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    गढ़वाल का मेहमान

    संजीव रावत १ गढ़वाल की घाटियों में शाम जल्दी उतरती है। सूरज के ढलते ही पहाड़ियों की परछाइयाँ लंबी होकर पूरी घाटी को निगल जाती हैं। नीरज रावत, अपने कंधों पर भारी बैकपैक लटकाए, एक संकरी बर्फ़ीली पगडंडी पर बढ़ रहा था। उसका मफलर बर्फ की सफ़ेद चादर में भीग चुका था और सांसें अब स्टीम की तरह बाहर निकल रही थीं। GPS सिग्नल कब का गायब हो चुका था और मोबाइल अब केवल टाइम दिखाने की मशीन बनकर रह गया था। वह अपने कैमरे से कुछ तस्वीरें लेने की कोशिश कर रहा था, लेकिन हाथ सुन्न पड़ने लगे थे।…