आरव सिंह ठाकुर भाग 1: पहाड़ की पहली चीख धुंध सुबह की खिड़की पर जम चुकी थी जैसे किसी ने रात भर चुपचाप रोते हुए आंसुओं से शीशा धो डाला हो मलाणा घाटी में सूरज का उदय हमेशा देर से होता है लेकिन उस दिन उसकी रौशनी जैसे खुद डर गई थी गांव के ऊपर जो नीला जंगल फैला था उसके बीचोंबीच एक चीख गूंजी थी जो इंसान की नहीं लगती थी पर इंसानों की दुनिया में ही गिरी थी सुभाष ठाकुर अपने लकड़ी के मकान की छत से धुआं निकालते चूल्हे की ओर देखते हुए उस आवाज़ को महसूस…