कौशिक मिश्रा १ गांव की सुबहें हमेशा एक सी होती थीं—मुर्गों की बांग, कुएं पर बर्तनों की छनछन, और स्कूल जाने की हड़बड़ाहट। लेकिन उस दिन जैसे सब कुछ रुका हुआ था। चौधरी टोले के नुक्कड़ पर लोग जमा थे, आंखों में डर और होठों पर चुप्पी। पायल, बारह साल की एक होशियार बच्ची, जो हर रोज़ अपनी साइकिल से स्कूल जाती थी, आज सुबह अपने बिस्तर से ही गायब थी। दरवाज़ा अंदर से बंद था, खिड़कियां सलामत, और कमरे में उसकी किताबें सजी थीं जैसे अभी-अभी वो पढ़ाई करके उठी हो। लेकिन सबसे अजीब था उस दरवाज़े के बाहर…