आरोही वर्मा वो जुलाई की पहली बारिश थी। दिल्ली की सड़कों पर धूल धुल रही थी और आसमान के हर कोने से बूंदें टपक रही थीं। ऑफिस से लौटते वक़्त सारा कुछ भीग गया था—कपड़े, बाल, मन। लेकिन अदिति को बारिश से कभी शिकायत नहीं थी। बारिश उसके लिए हमेशा एक नया पन्ना खोलती थी—नमी से भरा, स्याही से गीला, यादों से लिपटा हुआ। उसे बारिश में चलना पसंद था, बिना छाते के। लेकिन आज पहली बार किसी ने उसके हाथ में छाता थमाया था। “इतनी भीग क्यों रही हो? बीमार पड़ोगी।” वो आवाज़ जैसे बादलों के बीच से आई…