आयुषी राठौर भाग 1: आवाज़ों के बीच “धड़-धड़-धड़-धड़।” नवीन त्रिपाठी की सुबह की पढ़ाई का राग एक बार फिर उस मोगरी की थाप से बिगड़ गया। उसने ज़ोर से किताब बंद की, चश्मा उतारा, और आंखें मिचमिचाते हुए सामने वाली छत की ओर देखा। वहीं थी — वही लड़की — नीली सलवार-कुर्ता, बाल झटका हुआ, हाथ में मोगरी। मुस्कुरा रही थी, मानो जानबूझकर ये सब कर रही हो। “ओ मैडम!” नवीन ने आवाज़ लगाई, “थोड़ा धीरे चला लीजिए मोगरी। हर दिन यही शोर!” लड़की ने थाली में से कपड़े निकालते हुए कहा, “पढ़ाई में मन नहीं लग रहा तो मोगरी…