कविता राठौर दिल्ली विश्वविद्यालय की उस पुरानी लाइब्रेरी में जैसे समय ठहर गया था। दीवारों पर किताबों की महक और खिड़की से आती धूप की एक पतली परत उन पन्नों पर गिरती, जिनमें जाने कितनी कहानियाँ कैद थीं। आरव वहाँ रोज़ आता था—शायद किताबों से ज़्यादा खामोशी से मिलने। लेकिन उस दिन सब कुछ बदल गया। वो एक मेज़ के कोने पर बैठी थी, सफेद सूती सलवार-कुर्ते में, उसके बालों की लटें माथे पर बार-बार गिरतीं और वो बिना परवाह किए बस पढ़ती जाती। उसके सामने खुली थी “साहिर लुधियानवी की शायरी”, और उसकी आँखों में जैसे हर शब्द समा…
-
-
कविता प्रधान मुंबई की बारिश किसी पुराने फ़िल्मी गीत की तरह होती है — धीमी, भीगी, और दिल में उतरती हुई। शहर की रफ्तार थोड़ी थम जाती है, पर दिलों की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं। जुहू चौपाटी की रेत उस दिन भीगी हुई थी, हवा समंदर से नमक चुराकर ला रही थी, और आसमान का रंग एक भूले-बिसरे वादे जैसा धुंधला था। मैं अर्जुन, एक फ्रीलांस फोटोग्राफर, जो हर बारिश में अपने कैमरे के पीछे कुछ अधूरी कहानियाँ तलाशता है। उस दिन भी मैं घर से निकला था बिना किसी तय मंज़िल के, बस एक उम्मीद लिए कि शायद…
-
सुरभि जब भी बारिश होती है, मेरी यादों की खिड़की अपने आप खुल जाती है। स्कूल की वो पुरानी इमारत, गीली ज़मीन से उठती मिट्टी की खुशबू, और एक लड़की—सादगी में लिपटी कोई कविता सी। उसका नाम था नेहा। और मेरा—अंशुमान। हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे—राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, जयपुर। क्लास १०-बी। मैं हमेशा पीछे की बेंच पर बैठता था, किताबों के बीच गुम, और वो हमेशा दूसरी लाइन की खिड़की के पास, बालों को क्लिप से बांधकर, कभी-कभी दूर आसमान में ताकती हुई। मुझे पहली बार जब उसके बारे में कुछ महसूस हुआ, वो इतिहास की…