चन्दन पांडेय १ पुराने मोहल्ले की गलियाँ वैसे ही तंग और भीड़भाड़ से भरी थीं, जैसे किसी इतिहास की किताब का पीला पड़ चुका पन्ना। मकान मालिक शर्मा जी का घर भी उन जर्जर दीवारों के बीच एक ऐसा ही मकान था, जिसकी छत से सीलन की गंध आती थी और दीवारों पर पिछली बरसात के निशान अब भी जिद्दी दाग़ बनकर चिपके थे। मोहल्ले में सबको पता था कि शर्मा जी किराएदारों को लेकर बहुत सख़्त स्वभाव के हैं—“समय पर किराया दो और चैन से रहो” उनका नियम था। लेकिन मोहल्ले के नुक्कड़ पर उस दिन जब एक दुबली-पतली…
- 
				
 - 
				
देवांशु मिश्र छींकापुर, ऐसा गाँव जहाँ हर दूसरे दिन बिजली जाती है और हर चौथे दिन चौधरी जी की बकरी। यहाँ के लोग ताश खेलते हुए दुनिया की राजनीति तय करते हैं और बीड़ी पीते हुए शेयर मार्केट की चाल समझाते हैं। इसी गाँव का सबसे विशेष जीव था—पप्पू यादव। उम्र 28, काम-काज शून्य, मगर जुगाड़ ज्ञान में ऐसा निपुण कि शादी में बिना बुलाए घुसने के 13 तरीके जानता था। स्कूल में मास्टर रामखेलावन उसे ‘गधे की जात’ कहकर बुलाते थे और मोहल्ले वाले उसे ‘UPSC का मजाक’ कहते थे। लेकिन पप्पू का आत्मविश्वास डबल बैटरी वाले टॉर्च जैसा…
 - 
				
सुभाष मिश्र रामलाल फतेहपुर कस्बे की एक तंग गली में रहने वाला एक साधारण आदमी था। उम्र कोई पैंतालीस के आसपास, चेहरे पर झुर्रियों की कुछ रेखाएँ जो हर सुबह के संघर्ष और हर शाम की थकान की गवाही देती थीं। पेशे से वह नगरपालिका दफ्तर में एक लिपिक था, और महीने की पहली तारीख को तनख्वाह मिलते ही उसकी जेब से पैसों के पंख लग जाते थे। रामलाल की ज़िंदगी बसों और साइकिल रिक्शाओं पर कट रही थी। हर सुबह वो अपने घर से निकलता, पहले आधा किलोमीटर पैदल चलता, फिर एक धक्का-मुक्की वाली बस में लटकते-लटकते दफ्तर पहुँचता।…
 - 
				
संदीप मिश्रा सुबह की हल्की धूप मोहल्ले की पतली गली में सुनहरी चादर बिछा रही थी। अमरुद के पेड़ों पर बैठी चिड़ियाँ अपनी चहचहाहट से जैसे कोई संदेश दे रही थीं। हवा में सुबह-सुबह खिले गेंदा और गुलाब के फूलों की खुशबू घुली हुई थी। पर आज मोहल्ले में रोज की तरह सुस्ताता सन्नाटा नहीं था। आज हर किसी की नजर एक ही घर की ओर थी — पिंकी के घर की ओर। पिंकी आठ साल की नटखट, जिद्दी और शरारती बच्ची थी। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में हमेशा कोई नई शरारत चमकती रहती थी। उसके छोटे से घर का आँगन…