• Hindi - कल्पविज्ञान

    पृथ्वी 2.0

    राजेश कुमार दास 2094 की वह शाम बाकी शामों से अलग थी। सूरज का अस्तित्व अब प्रतीकात्मक रह गया था—आकाश में केवल राखी धुंध थी और हवा में जलती हुई धातु की गंध। गंगा के घाट सूख चुके थे, हिमालय की बर्फ पिघल चुकी थी, और समुद्रों ने अपनी सीमाएँ लांघ दी थीं। भारत समेत सम्पूर्ण पृथ्वी अब जीवन के योग्य नहीं रही थी। वैश्विक वैज्ञानिक परिषदों, जलवायु आयोगों और पृथ्वी बचाओ संगठनों ने वर्षों तक चेतावनी दी थी, लेकिन देर हो चुकी थी। अब एक ही विकल्प बचा था—पृथ्वी 2.0। भारत ने “सम्भव-1” नामक इंटरप्लैनेटरी मिशन की योजना वर्षों…