रचना चौहान चाय की पहली प्याली कचहरी के सामने जो टूटी-फूटी सड़क थी, वहीं एक कोने में लकड़ी की छोटी-सी गाड़ी पर दिन की शुरुआत होती थी एक उबलती केतली की आवाज़ से। सुबह के सात बजते ही उस गाड़ी के पास एक बुज़ुर्ग महिला सफेद सूती साड़ी में आ जातीं, माथे पर बड़ी लाल बिंदी, बाल पूरी तरह सफ़ेद, लेकिन चाल में अब भी गज़ब की चुस्ती। लोग उन्हें नाम से नहीं, दिल से जानते थे—”चाय वाली अम्मा”। पैंतीस साल से उसी जगह चाय बना रही थीं। किसी को नहीं मालूम कि वो कहाँ से आई थीं, कौन उनका…