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    काली स्याही

    दीपक आहुजा अध्याय १ – मौत की सुर्ख़ियाँ मुंबई की नीयन रोशनी वाली रातें हमेशा से ही रहस्यों को अपने भीतर छिपाए रहती हैं। वही शहर, जहां हर गली में किसी न किसी की कहानी दबी होती है, उसी शहर के बीचोंबीच एक आलीशान होटल की सातवीं मंज़िल पर अचानक हड़कंप मच गया था। होटल का कमरा नंबर 709, जिसकी खिड़की से अरब सागर की ठंडी हवा सीधी भीतर आ रही थी, अब अपराध स्थल बन चुका था। कमरे की बत्ती मंद जल रही थी और फर्श पर बिखरी पड़ी शराब की बोतलें किसी अधूरी रात का गवाह बनी थीं।…

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    सात कदम

    बनारस की तंग और घुमावदार गलियाँ जैसे अपने भीतर सदियों का इतिहास समेटे खड़ी थीं, जिनमें सुबह-सुबह की गंगा आरती की घंटियों की आवाज़ और अगरबत्तियों की महक हवा में तैरती रहती थी। लेकिन उस दिन की सुबह इन गलियों पर एक अजीब सन्नाटा छाया हुआ था। सूरज की पहली किरणें जैसे ही पुराने कच्चे मकानों की दीवारों पर पड़ीं, शहर में अफवाहों का तूफ़ान फैलने लगा—“चौखंबा मोहल्ले में एक व्यापारी का कत्ल हो गया।” लोगों की भीड़ उस घर के सामने जमा हो गई थी, जो शहर के सबसे पुराने कपड़ा कारोबारियों में से एक, लक्ष्मण प्रसाद का था।…

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    छठ घाट का खून

    अनुभव कुमार १ गंगा नदी के तट पर पटना का छठ घाट उस शाम अलौकिक सौंदर्य से भरा हुआ था। सूरज धीरे-धीरे क्षितिज में ढल रहा था और उसकी सुनहरी किरणें गंगा के जल पर फैलकर पूरे वातावरण को एक अद्भुत आभा प्रदान कर रही थीं। हज़ारों श्रद्धालु, महिलाएँ रंग-बिरंगे साड़ी में, पुरुष पारंपरिक धोती-कुर्ता पहने, बच्चों की चहकती आवाज़ें और डूबते सूरज की ओर हाथ जोड़कर खड़े सभी लोगों का दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो धरती पर कोई स्वर्ग उतर आया हो। हर कोई अपने-अपने टोकरी में फल, ठेकुआ और नारियल सजाकर जल में खड़ा था और…

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    नकाबपोश राघव अग्रवाल

    राघव अग्रवाल अध्याय 1: पहला पर्दा गिरा मुंबई के कोलाबा स्थित प्रसिद्ध रंगमंच “रंगदीप” की दीवारों पर हल्की सी सीलन की परत थी, पर भीतर माहौल हमेशा जीवंत और रचनाशील रहता था। उस शाम भी, मंच पर एक नया नाटक “अंधेरे के चेहरे” का अभ्यास चल रहा था। लेकिन इस बार, मंच पर सिर्फ अभिनय नहीं, असली मौत भी छिपी थी। जैसे ही अंतिम दृश्य के संवाद गूंजे और रोशनी मद्धम हुई, प्रकाश लौटने पर दृश्य ठहर गया—कलाकार विवेक माथुर, जो नाटक का मुख्य पात्र था, स्टेज पर लुढ़का पड़ा था। पहले तो सबने सोचा ये प्रदर्शन का हिस्सा है, लेकिन…

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    काली डायरी

    श्रुति चतुर्वेदी १ बनारस की संकरी गलियों में सुबह का उजाला अक्सर धुएँ और धूल में घुला होता है, लेकिन उस दिन ठंड के कुहासे में जो चीज़ सबसे अलग दिखी, वो था—शव। सोनारपुरा की एक टूटी-फूटी हवेली के पीछे कूड़े के ढेर पर मिली थी एक लाश—एक अधेड़ उम्र के आदमी की, जिसकी आँखें खुली थीं, जैसे मरते वक्त वो किसी चीज़ को देख रहा था… या शायद पहचान रहा था। घटनास्थल पर सबसे पहले पहुँची इंस्पेक्टर श्रद्धा त्रिपाठी की नजर सीधे उसके दाहिने हाथ पर गई, जहाँ खून से सना एक छोटा सा काला नोटबुक पड़ा था। न…

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    तानपूरा और ताबूत

    विनीत त्रिपाठी बनारस की रातें हमेशा से रहस्यमयी रही हैं, मानो इस शहर की गलियों, घाटों और हवाओं में कोई अदृश्य कहानी हर रात जन्म लेती हो। गंगा का किनारा, जहाँ दिन में हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना में लीन रहते थे, रात होते ही किसी प्राचीन ग्रंथ की तरह रहस्य में डूब जाता था। वहीं पर स्थित थी वह हवेली, जिसे लोग ठाकुर हवेली के नाम से जानते थे। कभी इस हवेली में संगीत की महफिलें सजती थीं, बड़े-बड़े उस्ताद यहाँ अपनी कला का प्रदर्शन करते थे, और रियाज की स्वर लहरियाँ हवेली की दीवारों से टकराकर बनारस की हवाओं में…