नील मेहता मुंबई की उस सुबह में कुछ अलग था — जैसे भीड़ में भी एक ठहराव था, शोर में भी एक खामोशी छिपी हुई थी। राहुल ने खिड़की की परतों से आती धूप को चेहरे पर महसूस करते हुए अपनी आंखें खोलीं। नया अपार्टमेंट, नया बिस्तर, और एक अजनबी सी खामोशी। शहर तो वही था, लेकिन यह इलाका और यह इमारत उसके लिए नई थी। ऑफिस के काम ने उसे यहां खींच तो लाया था, लेकिन अब वह खुद से पूछने लगा था — क्या भागदौड़ ही सब कुछ है? वो बाथरूम से निकलते ही सीधे बालकनी की ओर…