• Hindi - क्राइम कहानियाँ

    हवलदार की डायरी

    मनीष कुमार तिवारी भोपाल की शाम में एक अजीब सी खामोशी थी, जैसे कोई पुरानी आवाज़ शहर की हवाओं में छुपी हुई हो। रामस्वरूप मिश्रा, पुलिस विभाग से सेवानिवृत्त हवलदार, का पार्थिव शरीर श्मशान से घर वापस नहीं आया था — वह वहीं राख बन चुका था, और अब केवल स्मृतियों में बचा था। उनके बेटे अभिषेक मिश्रा ने अनगिनत हाथ मिलाए, नम आँखें देखीं और एक अजीब से खालीपन को अपने भीतर महसूस किया। पंडित, रिश्तेदार और कुछ पुराने सहयोगी भी आए थे, लेकिन सबसे ज़्यादा चुभती थी वह चुप्पी जो उनकी माँ संध्या के चेहरे पर थी —…

  • Hindi - प्रेतकथा

    अंधे कुएं की पुकार

    विराज कुलकर्णी १ उत्तर भारत के एक सुदूर गाँव में जब सरकारी जीप धूल उड़ाती हुई दाखिल हुई, तो सूरज अपनी नारंगी किरणें खेतों की मेड़ों पर बिखेर रहा था। गाँव का नाम ‘गहना’ था — और सच में, यह गाँव घने सन्नाटे से ढका हुआ था। डॉ. अदिति वर्मा खिड़की से बाहर झाँकती रही; मिट्टी की सोंधी गंध के बीच कुछ अजीब सा बेचैन कर देने वाला सन्नाटा था। रास्ते भर उसने सोचा था कि यह नई तैनाती उसके लिए एक ‘ब्रेक’ होगी — शहर की भागदौड़ से दूर, कुछ समय सुकून में बिताने का मौका। लेकिन जैसे ही…

  • Hindi - क्राइम कहानियाँ

    माटी में दफन राज

    अमिताभ वर्मा १ बघेलपुर गाँव की दोपहरें अक्सर आलस से भरी होती थीं, लेकिन उस दिन हवेली की मिट्टी में जो निकला, उसने पूरे गाँव को एक अनकहे सन्नाटे में डुबो दिया। ठाकुर हवेली, जो पिछले चालीस सालों से वीरान पड़ी थी, अब नई खरीददारी के बाद मरम्मत के लिए खुली थी। मजदूरों का दल दीवारें तोड़ रहा था, फर्श उखाड़ रहा था, और मलबे से धूल उड़ रही थी। तभी एक कुल्हाड़ी ज़मीन के नीचे किसी सख़्त चीज़ से टकराई — “ठक!” जैसी आवाज़ आई। मजदूर रुक गए। किसी ने कुदाल से थोड़ा और खोदा, तो बाहर निकला एक…

  • Hindi - रहस्य कहानियाँ

    शिवमंदिर के पीछे

    शिवानंद पाठक कोल्हापुर की घाटियों से गुजरती जीप धूल उड़ाते हुए चिखली गाँव की सीमा में प्रवेश कर रही थी। जीप में बैठे वेदांत त्रिपाठी खिड़की से बाहर झाँकते हुए मंदिर की मीनार की झलक पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। वे भारत सरकार के पुरातत्व विभाग से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी थे और इस अभियान के मुख्य अन्वेषक भी। चिखली जैसे दूरदराज़ गाँवों में आना उनकी रिसर्च का हिस्सा नहीं, बल्कि जुनून था। उनके साथ बैठी थीं रुचिका देशमुख, एक दक्ष रिसर्च एनालिस्ट, जो कोल्हापुर से ही ताल्लुक रखती थीं। उनके हाथ में मंदिर के नक्शे और एक पुरानी पांडुलिपि…

  • Hindi - यात्रा-वृत्तांत

    लद्दाख की वो आखिरी चाय

    विशाल सक्सेना एक दिल्ली की उस सुबह में कुछ अजीब सी खामोशी थी—न ज़्यादा कोहरा, न ही सूरज की चमक। एक मद्धम सी उदासी अर्जुन के कमरे की दीवारों पर रेंग रही थी जैसे पिछली रात की नींद में किसी ने कुछ अधूरा छोड़ दिया हो। दीवार पर लटकी कैलेंडर की तारीखें टेढ़ी हो चुकी थीं, और खिड़की के बाहर किसी ट्रैफिक सिग्नल की पीली रौशनी में बत्तखों की कतार जैसी आवाज़ें आती रहीं। अर्जुन की अलमारी के दरवाज़े खुले थे, एक ओर उसके कैमरे की काली बैग रखी थी जिसमें एक जीवन भर की यात्रा की प्यास भरी हुई…

  • Hindi - यात्रा-वृत्तांत

    एक सफर… खुद से मिलने का

    रीनी शर्मा दिल्ली का जनवरी महीने का मौसम था। हल्की ठंड, कोहरे की चादर और भीड़-भाड़ से भरी सड़कें। हर इंसान जैसे किसी अदृश्य घड़ी की सुई के पीछे दौड़ रहा था—बिना रुके, बिना पूछे कि ये दौड़ किसके लिए है? इन्हीं लाखों चेहरों में एक चेहरा था अर्जुन मेहरा का—32 वर्षीय, सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाला एक सामान्य कर्मचारी। हाइट 5’10”, छरहरा शरीर, हल्की दाढ़ी, आँखों में थकान और मन में एक स्थायी बेचैनी। हर दिन उसकी ज़िंदगी का रूटीन घड़ी की सुई से बंधा था—सुबह 7 बजे उठना, 8 बजे मेट्रो पकड़ना, 9 बजे ऑफिस पहुँचना, 12…