आधी रात का चाँद वाराणसी की गलियाँ वैसे तो दिन-रात लोगों से भरी रहती हैं लेकिन शाम होते ही उनमें एक अजीब-सी खामोशी उतर आती है, मानो सदियों पुरानी इमारतें खुद अपनी कहानियाँ सुनाने लगती हों। उन्हीं गलियों में रहती थी समीरा, उम्र मात्र बाईस, आँखों में अनगिनत राग और दिल में अधूरी ख्वाहिशों का कोलाहल। वह बनारस घराने की तालीम ले रही थी, सुबह की ठंडी हवा में उसका सुर और तानपुरे की गूँज मिलकर मोहल्ले का वातावरण बदल देती थी। लेकिन उसके भीतर हमेशा एक दुविधा रहती—क्या कभी वह अपने संगीत से पहचान बना पाएगी या परिवार की…
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अदिति राठी भाग 1: मुलाक़ात पन्ना की सर्दी में धूप एक वरदान जैसी लगती थी। स्कूल की छत पर बिछी टाट की चटाइयों पर बच्चे बैठकर चित्र बना रहे थे—सूरज, पेड़, झोपड़ी, और किसी कोने में एक मंदिर की घंटियां। रेवती चौहान बीच में खड़ी, बच्चों की तस्वीरों पर झुकती, तारीफ़ करती और कभी-कभी पेंसिल हाथ में लेकर कोई रेखा ठीक कर देती। उसकी चुन्नी कंधे से खिसकती रहती थी, और वो बार-बार उसे एक ही अंदाज़ में पीछे सरका देती थी। जैसे उसकी ज़िंदगी में सब कुछ इसी दोहराव के भीतर समाहित था—शांत, व्यवस्थित, और बंधा हुआ। उसी दोपहर,…