• Hindi - प्रेतकथा

    पलंग के नीचे

    समीरा त्रिपाठी नई दिल्ली के बाहरी इलाक़े में फैला वह अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स पहली नज़र में बिल्कुल साधारण लगता था—ऊँची-ऊँची इमारतें, बच्चों के खेलने का पार्क, गाड़ियों की पार्किंग में जमी धूल और शाम को लौटते दफ़्तरियों की भीड़। लेकिन इमारत नंबर बी–7 का फ्लैट 203 किसी कारणवश हमेशा खाली रहता था। लोगों ने कई बार वहाँ किराएदार देखे थे, लेकिन कुछ ही हफ़्तों में वे सामान समेट कर चले जाते। पड़ोसियों की बातें थीं कि रात के समय उस घर से अजीब आवाज़ें आती हैं—कभी फुसफुसाहट, कभी फर्नीचर खिसकने की, कभी किसी के धीमे-धीमे रोने की। मगर इन सब कहानियों…

  • Hindi - हास्य कहानियाँ

    कवियों का महासंग्राम

    विनीत अवस्थी भाग 1: पंखे के नीचे कविता चिलचिलाती गर्मी में जनपद रामपुर के टाउन हॉल में कवि सम्मेलन की तैयारी अपने चरम पर थी। आयोजक श्री मुन्ना लाल ‘मुक्त’ जिनकी मूंछें खुद कविताओं की तरह ऊपर-नीचे लहराती थीं, पूरे उत्साह से व्यवस्था में लगे थे। पंखे खड़खड़ा रहे थे, माइक टेस्ट हो चुका था—”हैलो…हैलो…प्याज़ 60 रुपये किलो…”—और कुर्सियाँ ठीक वैसे ही डगमगा रही थीं जैसे देश के बजट पर विश्वास। शाम सात बजे पहला कवि मंच पर चढ़ा: श्री रमेश कुमार ‘रसिया’, जिनकी खासियत थी रोमांटिक कविताएं सुनाकर सामने बैठी आंटियों को ब्लश करवा देना। उन्होंने मंच पर आते…

  • Hindi - प्रेम कहानियाँ

    पहला पहला प्यार

    सुरभि जब भी बारिश होती है, मेरी यादों की खिड़की अपने आप खुल जाती है। स्कूल की वो पुरानी इमारत, गीली ज़मीन से उठती मिट्टी की खुशबू, और एक लड़की—सादगी में लिपटी कोई कविता सी। उसका नाम था नेहा। और मेरा—अंशुमान। हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे—राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, जयपुर। क्लास १०-बी। मैं हमेशा पीछे की बेंच पर बैठता था, किताबों के बीच गुम, और वो हमेशा दूसरी लाइन की खिड़की के पास, बालों को क्लिप से बांधकर, कभी-कभी दूर आसमान में ताकती हुई। मुझे पहली बार जब उसके बारे में कुछ महसूस हुआ, वो इतिहास की…

  • Hindi - कल्पविज्ञान

    अंधकार शहर

    रिहाना कौर सूरज की छाँव में अंधकार शहर १ जनवरी २०९५, सुबह ८:३० बजे दिल्ली का वह इलाका, जिसे अब लोग “अंधकार शहर” के नाम से जानते थे, धुंध और घने बादलों के साए में लिपटा रहता था। सुबह के वक्त भी यहाँ सूरज की किरणें दुर्लभ थीं। ऊँची-ऊँची गगनचुंबी इमारतें इस कदर सघन थीं कि वे सूरज की रोशनी को ज़मीन तक पहुँचने से रोकती थीं। यहाँ के लोग तकनीक पर पूरी तरह निर्भर थे। हर घर, हर ऑफिस, हर सड़क के किनारे स्मार्ट सेंसर लगे थे, जो नेटवर्क के माध्यम से जुड़े थे। अरुण, २८ वर्षीय इंजीनियर, अपनी…