संदीप मिश्रा सुबह की हल्की धूप मोहल्ले की पतली गली में सुनहरी चादर बिछा रही थी। अमरुद के पेड़ों पर बैठी चिड़ियाँ अपनी चहचहाहट से जैसे कोई संदेश दे रही थीं। हवा में सुबह-सुबह खिले गेंदा और गुलाब के फूलों की खुशबू घुली हुई थी। पर आज मोहल्ले में रोज की तरह सुस्ताता सन्नाटा नहीं था। आज हर किसी की नजर एक ही घर की ओर थी — पिंकी के घर की ओर। पिंकी आठ साल की नटखट, जिद्दी और शरारती बच्ची थी। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में हमेशा कोई नई शरारत चमकती रहती थी। उसके छोटे से घर का आँगन…