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    साया-ए-इश्क़

    निखिल आनंद एपिसोड 1: पहली मुलाक़ात शाम ढल रही थी। शहर की सड़कों पर पीली बत्तियाँ जल चुकी थीं और हवा में नमी का हल्का-सा स्वाद था। किसी पुराने फ़िल्मी गीत की धुन पास के पानवाले की दुकान से छनकर आ रही थी। भीड़ के बीच भी कभी-कभी अकेलापन उतना ही गहरा लगता है जितना वीराने में। और उसी अकेलेपन में वह पहली बार दिखी—गुलाबी सलवार-कमीज़ में, एक हाथ में किताब थामे, दूसरे हाथ से साइकिल संभालती हुई। आदित्य उस वक़्त कॉलेज के बरामदे में खड़ा था। वह इतिहास का लेक्चर ख़त्म कर चुका था और दोस्तों के साथ बाहर…

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    “सपनों की खिड़की”

    अदिति राठी भाग 1 – मुलाक़ात दिल्ली की सर्दियों में धूप किसी पुराने कंबल की तरह होती है—पतली, मगर भरोसेमंद। अनाया ने खिड़की पर टंगी धुले हुए कपड़ों की कतार के बीच से झांककर आकाश को देखा और घड़ी पर नज़र डाली। सुबह के आठ बजकर पैंतालीस। नौ बजे की ब्लू लाइन पकड़नी है। उसके फोन पर माँ का मैसेज चमका—“शाम तक सब्ज़ी ले आना, और अम्मा के लिए दवा भी।” उसने “ठीक है” टाइप किया, बैग उठाया और दुपट्टा कंधे पर पक्का किया। नोटबुक बैग के सबसे अंदर, जैसे कोई निजी पुड़िया — जिसमें नाम, जगहें और कुछ अधलिखी…

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    आख़िरी ट्रेन टू बनारस

    सौरभ पांडेय भाग 1 – बनारस की रात बनारस स्टेशन की पुरानी घड़ी रात के ग्यारह बजकर पैंतीस मिनट दिखा रही थी और प्लेटफ़ॉर्म पर गाड़ियों की आवाजाही थम-सी गई थी, आख़िरी ट्रेन के इंतज़ार में कुछ बचे-खुचे यात्री धीरे-धीरे अपनी चादरें समेट रहे थे, कोई थैले से समोसा निकालकर खा रहा था, तो कोई चाय वाले की स्टील के गिलास से धुआँ उड़ाते हुए अपने थके चेहरे को राहत दे रहा था, और इसी भीड़ में कबीर हाथ में पुराना बैग थामे बेचैन नज़रों से ट्रैक की ओर देख रहा था क्योंकि उसे किसी भी हालत में ये आख़िरी…

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    मोबाइल का मिस्ड कॉल

    आरव मेहरा भाग 1 — अनजान आवाज़ उस रात दिल्ली की हवा में नमी थी और मेरी खिड़की पर महीन बारिश टपक रही थी। मैं लैपटॉप बंद करके बिस्तर पर गिरा ही था कि फोन बज उठा—एक नंबर जो पहले कभी नहीं देखा। मैंने उठाया, “हेलो?” दूसरी तरफ एक गहरी साँस, फिर धीमी आवाज़, “सॉरी… गलती से डायल हो गया।” उस स्वर में बारिश की-सी झनझनाहट थी। मैंने “कोई बात नहीं” कहा और कॉल कट गई। पाँच मिनट बाद वही नंबर फिर। “इस बार भी गलती?” मैंने मुस्कुराकर पूछा। वह बोली, “मत काटिए… बस पूछना था—क्या आपके यहाँ भी यह…

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    पल दो पल की बात नहीं थी

    श्रेयांशी वर्मा फिर से देखना वाराणसी की वो दोपहर वैसी ही थी जैसी होती है—धूल भरी, हल्की धूप से चकाचौंध, और गंगा की तरफ बहते हवा के छोटे-छोटे झोंकों के साथ एक ठहराव लिए। घाटों के पास बैठा आरव त्रिपाठी, अपनी डायरी की खाली पन्नियों को ताक रहा था, मानो शब्द कहीं खो गए थे। एक दशक से भी ज़्यादा समय हो गया, लेकिन उस शहर की गंध, वो पुराने पत्थर की दीवारें, वो किताबों की दुकानें—सब अभी भी वैसा ही था। बस एक चीज़ बदल गई थी—वो। संजना मिश्रा। वो अब भी उसी शहर में थी। वही गलियाँ, वही…

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    कांच सा दिल

    कविता राठौर दिल्ली विश्वविद्यालय की उस पुरानी लाइब्रेरी में जैसे समय ठहर गया था। दीवारों पर किताबों की महक और खिड़की से आती धूप की एक पतली परत उन पन्नों पर गिरती, जिनमें जाने कितनी कहानियाँ कैद थीं। आरव वहाँ रोज़ आता था—शायद किताबों से ज़्यादा खामोशी से मिलने। लेकिन उस दिन सब कुछ बदल गया। वो एक मेज़ के कोने पर बैठी थी, सफेद सूती सलवार-कुर्ते में, उसके बालों की लटें माथे पर बार-बार गिरतीं और वो बिना परवाह किए बस पढ़ती जाती। उसके सामने खुली थी “साहिर लुधियानवी की शायरी”, और उसकी आँखों में जैसे हर शब्द समा…

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    छत की मोगरी

    आयुषी राठौर भाग 1: आवाज़ों के बीच “धड़-धड़-धड़-धड़।” नवीन त्रिपाठी की सुबह की पढ़ाई का राग एक बार फिर उस मोगरी की थाप से बिगड़ गया। उसने ज़ोर से किताब बंद की, चश्मा उतारा, और आंखें मिचमिचाते हुए सामने वाली छत की ओर देखा। वहीं थी — वही लड़की — नीली सलवार-कुर्ता, बाल झटका हुआ, हाथ में मोगरी। मुस्कुरा रही थी, मानो जानबूझकर ये सब कर रही हो। “ओ मैडम!” नवीन ने आवाज़ लगाई, “थोड़ा धीरे चला लीजिए मोगरी। हर दिन यही शोर!” लड़की ने थाली में से कपड़े निकालते हुए कहा, “पढ़ाई में मन नहीं लग रहा तो मोगरी…

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    पहला पहला प्यार

    सुरभि जब भी बारिश होती है, मेरी यादों की खिड़की अपने आप खुल जाती है। स्कूल की वो पुरानी इमारत, गीली ज़मीन से उठती मिट्टी की खुशबू, और एक लड़की—सादगी में लिपटी कोई कविता सी। उसका नाम था नेहा। और मेरा—अंशुमान। हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे—राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, जयपुर। क्लास १०-बी। मैं हमेशा पीछे की बेंच पर बैठता था, किताबों के बीच गुम, और वो हमेशा दूसरी लाइन की खिड़की के पास, बालों को क्लिप से बांधकर, कभी-कभी दूर आसमान में ताकती हुई। मुझे पहली बार जब उसके बारे में कुछ महसूस हुआ, वो इतिहास की…