से ब्रेक लगाया था और साथ बैठे ग्रामीणों की बातचीत एक पल को थम गई थी। हाथ में जंग खाया लोहे का सूटकेस और कंधे पर लैपटॉप बैग लटकाए वेदिका जब उतरी, तो गाँव की गलियों ने उसका स्वागत सन्नाटे से किया। उसका उद्देश्य सीधा था—इस गाँव के मंदिर के पास रखे लोहे के एक रहस्यमयी पिंजरे के बारे में जानना, जिसके बारे में…
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प्रकाश पांडेय प्रवीर एक छोटे से गाँव गंगावटी में पहुंचा, जहाँ वह अपने जीवन की तकलीफों से बचने के लिए एक नया आरंभ करना चाहता था। अपनी मां की आकस्मिक मृत्यु के बाद, वह मानसिक रूप से पूरी तरह टूट चुका था। शहर के शोर-शराबे और हलचल से दूर इस शांत गांव में आने का उसका उद्देश्य सिर्फ यही था कि वह अपने भीतर शांति और सुकून पा सके। गंगावटी गांव नदियों और खेतों से घिरा हुआ था, जहां लोग अपनी सादी और कठिन जिंदगी जीते थे। गाँव की गलियों में टहलते हुए उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि…